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- आज की मुरली 13 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 13 January 2021 (Wednesday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - तुम्हारे मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकलने चाहिए, तुम्हारा मुखड़ा सदैव हर्षित रहना चाहिए" प्रश्नः- जिन बच्चों ने ब्राह्मण जीवन में ज्ञान की धारणा की है उनकी निशानी क्या होगी? उत्तर:- 1- उनकी चलन देवताओं मिसल होगी, उनमें दैवीगुणों की धारणा होगी। 2- उन्हें ज्ञान का विचार सागर मंथन करने का अभ्यास होगा। वे कभी आसुरी बातों का अर्थात् किचड़े का मंथन नहीं करेंगे। 3- उनके जीवन से गाली देना और ग्लानी करना बन्द हो जाता है। 4- उनका मुखड़ा सदा हर्षित रहता है। ♫ मुरली सुने ➤ ओम् शान्ति। बाप बैठ समझाते हैं ज्ञान और भक्ति के ऊपर। यह तो बच्चे समझ गये हैं भक्ति से सद्गति नहीं होती है और सतयुग में भक्ति होती नहीं। ज्ञान भी सतयुग में मिलता नहीं। कृष्ण न भक्ति करते हैं, न ज्ञान की मुरली बजाते हैं। मुरली माना ही ज्ञान देना। गायन भी है ना मुरली में जादू। तो जरूर कोई जादू होगा ना! सिर्फ मुरली बजाना, वह तो कॉमन फकीर लोग भी बजाते रहते हैं। इस मुरली में ज्ञान का जादू है। अज्ञान को जादू तो नहीं कहेंगे। मुरली को जादू कहते हैं। मनुष्य से देवता बनते हैं ज्ञान से। जब सतयुग है तो इस ज्ञान का वर्सा है। वहाँ भक्ति होती नहीं। भक्ति होती है द्वापर से, जबकि देवता से मनुष्य बन जाते हैं। मनुष्यों को विकारी, देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है। देवताओं की सृष्टि को पवित्र दुनिया कहा जाता है। अभी तुम देवता बन रहे हो। ज्ञान किसको कहा जाता है? एक तो स्वयं की वा बाप की पहचान और फिर सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज को ज्ञान कहा जाता है। ज्ञान से होती है सद्गति। फिर भक्ति शुरू होती है तो उतरती कला कहा जाता है क्योंकि भक्ति को रात, ज्ञान को दिन कहा जाता है। यह तो कोई की भी बुद्धि में बैठ सकता है परन्तु दैवीगुण धारण नहीं करते हैं। दैवीगुण हों तो समझा जाए ज्ञान की धारणा है। ज्ञान की धारणा वालों की चलन देवता मिसल होती है। कम धारणा वाले की चलन मिक्स रहती है। धारणा नहीं तो गोया वह बच्चे ही नहीं। मनुष्य बाप की कितनी ग्लानि करते हैं। ब्राह्मण कुल में आते हैं तो गाली देना, ग्लानि करना बन्द हो जाता है। तुमको ज्ञान मिलता है, उस पर अपना विचार सागर मंथन करने से अमृत मिलेगा। विचार सागर मंथन ही नहीं करते तो बाकी क्या मंथन होगा? आसुरी विचार। उनसे किचड़ा ही निकलेगा। अभी तुम ईश्वरीय स्टूडेन्ट हो। जानते हो मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़ रहे हैं। देवताएं यह पढ़ाई नहीं पढ़ायेंगे। देवताओं को कभी ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता है। ज्ञान का सागर तो एक को ही कहा जाता है। दैवीगुण भी ज्ञान से धारण होते हैं। यह ज्ञान जो तुम बच्चों को अभी मिलता है, यह सतयुग में नहीं होता। इन देवताओं में दैवीगुण हैं। तुम महिमा भी करते हो सर्वगुण सम्पन्न.... तो अभी तुमको ऐसा बनना है। अपने से पूछना चाहिए हमारे में सब दैवीगुण हैं या कोई आसुरी अवगुण हैं? अगर आसुरी अवगुण हैं तो उनको निकाल देना चाहिए तब ही देवता कहेंगे। नहीं तो कम दर्जा पा लेंगे। अभी तुम बच्चे दैवीगुण धारण करते हो। बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हो। इनको ही कहा जाता है पुरुषोत्तम संगमयुग जबकि तुम पुरुषोत्तम बन रहे हो, तो वातावरण भी बहुत अच्छा होना चाहिए। मुख से कोई भी छी-छी बात न निकले, नहीं तो कहा जायेगा यह कम दर्जे का है। बोलचाल और वातावरण से झट पता पड़ जाता है। तुम्हारा मुखड़ा सदैव हर्षित होना चाहिए। नहीं तो उनमें ज्ञान नहीं कहा जायेगा। मुख से सदैव रत्न निकलें। यह लक्ष्मी-नारायण देखो कितने हर्षितमुख हैं। इन्हों की आत्मा ने ज्ञान रत्न धारण किये थे। मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकलते हैं। रत्न ही सुनते-सुनाते कितनी खुशी रहती है। ज्ञान रत्न जो अभी तुम लेते हो, फिर ये सभी हीरे-जवाहरात बन जाते हैं। 9 रत्नों की माला कोई हीरों-जवाहरातों की नहीं है। इन ज्ञान रत्नों की माला है। मनुष्य लोग फिर वह रत्न समझ अंगूठियां आदि पहन लेते हैं। इन ज्ञान रत्नों की माला पुरुषोत्तम संगमयुग पर पड़ती है। यह रत्न ही तुमको भविष्य 21 जन्मों के लिए मालामाल बनाते हैं। इनको कोई लूट न सके। यहाँ तुम यह हीरे जवाहरात पहनों तो झट कोई लूट ले जाए। तो अपने को बहुत-बहुत समझदार बनाना है। आसुरी अवगुणों को निकालना है। आसुरी अवगुणों से शक्ल ही ऐसी हो जाती है। क्रोध में लाल-लाल ताम्बे जैसी शक्ल हो जाती है। काम विकार वाले तो काले बन जाते हैं। तो बच्चों को हर बात में विचार सागर मंथन करना चाहिए। यह पढ़ाई है ही बहुत धन पाने की। वह पढ़ाई कोई रत्न थोड़ेही है। हाँ, नॉलेज पढ़कर बड़ा पोजीशन पा लेते हैं। तो पढ़ाई काम आई, न कि पैसा। पढ़ाई ही धन है। वह है हद का धन, फिर यह है बेहद का धन। हैं दोनों पढ़ाई। अभी तुम समझते हो बाप हमको पढ़ाकर विश्व का मालिक बना देते हैं। वह अल्पकाल क्षण भंगुर की पढ़ाई है एक जन्म के लिए। फिर दूसरे जन्म में नये सिर पढ़ना पड़े। वहाँ धन के लिए पढ़ाई की दरकार नहीं। वहाँ तो अभी के पुरुषार्थ से अकीचार (अथाह) धन मिल जाता है। धन अविनाशी बन जाता है। देवताओं के पास धन बहुत था फिर जब भक्ति मार्ग अर्थात् रावणराज्य में आये तो कितना था, कितने मन्दिर बनाये हुए हैं। फिर आकर मुसलमानों आदि ने धन लूटा। कितने धनवान थे! आज की पढ़ाई से इतना धनवान कोई बन नहीं सकेंगे। तुम अभी जानते हो हम इतनी ऊंची पढ़ाई पढ़ते हैं जिससे यह (देवी-देवता) बनते हैं। तो पढ़ाई से देखो मनुष्य क्या बन जाते हैं! गरीब से साहूकार। अभी भारत भी कितना गरीब है। साहूकारों को तो फुर्सत ही नहीं है। अपना अहंकार रहता है - मैं फलाना हूँ। इसमें अहंकार आदि मिट जाना चाहिए। हम आत्मा हैं, आत्मा के पास तो धन-दौलत, हीरे-जवाहरात आदि कुछ भी नहीं हैं। बाप भी कहते हैं देह सहित सब संबंध छोड़ो। आत्मा शरीर छोड़ती है तो साहूकारी आदि सब खत्म हो जाती है। जब नयेसिर पढ़कर फिर धन कमावे या तो दान-पुण्य अच्छा किया हो तो साहूकार के घर जन्म लेंगे। कहते हैं ना पास्ट के कर्मों का फल है। नॉलेज का दान किया होगा वा कॉलेज-धर्मशाला आदि बनाई है तो उसका फल मिलता है परन्तु अल्पकाल के लिए। यह दान-पुण्य भी यहाँ किया जाता है। सतयुग में नहीं किया जाता है। सतयुग में अच्छे ही कर्म होते हैं क्योंकि अभी का वर्सा मिला हुआ है। वहाँ कोई का भी विकर्म होता नहीं क्योंकि रावण ही नहीं है। गरीबों का भी विकर्म नहीं बनेगा। यहाँ तो साहूकारों के भी विकर्म बनते हैं। तब तो यह बीमारियां आदि दु:ख होते हैं। वहाँ विकार में जाते ही नहीं तो विकर्म कैसे बनेंगे? सारा मदार है कर्मों पर। यह माया रावण का राज्य है, जो मनुष्य विकारी बन जाते हैं। बाप आकर पढ़ाते हैं निर्विकारी बनाने लिए। बाप निर्विकारी बनाते हैं, माया फिर विकारी बना देती है। रामवंशी और रावणवंशी की युद्ध चलती है। तुम बाप के बच्चे हो, वह रावण के बच्चे हैं। कितने अच्छे-अच्छे बच्चे माया से हार खा लेते हैं। माया बड़ी प्रबल है। फिर भी उम्मींद रखते हैं। अधम से अधम (बिल्कुल पतित) का भी उद्धार करना होता है ना। बाप को तो सारे विश्व का उद्धार करना होता है। बहुत गिरते हैं। एकदम चट खाते में अधम से अधम बन जाते हैं। ऐसे का भी बाप उद्धार करते हैं। अधम तो सब हैं रावण राज्य में, परन्तु बाप बचाते हैं। फिर भी गिरते रहते हैं, तो बहुत अधम बन जाते हैं। उनका फिर इतना चढ़ना नहीं होता है। वह अधमपना अन्दर खाता रहता है। जैसे तुम कहते हो अन्तकाल जो.. उनकी बुद्धि में वह अधमपना ही आता रहेगा। तो बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, कल्प-कल्प तुम ही देवता बनते हो। जानवर बनेंगे क्या? मनुष्य ही बनते हैं और समझते हैं। इन लक्ष्मी-नारायण को भी नाक कान आदि हैं, मनुष्य हैं ना! परन्तु दैवी गुणों वाले इसलिए इनको देवता कहा जाता है। यह ऐसा सुन्दर देवता कैसे बनते हैं, फिर कैसे गिरते हैं, इस चक्र का तुमको मालूम पड़ गया है। जो विचार सागर मंथन करते होंगे उनको धारणा भी अच्छी होगी। विचार सागर मंथन ही नहीं करते तो बुद्धू बन पड़ते, मुरली चलाने वाले का विचार सागर मंथन चलता रहेगा। इस टॉपिक पर यह-यह समझाना है। ऑटोमेटिकली विचार सागर मंथन चलता है। फलाने आने वाले हैं उन्हों को भी हुल्लास से समझायेंगे। हो सकता है कुछ समझ जाए। भाग्य पर है। कोई झट निश्चय करेंगे, कोई नहीं करेंगे। उम्मींद रखी जाती है। अभी नहीं तो आगे चलकर समझेंगे जरूर। उम्मीद रखनी चाहिए ना! उम्मीद रखना माना सर्विस का शौक है। थकना नहीं है। भल कोई पढ़कर फिर अधम बना है, आता है तो जरूर उनको विजिटिंग रूम में बिठायेंगे। वा कहेंगे चले जाओ? जरूर पूछेंगे इतने दिन क्यों नहीं आये? कहेंगे माया से हार खा ली। ऐसे ढेर आते हैं। समझते हैं ज्ञान बहुत अच्छा था परन्तु माया ने हरा दिया। स्मृति तो रहती है ना। भक्ति में तो हारने और जीतने की बात ही नहीं रहती। यह नॉलेज धारण करने की है। अभी तुम बाप द्वारा सच्ची गीता सुनते हो जिससे देवता बन जाते। बिगर ब्राह्मण बने देवता बन नहीं सकते। क्रिश्चियन, पारसी, मुसलमानों में ब्राह्मण होते ही नहीं। यह सब बातें अभी तुम समझते हो। तुम जानते हो अल्फ को याद करना है। अल्फ को याद करने से ही बादशाही मिलती है। जब भी तुमको कोई मिले बोलो अल्फ अल्लाह को याद करो। अल्फ को ही ऊंच कहा जाता है। अंगुली से अल्फ का इशारा करते हैं ना! अल्फ को एक भी कहा जाता है। एक ही भगवान है। बाकी तो सब हैं बच्चे। बाप तो सदैव अल्फ ही रहते हैं। बादशाही करते नहीं। ज्ञान भी देते हैं, अपना बच्चा भी बनाते हैं तो बच्चों को कितनी खुशी में रहना चाहिए। बाबा हमारी कितनी सेवा करते हैं। हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। फिर खुद उस नई पवित्र दुनिया में आते ही नहीं। पावन दुनिया में उनको कोई बुलाते ही नहीं। पतित ही बुलाते हैं। पावन दुनिया में क्या आकर करेंगे। उनका नाम ही है पतित-पावन, तो पुरानी दुनिया को नया बनाने की उनकी ड्युटी है। बाप का नाम है शिव, और सालिग्राम बच्चों को कहा जाता है। उनकी पूजा होती है। शिवबाबा कह सब याद करते हैं। दूसरा ब्रह्मा को भी बाबा कहते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा कहते तो बहुत हैं परन्तु उनको यथार्थ रीति जानते नहीं हैं। ब्रह्मा किसका बच्चा है? तुम कहेंगे परमपिता परमात्मा शिव ने उनको एडाप्ट किया है। यह तो शरीरधारी है ना! ईश्वर की औलाद सब आत्मायें हैं। सब आत्माओं को अपना-अपना शरीर है। अपना-अपना पार्ट मिला है, जो बजाना ही है। यह परम्परा से चला आता है। अनादि अर्थात् उनका आदि-मध्य-अन्त नहीं। मनुष्य सुनते हैं, एण्ड होती है, तो फिर मूँझते हैं कि फिर बनेंगे कैसे? बाप समझाते हैं यह अनादि है। कब बने हैं, यह पूछने का नहीं रहता। प्रलय होती ही नहीं। यह भी गपोड़ा लगा दिया है। थोड़े मनुष्य हो जाते हैं इसलिए कहा जाता है जैसे प्रलय हो गई। बाबा में जो ज्ञान है वह अभी ही इमर्ज होता है। इनके लिए ही कहते हैं - सारा सागर स्याही (मस) बनाओ...... तो भी पूरा नहीं होगा। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार अपने हर्षितमुख मुखड़े से बाप का नाम बाला करना है। ज्ञान रत्न ही सुनने और सुनाने हैं। गले में ज्ञान रत्नों की माला पड़ी रहे। आसुरी अवगुणों को निकाल देना है। सर्विस में कभी थकना नहीं है। उम्मीद रख शौक से सर्विस करनी है। विचार सागर मंथन कर उल्लास में रहना है। वरदान:- स्नेह के रिटर्न में समानता का अनुभव करने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न भव जो बच्चे बाप के स्नेह में सदा समाये हुए रहते हैं उन्हें स्नेह के रेसपॉन्स में बाप समान बनने का वरदान प्राप्त हो जाता है। जो सदा स्नेहयुक्त और योगयुक्त हैं वह सर्व शक्तियों से सम्पन्न स्वत: बन जाते हैं। सर्व शक्तियां सदा साथ हैं तो विजय हुई पड़ी है। जिन्हें स्मृति रहती कि सर्वशक्तिमान् बाप हमारा साथी है, वह कभी किसी भी बात से विचलित नहीं हो सकते। स्लोगन:- पुरुषार्थी जीवन में जो सदा सन्तुष्ट और खुश रहने वाले हैं वही खुशनसीब हैं। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 12 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 12 January 2021 (Tuesday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, keep a register of both your study and your divine character. Check every day whether you have made a mistake." Question: By making which effort do you children claim a tilak for the kingdom?* Words that Baba spoke in English are shown in italics. Answer: 1. Make effort to remain constantly obedient. At the confluence age, if you give the tilak of being one who obeys orders, you will receive the tilak for the kingdom. To be unfaithful means to be one who doesn’t obey orders. Such ones cannot receive the tilak for the kingdom. 2. Do not hide any illness from the Surgeon. If you hide anything, your status will be reduced. Become an ocean of love, the same as the Father and you will receive a tilak for the kingdom. ♫ Listen Today's Murli ➤ Om Shanti. The spiritual Father explains to you spiritual children: To study means to understand. You children understand that this study is very easy, very high and gives you a high status. Only you children know that you are studying this study to become the masters of the world. So, those who are studying should have a lot of happiness. It is such an elevated study. This is that same episode of the Gita. It is also the confluence age. You children have now awakened whereas all the rest are still sleeping. There is the praise that people are still sleeping in the sleep of Maya. Baba has come and awakened you. He explains to you just one thing: Sweet children, with the power of the pilgrimage of remembrance you can rule the whole world, just as you did in the previous cycle. The Father reminds you of this. You children understand that you have now remembered: every cycle we become the masters of the world with this power of yoga and we also imbibe divine virtues. You have to pay full attention to yoga. With this power of yoga, you children automatically develop divine virtues. This is truly the examination to change from human beings into deities. You have come here to change from human beings into deities with the power of yoga. You also know that the whole world is to become pure through your power of yoga. It was pure and it has now become impure. You children have understood the secret of the whole cycle and it is also in your hearts. Even if a new person comes, these are very easy things to understand. You deities were worthy of worship and you then become tamopradhan worshippers. No one else can tell you this. The Father tells you clearly : That is the path of devotion and this is the path of knowledge. Devotion is now in the past. Do not remember things of the past. Those are things to make you fall. The Father is now telling you things for ascending. You children know that you definitely have to imbibe divine virtues. You should write your chart every day: For how long did I stay in remembrance? What mistakes did I make? One is very badly hurt by the mistake one makes. In those studies, one’s character is also considered. Here, too, your character is seen. The Father is only telling you this for your benefit. Here, too, a register is kept of the study and your character. Here too, the children’s character has to be made divine. You have to be careful that you don’t make a mistake. I didn’t make any mistakes, did I? This is why a court is held. A court is not held in any other school. You have to ask your heart. The Father has explained that, because of Maya, there is one or another form of disobedience. A court used to be held in the beginning too. Children would tell the truth. The Father continues to explain to you: If you don’t tell the truth, those mistakes will then continue to grow, and you will receive even more punishment for your mistakes for no reason. By not telling Baba about your mistakes, you receive the tilak of being disobedient. You cannot then receive the tilak for the kingdom. If you don’t obey orders and you are unfaithful, you cannot claim the kingdom. The Surgeon continues to explain to you in different ways. If you hide your illness from the Surgeon, your status will be reduced. You won’t be beaten if you tell the Surgeon. The Father would simply say: Be careful! If you make such a mistake again, you will incur a loss; your status will become very low. There, they will naturally have divine activities. Here, you have to make effort. You must not repeatedly fail. The Father says: Children, do not make any mistakes. The Father is the Ocean of a lot of love. Children, you too also have to become that. As is the Father, so are the children. As are king and queen, so are the subjects. Baba is not a king. You know that Baba is making you the same as He is. The praise that is sung of the Father should also be your praise. You have to become equal to Baba. Maya is very powerful: she doesn’t allow you to keep your register. You are totally trapped in Maya’s claws. You cannot come out of Maya’s jail. You don’t tell the truth. So, the Father says: Keep an accurate chart of remembrance. Wake up early in the morning and remember Baba. Praise only the Father. Baba, You make us into the masters of the world, and so we will praise You. People sing so much praise on the path of devotion; they don’t know anything. There is no praise of the deities. The praise is of you Brahmins. It is the one Father who grants everyone salvation. He is the Creator and also the Director. He does service and also explains to you children. He tells you everything practically. Those people simply continue to listen to the versions of God from the scriptures. They have been reading the Gita, but what do they receive from that? They sit and study that with so much love; they perform devotion and yet they don’t know what they will receive from it. They don’t know that they are continuing to come down the ladder. Day by day, they have to become tamopradhan; it is fixed in the drama. No one, except the Father, can tell you the secret of this ladder. Only Shiv Baba explains to you through Brahma. This one also understands from that One and he then explains to you. The Father is the main, senior Teacher and the Surgeon. You have to remember Him alone. He doesn’t tell you to remember your Brahmin teacher. You have to remember just the One. Do not have attachment to anyone. Take teachings from only the one Father. You also have to become free from attachment. This requires a lot of effort. You have disinterest in the whole of the old world. This world is already finished. You don’t have any love or attraction to it. They continue to build so many big buildings etc. They don’t know how much longer this old world will remain. You children have now awakened and you also awaken others. The Father only awakens souls. He repeatedly tells you: Consider yourself to be a soul. By considering yourself to be a body, it is as though you are still asleep. Consider yourself to be a soul and also remember the Father. When a soul is impure, he receives an impure body. When a soul is pure, he receives a pure body. The Father explains: You belonged to that deity clan and you will then become that again. It is so easy! Why would we not remember such an unlimited Father? Wake up in the morning and remember the Father. Baba, it is Your wonder. You make us into such elevated deities and you then go and sit in the land of nirvana. No one else can make us as elevated. You tell us everything so easily. The Father says: Whatever time you have, even whilst doing your work, you can remember the Father. It is only remembrance that will make your boat go across, that is, it will take you from this iron age to the land of Shiva. You also have to remember the land of Shiva, the heaven that Shiv Baba established. So, you remember both. We will become the masters of heaven by remembering Shiv Baba. This study is for the new world. The Father comes here to establish the new world. The Father would definitely come and perform some task too. You can see that I am playing My part according to the drama plan. I am telling you children the secret of the pilgrimage of remembrance and the beginning, the middle and the end of 5000 years. You know that Baba comes personally in front of you every 5000 years. It is the soul that speaks, the body doesn’t speak. The Father gives teachings to you children: It is the soul that has to be made pure. It is only once that the soul has to become pure. Baba says: I have taught you many times and will teach you again. None of the sannyasis can say this. Only the Father says: Children, I have come to teach you according to the drama plan and then I will come and teach you in the same way in 5000 years’ time, just as I taught you in the previous cycle and established the kingdom. I have taught you many times and established the kingdom. These things, which the Father explains are so wonderful. Shrimat is so elevated. It is only through shrimat that you become the masters of the world. It is a very high status. When someone wins a huge lottery, his head is spoilt. Some become hopeless whilst moving along: I cannot study anymore. How can I claim the sovereignty of the world? You children should have a lot of happiness. Baba says: Ask My children about super-sensuous joy and happiness! You go to tell everyone things of happiness. You were the masters of the world and then, after taking 84 births, you have become slaves. They sing, "I am Your slave. I am Your slave.” They believe that to call themselves degraded and to consider themselves to be small is good. Look who the Father is! No one knows Him. Only you now know Him. Baba comes and explains to all of you and calls you, "Child, child!” This is the meeting of souls with the Supreme Soul. We receive the sovereignty of heaven from Him. No one can receive the kingdom of heaven by bathing in the River Ganges. You have bathed in the Ganges many times. In fact, water comes from the ocean, but how this rain falls is also a wonder of nature. At this time, the Father explains everything to you. It is the soul that imbibes, not the body. You can feel, "Truly, look at what Baba has made me from what I was!” The Father now says: Children, have mercy on yourselves. Do not be disobedient. Do not become body conscious. You will lose your status for no reason. The Teacher would explain to you. You know that the Father is the unlimited Teacher. There are so many languages in the world. If anything is printed, it should be printed in all languages. When you have literature printed, send everyone a copy. One copy should also be sent to the library. There is no question of expense in this. Baba’s treasure box will become very full. What would you do by keeping the money with you? You would not take it with you to your home. If you take anything home with you, that would be stealing from Shiv Baba’s sacrificial fire. That would be a great mistake. Let no one have an intellect like that. There cannot be any greater sinful soul than one who steals from God’s sacrificial fire. He would reach the completely degraded stage. The Father says: All of this is part of the drama. You will then rule and they will become servants. How would the kingdom continue without servants? Establishment had taken place in the same way. The Father now says: If you want to benefit yourself, follow shrimat! Imbibe divine virtues! To get angry is not a divine virtue; it is a devilish trait. If someone is getting angry, you should quieten that one down. You should not respond to that one. You can understand from each one’s activities. Everyone has devilish traits. When someone is angry, his face becomes as red as copper. They drop bombs through their words; they cause a loss for themselves and their status is destroyed. You should have understanding. The Father says: Write down the sins you have committed. By telling Baba about it, you will be forgiven and your burden will be lightened. You have been indulging in vice for birth after birth. If you commit any sin at this time, one hundred-fold punishment will be accumulated. If you make a mistake in front of the Father, there will be one hundred-fold punishment. If you do something and don’t tell Baba about it, it will increase. The Father would explain: Do not cause yourself a loss. The Father has come to make the intellects of you children very good. He knows what status you will claim; and that is also a matter for 21 births. The nature of serviceable children has to be very sweet. Some instantly tell the Father: Baba, I made this mistake. Baba is pleased with them. That One is the Father, Teacher and Guru, all three. When God is happy with you, what more could you want? Otherwise, all three will get upset. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli Follow shrimat and let your intellect remain good. Do not disobey any orders. Do not get angry and drop bombs through your words. Remain silent. Praise the one Father from your heart. Do not have any attraction or love for this old world. Be one who has unlimited disinterest and remain free from attachment. Blessing: May you become an image that grants visions who makes the atmosphere avyakt with your avyakt and peaceful form. Just as you make other programmes for service, in the same way, also make a programme for staying on the pilgrimage of remembrance from morning till night, and every now and then stop the traffic of your thoughts for two to three minutes. When someone is seen in a lot of gross consciousness, then, without saying anything to that one, adopt such an avyakt and peaceful form yourself that that one understands from a signal. By your doing this, the atmosphere will remain avyakt. Something unique will be visible and you will become an image that grants visions. Slogan:- Complete truth is the basis of purity. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 12 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 12 January 2021 (Tuesday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - पढ़ाई और दैवी कैरेक्टर्स का रजिस्टर रखो, रोज़ चेक करो कि हमसे कोई भूल तो नहीं हुई" प्रश्नः- प्रश्न:- तुम बच्चे किस पुरूषार्थ से राजाई का तिलक प्राप्त कर सकते हो? उत्तर:- 1. सदा आज्ञाकारी रहने का पुरूषार्थ करो। संगम पर फ़रमानबरदार का टीका दो तो राजाई का तिलक मिल जायेगा। बेव़फादार अर्थात् आज्ञा को न मानने वाले राजाई का तिलक नहीं प्राप्त कर सकते। 2. कोई भी बीमारी सर्जन से छिपाओ नहीं। छिपायेंगे तो पद कम हो जायेगा। बाप जैसा प्यार का सागर बनो तो राजाई का तिलक मिल जायेगा। ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- मरना तेरी गली में........ ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझा रहे हैं, पढ़ाई माना समझ। तुम बच्चे समझते हो यह पढ़ाई बहुत सहज और बहुत ऊंची है और बहुत ऊंच पद देने वाली है। यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो कि यह पढ़ाई हम विश्व का मालिक बनने के लिए पढ़ रहे हैं। तो पढ़ने वालों को बहुत खुशी होनी चाहिए। कितनी ऊंची पढ़ाई है! यह वही गीता एपीसोड भी है। संगमयुग भी है। तुम बच्चे अब जगे हो, बाकी सब सोये पड़े हैं। गायन भी है माया की नींद में सोये पड़े हैं। तुमको बाबा ने आकर जगाया है। सिर्फ एक बात पर समझाते हैं - मीठे बच्चे, याद की यात्रा के बल से तुम सारे विश्व पर राज्य करो। जैसे कल्प पहले किया था। यह स्मृति बाप दिलाते हैं। बच्चे भी समझते हैं हमें स्मृति आई - कल्प-कल्प हम इस योगबल से विश्व का मालिक बनते हैं और फिर दैवीगुण भी धारण किये हैं। योग पर ही पूरा ध्यान देना है। इस योगबल से तुम बच्चों में ऑटोमेटिकली दैवीगुण आ जाते हैं। बरोबर यह इम्तहान है ही मनुष्य से देवता बनने का। तुम यहाँ आये हो योगबल से मनुष्य से देवता बनने के लिए। और यह भी जानते हो कि हमारे योगबल से सारा विश्व पवित्र होना है। पवित्र था, अब अपवित्र बना है। सारे चक्र के राज़ को तुम बच्चों ने समझा है और दिल में भी है। भल कोई नया हो तो भी यह बातें बहुत सहज हैं समझने की। तुम देवता पूज्य थे, फिर पुजारी तमोप्रधान बने और कोई ऐसे बतला भी न सके। बाप क्लीयर बताते हैं वह है भक्ति मार्ग, यह है ज्ञान मार्ग। भक्ति पास्ट हो गई। पास्ट की बात चितवो नहीं। वो तो गिरने की बात है। बाप अब चढ़ने की बातें सुना रहे हैं। बच्चे भी जानते हैं - हमको दैवीगुण धारण करने है जरूर। रोज़ चार्ट लिखना चाहिए - हम कितना समय याद में रहते हैं? हमारे से क्या क्या भूलें हुई? भूल की भारी चोट भी लगती है, उस पढ़ाई में भी कैरेक्टर्स देखे जाते हैं। इसमें भी कैरेक्टर देखा जाता है। बाप तो तुम्हारे कल्याण के लिए ही कहते हैं। उसमें भी रजिस्टर रखते हैं - पढ़ाई का और कैरेक्टर का। यहाँ भी बच्चों का दैवी कैरेक्टर बनाना है। भूल न हो, यह सम्भाल करनी है। मेरे से कोई भूल तो नहीं हुई? इसलिए कचहरी भी करते हैं। और कोई स्कूल आदि में कचहरी नहीं होती। अपने दिल से पूछना है। बाप ने समझाया है माया के कारण कुछ-न-कुछ अवज्ञायें होती रहती हैं। शुरू में भी कचहरी होती थी। बच्चे सच बताते थे। बाप समझाते रहते हैं - अगर सच न बताया तो वह भूलें वृद्धि को पाती रहेंगी। उल्टा और भूल का दण्ड मिल जाता है। भूल न बताने से फिर ऩाफरमानबरदार का टीका लग जाता है। फिर राजाई का तिलक मिल न सके। आज्ञा नहीं मानते हैं, बेव़फादार बनते हैं तो राजाई पा नहीं सकते। सर्जन भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाते रहते हैं। सर्जन से अगर बीमारी छिपायेंगे तो पद भी कम हो जायेगा। सर्जन को बताने से कोई मार तो नहीं पड़ती है ना। बाप सिर्फ कहेंगे सावधान। फिर अगर ऐसी भूल करेंगे तो नुकसान को पायेंगे। पद बहुत कम हो जायेगा। वहाँ तो नैचुरल दैवी चलन होगी। यहाँ पुरूषार्थ करना है। घड़ी-घड़ी फेल नहीं होना है। बाप कहते हैं - बच्चे, जास्ती भूल न करो। बाप बहुत प्यार का सागर है। बच्चों को भी बनना है। यथा बाप तथा बच्चे। यथा राजा रानी तथा प्रजा। बाबा तो राजा है नहीं। तुम जानते हो बाबा हमको आप समान बनाते हैं। बाप की जो महिमा करते हैं, वह तुम्हारी भी होनी चाहिए। बाबा समान बनना है। माया बड़ी प्रबल है, तुमको रजिस्टर रखने नहीं देती है। माया के फँदे में तो पूरे फँसे हुए हो। माया की जेल से तुम निकल नहीं सकते हो। सच बताते नहीं हो। तो बाप कहते हैं एक्यूरेट याद का चार्ट रखो। सुबह को उठ बाबा को याद करो। बाप की ही महिमा करो। बाबा, आप हमको विश्व का मालिक बनाते हो तो हम आपकी महिमा करेंगे। भक्ति मार्ग में कितनी महिमा गाते हैं, उनको तो कुछ भी पता नहीं। देवताओं की महिमा है नहीं। महिमा है तुम ब्राह्मणों की। सबको सद्गति देने वाला भी एक बाप है। वह क्रियेटर भी है, डायरेक्टर भी है। सर्विस भी करते हैं और बच्चों को समझाते भी हैं। प्रैक्टिकल में कहते हैं। वो तो सिर्फ भगवानुवाच सुनते रहते हैं शास्त्रों से। गीता पढ़ते आते हैं फिर उनसे मिलता क्या है? कितना प्रेम से बैठ पढ़ते हैं, भक्ति करते हैं, पता नहीं पड़ता कि इनसे क्या होगा! यह नहीं जानते कि हम नीचे ही सीढ़ी उतर रहे हैं। दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान बनना ही है। ड्रामा में नूँध ही ऐसी है। इस सीढ़ी का राज़ सिवाए बाप के कोई समझा न सके। शिवबाबा ही ब्रह्मा द्वारा समझाते हैं। यह भी इनसे समझकर फिर तुमको समझाते हैं। मूल बड़ा टीचर, बड़ा सर्जन तो बाप ही है। उनको ही याद करना है। ऐसे नहीं कहते कि ब्राह्मणी को याद करो। याद तो एक की रखनी है। कभी भी किसी के साथ मोह नहीं रखना है। एक बाप से ही शिक्षा लेनी है। निर्मोही भी बनना है। इसमें बड़ी मेहनत चाहिए। सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य। यह तो ख़त्म हुई पड़ी है। इसमें लव वा आसक्ति कुछ भी नहीं। कितने बड़े-बड़े मकान आदि बनाते रहते हैं। उन्हों को यह भी पता नहीं कि यह पुरानी दुनिया बाकी कितना समय है। तुम बच्चे अब जगे हो औरों को भी जगाते हो। बाप आत्माओं को ही जगाते हैं, घड़ी-घड़ी कहते हैं अपने को आत्मा समझो। शरीर समझते हो तो जैसे सोये पड़े हो। अपने को आत्मा समझो और बाप को भी याद करो। आत्मा पतित है तो शरीर भी पतित मिलता है। आत्मा पावन तो शरीर भी पावन मिलता है। बाप समझाते हैं तुम ही इस देवी-देवता घराने के थे। फिर तुम ही बन जायेंगे। कितना सहज है। ऐसे बेहद के बाप को हम क्यों नहीं याद करेंगे। सुबह उठकर भी बाप को याद करो। बाबा आपकी तो कमाल है, आप हमको कितना ऊंच देवी-देवता बनाकर फिर निर्वाणधाम में बैठ जाते हो। इतना ऊंच तो कोई बना न सके। आप कितना सहज कर बतलाते हो। बाप कहते हैं - जितना टाइम मिले, कामकाज करते हुए भी बाप को याद कर सकते हो। याद ही तुम्हारा बेड़ा पार करने वाली है अर्थात् कलियुग से उस पार शिवालय में ले जाने वाली है। शिवालय को भी याद करना है, शिवबाबा का स्थापन किया हुआ स्वर्ग - तो दोनों की याद आती है। शिवबाबा को याद करने से हम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए। बाप भी नई दुनिया स्थापन करने आते हैं। जरूर बाप आकर कोई तो कर्तव्य करेंगे ना। तुम देखते भी हो मैं पार्ट बजा रहा हूँ, ड्रामा के प्लैन अनुसार। तुम बच्चों को 5 हज़ार वर्ष पहले वाली याद की यात्रा और आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताता हूँ। तुम जानते हो हर 5 हज़ार वर्ष के बाद बाबा हमारे सम्मुख आता है। आत्मा ही बोलती है, शरीर नहीं बोलेगा। बाप बच्चों को शिक्षा देते हैं - आत्मा को ही प्योर बनाना है। आत्मा को एक बार ही प्योर होना होता है। बाबा कहते हैं मैंने अनेक बार तुमको पढ़ाया फिर भी पढ़ाऊंगा। ऐसे कोई सन्यासी कह न सके। बाप ही कहते हैं - बच्चे, मैं ड्रामा के प्लैन अनुसार पढ़ाने आया हूँ। फिर 5 हज़ार वर्ष के बाद ऐसे ही आकर पढ़ाऊंगा, जैसे कल्प पहले तुमको पढ़ाकर राजधानी स्थापन की थी, अनेक बार तुमको पढ़ाकर राजाई स्थापन की है। यह कितनी वण्डरफुल बातें बाप समझाते हैं। श्रीमत कितनी श्रेष्ठ है। श्रीमत से ही हम विश्व के मालिक बनते हैं। बहुत-बहुत बड़ा मर्तबा है! कोई को बड़ी लॉटरी मिलती है तो माथा खराब हो जाता है। कोई चलते-चलते होपलेस हो जाते हैं। हम पढ़ नहीं सकते। हम विश्व की बादशाही कैसे लेंगे। तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। बाबा कहते हैं अतीन्द्रिय सुख और खुशी की बातें मेरे बच्चों से पूछो। तुम जाते हो सबको खुशी की बातें सुनाने। तुम ही विश्व के मालिक थे फिर 84 जन्म भोग गुलाम बने हो। गाते भी हैं मैं गुलाम, मैं गुलाम तेरा। समझते हैं अपने को नीच कहना, छोटा होकर चलना अच्छा है। देखो, बाप कौन है! उनको कोई जानते नहीं। उनको भी सिर्फ तुमने जाना है। बाबा कैसे आकर सबको बच्चा-बच्चा कह समझाते हैं। यह आत्मा और परमात्मा का मेला है। उनसे हमको स्वर्ग की बादशाही मिलती है। बाकी गंगा स्नान आदि करने से कोई स्वर्ग की राजाई नहीं मिलती। गंगा स्नान तो बहुत बार किया। यूँ तो पानी सागर से आता है परन्तु यह बरसात कैसे पड़ती है, इनको भी कुदरत कहेंगे। इस समय बाप तुमको सब कुछ समझाते हैं। धारणा भी आत्मा ही करती है, न कि शरीर। तुम फील करते हो बरोबर बाबा ने हमको क्या से क्या बना दिया है! अब बाप कहते हैं - बच्चे, अपने पर रहम करो। कोई अवज्ञा न करो। देह-अभिमानी मत बनो। मुफ्त अपना पद कम कर देंगे। टीचर तो समझायेंगे ना। तुम जानते हो बाप बेहद का टीचर है। दुनिया में कितनी ढेर भाषायें हैं। कोई भी चीज छपती है तो सब भाषाओं में छपानी चाहिए। कोई लिटरेचर छपाते हो तो सबको एक-एक कापी भेज दो। एक-एक कॉपी लाइब्रेरी में भेज देनी चाहिए। खर्चे की बात नहीं। बाबा का भण्डारा बहुत भर जायेगा। पैसा अपने पास रखकर क्या करेंगे। घर तो नहीं ले जायेंगे। अगर कुछ घर ले जायें तो परमात्मा के यज्ञ की चोरी हो जाये। तोबां-तोबां, ऐसी बुद्धि शल किसकी न हो। परमात्मा के यज्ञ की चोरी! उन जैसा महान् पाप आत्मा कोई हो न सके। कितनी अधमगति हो जाती है। बाप कहते हैं यह सब ड्रामा में पार्ट है। तुम राजाई करेंगे वह तुम्हारे सर्वेन्ट बनेंगे। सर्वेन्ट बिगर राजाई कैसे चलेगी! कल्प पहले भी ऐसे ही स्थापना हुई थी। अब बाप कहते हैं - अपना कल्याण करना चाहते हो तो श्रीमत पर चलो। दैवीगुण धारण करो। क्रोध करना दैवीगुण नहीं है। वह आसुरी गुण हो जाता है। कोई क्रोध करे तो चुप कर देना चाहिए। रेसपान्स नहीं करना चाहिए। हर एक की चलन से समझ सकते हैं, अवगुण तो सबमें हैं। जब कोई क्रोध करते हैं तो उनकी शक्ल तांबे जैसी हो जाती है। मुख से बाम चलाते हैं। अपना ही नुकसान कर देते हैं। पद भ्रष्ट हो जायेगा। समझ होनी चाहिए। बाप कहते हैं जो पाप कर्म करते हो, वह लिख दो। बाबा को बताने से माफ हो जायेगा। बोझ हल्का हो जायेगा। जन्म-जन्मान्तर से तुम विकार में जाने लगे हो। इस समय तुम कोई पाप कर्म करेंगे तो सौगुणा हो जायेगा। बाप के आगे भूल की तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। किया और बताया नहीं तो और ही वृद्धि हो जायेगी। बाप तो समझायेंगे कि अपने को नुकसान नहीं पहुँचाओ। बाप बच्चों की बुद्धि सालिम (अच्छी) बनाने आये हैं। जानते हैं यह कैसा पद पायेंगे। वह भी 21 जन्मों की बात है। जो सर्विसएबुल बच्चे हैं, उनका स्वभाव बहुत मीठा चाहिए। कोई झट बाप को बतलाते हैं - बाबा यह भूल हुई। बाबा खुश होते हैं। भगवान् खुश हुआ तो और क्या चाहिए। यह तो बाप टीचर गुरू तीनों ही है। नहीं तो तीनों ही नाराज़ होंगे। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार श्रीमत पर चल अपनी बुद्धि सालिम (अच्छी) रखनी है। कोई भी अवज्ञा नहीं करनी है। क्रोध में आकर मुख से बाम नहीं निकालना है, चुप रहना है। दिल से एक बाप की महिमा करनी है। इस पुरानी दुनिया से आसक्ति वा प्यार नहीं रखना है। बेहद का वैरागी और निर्मोही बनना है। वरदान:- अपने अव्यक्त शान्त स्वरूप द्वारा वातावरण को अव्यक्त बनाने वाले साक्षात मूर्त भव जैसे सेवाओं के और प्रोग्राम बनाते हो ऐसे सवेरे से रात तक याद की यात्रा में कैसे और कब रहेंगे यह भी प्रोग्राम बनाओ और बीच-बीच में दो तीन मिनट के लिए संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप कर लो, जब कोई व्यक्त भाव में ज्यादा दिखाई दे तो उनको बिना कहे अपना अव्यक्ति शान्त रूप ऐसा धारण करो जो वह भी इशारे से समझ जाये, इससे वातावरण अव्यक्त रहेगा। अनोखापन दिखाई देगा और आप साक्षात्कार कराने वाले साक्षात मूर्त बन जायेंगे। स्लोगन:- सम्पूर्ण सत्यता ही पवित्रता का आधार है। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 11 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 11 January 2021 (Monday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, most beloved Shiv Baba has come to make you children into the masters of the world. Therefore, follow His shrimat." Question: What two completely contradictory things, in connection with the Supreme Father, do people tell one another? Answer: On the one hand, they say that He is the Eternal Light and, on the other hand, they say that He is beyond name and form. These two aspects contradict each other. Because of not knowing Him accurately, they continue to become impure. When the Father comes He gives His true introduction. ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: To live in Your lane and to die in Your lane. Om Shanti. You children heard the song. When someone dies he takes birth to a father. It is said that he took birth to his father. They don't mention the mother's name; congratulations are given to the father. You children now understand that you are souls. That is an aspect of bodies. A soul sheds his body and goes to his next father. In 84 births you have had 84 physical fathers. In fact, you are originally the children of the incorporeal Father. You souls are the children of the Supreme Father, the Supreme Soul. You are in fact residents of the place that is called the land of nirvana and the land of peace. You are originally the residents of that place. The Father too resides there. You come here and become children of physical fathers and so you forget that Father. In the golden age, where you are happy, you forget that parlokik Father. None of them remembers that Father when they are happy. They remember Him when they are unhappy and it is souls that remember Him. When a physical father is remembered, the intellect goes to the body. When this Baba (Brahma Baba) remembers that Baba, he says, "Oh Baba!” Both are Babas. The right word is "Baba". That One is the Father and this one is also a father. When a soul remembers that spiritual Father, his intellect goes there. The Father sits here and explains to you children. You now understand that Baba has come and made you belong to Him. The Father says: When I first sent you to heaven you were very wealthy, whereas now, having taken 84 births according to the drama plan, you are unhappy. Now, according to the drama, the old world has to finish. You souls and your bodily costumes were satopradhan. Then you souls went from the golden age to the silver age and your bodies thereby also became silver aged. Then you went into the copper age. You souls have now become completely impure, and so your bodies too are impure. Just as no one likes 14 carat gold because it becomes tarnished, so you too have now become tarnished and ironaged. Now, how can souls and bodies, that have become so ugly, become pure again? When souls become pure they receive pure bodies. How will you become like that? Is it by bathing in the Ganges? No! You call out: O Purifier! It is the soul that says this. The intellect goes to the parlokik Father. "O Baba!” Look how sweet the word "Baba" is. It is only in Bharat that you say, "Baba, Baba!" You now belong to Baba and are becoming soul conscious. The Father says: I sent you to heaven. You adopted new bodies. What have you now become? You should always keep these things within you. You should only remember the Father. You remember Him: O Baba, we souls have become impure! Now come and purify us! This part is fixed in the drama, and this is why they call out. According to the drama plan, He will only come here when the old world has to become new again. Therefore, He definitely has to come at the confluence age. You children have the faith that Baba is the most beloved. It is said: Sweet, sweeter and sweetest! Now, who is sweet? In worldly relations, first it is the father who gives you birth. Then there is the teacher; he is good. You study with him and claim a status. It is said: Knowledge is the source of income. Gyan is knowledge and yoga is remembrance. So, you forgot the unlimited Father who made you into the masters of heaven. No one knows how Shiv Baba comes. It is clearly shown in the pictures that Shiv Baba carries out establishment through Brahma. How could Krishna teach Raj Yoga? Raj Yoga is taught for the golden age. Therefore, the Father would surely teach it at the confluence age. It is Baba who establishes the golden age. Shiv Baba carries it out through this one. He is Karankaravanhar (The One who acts and also acts through others). Those people speak of Trimurti Brahma. Shiva is the Highest on High. This one is corporeal whereas that One is incorporeal. The world exists here. The cycle of this world continues to turn; it continues to repeat. There is no mention of a cycle of the world in the subtle region. It is the world history and geography of human beings that repeat. There is no cycle in the subtle region. They speak about repetition of world history and geography. That refers to this time. There is the golden age, the silver age, the copper age and iron age, the confluence age is definitely required in between. Otherwise, who would make the iron age into the golden age? The Father comes at the confluence age to change residents of hell into residents of heaven. This is the Highest Authority, the Godfatherly Government and Dharamraj is also with Him. Souls say: "I am without virtues. I have no virtues!" People say this when they go in front of the deity idols in the temples. They should say this to the Father. They put Him aside and go and say this to the brothers. Those deities are brothers. You don't receive anything from brothers(deities). While worshipping brothers, you have continued to come down. You children now understand that Baba has come and that you receive the inheritance from Him. People don't even know the Father and say that He is omnipresent. Some say that He is the eternal Element of Light. Others say that He is beyond name and form. Since He is the form of Eternal Light, how can He be beyond name and form? Because of not knowing the Father, people have become impure. Everyone has to become tamopradhan. Then, when the Father comes, He makes everyone satopradhan. All souls reside with the Father in the incorporeal world. Then, they come here and play their parts as they go through their sato, rajo and tamo stages. Souls remember the Father. The Father comes and says: I take the support of the body of Brahma. This is the Lucky Chariot. There cannot be a chariot without a soul. It has been explained to you children that this is the rain of knowledge; it is knowledge. What happens through this? The impure world becomes pure. The River Ganges and the River Jamuna will also exist in the golden age. They say that Krishna plays on the banks of the River Ganges. There is nothing like that. He is a prince of the golden age and is looked after very well because he is a flower. A flower is so good and beautiful. Everyone comes and takes fragrance from flowers. No one takes fragrance from thorns. This is now the world of thorns. The Father comes and makes this forest of thorns into a gardenof flowers and this is why He is called Babulnath (The Lord of Thorns). Because He sits here and changes thorns into flowers, He is praised as the Baba who changes thorns into flowers. You children should now have so much love for the Father! Physical fathers throw you into the gutter! This Father purifies you and removes you from the gutter for 21 births. They make you impure and this is why souls, while having worldly fathers, still remember the Father from beyond this world. You now understand that you have been remembering the Father for half the cycle. The Father definitely comes. People celebrate the birthday of Shiva. You know that you belong to the unlimited Father. You now have a relationship with Him and also with your worldly fathers. By remembering the Father from beyond, you will become pure. You souls understand that those are your worldly fathers and that this One is the Father from beyond. Even on the path of devotion, souls understand this. That is why souls call out: O God! O God the Father! Souls remember the imperishable Father, but no one understands that that Father comes and establishes heaven. In the scriptures, they have given a long duration to all the ages. It doesn't enter anyone's thoughts that the Father comes to purify the impure and that He would surely have to come at the confluence age. They have written that the duration of the cycle is hundreds of thousands of years and have thrown people into total darkness! They continue to stumble around in order to attain God. They say: Those who do a lot of devotion definitely attain God. Those who do the most devotion should definitely find Him first. The Father has shown you the clear account. You are the ones who perform devotion first. Therefore, you should receive knowledge from God first so that you can go and rule in the new world. The unlimited Father is giving you children knowledge. There is no question of difficulty about this. The Father says: You have been remembering Me for half the cycle. No one remembers Me when they are in happiness. It is when everyone becomes unhappy at the end that I come and make you happy. You are now becoming great people. Look how first class the bungalows of the Chief Minister and the Prime Minister are! There, the cows and all the furniture etc. will be first class. You are becoming such great people (deities); you are becoming deities with divine virtues, the masters of heaven. There, your palaces will be studded with diamonds and jewels. There, your furniture will be first class and studded with gold. Here, even the swings etc. are of very poor quality. There, everything will be first class and studded with diamonds and jewels. This is the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Shiva is also called Rudra. When devotion comes to an end, God creates the sacrificial fire of Rudra. In the golden age there is no question of sacrificial fires or devotion. At this time the Father creates this imperishable sacrificial fire of Rudra which is then remembered later. Devotion does not continue for all time. There is devotion and knowledge. Devotion is the night and knowledge is the day. The Father comes and brings the day. Therefore you children should have so much love for the Father. Baba is making you into the masters of the world! He is the most beloved Baba. There cannot be anyone lovelier than He is. You have been remembering Him for half the cycle: Baba, come and remove our sorrow! The Father has now come and explains: You have to live at home with your family. For how long could you stay here with Baba? You can only stay with Baba in the supreme abode. So many children cannot stay here. How could the Teacher ask questions? Would you be able to respond to a loudspeaker? This is why he only teaches a few students at a time. There are so many colleges and then all of them have to take exams. A list is made. Here, it is only the one Father who is teaching you. You have to explain that everyone remembers that Father from beyond this world at the time of sorrow. That Father has now come here. The great Mahabharat War is in front of you. Those people think that Krishna too came at the time of the Mahabharat War. That is impossible! People are completely confused. In spite of that, they continue to remember Krishna. Now, as well as Shiva, Krishna is most beloved. However, he is corporeal whereas that One is incorporeal. The incorporeal Father is the Father of all souls. Both are most beloved. Krishna is also the master of the world. You can now judge for yourself who is lovelier. It is only Shiv Baba who makes you as worthy as that. What does Krishna do? Only the Father makes him become like that, and so that Father should be praised more. They have portrayed the dance of Shankar. In fact, there is no question of a dance etc. The Father has explained to you: All of you are Parvatis. Shiva, the Lord of Immortality, is telling you the story. That is the viceless world. There is no question of vice there. Would the Father create a vicious world? There is sorrow in vices. People learn many types of hatha yoga. They go and sit in caves. They even walk over fire. There is a lot of occult power; many things are made to emerge through magic. God is also called the Magician, the Jewel Merchant and the Businessman. Therefore, He must definitely be living. He says: I do come. He is the Magician. He changes humans into deities and beggars into princes. Have you ever seen such magic? Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli You have to go to the garden of flowers. Therefore, become fragrant flowers. Don't cause anyone sorrow. Have all relationships with the one parlokik Father. Shiv Baba is the loveliest of all. Have love for Him alone. Remember the Father, the Bestower of Happiness. Blessing: May you become a flying bird, free from attachment to this world, and tour around the subtle region. In order to tour around the subtle region and the incorporeal world with the plane of your intellect, become a flying bird. Go wherever you want, whenever you want with your intellect. This is only possible when you become completely free from attachment to this world. This world is tasteless and when you have nothing to do with this tasteless world, where there is no attainment you should stop going there with your intellect. This is the depths of hell and so let there not be any thoughts or dreams of going into this world. Slogan:- To give the experience of truth and manners through your face and your activity is greatness. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 11 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 11 January 2021 (Monday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - मोस्ट बील्वेड शिवबाबा आये हैं तुम बच्चों को विश्व का मालिक बनाने, तुम उनकी श्रीमत पर चलो" प्रश्नः- मनुष्य परमात्मा के बारे में कौनसी दो बातें एक-दूसरे से भिन्न बोलते हैं? उत्तर:- एक ओर कहते - परमात्मा अखण्ड ज्योति है और दूसरी ओर कहते वह तो नाम-रूप से न्यारा है। यह दोनों बातें एक-दूसरे से भिन्न हो जाती हैं। यथार्थ रूप से न जानने कारण ही पतित बनते जाते हैं। बाप जब आते हैं तो अपनी सही पहचान देते हैं। ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- मरना तेरी गली में........ ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। जब कोई मरते हैं तो बाप के पास जन्म लेंगे। कहने में यही आता है कि बाप के पास जन्म लिया, माँ का नाम नहीं लेंगे। बधाईयाँ बाप को दी जाती हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो हम आत्मायें हैं, वह हो गई शरीर की बात। एक शरीर छोड़ फिर दूसरे बाप के पास जाते हैं। तुमने 84 जन्मों में 84 साकारी बाप किये हैं। वास्तव में असुल हो निराकार बाप के बच्चे। तुम आत्मा परमपिता परमात्मा के बच्चे हो। रहने वाले भी वहाँ के हो जिसको निर्वाणधाम वा शान्तिधाम कहते हैं। असुल तुम वहाँ के रहने वाले हो। बाप भी वहाँ रहते हैं। यहाँ आकर तुम लौकिक बाप के बच्चे बनते हो तो फिर उस बाप को भूल जाते हो। सतयुग में भी तुम सुखी बन जाते हो तो उस पारलौकिक बाप को भूल जाते हो। सुख में उस बाप का कोई सिमरण नहीं करते हैं। दु:ख में याद करते हैं। और याद भी आत्मा करती है। जब लौकिक बाप को याद करते हैं तो बुद्धि शरीर तरफ रहती है। यह बाबा उनको याद करेंगे तो कहेंगे ओ बाबा। हैं दोनों बाबा। राइट अक्षर बाबा ही है। यह भी फादर, वह भी फादर। आत्मा उस रूहानी बाप को याद करती है तो बुद्धि वहाँ जाती है। यह बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। अभी तुम यह जानते हो बाबा आया हुआ है, हमको अपना बनाया है। बाप कहते हैं पहले-पहले हमने तुमको स्वर्ग में भेजा। तुम बहुत-बहुत साहूकार थे फिर 84 जन्म ले ड्रामा प्लैन अनुसार अभी तुम दु:खी हुए हो। अब ड्रामा अनुसार पुरानी दुनिया खत्म होनी है। तुम्हारी आत्मा और शरीर रूपी वस्त्र सतोप्रधान थे फिर गोल्डन एज से सिलवर एज में आत्मा आई तो शरीर भी सिलवर एज में आया फिर कॉपर एज में आया। अभी तो तुम्हारी आत्मा बिल्कुल ही पतित हो गई है तो शरीर भी पतित है। जैसे 14 कैरेट का सोना कोई पसन्द नहीं करते हैं। काला पड़ जाता है। तुम भी अभी काले आइरन एजेड बन गये हो। अब आत्मा और शरीर जो ऐसे काले बन गये हैं तो फिर प्योर कैसे बनें। आत्मा प्योर बने तो शरीर भी प्योर मिले। वह कैसे होगा? क्या गंगा स्नान करने से? नहीं। पुकारते ही हैं - हे पतित-पावन... यह आत्मा कहती है। बुद्धि पारलौकिक बाप तरफ चली जाती है - हे बाबा। देखो बाबा अक्षर ही कितना मीठा है। भारत में ही बाबा-बाबा कहते हैं। अभी तुम आत्म-अभिमानी बन बाबा के बने हो। बाप कहते हैं मैंने तुमको स्वर्ग में भेजा था। नया शरीर धारण किया था। अब तुम क्या बन गये हो। यह बातें हमेशा अन्दर रहनी चाहिए। बाबा को ही याद करना चाहिए। याद भी करते हैं ना - हे बाबा हम आत्मायें पतित बन गई हैं। अब आप आकर पावन बनाओ। ड्रामा में भी यह पार्ट है तब तो बुलाते हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार आयेंगे भी तब जब पुरानी दुनिया से नई बननी है तो जरूर संगम पर ही आयेंगे। तुम बच्चों को निश्चय है बील्वेड मोस्ट बाबा है। कहते भी हैं स्वीट, स्वीटर, स्वीटेस्ट। अब स्वीट कौन है? लौकिक सम्बन्ध में पहले है फादर, जो जन्म देते हैं। फिर टीचर। वह अच्छा होता है। उससे पढ़कर मर्तबा पाते हो। नॉलेज इज़ सोर्स ऑफ इनकम कहा जाता है। ज्ञान है नॉलेज। योग है याद। तो बेहद का बाप जिसने तुमको स्वर्ग का मालिक बनाया था, उनको तुम अभी भूल गये हो। शिवबाबा कैसे आया किसको पता नहीं। चित्रों में भी क्लीयर दिखाया है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना शिवबाबा कराते हैं। कृष्ण कैसे राजयोग सिखायेगा? राजयोग सिखलाते ही हैं सतयुग के लिए। तो जरूर संगम पर बाप ने ही सिखाया होगा। सतयुग की स्थापना करने वाला है बाबा। शिवबाबा इन द्वारा कराते हैं, करनकरावनहार है ना। वो लोग त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह देते हैं। ऊंच ते ऊंच शिव है ना। यह साकार है, वह निराकार है। सृष्टि भी यहाँ ही है। इस सृष्टि का ही चक्र है जो फिरता रहता है, रिपीट होता रहता है। सूक्ष्मवतन की सृष्टि का चक्र नहीं गाया जाता है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी मनुष्यों की रिपीट होती है। सूक्ष्मवतन में कोई चक्र आदि नहीं होता। गाते भी हैं वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट। वह यहाँ की बात है। सतयुग-त्रेता..... बीच में जरूर संगमयुग चाहिए। नहीं तो कलियुग को सतयुग कौन बनाये। नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने बाप संगम पर आते हैं। यह तो हाइएस्ट अथॉरिटी गॉड फादरली गवर्नमेन्ट है। साथ में धर्मराज भी है। आत्मा कहती है मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। कोई भी देवता के मन्दिर में जायेंगे तो उनके आगे ऐसे कहेंगे। कहना चाहिए बाप को। उनको छोड़ ब्रदर्स (देवताओं) को आकर लगे हैं। यह देवतायें ब्रदर्स ठहरे ना। ब्रदर्स से तो कुछ भी मिलना नहीं है। भाइयों की पूजा करते-करते नीचे गिरते आये हैं। अब तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है, उनसे हमको वर्सा मिलता है। बाप को ही नहीं जानते, सर्वव्यापी कह देते हैं। कोई फिर कहते अखण्ड ज्योति तत्व है। कोई कहते वह नाम-रूप से न्यारा है। जब अखण्ड ज्योति स्वरूप है तो फिर नाम-रूप से न्यारा कैसे कहते हो। बाप को न जानने कारण ही पतित बन पड़े हैं। तमोप्रधान भी बनना ही है। फिर जब बाप आते हैं तब आकर सभी को सतोप्रधान बनाते हैं। आत्मायें निराकारी दुनिया में सब बाप के साथ रहती हैं फिर यहाँ सतो-रजो-तमो में आकर पार्ट बजाती हैं। आत्मा ही बाप को याद करती है। बाप आते भी हैं, कहते भी हैं ब्रह्मा तन का आधार लेता हूँ। यह है भाग्यशाली रथ। बिगर आत्मा रथ थोड़ेही होता है। अभी तुम बच्चों को समझाया है, यह है ज्ञान की वर्षा। नॉलेज है, इससे क्या होता है? पतित दुनिया से पावन दुनिया बनती है। गंगा-जमुना तो सतयुग में भी होते हैं। कहते हैं कृष्ण जमुना के कण्ठे पर खेलपाल करते हैं। ऐसी कोई बातें हैं नहीं। वह तो सतयुग का प्रिन्स है। बहुत अच्छी रीति उनको सम्भाला जाता है क्योंकि फूल है ना। फूल कितने अच्छे सुन्दर होते हैं। फूल से सब आकर खुशबू लेते हैं। कांटों की थोड़ेही खुशबू लेंगे। अभी तो यह है कांटों की दुनिया। कांटों के जंगल को बाप आकर गार्डन ऑफ फ्लावर बनाते हैं इसलिए उनका नाम बबुलनाथ भी रख दिया है। कांटों को बैठ फूल बनाते हैं इसलिए महिमा गाते हैं - कांटों को फूल बनाने वाले बाबा। अब तुम बच्चों का बाप के साथ कितना लव होना चाहिए। वो लौकिक बाप तो तुमको गटर में डालते हैं। यह बाप 21 जन्मों के लिए तुमको गटर से निकाल पावन बनाते हैं। वह तुमको पतित बनाते हैं तब तो लौकिक बाप होते भी पारलौकिक बाप को आत्मा याद करती है। अभी तुम जानते हो आधाकल्प बाप को याद किया है। बाप आते भी जरूर हैं। शिवजयन्ती मनाते हैं ना। तुम जानते हो हम बेहद के बाप के बने हैं। अभी हमारा संबंध उनसे भी है तो लौकिक से भी है। पारलौकिक बाप को याद करने से तुम पावन बनेंगे। आत्मा जानती है वह हमारा लौकिक और यह पारलौकिक बाप है। भक्ति मार्ग में भी यह आत्मा जानती है। तब तो कहते हैं - हे भगवान, ओ गॉड फादर। अविनाशी फादर को याद करते हैं। वह बाप आकर हेविन स्थापन करते हैं। यह किसको पता नहीं हैं। शास्त्रों में तो युगों को भी बहुत लम्बी-चौड़ी आयु दे दी है। यह किसके ख्याल में नहीं आता कि बाप आते ही हैं पतितों को पावन बनाने। तो जरूर संगम पर आयेंगे। कल्प की आयु लाखों वर्ष लिख मनुष्यों को बिल्कुल घोर अन्धियारे में डाल दिया है। धक्के खाते रहते हैं, बाप को पाने के लिए। कहते हैं जो बहुत भक्ति करते हैं तो भगवान मिलता है। सबसे जास्ती भक्ति करने वाले को जरूर पहले मिलना चाहिए। बाप ने हिसाब भी बताया है, सबसे पहले भक्ति तुम करते हो। तो तुमको ही पहले-पहले भगवान द्वारा ज्ञान मिलना चाहिए जो फिर तुम ही नई दुनिया में राज्य करो। बेहद का बाप तुम बच्चों को ज्ञान दे रहे हैं, इसमें तकलीफ की कोई बात नहीं है। बाप कहते हैं तुमने आधाकल्प याद किया है। सुख में तो कोई याद करते ही नहीं। अन्त में जब दु:खी हो जाते हैं तब हम आकर सुखी बनाते हैं। अभी तुम बहुत बड़े आदमी बनते हो। देखो चीफ मिनिस्टर, प्राइम मिनिस्टर आदि के बंगले कितने फर्स्टक्लास होते हैं। वहाँ फिर गायें आदि सारा फर्नीचर ऐसा फर्स्टक्लास होगा। तुम तो कितने बड़े आदमी (देवता) बनते हो। दैवीगुणों वाले देवता स्वर्ग के मालिक बनते हो। वहाँ तुम्हारे लिए महल भी हीरे-जवाहरातों के होते हैं। वहाँ तुम्हारा फर्नीचर सोने के जड़ित का फर्स्टक्लास होगा। यहाँ तो झूले आदि सब बेगरी हैं। वहाँ तो फर्स्टक्लास हीरे-जवाहरातों की सब चीजें होंगी। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। शिव को रूद्र भी कहते हैं। जब भक्ति पूरी होती है तो फिर भगवान रूद्र यज्ञ रचते हैं। सतयुग में यज्ञ अथवा भक्ति की बात ही नहीं। इस समय ही बाप यह अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं, जिसका फिर बाद में गायन चलता है। भक्ति सदैव तो नहीं चलती रहेगी। भक्ति और ज्ञान। भक्ति है रात, ज्ञान है दिन। बाप आकर दिन बनाते हैं तो बच्चों का बाप के साथ कितना लव होना चाहिए। बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। मोस्ट बील्वेड बाबा है। उनसे ज्यादा प्यारी वस्तु कोई हो न सके। आधाकल्प से याद करते आये हो। बाबा आकर हमारे दु:ख हरो। अब बाप आये हैं। समझाते हैं तुमको अपने गृहस्थ व्यवहार में तो रहना ही है। यहाँ बाबा पास कहाँ तक बैठेंगे। बाप के साथ तो परमधाम में ही रह सकते। यहाँ इतने सब बच्चे तो नहीं रह सकते। टीचर सवाल कैसे पूछेंगे। लाउडस्पीकर पर रेसपान्ड कैसे दे सकेंगे इसलिए थोड़े-थोड़े स्टूडेन्ट्स को पढ़ाते हैं। कॉलेज तो बहुत होते हैं फिर सबके इम्तहान होते हैं। लिस्ट निकलती है। यहाँ तो एक ही बाप पढ़ाते हैं। यह भी समझाना चाहिए दु:ख में सिमरण सब उस पारलौकिक बाप का करते हैं। अब यह बाप आया हुआ है। महाभारी महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है। वह समझते हैं महाभारत लड़ाई में कृष्ण आया। यह तो हो न सके। बिचारे मूँझे हुए हैं ना। फिर भी कृष्ण-कृष्ण याद करते रहते हैं। अब मोस्ट बील्वेड शिव भी है तो कृष्ण भी है। परन्तु वह है निराकार, वह है साकार। निराकार बाप सब आत्माओं का बाप है। हैं दोनों मोस्ट बील्वेड। कृष्ण भी विश्व का मालिक है ना। अभी तुम जज कर सकते हो - जास्ती प्यारा कौन? शिवबाबा ही तो ऐसा लायक बनाते हैं ना। कृष्ण क्या करते हैं? बाप ही तो उनको ऐसा बनाते हैं, तो गायन भी जास्ती उस बाप का होना चाहिए। शंकर का डांस दिखाते हैं। वास्तव में डांस आदि की तो बात नहीं। बाप ने समझाया है तुम सब पार्वतियां हो। यह शिव अमरनाथ तुमको कथा सुना रहे हैं। वह है वाइसलेस वर्ल्ड। विकार की बात नहीं। बाप विकारी दुनिया थोड़ेही रचेंगे। विकार में ही दु:ख है। मनुष्य हठयोग आदि बहुत सीखते हैं। गुफाओं में जाकर बैठते हैं, आग से भी चले जाते हैं। रिद्धि-सिद्धि भी बहुत है। जादूगरी से बहुत चीज़ों निकालते हैं। भगवान को भी जादूगर, रत्नागर, सौदागर कहते हैं तो जरूर चैतन्य है ना। कहते भी हैं मैं आता हूँ, जादूगर है ना। मनुष्य को देवता, बेगर से प्रिन्स बनाते हैं। ऐसा जादू कभी देखा। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार फूलों के बगीचे में चलना है इसलिए खुशबूदार फूल बनना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है। एक पारलौकिक बाप से सर्व संबंध जोड़ने हैं। शिवबाबा प्यारे से प्यारा है उस एक को ही प्यार करना है। सुखदाता बाप को याद करना है। वरदान:- इस लोक के लगाव से मुक्त बन अव्यक्त वतन का सैर करने वाले उड़ता पंछी भव बुद्धि रूपी विमान से अव्यक्त वतन व मूलवतन का सैर करने के लिए उड़ता पंछी बनो। बुद्धि द्वारा जब चाहो, जहाँ चाहो पहुंच जाओ। यह तब होगा जब बिल्कुल इस लोक के लगाव से परे रहेंगे। यह असार संसार है, इस असार संसार से जब कोई काम नहीं, कोई प्राप्ति नहीं तो बुद्धि द्वारा भी जाना बन्द करो। यह रौरव नर्क है इसमें जाने का संकल्प और स्वप्न भी न आये। स्लोगन:- अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराना ही श्रेष्ठता है। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli today: 10 January 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's Murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Revised Date: 10 January 2021 (Sunday).Original Date: 9 October 1987.Publisher: Madhuban, Mount Abu. ................................................................................................................................................. ♫ Listen Today's Murli ➤ News of the alokik royal court. Today, BapDada is looking at the royal court of His children who have a right to self-sovereignty. Out of the whole cycle, this alokik court of the confluence age is unique, it has elevated pride, it is most distinctive and the loveliest of all. The spiritual sparkle, the spiritual lotus-seat, the spiritual crown and tilak, the sparkle of the face and the alokik fragrance of the atmosphere of the elevated awareness of the stage of this royal court are delightful and extremely attractive. Seeing such a gathering and every self-sovereign soul, BapDada is very pleased. It is such a huge court. Every Brahmin child is a self-sovereign, a master of the self. So, there are so many Brahmin children. If you held a court of all the Brahmins together, it would be such a big royal court. There isn’t such a big court in any other age. The speciality of the confluence age is that all the children of the highest-on-high Father become masters of the self. In a lokik family, every father says to his children: this child of mine is my "king-child", or his wish is that every child of his should become a king. However, not all the children can become kings. They have copied the Supreme Father in this saying. At this time, all the children of BapDada are definitely Raj Yogis, that is, masters of the self. They are numberwise Raj Yogis; none of them are ‘praja yogis’ (yogis who become a subject). So, BapDada was looking at the unlimited royal gathering. All of you consider yourselves to be masters of the self, do you not? Are all you new children who have come masters of the self, or do you still have to become that? You are new and so you are learning how to meet and get together. You will continue to develop the habit of understanding the avyakt things that the avyakt Father tells you. Nevertheless, you will appreciate this fortune worth even more later rather than you do now: how fortunate all of souls us are! BapDada was telling you news of the alokik royal court. Baba's attention was especially being drawn to the crown and the sparkle on the faces of the children even against His conscious wish. The crown is a symbol of purity, the speciality of Brahmin life. The sparkle on the face is the sparkle of spirituality and of being stable in a spiritual stage. Even when you look at someone ordinarily, your vision will first of all go to the face. Your face is a mirror of your attitude and stage. So, BapDada was seeing that there was a sparkle on everyone, but one were of those who were always stable in the stage of spirituality, those who had this stage naturally and easily, and others stabilized in this stage through the practice of the spiritual stage. On the one hand, there were those who easily had this stage and on the other hand were those who had to make effort to remain stable in this stage, that is, one kind were easy yogis and the other were yogis who had to make effort. There was a difference in the sparkle of the two. One had natural beauty and the other had beauty through effort, just as people nowadays look beautiful because of their make-up. The sparkle of natural beauty is always constant, whereas the sparkle of the other beauty is sometimes very good, and sometimes only to a certain percentage; it is not always the same, not always stable. So, the stage of constantly being an easy and natural yogi enables you to become a number one self-sovereign. Since all you children have promised to lead a Brahmin life, that is, the one Father is your world and that you belong to the one Father and none other, since the Father is your world and there is no one else, you would naturally and easily have a constantly yogi stage, would you not? Or, would you have to make effort? If there is anyone else, you have to make effort to stop your intellect going there and see that it goes here. However, when the one Father is everything, where would the intellect go? Since it cannot go anywhere, what practice will it have? There is a difference in the practice too. One is a natural practice, it is always in that stage, and the other is a practice through making effort. When the self-sovereign children are those who have this practice easily, it is a sign of that they are easy and natural yogis. The sparkle on their faces is alokik, so that as soon as others see their faces, they experience those souls to be souls who are embodiments of elevated attainment and easy yogis. When someone has physical wealth or has attained a physical status you can tell by the sparkle on his face that he is from a wealthy family or has claimed a high status. In the same way, the intoxication and sparkle of this elevated attainment, this elevated right to a kingdom, that is, the attainment of an elevated stage, is visible on their faces. Let the sparkling faces of all the self-sovereign children always be like this. Let signs of effort not be visible; let signs of attainment be visible. Even now, when you see the faces of some children, you say: ‘This one has attained something’, whereas for other children, when you see their faces, you say: This is a high destination and they have very high renunciation. From their faces, their renunciation would be visible, but their fortune would not be visible. Or, it would be said that this one is making very good effort. BapDada wants the sparkle of an easy yogi to be seen on the face of each of you children. Let the sparkle of the intoxication of elevated attainment be visible, because you are the children of the Father who is the treasure-store of attainments. In the blessed time of the confluence age, you have a right to claim all attainments. How can we have constant yoga? How can we have a constant experience and experience the treasure store? Do not keep wasting your time making effort for this now, but easily experience the fortune of being an embodiment of attainment. The time of completion is coming close. If, even now, you are busy making effort for one thing or another, then the time for attainment will end. So, when would you then experience being an embodiment of attainment? The confluence age and Brahmin souls have the blessing, "May you be full of all attainments". You don't have a blessing, "May you always be an effort-maker", but you have the blessing of having attainment. Blessed souls who have received the blessing of attainments cannot be caught up in carelessness. Therefore, they don't have to make effort. So, do you understand what you have to become? In the royal court, it is now clear what the speciality of having a right to the kingdom was, is it not? You have a right to the kingdom, do you not? Or, are you still thinking about whether you have this or not? You have become the children of the Bestower of Fortune and the Bestower of Blessings. A king means a bestower of fortune, one who gives. If you lack nothing, what would you take? So, did you understand? The new children have to stay in this experience. Do not waste your time battling. If you waste your time battling, you will be battling in your final moments too. What will you then become? Will you become part of the moon dynasty or will you go into the sun dynasty? Those who are battling will go into the moon dynasty. "I am moving along, I am doing this, it will happen, I will get there." Do not still keep this type of aim now. "If not now, then never”. If you are going to become something, it has to be now. If you are going to attain something, it has to be now. Only those who have such zeal and enthusiasm will reach their complete destination on time. None of you is ready to become Rama and Sita of the silver age. Since you want to go into the sun dynasty of the golden age, then the sun dynasty means to be a constant master bestower of fortune and bestower of blessings, not one who has a desire to take. "I should receive some help; it would be very good if this should happen; I will then claim a good number in my efforts." No. You are receiving help, everything is happening. This is known as being children who are self-sovereigns, masters of the self. Do you want to move forward? Or, is it that because you have come later, you want to stay at the back? The easy way to go ahead is to become an easy and natural yogi. It is very easy. Since there is only the one Father, since there is no one else, where else would you go? Since there is attainment upon attainment, why would it take effort? So, take benefit of the time of attainment. Become an embodiment of all attainments. Do you understand? BapDada wants each child, even the last one, as well as those who come at the beginning of establishment, every child, to become number one. Become kings, not subjects! Achcha. Groups from Maharashtra and Madhya Pradesh have come. Look, the word "maha" (great) is so good. The place Maharashtra has the word "maha" in it, and so you also have to become great. You have become great, have you not? Because to belong to the Father means to become great. You are great souls. Brahmins means great. Your every action is great, every word is great and every thought is great. They have become alokik, have they not? So, those of you from Maharashtra, always be embodiments of the awareness that you are great. Brahmins means the great top-knot, does it not? Madhya Pradesh are those who always maintain the intoxication of Madhyajibhav (the middle one, Vishnu). Together with "Manmanabhav”, you also have the blessing of "Madhyajibhav”. So, your heavenly form is called "Madhyajibhav”. You are those who maintain the intoxication of your elevated attainment, that is, you are those who remain stable in the form of the mantra of "Madhyajibhav”. You are also great. If you are "Madhyajibhav”, then you would definitely be "Manmanabhav” too. So, Madhya Pradesh means those who become embodiments of the great mantra. So, both of you are great with your own specialities. Do you understand who you are? From the time you began the first lesson, you just made this firm: "Who am I?" The Father also reminds you of the same thing. Churn this. There is just the one expression, "Who am I?", but it has so many answers. Make a list of "Who am I?" Achcha. To all the elevated souls from everywhere who are embodiments of all attainments, to all the great souls who have a right to the alokik royal court, to the special souls who have always adopted the sparkle of spirituality, to the constantly natural yogis, the easy yogis, to the highest-on-high souls, please accept love-filled remembrance from BapDada, the Highest on High. Avyakt BapDada meeting double foreign brothers and sisters "Double foreign” means those who always have the awareness of their original form, their original land, their self-sovereignty and of their original kingdom. What service in particular do the double foreigners have to do? You now especially have to give souls the experience of the power of silence. This too is a special service, just as the power of science is very well known. Each and every child knows what science is. In the same way, silence power is even higher than science. That day will also come. To reveal the power of silence means to reveal the Father. Just as science shows the visible proof, in the same way, the lives of all of you are the practical proof of silence power. When all of you are visibleas the practical proof, then, even against their conscious wish, you will easily come into their vision. Just as last year you carried out the peace project, and that was shown practically on the stage, in the same way, let mobile peace models be seen. The vision of the scientists will then definitely fall on those with silence. Do you understand? There are far more inventions of science abroad. So, the sound of the power of silence will also easily spread from there. There is the aim of service anyway, and you all also have zeal and enthusiasm. You cannot stay without doing service. Just as one cannot stay without food, in the same way, you cannot stay without doing service and this is why BapDada is pleased. Achcha. Avyakt BapDada meeting groups: Do you experience yourselves to have become elevated souls who are spinners of the discus of self-realisation? You have had a vision of the self, have you not? To know yourself means to have a vision of the self and to have the knowledge of the cycle means to become a spinner of the discus of self-realisation. When you become a spinner of the discus of self-realisation, all other types of spinning finish. The spinning of body consciousness, the spinning of relationships, the spinning of problems: all of those are the many types of spinning of Maya! However, by becoming a spinner of the discus of self-realisation, all these types of spinning finish, you come out of all types of spinning. Otherwise, you get trapped in the web. So, earlier, you were trapped and you have now come out. For 63 births, you continued to get trapped in many types of spinning and, at this time, you have come out of that spinning, and so you mustn’t get trapped again. You have experienced it and seen it for yourself, have you not? By getting trapped in all the different types of spinning, you lost everything and, by becoming a spinner of the discus of self-realisation, you found the Father, you found everything. So, always be a spinner of the discus of self-realisation, be a conqueror of Maya and continue to move forward. By doing so, you will always remain light and not experience any type of burden. Burdens bring you down but by being light, you will continue to fly high. So, you are those who fly, are you not? You are not weak, are you? If even one wing is weak, it will bring you down and not allow you to fly, so make both wings strong and you will automatically continue to fly. To be a spinner of the discus of self-realisation means to continue to fly in the ascending stage. Achcha. You are Raj yogis, elevated souls, are you not? From having an ordinary life, you have become easy yogis, Raj yogis. Such elevated yogi souls always swing in the swings of supersensuous joy. Hatha yogis levitate their bodies with hatha yoga and practise flying. In fact, you Raj yogis experience a high stage. By copying this, they levitate their bodies. However, wherever you stay, you stay in your high stage, and so it is said that yogis remain high up. The place of the stage of the mind is high because you have become double light. In any case, for angels, it is said that their feet are never on the ground. Angels means those whose feet of the intellect are not on the ground, those who are not body conscious. Always remain high up away from body consciousness. You have become such angels, that is, Raj yogis. You don’t have any attachment to this old world now. To do service is a different matter, but do not have any attachment. To be a yogi means "the Father and I,” no third person. So, always maintain this awareness of being Raj yogis, always angels. With this awareness, you will constantly continue to move forward. Raj yogis are always the masters of the unlimited, not the masters of the limited. You have come away from the limited. You have received unlimited rights. Therefore, remain happy with this. Just as the Father is unlimited, so too, stay in unlimited happiness, unlimited intoxication. Achcha. At the time of farewell: To all the children who are blessed at amrit vela, please accept golden love and remembrance from the Father, the Bestower of Blessings. Along with that, to those who are always churning plans of doing the service of creating the golden world, those who are engaged with a lot of love in service with their hearts and life, those who are co-operative souls with their bodies, minds and wealth, BapDada is saying Good morning, Diamond morning to all of you. Always be a diamond and take the speciality of this diamond age as a blessing and an inheritance. You will then remain stable in a golden stage and you will also continue to give others a similar experience. So, a diamond morning to the double hero children everywhere. Achcha. Blessing: May you be one with merciful feelings who has pure and positive thoughts for others and, uplift those who defame you. No matter what type of soul comes into contact with you, whether satoguni or tamoguni, you are those who always have pure and positive thoughts for them, that is, you uplift those who insult you. Never have any vision of dislike towards any soul, because you know that that soul is under the influence of ignorance, that he is without understanding. Let there be mercy and love, not dislike, for that soul. Souls who have pure and positive thoughts for others never think: Why did this one do this? They would always think of how they can benefit that soul. This is the stage of a well-wisher. Slogan: With the power of tapasya, make the impossible possible and become an embodiment of success. --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 10 January 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की अव्यक्त मुरली। Revised Date: 10 January 2021 (Sunday).Original Date: 9 October 1987 बापदादा, मधुबन।Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. (Official Murli blog~ listen + read daily murlis). ➤ जरूर पढ़े: मुरली का महत्त्व ♫ मुरली सुने ➤ अलौकिक राज्य दरबार का समाचार आज बापदादा अपने स्व-राज्य अधिकारी बच्चों की राज्य दरबार देख रहे हैं। यह संगमयुग की निराली, श्रेष्ठ शान वाली अलौकिक दरबार सारे कल्प में न्यारी और अति प्यारी है। इस राज्य-सभा की रूहानी रौनक, रूहानी कमल-आसन, रूहानी ताज और तिलक, चेहरे की चमक, स्थिति के श्रेष्ठ स्मृति के वायुमण्डल में अलौकिक खुशबू अति रमणीक, अति आकर्षित करने वाली है। ऐसी सभा को देख बापदादा हर एक राज्य-अधिकारी आत्मा को देख हर्षित हो रहे हैं। कितनी बड़ी दरबार है! हर एक ब्राह्मण बच्चा स्वराज्य-अधिकारी है। तो कितने ब्राह्मण बच्चे हैं! सभी ब्राह्मणों की दरबार इकट्ठी करो तो कितनी बड़ी राज्य-दरबार हो जायेगी! इतनी बड़ी राज्य दरबार किसी भी युग में नहीं होती। यही संगमयुग की विशेषता है जो ऊंचे ते ऊंचे बाप के सर्व बच्चे स्वराज्य-अधिकारी बनते हैं। वैसे लौकिक परिवार में हर एक बाप बच्चों को कहते हैं कि यह मेरा बच्चा ‘राजा' बेटा है वा इच्छा रखते हैं कि मेरा हर एक बच्चा ‘राजा' बने। लेकिन सभी बच्चे राजा बन ही नहीं सकते। यह कहावत परमात्म बाप की कापी की है। इस समय बाप-दादा के सब बच्चे राजयोगी अर्थात् स्व के राजे नम्बरवार जरूर हैं लेकिन हैं सभी राजयोगी, प्रजा योगी कोई नहीं है। तो बापदादा बेहद की राज्यसभा देख रहे थे। सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी समझते हो ना? नये-नये आये हुए बच्चे राज्य-अधिकारी हो वा अभी बनना है? नये-नये हैं तो मिलना-जुलना सीख रहे हैं। अव्यक्त बाप की अव्यक्ति बातें समझने की भी आदत पड़ती जायेगी। फिर भी इस भाग्य को अभी से भी समय पर ज्यादा समझेंगे कि हम सभी आत्मायें कितनी भाग्यवान हैं! तो बापदादा सुना रहे थे - अलौकिक राज्य दरबार का समाचार। सभी बच्चों के विशेष ताज और चेहरे की चमक के ऊपर न चाहते भी अटेन्शन जा रहा था। ताज ब्राह्मण जीवन की विशेषता - ‘पवित्रता' का ही सूचक है। चेहरे की चमक रूहानी स्थिति में स्थित रहने की रूहानियत की चमक है। साधारण रीति से भी किसी भी व्यक्ति को देखेंगे तो सबसे पहले दृष्टि चेहरे तरफ ही जायेगी। यह चेहरा ही वृत्ति और स्थिति का दर्पण है। तो बापदादा देख रहे थे - चमक तो सभी में थी लेकिन एक थे सदा रूहानियत की स्थिति में स्थित रहने वाले, स्वत: और सहज स्थिति वाले और दूसरे थे सदा रूहानी स्थिति के अभ्यास द्वारा स्थित रहने वाले। एक थे सहज स्थिति वाले, दूसरे थे प्रयत्न कर स्थित रहने वाले अर्थात् एक थे सहज योगी, दूसरे थे पुरूषार्थ से योगी। दोनों की चमक में अन्तर रहा। उनकी नैचुरल ब्युटी थी और दूसरों की पुरूषार्थ द्वारा ब्युटी थी। जैसे आजकल भी मेकप कर ब्युटीफुल बनते हैं ना। नैचुरल (स्वाभाविक) ब्युटी की चमक सदा एकरस रहती है और दूसरी ब्युटी कभी बहुत अच्छी और कभी परसेन्टेज में रहती है; एक जैसी, एकरस नहीं रहती। तो सदा सहज योगी, स्वत: योगी स्थिति नम्बरवन स्वराज्य-अधिकारी बनाती है। जब सभी बच्चों का वायदा है - ब्राह्मण जीवन अर्थात् एक बाप ही संसार है वा एक बाप दूसरा न कोई; जब संसार ही बाप है, दूसरा कोई है ही नहीं तो स्वत: और सहज योगी स्थिति सदा रहेगी ना, वा मेहनत करनी पड़ेगी? अगर दूसरा कोई है तो मेहनत करनी पड़ती है - यहाँ बुद्धि न जाए, वहाँ जाए। लेकिन एक बाप ही सब कुछ है - फिर बुद्धि कहाँ जायेगी? जब जा ही नहीं सकती तो अभ्यास क्या करेंगे? अभ्यास में भी अन्तर होता है। एक है स्वत: अभ्यास, है ही है और दूसरा होता है मेहनत वाला अभ्यास। तो स्वराज्य-अधिकारी बच्चों का सहज अभ्यासी बनना - यही निशानी है सहज योगी, स्वत: योगी की। उन्हों के चेहरे की चमक अलौकिक होती है जो चेहरा देखते ही अन्य आत्मायें अनुभव करती कि यह श्रेष्ठ प्राप्ति स्वरूप सहजयोगी हैं। जैसे स्थूल धन वा स्थूल पद के प्राप्ति की चमक चेहरे से मालूम होती है कि यह साहूकार कुल का वा ऊंच पद अधिकारी है, ऐसे यह श्रेष्ठ प्राप्ति, श्रेष्ठ राज्य अधिकार अर्थात् श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का नशा वा चमक चेहरे से दिखाई देती है। दूर से ही अनुभव करते कि इन्होंने कुछ पाया है। प्राप्ति स्वरूप आत्मायें हैं। ऐसे ही सभी राज्य अधिकारी बच्चों के चमकते हुए चेहरे दिखाई दें। मेहनत के चिन्ह नहीं दिखाई दें, प्राप्ति के चिन्ह दिखाई दें। अभी भी देखो, कोई-कोई बच्चों के चेहरे को देख यही कहते हैं - इन्होंने कुछ पाया है और कोई-कोई बच्चों के चेहरे को देख यह भी कहते कि ऊंची मंजिल है लेकिन त्याग भी बहुत ऊंचा किया है। त्याग दिखाई देता है, भाग्य नहीं दिखाई देगा चेहरे से। या यह कहेंगे कि मेहनत बहुत अच्छी कर रहे हैं। बापदादा यही देखने चाहते हैं कि हर एक बच्चे के चेहरे से सहजयोगी की चमक दिखाई दे, श्रेष्ठ प्राप्ति के नशे की चमक दिखाई दे क्योंकि प्राप्तियों के भण्डार बाप के बच्चे हो। संगमयुग की प्राप्तियों के वरदानी समय के अधिकारी हो। निरन्तर योग कैसे लगावें वा निरन्तर अनुभव कर भण्डार की अनुभूति कैसे करें - अब तक भी इसी मेहनत में ही समय नहीं गँवाओ लेकिन प्राप्तिस्वरूप के भाग्य को सहज अनुभव करो। समाप्ति का समय समीप आ रहा है। अब तक किसी न किसी बात की मेहनत में लगे रहेंगे तो प्राप्ति का समय तो समाप्त हो जायेगा। फिर प्राप्तिस्वरूप का अनुभव कब करेंगे? संगमयुग को, ब्राह्मण आत्माओं को वरदान है "सर्व प्राप्ति भव''। ‘सदा पुरूषार्थी भव' का वरदान नहीं है, ‘प्राप्ति भव' का वरदान है। ‘प्राप्ति भव' की वरदानी आत्मा कभी भी अलबेलेपन में आ नहीं सकती इसलिए उनको मेहनत नहीं करनी पड़ती। तो समझा, क्या बनना है? राज्यसभा में राज्य अधिकारी बनने की विशेषता क्या है, यह स्पष्ट हुआ ना? राज्य अधिकारी हो ना, वा अभी सोच रहे हो कि हैं वा नहीं हैं? जब विधाता के बच्चे, वरदाता के बच्चे बन गये; राजा अर्थात् विधाता, देने वाला। अप्राप्ति कुछ नहीं तो लेंगे क्या? तो समझा, नये-नये बच्चों को इस अनुभव में रहना है। युद्ध में ही समय नहीं गँवाना है। अगर युद्ध में ही समय गँवाया तो अन्त मति भी युद्ध में रहेंगे। फिर क्या बनना पड़ेगा? चन्द्रवंश में जायेंगे वा सूर्यवंशी में? युद्ध वाला तो चन्द्रवंश में जायेगा। चल रहे हैं, कर रहे हैं, हो ही जायेंगे, पहुँच जायेंगे - अभी तक ऐसा लक्ष्य नहीं रखो। अब नहीं तो कब नहीं। बनना है तो अब, पाना है तो अब - ऐसे उमंग-उत्साह वाले ही समय पर अपनी सम्पूर्ण मंजिल को पा सकेंगे। त्रेता में राम सीता बनने के लिए तो कोई भी तैयार नहीं है। जब सतयुग सूर्यवंश में आना है, तो सूर्यवंश अर्थात् सदा मास्टर विधाता और वरदाता, लेने की इच्छा वाला नहीं। मदद मिल जाए, यह हो जाए तो बहुत अच्छा, पुरूषार्थ में अच्छा नम्बर ले लेंगे - नहीं। मदद मिल रही है, सब हो रहा है - इसको कहते हैं स्वराज्य अधिकारी बच्चे। आगे बढ़ना है या पीछे आये है तो पीछे ही रहना है? आगे जाने का सहज रास्ता है - सहजयोगी, स्वत:योगी बनो। बहुत सहज है। जब है ही एक बाप, दूसरा कोई नहीं तो जायेंगे कहाँ? प्राप्ति ही प्राप्ति है फिर मेहनत क्यों लगेगी? तो प्राप्ति के समय का लाभ उठाओ। सर्व प्राप्ति स्वरूप बनो। समझा? बापदादा तो यही चाहते हैं कि एक-एक बच्चा - चाहे लास्ट आने वाला, चाहे स्थापना के आदि में आने वाला, हर एक बच्चा नम्बरवन बने। राजा बनना, न कि प्रजा। अच्छा। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का ग्रुप आया है। देखो, महा शब्द कितना अच्छा है। महाराष्ट्र स्थान भी महा शब्द का है और बनना भी महान् है। महान् तो बन गये ना क्योंकि बाप के बने माना महान् बने। महान् आत्मायें हो। ब्राह्मण अर्थात् महान्। हर कर्म महान्, हर बोल महान्, हर संकल्प महान् है। अलौकिक हो गये ना। तो महाराष्ट्र वाले सदा ही स्मृति स्वरूप बनो कि महान् हैं। ब्राह्मण अर्थात् महान् चोटी हैं ना। मध्य प्रदेश - सदा ‘मध्याजी भव' के नशे में रहने वाले। ‘मन्मनाभव' के साथ ‘मध्याजी भव' का भी वरदान है। तो अपना स्वर्ग का स्वरूप-इसको कहते हैं ‘मध्याजी भव' तो अपने श्रेष्ठ प्राप्ति के नशे में रहने वाले अर्थात् ‘मध्याजी भव' के मन्त्र के स्वरूप में स्थित रहने वाले। वह भी महान् हो गये। ‘मध्याजी भव' हैं तो ‘मन्मनाभव' भी जरूर होंगे। तो मध्य प्रदेश अर्थात् महामन्त्र का स्वरूप बनने वाले। तो दोनों ही अपनी-अपनी विशेषता से महान् हैं। समझा, कौन हो? जब से पहला पाठ शुरू किया, वह भी यही किया कि मैं कौन? बाप भी वही बात याद दिलाते हैं। इसी पर मनन करना। शब्द एक ही है कि ‘मैं कौन' लेकिन इसके उत्तर कितने हैं? लिस्ट निकालना - ‘मैं कौन?' अच्छा। चारों ओर के सर्व प्राप्तिस्वरूप, श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व अलौकिक राज्य सभा अधिकारी महान् आत्माओं को, सदा रूहानियत की चमक धारण करने वाली विशेष आत्माओं को, सदा स्वत: योगी, सहजयोगी, ऊंचे ते ऊंची आत्माओं को ऊंचे ते ऊंचे बापदादा का स्नेह सम्पन्न यादप्यार स्वीकार हो। अव्यक्त बापदादा से डबल विदेशी भाई-बहनों की मुलाकात:- डबल विदेशी अर्थात् सदा अपने स्व-स्वरूप, स्वदेश, स्वराज्य की स्मृति में रहने वाले। डबल विदेशियों को विशेष कौन-सी सेवा करनी है? अभी साइलेन्स की शक्ति का अनुभव विशेष रूप से आत्माओं को कराना। यह भी विशेष सेवा है। जैसे साइंस की पावर नामीग्रामी है ना। बच्चे-बच्चे को मालूम है कि साइंस क्या है। ऐसे साइलेन्स पावर, साइंस से भी ऊंची है। वह दिन भी आना है। साइलेन्स के पावर की प्रत्यक्षता अर्थात् बाप की प्रत्यक्षता। जैसे साइंस प्रत्यक्ष प्रूफ दिखा रही है - वैसे साइलेन्स पावर का प्रैक्टिकल प्रूफ है - आप सबका जीवन। जब इतने सब प्रैक्टिकल प्रूफ दिखाई देंगे, तो ना चाहते हुए सभी की नज़र में सहज आ जायेंगे। जैसे यह (पिछले वर्ष) पीस का कार्य किया ना, इसको स्टेज पर प्रैक्टिकल में दिखाया। ऐसे ही चलते-फिरते पीस के मॉडल दिखाई दें तो साइंस वालों की भी नज़र साइलेन्स वालों के ऊपर अवश्य जायेगी। समझा? साइंस की इन्वेन्शन विदेश में ज्यादा होती हैं। तो साइलेन्स की पावर का आवाज भी वहाँ से सहज फैलेगा। सेवा का लक्ष्य तो है ही, सभी को उमंग-उत्साह भी है। सेवा के बिना रह नहीं सकते। जैसे भोजन के बिना रह नहीं सकते, ऐसे सेवा के बिना भी रह नहीं सकते इसलिए बापदादा खुश है। अच्छा! पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मायें बन गये, ऐसे अनुभव करते हो? स्व का दर्शन हो गया ना? अपने आपको जानना अर्थात् स्व का दर्शन होना और चक्र का ज्ञान जानना अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना। जब स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं तो और सब चक्र समाप्त हो जाते हैं। देहभान का चक्र, सम्बन्ध का चक्र, समस्याओं का चक्र - माया के कितने चक्र हैं! लेकिन स्वदर्शन चक्रधारी बनने से यह सब चक्र समाप्त हो जाते हैं, सब चक्रों से निकल जाते हैं। नहीं तो जाल में फंस जाते हैं। तो पहले फंसे हुए थे, अब निकल गये। 63 जन्म तो अनेक चक्रों में फंसते रहे और इस समय इन चक्रों से निकल आये, तो फिर फंसना नहीं है। अनुभव करके देख लिया ना? अनेक चक्रों में फंसने से सब कुछ गंवा दिया और स्वदर्शन चक्रधारी बनने से बाप मिला तो सब कुछ मिला। तो सदा स्वदर्शन चक्रधारी बन, मायाजीत बन आगे बढ़ते चलो, इससे सदा हल्के रहेंगे, किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव नहीं होगा। बोझ ही नीचे ले आता है और हल्का होने से ऊंचे उड़ते रहेंगे। तो उड़ने वाले हो ना? कमज़ोर तो नहीं? अगर एक भी पंख कमज़ोर होगा तो नीचे ले आयेगा, उड़ने नहीं देगा इसलिए, दोनों ही पंख मजबूत हों तो स्वत: उड़ते रहेंगे। स्वदर्शन चक्रधारी बनना अर्थात् उड़ती कला में जाना। अच्छा। राजयोगी, श्रेष्ठ योगी आत्माये हो ना? साधारण जीवन से सहजयोगी, राजयोगी बन गये। ऐसी श्रेष्ठ योगी आत्मायें सदा ही अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती हैं। हठयोगी योग द्वारा शरीर को ऊंचा उठाते हैं और उड़ने का अभ्यास करते हैं। वास्तव में आप राजयोगी ऊंची स्थिति का अनुभव करते हो। इसको ही कापी करके वो शरीर को ऊंचा उठाते हैं। लेकिन आप कहाँ भी रहते ऊंची स्थिति में रहते हो, इसलिए कहते हैं - योगी ऊंचा रहते हैं। तो मन की स्थिति का स्थान ऊंचा है क्योंकि डबल लाइट बन गये हो। वैसे भी फरिश्तों के लिए कहा जाता कि फरिश्तों के पांव धरती पर नहीं होते। फरिश्ता अर्थात् जिसका बुद्धि रूपी पांव धरती पर न हो, देहभान में न हो। देहभान से सदा ऊंचे - ऐसे फरिश्ते अर्थात् राजयोगी बन गये। अभी इस पुरानी दुनिया से कोई लगाव नहीं। सेवा करना अलग चीज है लेकिन लगाव न हो। योगी बनना अर्थात् बाप और मैं, तीसरा न कोई। तो सदा इसी स्मृति में रहो कि हम राजयोगी, सदा फरिश्ता हैं। इस स्मृति से सदा आगे बढ़ते रहेंगे। राजयोगी सदा बेहद के मालिक हैं, हद के मालिक नहीं। हद से निकल गये। बेहद का अधिकार मिल गया - इसी खुशी में रहो। जैसे बेहद का बाप है, वैसे बेहद की खुशी में रहो, नशे में रहो। अच्छा। विदाई के समय सभी अमृतवेले के वरदानी बच्चों को वरदाता बाप की सुनहरी यादप्यार स्वीकार हो। साथ-साथ सुनहरी दुनिया बनाने की सेवा के सदा प्लान मनन करने वाले और सदा सेवा में दिल व जान, सिक व प्रेम से, तन-मन-धन से सहयोगी आत्मायें, सभी को बापदादा गुडमार्निंग, डायमण्ड मार्निंग कर रहे हैं और सदा डायमण्ड बन इस डायमण्ड युग की विशेषता को वरदान और वर्से में लेकर स्वयं भी सुनहरी स्थिति में स्थित रहेंगे और औरों को भी ऐसे ही अनुभव कराते रहेंगे। तो चारों ओर के डबल हीरो बच्चों को डायमण्ड मार्निंग। अच्छा। वरदान:- रहमदिल की भावना द्वारा अपकारी पर भी उपकार करने वाले शुभचिंतक भव कैसी भी कोई आत्मा, चाहे सतोगुणी, चाहे तमोगुणी सम्पर्क में आये लेकिन सभी के प्रति शुभचिंतक अर्थात् अपकारी पर भी उपकार करने वाले। कभी किसी आत्मा के प्रति घृणा दृष्टि न हो क्योंकि जानते हो यह अज्ञान के वशीभूत है, बेसमझ है। उनके ऊपर रहम वा स्नेह आये, घृणा नहीं। शुभचिंतक आत्मा ऐसा नहीं सोचेगी कि इसने ऐसा क्यों किया लेकिन इस आत्मा का कल्याण कैसे हो - यही है शुभचिंतक स्टेज। स्लोगन:- तपस्या के बल से असम्भव को सम्भव कर सफलता मूर्त बनो। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 9 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 9 January 2021 (Friday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, to remember the unlimited Father is something incognito. Remembrance begets remembrance. How can the Father remember those who don't stay in remembrance?" Question: What study that is never taught at any other time throughout the whole cycle do you children study at the confluence age? Answer: The study to die alive from your body. To become a corpse is only taught at this time, because it is at this time that you have to become karmateet. While you are in a body, you have to perform actions. Your mind can only be peaceful when you are not in a body. This is why, "Those who conquer the mind conquer the world", shouldn’t be said. It should be, "Those who conquer Maya conquer the world.” ♫ Listen Today's Murli ➤ Om Shanti. The Father sits here and explains to you children because you understand that only those who are senseless are taught. Now, when the unlimited Father, God, the Highest on High, comes, whom would He teach? He would definitely teach those who are the most senseless. This is why they talk about, "Those who have non-loving intellects at the time of destruction.” How did intellects become non-loving? They have written about 8.4 million species. They have also said that the Father takes 8.4 million births. They say that the Supreme Soul is in the cats and dogs and in all living things. You children have been told that this point should be explained second. The Father has explained that, when new ones come, first of all give them the introduction of the limited and the unlimited fathers. That One is the unlimited senior Baba and this one is a limited junior Baba. "The unlimited Father” means the Father of unlimited souls. A limited father is a father of living beings. That One is the Father of all souls. Not everyone can imbibe this knowledge to the same extent. Some imbibe only 1% and some imbibe 95%. This is something to understand. There will be the sun dynasty; there are the kings, queens and subjects. This enters your intellects. There are all types of human beings among the subjects. Subjects means subjects! The Father explains: This is a study. Each of you studies according to your own intellect. Each of you has received your own part. To whatever extent you imbibed this study in the previous cycle, you will do the same now. The study can never be hidden. You receive your status according to how much you study. The Father has explained: As you make progress, there will be examinations. You cannot be transferred without your taking an examination. Everything will be revealed at the end. However, even now, you can understand what status you are worthy of. Although you all raise your hands, because you are embarrassed when you’re among everyone, you do understand in your hearts that you know how you couldn’t possibly become that. Nevertheless, you raise your hands. To raise your hand even though... this means ignorance. There is so much ignorance! The Father straightaway understands that those (worldly) students have more sense. They understand that if they are not worthy of claiming a scholarship, they won't pass. Those worldly students are better than you because they at least understand how many marks they will claim in the subject their teacher is teaching them. They would not say that they will pass with honours. This shows that those here don't have even that much sense; they have a lot of body consciousness. Since you have come here to become Lakshmi and Narayan, your activity has to be very good. The Father says: Some have non-loving intellects at the time of destruction. What will their condition be if they don't have accurate love for the Father? They won't be able to claim a high status. The Father sits here and explains to you children the meaning of, "Those who have non-loving intellects at the time of destruction.” If you children can't understand it clearly yourselves, what would others understand? The children who believe that they are Shiv Baba's children don't understand the full meaning of that. To remember the Father is something incognito. The study is not incognito. Everyone is numberwise in the study: not everyone will study to the same extent. The Father realises that they are still babies. They don't remember the unlimited Father for three to four months. How can it be understood whether someone is remembering Baba or not? It would only be when Baba receives a letter from them and they write service news of the spiritual service they are doing. You need to give some proof. Those who neither stay in remembrance nor give any proof of service are body conscious. Some write their news: Baba, so-and-so came and I explained this to him. So, the Father understands that the child is still alive and is giving good service news. Some don't even write a letter for three to four months. When Baba doesn't receive any news, he understands that the child has died or is ill. Those who are ill are unable to write. Some even write that they didn't write earlier because their health wasn't good. Some do not give any news at all; they are not ill, they are body conscious. Then, whom would the Father remember? Remembrance begets remembrance. However, there is body consciousness. The Father comes and explains: You have said that I am omnipresent and have put Me into an even greater number of species than 8.4 million. Human beings are said to be those with stone intellects. They say of God: He is present in all the pebbles and stones. Therefore, that is an unlimited insult, is it not? So, the Father says: They defame Me so much! You now understand everything, number-wise. On the path of devotion, they sing: When You come, I will surrender myself to You. I will make you my Heir. You make Me your Heir by saying that I am in the pebbles and stones! You defame Me so much! This is why the Father says: When there is extreme irreligiousness, I come. You children now know the Father and so you praise Him so much. Let alone praise Him, some don't even write two words of remembrance to Him. They become body conscious. You children understand that you have found the Father. Our Father is teaching us. These are the versions of God. I teach you Raj Yoga. I teach you Raj Yoga and show you how you can claim the kingdom of the world. If you had the intoxication that the unlimited Father is teaching you how to claim the sovereignty of the world, you would have infinite happiness. Although they study the Gita, they study it like an ordinary book. God Krishna speaks: I teach you Raj Yoga. That is all! Their intellects don't have this yoga or this happiness. Those who study or recite the Gita don't have this much happiness. When they finish reading the Gita, they get busy in their business. You now have it in your intellects that the unlimited Father is teaching you. It does not enter anyone else's intellect that God is teaching them. So, when someone comes, first of all, explain to him the theory of the two fathers. Tell him: Bharat was heaven and it is now hell. No one can say that they are in the iron age as well as the golden age. When someone experiences sorrow, he is in hell and when someone experiences happiness, he is in heaven. Many say that they have a lot of happiness and that unhappy people are in hell. They have their palaces and buildings, etc. They see a lot of external happiness. You now understand that that golden-aged happiness cannot be experienced here. It isn't that they are both the same thing, so that the golden age can be called the iron age and the iron age can be called the golden age. Those who believe that are called ignorant. Therefore, first of all, tell them the theory of the Father. The Father gives His own introduction. No one else knows Him. They say that God is omnipresent. You now show in the pictures that the form of a soul and that of the Supreme Soul is the same. He too is a soul, but He is called the Supreme Soul. The Father sits here and explains how He comes. All souls reside there in the supreme abode. People outside cannot understand these things. The language is also very easy. In the Gita, it mentions Krishna’s name, but Krishna doesn’t speak the Gita. He cannot tell everyone: Constantly remember Me alone! Sins cannot be cut away by remembering bodily beings. It says: God Krishna speaks: Renounce all bodily relations and constantly remember Me alone! However, Krishna himself has bodily relations and is just a small child. This is such a huge mistake! There is so much difference because of just one mistake! God cannot be omnipresent. Does the One you call "Bestower of Salvation for All" attain degradation too? Can God ever become degraded? All of these things have to be churned. This is not a matter of wasting time! People say that they don't have time. When you tell them to come and take the course, they say that they don’t have time. They would come for two days or they would come for four days. If they don't study, how can they become Lakshmi and Narayan? There is so much force of Maya. The Father explains: Every second and every minute that pass repeat identically. They will continue to repeat countless times. You are now listening to the Father. Baba doesn't enter the cycle of birth and death. You can compare the ones who enter the full cycle of birth and rebirth with the One who doesn't. Only the one Father doesn't take birth or die. Everyone else is in this cycle. This is why you show the picture of Brahma and Vishnu both taking birth and rebirth. They continue to act out their parts: Brahma becomes Vishnu and Vishnu becomes Brahma: it cannot end. Everyone will come and see these pictures and understand. This is something to be understood easily. Let it enter your intellects that you are Brahmins, that you will then become deities, warriors, merchants and shudras and that, when the Father comes, you will then become Brahmins. Remember this and you will become spinners of the discus of self-realisation. There are many who are unable to stay in remembrance. Only you Brahmins become spinners of the discus of self-realisation. Deities don't become this. You become deities by receiving the knowledge now of how you go around the cycle. In fact, no human being is worthy of being called a spinner of the discus of self-realisation. The human world, the land of death, is completely different, just as the customs and systems of the people of Bharat are different. Everyone's customs and systems are different. The customs and systems of the deities are different. The customs and systems of the people of the land of death are different. There is the difference of day and night and this is why everyone says that they are impure. They call out: O God, purify all of us residents of the impure world! It is in your intellects that the pure world existed 5000 years ago and that it was called the golden age. The silver age is not called that. The Father has explained that first there is first class and then there is second class. Therefore, you have to explain each aspect so well that anyone who comes is amazed by what they hear. Some are really amazed a lot, but, when they hear that they definitely have to remain pure, they don't have the time to make effort. It is the vice of lust that makes human beings impure. By conquering it you will become conquerors of the world. The Father has also told you: Conquer the vice of lust and become conquerors of the world. Human beings say: Conquer the mind and become conquerors of the world. Control your mind. Only when you don’t have a body can your mind be peaceful. Otherwise, the mind can never be peaceful. You receive a body in order for you to perform actions. So, how could you stay here in your karmateet stage? The karmateet stage is said to be that of a corpse: to have died alive and be detached from your body. You are taught the study to become detached from your body. A soul is separate from a body. A soul is a resident of the supreme abode. When a soul enters a body, it is called a human being. You receive a body to perform actions. When a soul sheds its body, it has to take another body in order to perform actions. Only when you don't have to perform actions will you remain peaceful. There are no actions in the incorporeal world. The world cycle turns here. You have to understand the Father and the world cycle. This is called knowledge. For as long as your eyes are impure and criminal, you are unable to see anything pure. This is why each of you needs a third eye of knowledge. Only when you attain your karmateet stage, that is, when you become deities, will you see deities with your eyes. However, you cannot see Krishna with your eyes while in those bodies. You don't attain anything just by having a vision. You only experience temporary happiness and your desire (of seeing Krishna) is fulfilled through that. Visions are fixed in the drama. There is no attainment through them. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli I am a soul, separate from my body. Make your stage karmateet by practising being a corpse who has died alive while living in your body. Give the proof of service. Renounce body consciousness and give your news honestly. Make effort to pass with honours Blessing: May you become a double light angel who has all accounts and all relationships with the one Father. In order to become double light angels, stay beyond the consciousness of bodies because body consciousness is mud, and if you have that burden there would be heaviness. Angels are those who don’t even have a relationship with their own bodies. You have given the Father the body that the Father had given you. Once you give away something of yours to someone else, your relationship with it finishes. All your accounts and all your give-and-take are with the Father, and all the accounts and relationships of the past have finished. Only those who are such complete beggars become double light angels. Slogan:- Use your specialties and you will experience progress at every step. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 9 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 9 January 2021 (Saturday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - बेहद के बाप को याद करना - यह है गुप्त बात, याद से याद मिलती है, जो याद नहीं करते उन्हें बाप भी कैसे याद करें" प्रश्नः- संगम पर तुम बच्चे कौन सी पढ़ाई पढ़ते हो जो सारा कल्प नहीं पढ़ाई जाती? उत्तर:- जीते जी शरीर से न्यारा अर्थात् मुर्दा होने की पढ़ाई अभी पढ़ते हो क्योंकि तुम्हें कर्मातीत बनना है। बाकी जब तक शरीर में हैं तब तक कर्म तो करना ही है। मन भी अमन तब हो जब शरीर न हो इसलिए मन जीते जगतजीत नहीं, लेकिन माया जीते जगतजीत। ♫ मुरली सुने ➤ ओम् शान्ति। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं क्योंकि यह तो बच्चे समझते हैं बेसमझ को ही पढ़ाया जाता है। अब बेहद का बाप ऊंच ते ऊंच भगवान आते हैं तो किसको पढ़ाते होंगे? जरूर जो ऊंच ते ऊंच बिल्कुल बेसमझ होंगे इसलिए कहा ही जाता है विनाश काले विपरीत बुद्धि। विपरीत बुद्धि कैसे हो गये हैं? 84 लाख योनियां लिखा हुआ है ना! तो बाप को भी 84 लाख जन्मों में ले आये हैं। कह देते हैं परमात्मा कुत्ते, बिल्ली, जीव-जन्तु सबमें है। बच्चों को समझाया जाता है, यह तो सेकेण्ड नम्बर प्वाइंट देनी होती है। बाप ने समझाया है जब कोई नया आता है तो पहले-पहले उनको हद के और बेहद के बाप का परिचय देना चाहिए। वह बेहद का बड़ा बाबा और वह हद का छोटा बाबा। बेहद का बाप माना ही बेहद आत्माओं का बाप। वह हद का बाप जीव आत्मा का बाप हो गया। वह है सब आत्माओं का बाप। यह नॉलेज भी सब एकरस नहीं धारण कर सकते हैं। कोई 1 परसेन्ट धारण करते हैं तो कोई 95 परसेन्ट धारण करते हैं। यह तो समझ की बात है। सूर्यवंशी घराना होगा ना! राजा-रानी तथा प्रजा। यह बुद्धि में आता है ना। प्रजा में सब प्रकार के मनुष्य होते हैं। प्रजा माना प्रजा। बाप समझाते हैं यह पढ़ाई है। अपनी बुद्धि अनुसार हरेक पढ़ते हैं। हरेक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। जिसने कल्प पहले जितनी पढ़ाई धारण की है उतनी अब भी धारण करते हैं। पढ़ाई कब छिपी नहीं रह सकती। पढ़ाई अनुसार ही पद मिलता है। बाप ने समझाया है - आगे चल इम्तहान तो होता ही है। बिगर इम्तहान ट्रांसफर तो हो न सके। पिछाड़ी में सब मालूम पड़ेगा। बल्कि अभी भी समझ सकते हैं कि किस पद के हम लायक हैं। भल लज्जा के मारे सबके साथ-साथ हाथ उठा देते हैं। दिल में समझते भी हैं हम यह कैसे बन सकेंगे! तो भी हाथ उठा देते हैं। समझते हुए भी फिर हाथ उठा लेना यह भी अज्ञान कहेंगे। कितना अज्ञान है, बाप तो झट समझ जाते हैं। इससे तो उन स्टूडेन्ट्स में अक्ल होता है। वह समझते हैं हम स्कालरशिप लेने के लायक नहीं हैं, पास नहीं होऊंगा। इससे तो वह अज्ञानी अच्छे जो समझते हैं - टीचर जो पढ़ाते हैं उसमें हम कितने मार्क्स लेंगे! ऐसे थोड़ेही कहेंगे हम पास विद् ऑनर होंगे। तो सिद्ध होता है यहाँ इतनी भी बुद्धि नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। जब तुम आये हो यह (लक्ष्मी-नारायण) बनने तो चलन बड़ी अच्छी चाहिए। बाप कहते हैं कोई तो विनाश काले विपरीत बुद्धि हैं क्योंकि कायदेसिर बाप से प्रीत नहीं है, तो क्या हाल होगा। ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। बाप बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं - विनाश काले विपरीत बुद्धि का अर्थ क्या है - बच्चे ही पूरा नहीं समझ सकते तो फिर और क्या समझेंगे! जो बच्चे समझते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं वही पूरा अर्थ को नहीं समझते। बाप को याद करना - यह तो है गुप्त बात। पढ़ाई तो गुप्त नहीं है ना। पढ़ाई में नम्बरवार हैं। सब एक जैसा थोड़ेही पढ़ेंगे। बाप तो समझते हैं यह अभी बेबीज़ हैं। ऐसे बेहद के बाप को तीन-तीन, चार-चार मास याद भी नहीं करते हैं। मालूम कैसे पड़े कि याद करते हैं? जबकि उनकी चिट्ठी आये। फिर उस चिट्ठी में सर्विस समाचार भी हो कि यह-यह रूहानी सर्विस करता हूँ। सबूत चाहिए ना। ऐसे तो देह-अभिमानी होते हैं जो न तो कभी याद करते हैं, न सर्विस का सबूत दिखाते हैं। कोई तो समाचार लिखते हैं बाबा फलाने-फलाने आये उनको यह समझाया, तो बाप भी समझते हैं बच्चा जिन्दा है। सर्विस समाचार ठीक देते हैं। कोई तो 3-4 मास पत्र नहीं लिखते। कोई समाचार नहीं तो समझेंगे मर गया या बीमार है! बीमार मनुष्य लिख नहीं सकते हैं। यह भी कोई लिखते हैं हमारी तबियत ठीक नहीं थी इसलिए पत्र नहीं लिखा। कोई तो समाचार ही नहीं देते, न बीमार हैं। देह-अभिमान है। फिर बाप भी याद किसको करे। याद से याद मिलती है, परन्तु देह-अभिमान है। बाप आकर समझाते हैं मुझे सर्वव्यापी कह 84 लाख से भी जास्ती योनियों में ले जाते हैं। मनुष्यों को कहा जाता है पत्थरबुद्धि हैं। भगवान के लिए तो फिर कह देते पत्थर भित्तर के अन्दर विराजमान है। तो यह बेहद की गालियां हुई ना! इसलिए बाप कहते हैं मेरी कितनी ग्लानि करते हैं। अभी तुम तो नम्बरवार समझ गये हो। भक्तिमार्ग में गाते भी हैं - आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे। आपको वारिस बनायेंगे। यह वारिस बनाते हैं जो कहते हैं पत्थर-ठिक्कर में हो! कितनी ग्लानि करते हैं, तब बाप कहते हैं यदा यदाहि...... अभी तुम बच्चे बाप को जानते हो तो बाप की कितनी महिमा करते हो। कोई महिमा तो क्या, कभी याद कर दो अक्षर लिखते भी नहीं। देह-अभिमानी बन पड़ते हैं। तुम बच्चे समझते हो हमको बाप मिला है, हमारा बाप हमको पढ़ाते हैं। भगवानुवाच है ना! मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। विश्व की राजाई कैसे प्राप्त हो उसके लिए राजयोग सिखाता हूँ। हम विश्व की बादशाही लेने लिए बेहद के बाप से पढ़ते हैं - यह नशा हो तो अपार खुशी आ जाए। भल गीता भी पढ़ते हैं परन्तु जैसे आर्डिनरी किताब पढ़ते हैं। कृष्ण भगवानुवाच - राजयोग सिखाता हूँ, बस। इतना बुद्धि का योग वा खुशी नहीं रहती। गीता पढ़ने वा सुनाने वालों में इतनी खुशी नहीं रहती। गीता पढ़कर पूरी की और गया धन्धे में। तुमको तो अभी बुद्धि में है - बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं। और कोई की बुद्धि में यह नहीं आयेगा कि हमको भगवान पढ़ाते हैं। तो पहले-पहले कोई भी आवे तो उनको दो बाप की थ्योरी समझानी है। बोलो भारत स्वर्ग था ना, अभी नर्क है। ऐसे तो कोई कह न सके कि हम सतयुग में भी हैं, कलियुग में भी हैं। किसको दु:ख मिला तो वह नर्क में है, किसको सुख मिला तो स्वर्ग में है। ऐसे बहुत कहते हैं - दु:खी मनुष्य नर्क में हैं, हम तो बहुत सुख में बैठे हैं, महल माड़ियां आदि सब कुछ हैं। बाहर का बहुत सुख देखते हैं ना। यह भी तुम अभी समझते हो सतयुगी सुख तो यहाँ हो नहीं सकता। ऐसे भी नहीं, गोल्डन एज को आइरन एज कहो अथवा आइरन एज को गोल्डन एज कहो एक ही बात है। ऐसे समझने वाले को भी अज्ञानी कहेंगे। तो पहले-पहले बाप की थ्योरी बतानी है। बाप ही अपनी पहचान देते हैं। और तो कोई जानते नहीं। कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है। अभी तुम चित्र में दिखाते हो - आत्मा और परमात्मा का रूप तो एक ही है। वह भी आत्मा है परन्तु उनको परम आत्मा कहा जाता है। बाप बैठ समझाते हैं - मैं कैसे आता हूँ! सभी आत्माएं वहाँ परमधाम में रहती हैं। यह बातें बाहर वाला तो कोई समझ नहीं सकता। भाषा भी बहुत सहज है। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। अब कृष्ण तो गीता सुनाते नहीं हैं। वह तो सबको कह न सके कि मामेकम् याद करो। देहधारी की याद से तो पाप कटते नहीं हैं। कृष्ण भगवानुवाच - देह के सब संबंध त्याग मामेकम् याद करो परन्तु देह के संबंध तो कृष्ण को भी हैं और फिर वह तो छोटा-सा बच्चा है ना। यह भी कितनी बड़ी भूल है। कितना फ़र्क पड़ जाता है एक भूल के कारण। परमात्मा तो सर्वव्यापी हो नहीं सकता। जिसके लिए कहते हैं सर्व का सद्गति दाता है तो क्या वह भी दुर्गति को पाते हैं! परमात्मा कब दुर्गति को पाता है क्या? यह सब विचार सागर मंथन करने की बातें हैं। टाइम वेस्ट करने की बात नहीं है। मनुष्य तो कह देते कि हमको फुर्सत नहीं है। तुम समझाते हो कि आकर कोर्स लो तो कहते फुर्सत नहीं। दो दिन आयेंगे फिर चार दिन नहीं आयेंगे.....। पढ़ेंगे नहीं तो यह लक्ष्मी-नारायण कैसे बन सकेंगे? माया का कितना फोर्स है। बाप समझाते हैं जो सेकेण्ड, जो मिनट पास होता है वह हूबहू रिपीट होता है। अनगिनत बार रिपीट होते रहेंगे। अभी तो बाप द्वारा सुन रहे हो। बाबा तो जन्म-मरण में आते नहीं। भेंट की जाती है पूरा जन्म-मरण में कौन आता है और न आने वाला कौन? सिर्फ एक ही बाप है जो जन्म-मरण में नहीं आता है। बाकी तो सब आते हैं इसलिए चित्र भी दिखाया है। ब्रह्मा और विष्णु दोनों जन्म मरण में आते हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा पार्ट में आते-जाते हैं। एन्ड हो न सके। यह चित्र फिर भी आकर सब देखेंगे और समझेंगे। बहुत सहज समझ की बात है। बुद्धि में आना चाहिए हम सो ब्राह्मण हैं फिर हम सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। फिर बाप आयेंगे तो हम सो ब्राह्मण बन जायेंगे। यह याद करो तो भी स्वदर्शन चक्रधारी ठहरे। बहुत हैं जिनको याद ठहरती नहीं। तुम ब्राह्मण ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। देवतायें नहीं बनते हैं। यह नॉलेज, कि चक्र कैसे फिरता है, इस नॉलेज को पाने से वह यह देवता बने हैं। वास्तव में कोई भी मनुष्य स्वदर्शन चक्रधारी कहलाने के लायक नहीं है। मनुष्यों की सृष्टि मृत्युलोक ही अलग है। जैसे भारतवासियों की रस्म-रिवाज अलग है, सबका अलग-अलग होता है। देवताओं की रस्म-रिवाज अलग है। मृत्युलोक के मनुष्यों की रस्म-रिवाज अलग। रात-दिन का फर्क है इसलिए सब कहते हैं - हम पतित हैं। हे भगवान, हम सब पतित दुनिया के रहने वालों को पावन बनाओ। तुम्हारी बुद्धि में है पावन दुनिया आज से 5 हज़ार वर्ष पहले थी, जिसको सतयुग कहा जाता है। त्रेता को नहीं कहेंगे। बाप ने समझाया है - वह है फर्स्टक्लास, यह है सेकेण्ड क्लास। तो एक-एक बात अच्छी रीति धारण करनी चाहिए। जो कोई भी आये तो सुनकर वन्डर खावे। कोई तो वन्डर खाते हैं। परन्तु फिर उनको फुर्सत नहीं रहती, जो पुरुषार्थ करे। फिर सुनते हैं पवित्र जरूर रहना है। यह काम विकार ही है जो मनुष्य को पतित बनाता है। इनको जीतने से ही तुम जगतजीत बनेंगे। बाप ने कहा भी है - काम विकार जीत जगतजीत बनो। मनुष्य फिर कह देते मन जीते जगतजीत बनो। मन को वश में करो। अब मन अमन तो तब हो जब शरीर न हो। बाकी मन अमन तो कभी होता ही नहीं। देह मिलती ही है कर्म करने के लिए तो फिर कर्मातीत अवस्था में कैसे रहेंगे? कर्मातीत अवस्था कहा जाता है मुर्दे को। जीते जी मुर्दा, शरीर से न्यारा। तुमको भी शरीर से न्यारा बनने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। शरीर से आत्मा अलग है। आत्मा परमधाम की रहने वाली है। आत्मा शरीर में आती है तो उनको मनुष्य कहा जाता है। शरीर मिलता ही है कर्म करने लिए। एक शरीर छूट जायेगा फिर दूसरा शरीर आत्मा को लेना है कर्म करने लिए। शान्त तो तब रहेंगे जब कर्म नहीं करना होगा। मूलवतन में कर्म होता नहीं। सृष्टि का चक्र यहाँ फिरता है। बाप को और सृष्टि चक्र को जानना है, इसको ही नॉलेज कहा जाता है। यह आंखें जब तक पतित क्रिमिनल हैं, तो इन आंखों से पवित्र चीज़ देखने में आ नहीं सकती इसलिए ज्ञान का तीसरा नेत्र चाहिए। जब तुम कर्मातीत अवस्था को पायेंगे अर्थात् देवता बनेंगे फिर तो इन आंखों से देवताओं को देखते रहेंगे। बाकी इस शरीर में इन आंखों से कृष्ण को देख नहीं सकते। बाकी साक्षात्कार किया तो उससे कुछ मिलता थोड़ेही है। अल्पकाल के लिए खुशी रहती है, कामना पूरी हो जाती है। ड्रामा में साक्षात्कार की भी नूँध है, इससे प्राप्ति कुछ नहीं होती। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार शरीर से न्यारी आत्मा हूँ, जीते जी इस शरीर में रहते जैसे मुर्दा - इस स्थिति के अभ्यास से कर्मातीत अवस्था बनानी है। सर्विस का सबूत देना है। देहभान को छोड़ अपना सच्चा-सच्चा समाचार देना है। पास विद् ऑनर होने का पुरुषार्थ करना है। वरदान:- सर्व खाते और रिश्ते एक बाप से रखने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव डबल लाइट फरिश्ता बनने के लिए देह के भान से भी परे रहो क्योंकि देह भान मिट्टी है, यदि इसका भी बोझ है तो भारीपन है। फरिश्ता अर्थात् अपनी देह के साथ भी रिश्ता नहीं। बाप का दिया हुआ तन भी बाप को दे दिया। अपनी वस्तु दूसरे को दे दी तो अपना रिश्ता खत्म हुआ। सब हिसाब-किताब, सब लेन-देन बाप से बाकी सब पिछले खाते और रिश्ते खत्म - ऐसे सम्पूर्ण बेगर ही डबल लाइट फरिश्ते हैं। स्लोगन:- अपनी विशेषताओं को प्रयोग में लाओ तो हर कदम में प्रगति का अनुभव करेंगे। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 8 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 8 January 2021 (Friday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, have the intoxication that you are becoming deities from Brahmins. Only you Brahmins receive elevated directions from the Father." Question: What interest and intoxication should those who have new blood have? Answer: You should have the interest to make this world that has become old and ironaged into a new and golden-aged world, the interest to make everything old new. Kumaris have new blood and so they should uplift their equals. You should constantly have this intoxication. You should also have great intoxication giving lectures. ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: O traveler of the night, do not become weary! The destination of dawn is not far off. Om Shanti. You children understand the meaning of this song. The extremely dark night of the path of devotion is now coming to an end. You children understand that you are now going to receive crowns. You are sitting here with the aim and objective of changing from humans into deities. A sannyasi told someone to consider himself to be a buffalo. That person then thought he had become that. That is an example from the path of devotion, just as there is also the example of Rama taking an army of monkeys. You are sitting here in the knowledge that you will become double-crowned deities. When you study at school, you say that you are studying to become a doctor or an engineer. Through this study you understand that you are becoming deities. When you shed your body, your next body will have a crown on its head. This world is very dirty. The new world is first class, whereas the old world is totally third class. This world is going to end. The Creator of the world is definitely the One who makes you into the masters of the new world. No one else can teach you this. Only Shiv Baba educates and teaches you. The Father has explained: What else do you need when you become completely soul conscious? You are Brahmins anyway. You know that you are becoming deities. The deities were so pure! People here are so impure. Although their faces are like those of human beings, look at what their characters are like! The worshippers of the deities sing this praise of the deities in front of them: You are full of all virtues, 16 celestial degrees full and we are vicious sinners! Their faces too are those of human beings, yet they go and sing this praise in front of them. They say of themselves: We are dirty and vicious. We have no virtues. They too are human, which means human beings. You now understand that you will change and become deities. People worship Krishna so that they can go to the land of Krishna, but they don’t know when they would go there. They continue to perform devotion believing that God will come and give them the fruit of their devotion. First of all, have faith in the One who is teaching you. These are the directions of Shri Shri Shiv Baba. Shiv Baba is giving you shrimat. How could those who don’t understand this become elevated? All of you Brahmins are following the directions of Shri Shri Shiv Baba. Only the directions of the Supreme Father, the Supreme Soul, make you elevated. This will only sit in the intellects of those who have it in their fortune. Otherwise, they won’t understand anything. Only when they understand this will they be happy and begin to help you. There are some who don’t know anything. They don’t even know who that One is. This is why Baba doesn’t meet anyone. Those people would only give their own directions! Because they don’t understand shrimat, they begin to give that One their own directions. The Father has now come to make you children elevated. You children understand that Baba has come and met you exactly as He did 5000 years ago. Those who don’t understand this will not be able to respond in this way. You children should have a lot of intoxication with this study. This is a very high status, but Maya is also very much against you. You understand that you are studying a study through which you will become double crowned; you will become double crowned for birth after birth in the future. For this you need to make full effort. This is called Raj Yoga. It is a wonder! Baba always explains: Go to the Lakshmi and Narayan Temples. You can also explain to the priests there. The priests can then explain to the others how Lakshmi and Narayan received their status and how they became the masters of the world. If they sit and explain in this way, respect for the priests would also increase. You can tell them: We will explain to you how Lakshmi and Narayan received their kingdom. In the Gita, it says: God speaks: I teach you Raj Yoga and make you into the king of kings. You are the ones who become the masters of heaven, are you not? Therefore, children, you should be so intoxicated knowing what you are becoming. You can have your own photograph taken (as you are now) and also one of you in royal dress. At the bottom, keep your own ordinary picture and above it, keep the picture of yourself in your royal dress. There is no expense in this, is there? You can very quickly dress up in a royal costume. And you would thereby remember again and again that you are becoming deities. At the top, you can also keep Shiv Baba. You should take this picture too. You are changing from human beings into deities. When you shed your bodies, you will then go and become deities because you are now studying Raj Yoga. Therefore, those photographs will help you. At the top, have the picture of Shiva, then the picture of yourself in your royal dress and beneath that your ordinary picture. We are studying Raj Yoga with Shiv Baba and becoming double-crowned deities. If you have this picture, then, whenever people see it and ask you about it, you can tell them that it is Shiv Baba who is teaching you. When you children see this picture you will feel intoxicated. You can also place this picture in your shop. When Baba was on the path of devotion, he kept a picture of Narayan. He also had one in his pocket. You too should keep your own photograph and you will remember that you are becoming deities. Find ways of remembering the Father. It is when you forget the Father that you fall. If you fall into vice, you would be ashamed that you are not able to become a deity and you would have heart failure. How can I now become a deity? Baba says: Remove the photographs of those who have fallen into vice! Tell them: You are not worthy of going to heaven. Your passports are cancelled. They themselves would feel that they have now fallen and would ask themselves: How can I now go to heaven? There is the example of Narad. He was told to look at his own face to see if he was worthy of marrying Lakshmi. He saw the face of a monkey. People would then be ashamed of having these vices. So, how could they marry Shri Narayan or Shri Lakshmi? Baba shows you many methods. However, you must also have some faith! When there is the intoxication of vice, they can understand that they cannot possibly become kings of kings and double crowned. One has to make some effort! Baba continues to explain to you. Create such methods and continue to explain to everyone. Establishment is now taking place through Raj Yoga. Destruction is just ahead. Day by day, storms will become more and more powerful. Bombs, etc. are also being manufactured. You are studying this study to claim a high status in the future. Only once do you become pure from impure. Because they have stone intellects, people don’t understand that they are residents of hell. You are now becoming those with divine intellects from those who have stone intellects. If they have it in their fortune, they can understand this very quickly. Otherwise, no matter how much you beat your head, it will not sit in their intellects. If they don’t know the Father, they are atheists, that is, they are orphans. Therefore, since they are the children of Shiv Baba, you have to make them belong to the Lord and Master. Those who have this knowledge will continue to protect their children from vice. Ignorant people will continue to trap their children just as they themselves are trapped. You know that you are protected from vice here. Kumaris have to be saved first. Their parents push their children into vice. You know that this world is corrupt. They want an elevated world. God speaks: I come at the time when everyone is corrupt in order to make them all elevated; I uplift everyone. It is also written in the Gita: God comes to uplift the sages and holy men etc. Only one God alone comes and uplifts everyone. You now wonder how human beings’ intellects turned to stone. If all those eminent people were to understand at this time that Shiva is the God of the Gita, you never know what would happen! There would be cries of distress! However, there is still time for that. Otherwise, their groups would shake suddenly. The thrones of many do shake! When a war takes place, you can tell that that one’s throne has begun to shake and that he will topple. If they were to shake now, there would be a lot of upheaval. It will happen like that in the future. The Purifier, the Bestower of Salvation for All, Himself, says: I truly am carrying out establishment through the body of Brahma. "Salvation for All” means that He is uplifting everyone. God speaks: This world is impure. I have to uplift everyone. Everyone is now impure. How could anyone impure make everyone pure? First of all, he himself would have to become pure before he could make his followers the same. You need to have a lot of intoxication when giving lectures. You kumaris have new blood. You are changing from old to new. You souls that have become old and iron aged are now becoming new and golden aged as the alloy is removed. Therefore, you children should have a great deal of interest. You should constantly have intoxication. You have to uplift your equals. "Mother Guru” is remembered. You now know when a mother becomes a guru. Jagadamba then becomes a princess. There are no gurus there. The affair of the gurus exists at this time. The Father comes and places the urn of the nectar of knowledge on the mothers. It has been like that from the beginning. They say for their centre: We want a Brahma Kumari. Baba says: You should run it yourself! Do you not have courage? They say: No Baba! We want a teacher. It is also good to give respect. Nowadays, people in the world give one another lame (artificial) respect! Today, they make someone a Prime Minister and tomorrow, they throw him out. No one receives respect permanently. At this time, you children are receiving your permanent fortune of the kingdom. Baba explains to you children in so many different ways. Baba is showing you many different ways to keep yourselves constantly cheerful. Have good wishes: Oho! I am becoming like this Lakshmi and Narayan. However, if it is not in their fortune, what effort would they make? Baba shows you the effort you have to make. Effort never goes to waste; it is always worthwhile. The kingdom will be established anyway. Destruction has to take place through the Mahabharat War. As you make further progress and become strong, all of them will come. They won’t understand anything now. Otherwise, they would lose their kingdom. There are so many gurus. There is not a human being who is not a follower of one guru or another. Here, you have found the one Satguru who grants you salvation. The pictures that you have are very good. That is salvation, the land of happiness, and that is the land of liberation. Your intellects say: All of us souls live in the land of nirvana from where we come into this "talkie”. We are residents of that place. This play is based on Bharat. The birthday of Shiva is celebrated here. The Father says: I have now come and I will come again in the next cycle. Every 5000 years, it becomes Paradise after the Father comes. It is said that so many years before Christ, there used to be Paradise, heaven. That doesn’t exist now, but it has to come again. Therefore, there definitely has to be establishment for the residents of heaven and the destruction of the residents of hell. You are now becoming residents of heaven. All the residents of hell will be destroyed. Those people think that hundreds of thousands of years still remain, and so they wait for when their children grow up and they can get them married. You do not say this. If your children don’t follow your advice, you have to take shrimat. Ask: What should we do when they are not becoming residents of heaven? The Father would reply: If they are disobedient, let them go, but you need to have a very strong stage of a destroyer of attachment. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli Follow the elevated directions of Shri Shri Shiv Baba and make yourself elevated. Don’t mix the dictates of your own mind with shrimat. Maintain the intoxication of this Godly study. Create ways to benefit your equals. While having good wishes for one another, give true respect to one another, not lame respect. Blessing: May you become an angel and experience refinement by doing spiritual exercise and having self-control. Refinement of the intellect and lightness are the personality of Brahmin life. Refinement is greatness. However, for this, every day at amrit vela, do spiritual exercise and take the precaution of not having any food of waste thoughts. To take this precaution, have self-control. At any time, only take the food of thought that you should have at that time. Do not have any extra food of waste thoughts for only then will you have a refined intellect and be able to achieve the aim of becoming an angelic form. Slogan:- A great soul is one who accurately follows shrimat at every second and every step. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 8 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 8 January 2021 (Friday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - तुम्हें नशा रहना चाहिए कि हम ब्राह्मण सो देवता बनते हैं, हम ब्राह्मणों को ही बाप की श्रेष्ठ मत मिलती है" प्रश्नः- जिनका न्यु ब्लड है उन्हें कौन सा शौक और कौन सी मस्ती होनी चाहिए? उत्तर:- यह दुनिया जो पुरानी आइरन एजड बन गई है उसे नई गोल्डन एजेड बनाने का, पुराने से नया बनाने का शौक होना चाहिए। कन्याओं का न्यु ब्लड है तो अपने हमजिन्स को उठाना चाहिए। नशा कायम रखना चाहिए। भाषण करने में भी बड़ी मस्ती होनी चाहिए। ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- रात के राही..... ओम् शान्ति। बच्चों ने इस गीत का अर्थ तो समझा। अभी भक्तिमार्ग की घोर अन्धियारी रात तो पूरी हो रही है। बच्चे समझते हैं हमारे ऊपर अब ताज आने का है। यहाँ बैठे हैं, एम ऑब्जेक्ट है - मनुष्य से देवता बनने की। जैसे संन्यासी समझाते हैं तुम अपने को भैंस समझो तो वह रूप हो जायेंगे। वह है भक्तिमार्ग के दृष्टान्त। जैसे यह भी दृष्टान्त है कि राम ने बन्दरों की सेना ली। तुम यहाँ बैठे हो। जानते हो हम सो देवी-देवता डबल सिरताज बनेंगे। जैसे स्कूल में पढ़ते हैं तो कहते हैं मैं यह पढ़कर डॉक्टर बन जाऊंगा, इन्जीनियर बन जाऊंगा। तुम समझते हो इस पढ़ाई से हम सो देवी-देवता बन रहे हैं। यह शरीर छोड़ेंगे और हमारे सिर पर ताज होगा। यह तो बहुत गन्दी छी-छी दुनिया है ना। नई दुनिया है फर्स्टक्लास दुनिया। पुरानी दुनिया है बिल्कुल थर्डक्लास दुनिया। यह तो खलास होने की है। नये विश्व का मालिक बनाने वाला जरूर विश्व का रचयिता ही होगा। दूसरा कोई पढ़ा न सके। शिवबाबा ही तुमको पढ़ाकर सिखलाते हैं। बाप ने समझाया है - आत्म-अभिमानी पूरा बन जाएं तो बाकी और क्या चाहिए। तुम ब्राह्मण तो हो ही। जानते हो हम देवता बन रहे हैं। देवतायें कितने पवित्र थे। यहाँ कितने पतित मनुष्य हैं। शक्ल भल मनुष्य की है परन्तु सीरत देखो कैसी है। जो देवताओं के पुजारी हैं वह खुद भी उन्हों के आगे महिमा गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हैं..... हम विकारी पापी हैं। सूरत तो उन्हों की भी मनुष्य की है परन्तु उनके पास जाकर महिमा गाते हैं, अपने को गन्दे विकारी कहते हैं। हमारे में कोई गुण नहीं। हैं तो मनुष्य माना मनुष्य। अभी तुम समझते हो हम तो अभी चेंज होकर जाए देवता बनेंगे। कृष्ण की पूजा करते ही इसलिए हैं कि कृष्णपुरी में जायें। परन्तु यह पता नहीं है कि कब जायेंगे। भक्ति करते रहते हैं कि भगवान आकर भक्ति का फल देंगे। पहले तो तुमको यह निश्चय चाहिए कि हमको पढ़ाते कौन हैं। यह है श्री श्री शिवबाबा की मत। शिवबाबा तुम्हें श्रीमत दे रहे हैं। जिनको यह पता नहीं वह श्रेष्ठ बन कैसे सकते। इतने सब ब्राह्मण श्री श्री शिवबाबा की मत पर चलते हैं। परमात्मा की मत ही श्रेष्ठ बनाती है, जिसकी तकदीर में होगा, उनकी बुद्धि में बैठेगा। नहीं तो कुछ भी समझेंगे नहीं। जब समझेंगे तब खुश हो मदद करने लग पड़ेंगे। कई तो जानते नहीं हैं, उनको क्या पता, यह कौन हैं इसलिए बाबा कोई से मिलते भी नहीं हैं। वह तो और ही अपनी मत निकालेंगे। श्रीमत को न जानने कारण उनको भी अपनी मत देने लग पड़ते हैं। अब बाप आये ही हैं तुम बच्चों को श्रेष्ठ बनाने के लिए। बच्चे जानते हैं 5 हज़ार वर्ष पहले मुआफिक बाबा आपसे आकर मिले हैं। जिनको पता नहीं है, ऐसे रेसपान्ड दे नहीं सकते। बच्चों को पढ़ाई का बहुत नशा रहना चाहिए। यह बड़ी ऊंच पढ़ाई है परन्तु माया भी बड़ी अगेन्स्ट है। तुम जानते हो हम वह पढ़ाई पढ़ते हैं जिससे हमारे सिर पर डबल सिरताज आना है। भविष्य जन्म-जन्मान्तर डबल सिरताज बनेंगे। तो इसके लिए फिर ऐसा पूरा पुरुषार्थ करना चाहिए ना। इसको कहा जाता है राजयोग। कितना वन्डर है। बाबा हमेशा समझाते हैं - लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाओ। पुजारियों को भी तुम समझा सकते हो। पुजारी भी किसको बैठ समझाये कि इन लक्ष्मी-नारायण को भी यह पद कैसे मिला, यह विश्व का मालिक कैसे बनें? ऐसे-ऐसे बैठ सुनायें तो पुजारी का भी मान हो जाए। तुम कह सकते हो हम आपको समझाते हैं इन लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य कैसे मिला? गीता में भी भगवानुवाच है ना। मैं तुमको राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। स्वर्गवासी तो तुम बनते हो ना। तो बच्चों को कितना नशा रहना चाहिए - हम यह बनते हैं! भल अपना चित्र और राजाई का चित्र भी यहाँ साथ में निकालो। नीचे तुम्हारा चित्र, ऊपर में राजाई का चित्र हो। इसमें खर्चा तो नहीं है ना। राजाई पोशाक तो झट बन सकती है। तो घड़ी-घड़ी याद रहेगा - हम सो देवता बन रहे हैं। ऊपर में भल शिवबाबा भी हो। यह भी चित्र निकालने होंगे। तुम मनुष्य से देवता बनते हो। यह शरीर छोड़ हम जाए देवता बनेंगे क्योंकि अभी हम यह राजयोग सीख रहे हैं। तो यह फोटो भी मदद करेंगे। ऊपर में शिव फिर राजाई चित्र। नीचे तुम्हारा साधारण चित्र। शिवबाबा से राजयोग सीख हम सो देवता डबल सिरताज बन रहे हैं। चित्र रखा होगा, कोई भी पूछेंगे तो हम बतला सकेंगे - हमको सिखलाने वाला यह शिवबाबा है। चित्र देखने से बच्चों को नशा चढ़ेगा। भल दुकान में भी यह चित्र रख दो। भक्ति मार्ग में बाबा नारायण का चित्र रखता था। पॉकेट में भी रहता था। तुम भी अपना फोटो रख दो तो याद रहेगा - हम सो देवी-देवता बन रहे हैं। बाप को याद करने का उपाय ढूंढना चाहिए। बाप को भूल जाने से ही गिरते हैं। विकार में गिरेगा तो फिर शर्म आयेगी। अभी तो हम ये देवता बन नहीं सकेंगे। हार्ट फेल हो जायेगी। अभी हम देवता कैसे बनेंगे? बाबा कहते हैं विकार में गिरने वाले का फोटो निकाल दो। बोलो, तुम स्वर्ग में चलने लायक नहीं हो, तुम्हारा पासपोर्ट खलास। खुद भी फील करेंगे हम तो गिर गये। अब हम स्वर्ग में कैसे जायेंगे। जैसे नारद का मिसाल देते हैं। उनको कहा तुम अपनी शक्ल तो देखो। लक्ष्मी को वरने लायक हो? तो शक्ल बन्दर की दिखाई पड़ी। तो मनुष्य को भी शर्म आयेगी - हमारे में तो यह विकार हैं, फिर हम श्री नारायण को वा श्री लक्ष्मी को कैसे वरेंगे। बाबा युक्तियाँ तो सब बतलाते हैं। परन्तु कोई विश्वास भी रखे ना। विकार का नशा आता है तो समझते हैं इस हिसाब से हम राजाओं का राजा डबल सिरताज कैसे बनेंगे। पुरुषार्थ तो करना चाहिए ना। बाबा समझाते रहते हैं - ऐसी-ऐसी युक्तियाँ रचो और सबको समझाते रहो। यह राजयोग की स्थापना हो रही है। अब विनाश सामने खड़ा है। दिन-प्रतिदिन तूफान जोर होता जाता है। बॉम्ब्स आदि भी तैयार हो रहे हैं। तुम यह पढ़ाई पढ़ते ही हो भविष्य ऊंच पद पाने के लिए। तुम एक ही बार पतित से पावन बनते हो। मनुष्य समझते थोड़ेही हैं कि हम नर्कवासी हैं क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं। अभी तुम पत्थरबुद्धि से पारस बुद्धि बन रहे हो। तकदीर में होगा तो झट समझेगा। नहीं तो तुम कितना भी माथा मारो, बुद्धि में बैठेगा नहीं। बाप को ही नहीं जानते तो नास्तिक हैं अर्थात् न धनी के। तो धणका बनाना चाहिए ना। जबकि शिवबाबा के बच्चे हैं। यहाँ जिनको ज्ञान है वह अपने बच्चों को विकारों से बचाते रहेंगे। अज्ञानी लोग तो अपने मुआफिक बच्चों को भी फँसाते रहेंगे। तुम जानते हो यहाँ विकार से बचाया जाता है। कन्याओं को तो पहले बचाना चाहिए। माँ-बाप जैसेकि बच्चे को विकार में धक्का देते हैं। तुम जानते हो यह भ्रष्टाचारी दुनिया है। श्रेष्ठाचारी दुनिया चाहते हैं। भगवानुवाच - मैं जब आता हूँ श्रेष्ठाचारी बनाने के लिए तो सब भ्रष्टाचारी हैं। मैं सबका उद्धार करता हूँ। गीता में भी लिखा हुआ है भगवान को ही साधू-सन्तों आदि सबका उद्धार करने आना है। एक ही भगवान बाप आकर सबका उद्धार करते हैं। अभी तुम वन्डर खाते हो - मनुष्य कितने पत्थरबुद्धि हो जाते हैं। इस समय अगर मालूम हो बड़ों-बड़ों को कि गीता का भगवान शिव है तो पता नहीं क्या हो जाए। हाहाकार मच जाए। परन्तु अभी देरी है। नहीं तो सबके अड्डे एकदम हिलने लग जाएं। बहुतों के तख्त हिलते हैं ना। लड़ाई जब होती है तो पता पड़ता है, इनका तख्त हिलने लगा है, अभी गिर पड़ेंगे। अभी यह हिलें तो बहुत हलचल मच जाए। आगे चल होने का है। पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता खुद कहते हैं - बरोबर ब्रह्मा तन से स्थापना कर रहे हैं। सर्व की सद्गति अर्थात् उद्धार कर रहे हैं। भगवानुवाच - यह पतित दुनिया है, इन सबका उद्धार मुझे करना है। अभी सब पतित हैं। पतित फिर किसको पावन कैसे बनायेंगे? पहले तो खुद पावन बनें फिर फालोअर्स को बनायें। भाषण करने में बड़ी मस्ती चाहिए। कन्याओं का न्यू ब्लड है। तुम पुराने से नया बना रहे हो। तुम्हारी आत्मा जो पुरानी आइरन एजेड बन गई है, अब नई गोल्डन एजेड बनती है। खाद निकलती जाती है। तो बच्चों को बड़ा शौक चाहिए। नशा कायम रखना चाहिए। अपने हमजिन्स को उठाना चाहिए। गाया भी जाता है, गुरू माता। माता गुरू कब होती है सो अभी तुम जानते हो। जगत अम्बा ही फिर राज-राजेश्वरी बनती है। फिर वहाँ कोई गुरू रहता ही नहीं। गुरू का सिलसिला अभी चलता है। माताओं पर बाप आकर ज्ञान अमृत का कलष रखते हैं। शुरू से ऐसे होता है। सेन्टर्स के लिए भी कहते हैं ब्रह्माकुमारी चाहिए। बाबा तो कहते हैं आपे ही चलाओ। हिम्मत नहीं है? कहते नहीं बाबा टीचर चाहिए। यह भी ठीक है, मान देते हैं। आजकल दुनिया में एक-दो को मान भी लंगड़ा देते हैं। आज प्राइम मिनिस्टर है, कल उनको उड़ा देते हैं। स्थाई सुख किसको मिलता नहीं। इस समय तुम बच्चों को स्थाई राज्य-भाग्य मिल रहा है। तुमको बाबा कितने प्रकार से समझाते हैं। अपने को सदैव हर्षित रखने के लिए बहुत अच्छी-अच्छी युक्तियाँ बतलाते हैं। शुभ भावना रखनी है ना। ओहो! हम यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं फिर अगर किसकी तकदीर में नहीं है तो तदबीर क्या करें। बाबा तदबीर तो बतलाते हैं ना। तदबीर व्यर्थ नहीं जाती है। यह तो सदा सफल होती है। राजधानी स्थापन हो ही जायेगी। विनाश भी महाभारत लड़ाई द्वारा होना ही है। आगे चल तुम जोर भरो तो यह सब आयेंगे। अभी नहीं समझेंगे फिर तो उन्हों की राजाई ही उड़ जाए। कितने ढेर गुरू लोग हैं, ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो किसी गुरू का फालोअर न हो। यहाँ तुम्हें एक सतगुरू मिला है सद्गति देने वाला। चित्र बड़े अच्छे हैं। यह है सद्गति अर्थात् सुखधाम, यह है मुक्तिधाम। बुद्धि भी कहती है हम सब आत्मायें निर्वाणधाम में रहती हैं। जहाँ से फिर टॉकी में आते हैं। वहाँ के रहवासी हैं। यह खेल ही भारत पर बना हुआ है। शिवजयन्ती भी यहाँ मनाते हैं। बाप कहते हैं मैं आया हूँ, कल्प के बाद फिर आऊंगा। हर 5 हज़ार वर्ष बाद बाप के आते ही पैराडाइज़ बन जाता है। कहते भी हैं क्राइस्ट से इतने वर्ष पहले पैराडाइज़ था, स्वर्ग था। अभी नहीं है फिर होना है। तो जरूर नर्कवासियों का विनाश, स्वर्गवासी की स्थापना चाहिए। सो तुम स्वर्गवासी बन रहे हो। नर्कवासी सब विनाश हो जायेंगे। वह तो समझते हैं अजुन इतने लाखों वर्ष पड़े हैं। बच्चे बड़े हो शादी करायें... तुम थोड़ेही ऐसा कहेंगे। अगर बच्चा राय पर नहीं चलता है तो फिर श्रीमत लेनी पड़े कि स्वर्गवासी नहीं बनते हैं तो क्या करें। बाप कहेंगे अगर आज्ञाकारी नहीं है तो जाने दो। इसमें पक्की नष्टोमोहा अवस्था चाहिए। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार श्री श्री शिवबाबा की श्रेष्ठ मत पर चलकर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है। श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करनी है। ईश्वरीय पढ़ाई के नशे में रहना है। अपने हमजिन्स के कल्याण की युक्तियाँ रचनी हैं। सबके प्रति शुभभावना रखते हुए एक-दो को सच्चा मान देना है। लंगड़ा मान नहीं। वरदान:- रूहानी एक्सरसाइज और सेल्फ कन्ट्रोल द्वारा महीनता का अनुभव करने वाले फरिश्ता भव बुद्धि की महीनता व हल्कापन ब्राह्मण जीवन की पर्सनेलिटी है। महीनता ही महानता है। लेकिन इसके लिए रोज़ अमृतवेले अशरीरीपन की रूहानी एक्सरसाइज करो और व्यर्थ संकल्पों के भोजन की परहेज रखो। परहेज के लिए सेल्फ कन्ट्रोल हो। जिस समय जो संकल्प रूपी भोजन स्वीकार करना हो उस समय वही करो। व्यर्थ संकल्प का एकस्ट्रा भोजन नहीं करो तब महीन बुद्धि बन फरिश्ता स्वरूप के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। स्लोगन:- महान आत्मा वह हैं जो हर सेकण्ड, हर कदम श्रीमत पर एक्यूरेट चलते हैं। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 7 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 7 January 2021 (Thursday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, when Bharat was heaven, you were in total light. There is now darkness; let us go into the light once again." Question: Which story has the Father come to tell His children? Answer: Baba says: Sweet children, I tell you the story of your 84 births. When you took your first birth, there was just the deity religion. Then, after two ages, you started to perform devotion and to build huge temples. This is now the end of your many births. You called out: O Remover of Sorrow, Bestower of Happiness, come! Therefore, I have now come. ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: People of today are in darkness. Om Shanti. You children understand that this is now the iron-aged world in which everyone is in darkness. At first, when Bharat was heaven, you were in the light. The same people of Bharat who call themselves Hindus were originally deities. They were the residents of heaven in Bharat and there was no other religion at that time; there was just the one religion. Heaven, Vaikunth, Bahist and Paradise are names for that Bharat. Ancient Bharat was originally pure and wealthy. Bharat has now become poverty-stricken because it is now the iron age. You know that you are in darkness. When you were in heaven you were in the light. The Empress and Emperor of heaven were Shri Lakshmi and Narayan. That was called the land of happiness. You have to claim your inheritance of heaven from the Father and that is called liberation-in-life. Everyone is now in a life of bondage. Bharat in particular and the world in general are in Ravan’s jail, in the cottage of sorrow. It isn't that Ravan only existed in Lanka and that Rama existed in Bharat and that he (Ravan) came and abducted Sita. All of those are tall stories. The Gita is the main scripture; it is the jewel of all scriptures and spoken in Bharat by God. Human beings cannot grant salvation to anyone. In the golden age, there were the deities who were liberated-in-life, and they attained that inheritance of theirs at the end of the iron age. Neither do the people of Bharat know this nor is it mentioned in any of the scriptures. The scriptures have the knowledge of the path of devotion. No human being has the knowledge of salvation at all. All of them teach devotion. They ask you to study the scriptures, to give donations and to perform charity. That devotion has continued from the copper age. There is the reward of knowledge in the golden and silver ages. It isn't that this knowledge continues there as well. The inheritance that Bharat had received came from the Father at the confluence age and you are now receiving it once again. When the people of Bharat experience unlimited sorrow and become residents of hell, they call out: O Purifier! Remover of Sorrow and Bestower of Happiness! For whom? For themselves, because everyone in Bharat in particular and the world in general have the five vices. The Father is the Purifier. He says: I come at the confluence of the cycles. I become the Bestower of Salvation for All. I have to uplift those who have stone intellects, those without virtues and the gurus because this is the impure world. The golden age is called the pure world. It used to be the kingdom of Lakshmi and Narayan in Bharat. The people of Bharat do not know that they were the masters of heaven. "The impure land” means the land of falsehood, and "the pure land” means the land of truth. Bharat was a pure land. This Bharat is the imperishable land that is never destroyed. When it is their kingdom (Lakshmi and Narayan’s), there are no other lands. All of them come later. Human beings have written that the cycle is of hundreds of thousands of years. The Father says: The duration of the cycle is 5000 years. Those people say that human beings take 8.4 million births. They have made human beings into dogs, cats, donkeys etc. However, dogs and cats have a different birth; there are 8.4 million species of them, whereas there is only the one species of human beings. They are the ones who take 84 births. The Father says: According to the drama plan, the people of Bharat have forgotten their religion. They have become completely impure by the end of the iron age. The Father has come to purify you at the confluence age. This is called the land of sorrow. Then Bharat will become the land of happiness. The Father says: O children, you children of Bharat were residents of heaven. Then you came down the ladder for 84 births. You definitely have to go through the stages of sato, rajo and tamo. No one is as ever-happy, ever-healthy or as wealthy as you deities were. Bharat was so wealthy! The diamonds and jewels there were as plentiful as stones. After two ages, they built huge temples on the path of devotion. They built very grand temples; the Somnath Temple was the biggest of all. There wouldn't have been just one temple. Many other kings also had temples. Those were looted so much. The Father reminds you children: You were made so wealthy. As were the emperor and empress, so you too were full of all virtues, 16 celestial degrees full. They could also be called gods and goddesses, but, the Father has explained that there is only one God and He is the Father. When you say "Ishwar" or "Prabhu" you don't remember Him as the Father of all souls. The Father sits here and tells you a story: it is now the end of your many births. This doesn't refer to just one. There isn’t a battlefield etc. The people of Bharat have forgotten that it used to be their kingdom. Because they have made the duration of the golden age very long, it has become very distant. The Father comes and explains that human beings cannot be called God. Human beings cannot grant salvation to anyone. It is said: The Bestower of Salvation for All, the Purifier of all the impure ones, is just the One. There is only the one true Baba who establishes the land of truth. People worship on the path of devotion but they don't know the biography of any of those whom they worship. This is why the Father explains: You celebrate the birth of Shiva, do you not? The Father is the Creator of the new world; Heavenly God, the Father. He gives unlimited happiness. There was a lot of happiness in the golden age. How was that established and who established it? Only the Father sits and explains this. It is only the task of the Father to change the residents of hell into residents of heaven, to change corrupt people into elevated deities. The Father says: I purify you children. You become the masters of heaven. Who makes you impure? Ravan! Human beings say that God also causes sorrow. The Father says: I give you all so much happiness that you don't remember God for half the cycle. Then, when the kingdom of Ravan begins, you begin to worship everyone. This is the last of your many births. Some ask: Baba, how many births have we taken? Baba says: Sweetest people of Bharat, o souls, I am now giving you an unlimited inheritance. Children, you have taken 84 births. You have now come to claim your inheritance of 21 births from the Father. Not everyone will come at the same time. Only you claim the sun-dynasty status of the golden age once again. That is, only you listen to the true Father telling the true knowledge of becoming Narayan from an ordinary human. This is knowledge and that is devotion. All the scriptures etc. are for the path of devotion. They are not for the path of knowledge. This is spiritual knowledge. The Supreme Spirit sits here and gives you this knowledge. You children have to become soul conscious. Consider yourselves to be souls and constantly remember Me alone. The Father explains: It is the soul that has good and bad sanskars and it is according to those that human beings receive a good or bad birth. The Father sits here and explains: This one was pure and has now become impure reaching the last birth and the same applies to you. I, the Father, have to come into Ravan’s old, impure world. I have to enter the body of the one who will then become number one. Only those of the sun dynasty take the full 84 births; this means Brahma and the Brahmins who are the creation of Brahma. The Father explains this every day. To change those who have stone intellects into those who have divine intellects is not like going to your aunty’s home! O souls, now become soul conscious! O souls, remember the one Father and remember the kingdom! Renounce bodily relations! Everyone has to die. It is the stage of retirement for everyone. No one, apart from the one Satguru, can be the Bestower of Salvation for All. The Father says: O children of Bharat, you are the ones who separated from Me first. It is remembered that souls remained separated from the Supreme Soul for a long time. First of all, you people of Bharat who belonged to the deity religion came. Those of other religions take fewer births. The Father sits here and explains how the cycle turns. It is very easy to imbibe this, even for those who are not able to imbibe. Souls imbibe everything. Souls become charitable and sinful. This is your last birth of your 84 births. All of you are in the stage of retirement. Those in the stage of retirement adopt a guru in order to receive a mantra. You don't need to adopt a physical guru. I am the Father, Teacher and Guru of all of you. You call out to Me: O Purifier! Shiv Baba! You have now remembered. He is the Father of all souls. Souls are the truth and living beings because they are immortal. A part is recorded in each soul. The Father too is the Truth and the Living Being. Because He is the Seed of the human world tree, He says: I know the beginning, the middle and the end of the whole tree and this is why I am called the knowledge-full One. You too have all the knowledge of how the tree emerges from the Seed. It takes time for the tree to grow. The Father says: I am the Seed. The whole tree reaches a state of total decay by the end. The deity foundation doesn’t exist now; it has once again disappeared. The Father has to come when the deity religion has disappeared. He establishes the one religion and inspires the destruction of all the rest. The Father is carrying out establishment of the original, eternal, deity religion through Prajapita Brahma. This drama is predestined; it has no end. The Father comes at the end of the cycle when He has to speak the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world. Therefore, He surely has to come at the confluence age. You have one Father. All souls are brothers, residents of the incorporeal world. Everyone remembers that one Father. Everyone remembers Him at a time of sorrow. There is sorrow in the kingdom of Ravan. Here, everyone remembers Him. Therefore, the Father, the Bestower of Salvation for All, is One. There is only His praise. Who would make Bharat into heaven if the Father didn't come? At this time, everyone is tamopradhan. Everyone definitely has to take rebirth. Rebirth is now taken in hell. It isn't that anyone goes to heaven. Hindus say that so-and-so has gone to heaven, which means that if that person has now gone to heaven, he was definitely in hell. Let there be a rose in your mouth (may it become true)! If that person has become a resident of heaven, why do you feed him the impure food of hell? In Bengal, they even feed them fish etc. What need is there for them to eat such food? They say: So-and-so has gone to the Land of Nirvana. The Father says: All of those are lies. Since even the one who is the first number has to take 84 births, no one else can return home yet. The Father says: There is no difficulty about this. There are so many difficulties on the path of devotion. While chanting the name of Rama, they have goose pimples. All of that is the path of devotion. You know that the sun and moon bring light; that they are not deities. In fact, there are the Sun of Knowledge, the moon of knowledge and the stars of knowledge. There is their praise. Those people then say: Salutations to the Sun Deity! They consider the sun to be a deity and offer water to it. Therefore, the Father explains: All of that is the path of devotion and it will all repeat. First, there is unadulterated devotion of Shiv Baba and then devotion of the deities. Then you come down. They now even light earthenware lamps at road T-junctions. They throw sesame seeds and grains in all directions and perform devotion there. They even worship the elements; they even make images of human beings and worship them. There is no attainment from any of that. Only you children understand these things. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli In order to remove the bad sanskars from the soul, practise becoming soul conscious. This is your last birth of your 84 births. It is now your stage of retirement. Therefore, make effort to become a charitable soul. Renounce all bodily relations and remember the one Father and the kingdom. Churn the knowledge of the Seed and the tree and remain constantly cheerful. Blessing: May you be an image of support and remain double light while fulfilling the responsibility of the elevated task of world transformation. Those who are images of support have all responsibilities on them. Wherever and however you now set foot, others souls will follow you in the same way. This is your responsibility, but this responsibility helps you a lot in your creating your stage because by doing this you receive blessings from many souls with which the responsibility becomes light. This responsibility finishes your tiredness. Slogan:- By keeping a balance of the heart and the head, you become successful in service. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .