मुरली और श्रीमत क्या है?
मुरली उस ज्ञान का अभिलेख है जो स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा, अपने साकार माध्यम (रथ) के द्वारा सुनाते हैं। यह अविनाशी ज्ञान, समस्त मनुष्य आत्माओ अर्थात अपने बच्चो के प्रति परमपिता शिव के मधुर महावाक्य हैं।
बचपन से ही हम सभी को अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु परमात्मा की प्रार्थना करना सिखाया जाता है। हम यह भी विश्वास करते हैं कि परमात्मा सब कुछ जानता है ,वह सर्वज्ञ है। अनेकों धर्म में यह माना जाता है कि परमात्मा सत्य है ,वह रचता है और सभी पदार्थ,प्राणी इत्यादि का ज्ञाता है ,किन्तु वह कौन है ? कैसा है ? हमें कब और कैसे वह आकर ज्ञान देता है ?
हमें कहीं न कहीं यह तो निश्चय है कि वह सत्य ज्ञान देने वाला सुखदाता है क्योंकि हमें यह ज्ञान पहले भी मिला है। यह भी कहा जाता है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है। जब परमात्मा आ कर हमें ज्ञान देते हैं तब हमें विश्व नाटक के बारे में ,जो कि अविनाशी चक्र है,ज्ञात होता है। साथ ही हमें स्वयं ,परमात्मा व विनाश के बारे में भी ज्ञात होता है। हम सभी आत्मायें इस विश्व नाटक का भाग हैं, मात्र परमात्मा ही इस विश्व नाटक से अलग है।
वर्त्तमान संगम युग ही वह समय है जब परमात्मा आ कर हमें आत्मा व परमात्मा का परिचय देते हैं।
हम बच्चों को यह सत्य ज्ञान, निराकार परमात्मा, साकार प्रजापिता ब्रह्मा तन के द्वारा देते हैं। ब्रह्मा बाबा ,शिव बाबा के रथ हैं और उनके तन द्वारा ,शिव बाबा नई सृष्टि की स्थापना करते हैं। इसलिए बाद में हिन्दू शास्त्रों में ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा गया।
मुरली का महत्व (video)
ज्ञान मुरली - ब्राह्मणों का जीवन आधार
मुरलियाँ, शिव बाबा के सत्य वचन, ब्रह्मा मुख के माध्यम से साकार रूप में 1951 से 1969 तक उचारे गये महावाक्य हैं। (इसलिए इनको साकार मुरली कहा जाता है) ये अनमोल शिक्षायें सालों-साल से संरक्षित किये गए हैं एवं प्रतिदिन सभी 9000 ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्रों में वितरित किये जाते हैं जिन्हें दैनिक मुरली क्लास में सेवाकेंद्र संचालिका बहन द्वारा अन्य भाई - बहानों के लिए पढ़ा जाता है। मुरली प्रतिदिन उनके बुद्धि के भोजन समान है। इस पाठ्यक्रम द्वारा सभी ईश्वरीय पुरुषार्थियों को सही ढंग से सोचने, जीवन यापन एवं सेवा करने की प्रेरणा मिलती है। यह किसी प्रकार का मंत्रोच्चारण आदि नहीं है, किन्तु स्वयं के जीवन में दैवीय संकल्प व विवेक का अनुभव करना है।
साकार मुरली
५००० साल के कल्प के अंत समय, स्वयं परमात्मा आकर एक साधारण वृद्ध शरीर में प्रवेश कर सभी मनुष्य आत्माओ प्रति सत्य ज्ञान सुनाते है। जिसमे प्रवेश करते है उसका नाम 'प्रजापिता ब्रह्मा' रखते है। 1936 से जनवरी 1969 तक उस साकार शरीर द्वारा ज्ञान मुरली सुनाई गयी जिसे ही साकार मुरली कहा जाता है। उसमे भी 1963 से 1969 तक की मुरली recorded है और आज तक भी वही मुरलियाँ रोज पढ़ी और रिवाइज़ की जाती है।
अव्यक्त मुरली
जब प्रजापिता ब्रह्मा (साकार बाबा) ने शरीर छोड़ा और अव्यक्त हो गये तब शिव बाबा (परमात्मा) ब्रह्मा बाबा के साथ एक साकारी शरीर में प्रवेश कर यह ज्ञान सुनाने लगे। निराकार शिव बाबा और आकारी ब्रह्मा मिलकर अव्यक्त बापदादा कहे जाते है। यह अव्यक्त पार्ट 1969 से चला था। अव्यक्त मुरली 1969 से 2015 तक के ईश्वरीय मधुर महावाक्य दादी गुलज़ार के तन द्वारा उचारे गये। पुरानी अव्यक्त वाणियां मानव संसार, प्रकृति व समूचे विश्व के सत्य ज्ञान का अनमोल भंडार हैं।
मुरली का महत्व
हज़ारों ब्राह्मण अपनी दिनचर्या मुरली पढ़ या सुन कर प्रारम्भ करते हैं ताकि वह अपने पारिवारिक संबंधों को श्रीमत के अनुसार आसानी से व्यवस्थित रख सकें। अधिकांश ब्रह्मा कुमार/कुमारियाँ केवल सेवाकेन्द्रों में नहीं अपितु अपने घरों में रहते हैं और इसे ही प्रवृत्ति मार्ग कहा जाता है। प्रवृत्ति में रहते संयमित जीवन जीना ही श्रीमत है।
जब हम पवित्रता ( ब्रह्मचर्य ) को अपने जीवन में अपना लेते हैं तब हम ईश्वरीय विद्यार्थी बनते हैं एवं स्वानुभूति और परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद के साथ एक नया जीवन आरम्भ करते हैं। परमात्मा हमसे मुरली के माध्यम से ही बात करते हैं इसलिए मुरली ही हमारी सच्ची मार्गदर्शक है। यह वो अमृत है जिसके द्वारा हम अपने परमपिता परमात्मा से अपना वर्सा प्राप्त करते हैं। वर्सा क्या है ? यह वो नई दुनिया है जिसे परमात्मा स्वयं आ कर स्थापित करते हैं.
श्रीमत के द्वारा हम अनेक विषयों से अवगत होते हैं ,जिसे अपने जीवन में कार्यान्वित करने से जीवन में स्वस्थिति व परस्थिति को आसानी से व्यवस्थित किया जा सकता है। सार में ,मुरली हमारे कर्मों का मार्ग दर्शक है। मुरली पढ़ने व इसके गहन चिंतन से हमें अपने कर्मों की गुणवत्ता के पता चलता है।
इस ईश्वरीय पढ़ाई का लक्ष्य है दैवीय गुणों द्वारा श्री लक्ष्मी एवं श्री नारायण ( सतयुग के प्रथम मालिक ) बनना और गुणों ,शक्तियों एवं ज्ञान में परमपिता परमात्मा समान बनना।
यदि आपको क्लास में आकर मुरली सुनने का समय नहीं है तो प्रतिदिन इसे नेट सेवा द्वारा प्राप्त कर,थोड़ा समय निकाल सार एवं वरदान पढ़ सकते हैं। यदि आप हिंदी समझ सकते हैं तो हम प्रतिदिन की मुरली कविता रूप में भी भेज सकते हैं जिससे आप उस प्रकार से भी मुरली पढ़ व समझ सकें। जैसे जैसे मुरली का ज्ञान प्रतिदिन और गहरा होता जाता है ,समयानुसार अनेकों में जादुई परिवर्तन लाएगा।
मुरली सुनने का आनंद तब आता है जब आत्मा ,परमात्मा की याद में हो। जब आप मुरली सुनते हैं तो देही-अभिमानी स्थिति में बैठें। इसके लिए यदि आवश्यक हो तो मुरली शुरू होने से 5 मिनट पहले योग में बैठें। योग के लिए guided commentaries भी है।