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- आज की मुरली 7 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 7 January 2021 (Thursday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - जब यह भारत स्वर्ग था तब तुम घोर सोझरे में थे, अभी अन्धियारा है, फिर सोझरे में चलो" प्रश्नः- बाप अपने बच्चों को कौन सी एक कहानी सुनाने आये हैं? उत्तर:- बाबा कहते मीठे बच्चे - मैं तुम्हें 84 जन्मों की कहानी सुनाता हूँ। तुम जब पहले-पहले जन्म में थे तो एक ही दैवी धर्म था फिर तुमने ही दो युग के बाद बड़े-बड़े मन्दिर बनाये हैं। भक्ति शुरू की है। अभी तुम्हारा यह अन्त के भी अन्त का जन्म है। तुमने पुकारा दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ.... अब मैं आया हूँ। ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- आज अन्धेरे में है इन्सान........ ओम् शान्ति। तुम बच्चे जानते हो अभी यह कलियुगी दुनिया है, सब अन्धियारे में हैं। पहले सोझरे में थे, जबकि भारत स्वर्ग था। यही भारतवासी जो अभी अपने को हिन्दू कहलाते हैं यह असुल देवी-देवतायें थे। भारत में स्वर्गवासी थे जब और कोई धर्म नहीं था। एक ही धर्म था। स्वर्ग, वैकुण्ठ, बहिश्त, हेविन - यह सब इस भारत के नाम थे। भारत पवित्र और प्राचीन धनवान था। अभी तो भारत कंगाल है क्योंकि अभी कलियुग है। तुम जानते हो हम अन्धियारे में हैं। जब स्वर्ग में थे तो सोझरे में थे। स्वर्ग के राज-राजेश्वर, राज-राजेश्वरी श्री लक्ष्मी-नारायण थे। उसको सुखधाम कहा जाता है। बाप से ही तुमको स्वर्ग का वर्सा लेना है, जिसको जीवनमुक्ति कहा जाता है। अभी तो सब जीवन-बंध में हैं। खास भारत और आम दुनिया रावण की जेल में, शोकवाटिका में हैं। ऐसे नहीं रावण सिर्फ लंका में था और राम भारत में था, उसने आकर सीता चुराई। यह तो सब हैं दन्त कथायें। गीता है मुख्य, सर्व शास्त्रमई शिरोमणी श्रीमत अर्थात् भगवान की सुनाई हुई है, भारत में। मनुष्य तो कोई की सद्गति कर नहीं सकते। सतयुग में थे जीवनमुक्त देवी-देवतायें, जिन्होंने यह वर्सा कलियुग अन्त में पाया था। भारतवासियों को यह पता नहीं है, न कोई शास्त्रों में है। शास्त्रों में है भक्ति मार्ग का ज्ञान। सद्गति मार्ग का ज्ञान मनुष्य मात्र में बिल्कुल है नहीं। सब भक्ति सिखलाने वाले हैं। कहेंगे शास्त्र पढ़ो, दान-पुण्य करो। यह भक्ति द्वापर से चली आती है। सतयुग और त्रेता में है ज्ञान की प्रालब्ध। ऐसे नहीं कि वहाँ भी यह ज्ञान चलता आता है। यह जो वर्सा भारत को था वह बाप से संगमयुग पर ही मिला था जो फिर अभी तुमको मिल रहा है। भारतवासी जब नर्कवासी बेहद दु:खी बन जाते हैं तब पुकारते हैं - हे पतित-पावन दु:ख हर्ता सुख कर्ता। किसका? सर्व का क्योंकि भारत खास, दुनिया आम सबमें 5 विकार हैं। बाप है पतित-पावन। बाप कहते हैं - मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगम पर आता हूँ। सर्व का सद्गति दाता बनता हूँ। अहिल्यायें, गणिकायें और जो गुरू लोग हैं उन सबका उद्धार मुझे ही करना पड़ता है क्योंकि यह तो है ही पतित दुनिया। पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है। भारत में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। भारतवासी यह नहीं जानते कि यह स्वर्ग के मालिक थे। पतित खण्ड माना झूठ खण्ड, पावन खण्ड माना सचखण्ड। भारत पावन खण्ड था, यह भारत है अविनाशी खण्ड, जो कभी विनाश नहीं होता है। जब इनका (लक्ष्मी-नारायण का) राज्य था तो और कोई खण्ड थे नहीं। वह सभी बाद में आते हैं। मनुष्यों ने तो कल्प लाखों वर्ष का लिख दिया है। बाप कहते हैं कल्प की आयु 5 हज़ार वर्ष है। वह फिर कह देते मनुष्य 84 लाख जन्म लेते हैं। मनुष्य को कुत्ता, बिल्ली, गधा आदि सब बना दिया है। परन्तु कुत्ते बिल्ली का जन्म अलग है, 84 लाख वैराइटी हैं। मनुष्यों की तो वैरायटी एक ही है। उनके ही 84 जन्म हैं। बाप कहते हैं भारतवासी अपने धर्म को ड्रामा प्लैन अनुसार भूल गये हैं। कलियुग अन्त में बिल्कुल ही पतित बन पड़े हैं। फिर बाप संगम पर आकर पावन बनाते हैं, इसको कहा जाता है दु:खधाम फिर भारत सुखधाम होगा। बाप कहते हैं - हे बच्चों, तुम भारतवासी, स्वर्गवासी थे फिर तुम 84 जन्मों की सीढ़ी उतरते हो। सतो से रजो-तमो में जरूर आना है। तुम देवताओं जैसा धनवान एवरहैप्पी, एवरहेल्दी, वेल्दी कोई नहीं होता। भारत कितना साहूकार था, हीरे-जवाहरात तो पत्थरों मिसल थे। दो युग बाद भक्तिमार्ग में इतने बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं। वह भी कितने भारी मन्दिर बनाये। सोमनाथ का मन्दिर बड़े से बड़ा था। सिर्फ एक मन्दिर तो नहीं होगा ना। और भी राजाओं के मन्दिर थे। कितना लूटकर ले गये हैं। बाप तुम बच्चों को स्मृति दिलाते हैं। तुमको कितना साहूकार बनाया था। तुम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थे यथा महाराजा-महारानी। उन्हों को भगवान-भगवती भी कह सकते हैं। परन्तु बाप ने समझाया है - भगवान एक है, वह बाप है। सिर्फ ईश्वर वा प्रभू कहने से भी याद नहीं आता कि वह सभी आत्माओं का बाप है। बाप कहानी बैठ सुनाते हैं। अभी तुम्हारे बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। एक की बात नहीं है, न कोई युद्ध का मैदान आदि है। भारतवासी यह भूल गये हैं कि उन्हों का राज्य था। सतयुग की आयु लम्बी कर देने से बहुत दूर ले गये हैं। बाप आकर समझाते हैं - मनुष्य को भगवान नहीं कह सकते। मनुष्य किसी की सद्गति नहीं कर सकते। कहावत है - सर्व का सद्गति दाता, पतितों का पावन कर्ता एक है। एक ही सच्चा बाबा है जो सचखण्ड की स्थापना करने वाला है। पूजा भी करते हैं परन्तु भक्ति मार्ग में तुम जिसकी पूजा करते आये हो, एक की भी बायोग्राफी को नहीं जानते इसलिए बाप समझाते हैं, तुम शिवजयन्ती तो मनाते हो ना। बाप है नई दुनिया का रचयिता, हेविनली गॉड फादर। बेहद सुख देने वाला। सतयुग में बहुत सुख था। वह कैसे और किसने स्थापन किया? यह बाप ही बैठ समझाते हैं। नर्कवासी को आकर स्वर्गवासी बनाना या भ्रष्टाचारियों को श्रेष्ठाचारी देवता बनाना, यह तो बाप का ही काम है। बाप कहते हैं - मैं तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ। तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। तुमको पतित कौन बनाते हैं? यह रावण। मनुष्य कह देते दु:ख भी ईश्वर ही देते हैं। बाप कहते हैं - मैं तो सभी को इतना सुख देता हूँ जो फिर आधाकल्प तुम बाप का सिमरण नहीं करेंगे। फिर जब रावण राज्य होता है तो सबकी पूजा करने लग पड़ते हैं। यह है तुम्हारा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म। कहते हैं बाबा कितने जन्म हमने लिए? बाबा कहते हैं - मीठे-मीठे भारतवासियों, हे आत्माओं, अब तुमको बेहद का वर्सा देता हूँ। बच्चे, तुमने 84 जन्म लिए हैं। अभी तुम 21 जन्म के लिए बाप से वर्सा लेने आये हो। सभी तो इकट्ठे नहीं आयेंगे। तुम ही सतयुग का सूर्यवंशी पद फिर से लेते हो अर्थात् सच्चे सत्य बाबा से सत्य नर से नारायण बनने का ज्ञान सुनते हो। यह है ज्ञान, वह है भक्ति। शास्त्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग के लिए। वह ज्ञान मार्ग के नहीं हैं। यह है स्प्रीचुअल रूहानी नॉलेज। सुप्रीम रूह बैठ नॉलेज देते हैं। बच्चों को देही-अभिमानी बनना पड़े। अपने को आत्मा निश्चय कर मामेकम् याद करो। बाप समझाते हैं - आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार होते हैं, जिस अनुसार ही मनुष्य को अच्छा वा बुरा जन्म मिलता है। बाप बैठ समझाते हैं यह जो पावन था, अन्तिम जन्म में पतित है, तत् त्वम्। मुझ बाप को इस पुरानी रावण की दुनिया, पतित दुनिया में आना पड़ता है। आना भी उस तन में है जो फिर पहले नम्बर में जाना है। सूर्यवंशी ही पूरे 84 जन्म लेते हैं। यह है ब्रह्मा और ब्रह्मावंशी ब्राह्मण। बाप समझाते तो रोज़ हैं। पत्थरबुद्धि को पारसबुद्धि बनाना मासी का घर नहीं है। हे आत्मायें, अब देही-अभिमानी बनो। हे आत्मायें, एक बाप को याद करो और राजाई को याद करो। देह के संबंध को छोड़ो। मरना तो सभी को है। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। एक सतगुरू बिगर सर्व का सद्गति दाता कोई हो नहीं सकता। बाप कहते हैं - हे भारतवासी बच्चों, तुम पहले-पहले मेरे से बिछुड़े हो। गाया जाता है - आत्मायें-परमात्मा अलग रहे बहुकाल..... पहले-पहले तुम भारतवासी देवी-देवता धर्म वाले आये हो। और धर्म वालों के जन्म थोड़े होते हैं। सारा चक्र कैसे फिरता है सो बाप बैठ समझाते हैं। जो धारण नहीं करा सकते हैं, उनके लिए भी बहुत सहज है। आत्मायें धारण करती हैं, पुण्य आत्मा, पाप आत्मा बनती हैं ना। तुम्हारा यह 84 वां अन्तिम जन्म है। तुम सब वानप्रस्थ अवस्था में हो। वानप्रस्थ अवस्था वाले गुरू करते हैं, मन्त्र लेने के लिए। तुमको तो अभी देहधारी गुरू करने की दरकार नहीं है। तुम सबका मैं बाप, टीचर, गुरू हूँ। मुझे कहते भी हो - हे पतित-पावन शिवबाबा। अभी स्मृति आई है। सब आत्माओं का बाप है, आत्मा सत है, चैतन्य है क्योंकि अमर है। सभी आत्माओं में पार्ट भरा हुआ है। बाप भी सत चैतन्य है। वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप होने कारण कहते हैं - मैं सारे झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानता हूँ इसलिए मुझे नॉलेजफुल कहा जाता है। तुमको भी सारी नॉलेज है। बीज से झाड़ कैसे निकलता है। झाड़ बढ़ने में टाइम लगता है ना। बाप कहते हैं मैं बीजरूप हूँ, अन्त में सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पा लेता है। अभी देखो देवी-देवता धर्म का फाउण्डेशन है नहीं। प्राय: गुम है। जब देवता धर्म गुम हो जाता है तब बाप को आना पड़ता है - एक धर्म की स्थापना कर बाकी सबका विनाश करा देते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा बाप स्थापना करा रहे हैं, आदि सनातन देवी-देवता धर्म की। यह भी सारा ड्रामा बना हुआ है। इनकी एण्ड होती नहीं। बाप आते हैं अन्त में। जबकि सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज सुनाना है तो जरूर संगम पर आयेंगे। तुम्हारा एक बाप है। आत्मायें सभी ब्रदर्स हैं, मूलवतन में रहने वाली। उस एक बाप को सब याद करते हैं। दु:ख में सिमरण सब करें.. रावण राज्य में दु:ख है ना। यहाँ सिमरण करते हैं तो बाप सबका सद्गति दाता एक है। उनकी ही महिमा है। बाप नहीं आये तो भारत को स्वर्ग कौन बनावे! इस्लामी आदि जो भी हैं सब इस समय तमोप्रधान हैं। सबको पुनर्जन्म तो जरूर लेना है। अभी पुनर्जन्म मिलता है नर्क में। ऐसे नहीं कि स्वर्ग में चले जाते हैं। जैसे हिन्दू लोग कहते हैं स्वर्गवासी हुआ तो जरूर नर्क में था ना। अभी स्वर्ग में गया। तुम्हारे मुख में गुलाब। स्वर्गवासी हुआ फिर नर्क के आसुरी वैभव तुम उनको क्यों खिलाते हो! बंगाल में मछलियां आदि भी खिलाते हैं। अरे, उनको इन सब खाने की दरकार ही क्या है! कहते हैं फलाना पार निर्वाण गया, बाप कहते यह सब हैं गपोड़े। वापिस कोई भी जा नहीं सकते। जबकि पहले नम्बर वालों को ही 84 जन्म लेने पड़ते हैं। बाप समझाते हैं इसमें कोई तकलीफ नहीं है। भक्ति मार्ग में कितनी तकलीफ है। राम-राम जपते रोमांच खड़े हो जाते। वह सब है भक्ति मार्ग। यह सूर्य-चांद भी तुम जानते हो कि रोशनी करने वाले हैं। यह कोई देवतायें थोड़ेही हैं। वास्तव में ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा और ज्ञान सितारे हैं। उन्हों की महिमा है। वह फिर कह देते सूर्य देवताए नम:। उनको देवता समझ पानी देते हैं। तो बाप समझाते हैं यह सब है भक्ति मार्ग, जो फिर भी होगा। पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति एक शिवबाबा की, फिर देवताओं की, फिर उतरते-उतरते अभी तो देखो टिवाटे पर (जहाँ तीन रास्ते मिलते हैं) भी मिट्टी का दीवा जगाए, तेल आदि डाल उनकी भी पूजा करते हैं। तत्वों की भी पूजा करते हैं। मनुष्यों के भी चित्र बनाए पूजते हैं। अब इनसे प्राप्ति तो कुछ भी नहीं होती, इन बातों को तुम बच्चे ही समझते हो। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार आत्मा से बुरे संस्कारों को निकालने के लिए देही-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है। यह अन्तिम 84 वां जन्म है, वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए पुण्य आत्मा बनने की मेहनत करनी है। देह के सब सम्बन्धों को छोड़ एक बाप को और राजाई को याद करना है, बीज और झाड़ का ज्ञान सिमरण कर सदा हर्षित रहना है। वरदान:- विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य की जिम्मेवारी निभाते हुए डबल लाइट रहने वाले आधारमूर्त भव जो आधारमूर्त होते हैं उनके ऊपर ही सारी जिम्मेवारी रहती है। अभी आप जिस रूप से, जहाँ भी कदम उठायेंगे वैसे अनेक आत्मायें आपको फालो करेंगी, यह जिम्मेवारी है। लेकिन यह जिम्मेवारी अवस्था को बनाने में बहुत मदद करती है क्योंकि इससे अनेक आत्माओं की आशीर्वाद मिलती है, जिस कारण जिम्मेवारी हल्की हो जाती है, यह जिम्मेवारी थकावट मिटाने वाली है। स्लोगन:- दिल और दिमाग दोनों का बैलेन्स रख सेवा करने से सफलता मिलती है। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- BK murli: 6 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 6 January 2021 (Wednesday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, you definitely receive the fruit of whatever actions you perform. Only the one Father does altruistic service." Question: How is this class so wonderful? What is the main effort that you have to make here? Answer: This is the only class where young ones, adults and also old people sit together. This class is so wonderful that, one day, even those who have stone intellects, those without virtues and sages will come and sit here. The main effort you have to make here is for remembrance. It is only by having remembrance that there is the nature cure for souls and bodies, but in order to stay in remembrance you do also need knowledge. ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: O traveller of the night, do not become weary! The destination of the dawn is not far off! Om Shanti. You sweetest, spiritual children heard the song. The spiritual Father explains the meaning of this to you children. The wonder is that those who wrote the Gita and the scriptures don't understand the meaning of them; they extract the wrong meaning from everything. The spiritual Father, who is the Ocean of Knowledge and the Purifier, sits here and explains their meaning. Only the Father teaches you Raj Yoga. You children understand that you are once again becoming kings of kings. In other schools they wouldn't say that they are going to become barristers once again. No one else understands how to use the term "once again". You say that you are now once again studying with the unlimited Father as you did 5000 years ago. This destruction will definitely take place again. They continue to manufacture so many big bombs. They are manufacturing very powerful bombs. They don't make them just to keep them; this destruction is also for an auspicious purpose. You children don't need to be afraid about anything; this war will be beneficial. The Father comes to benefit you. It is said: The Father comes and carries out the task of establishment through Brahma and destruction through Shankar. Therefore, those bombs etc. are for destruction. There is nothing more powerful than those. Together with those, there are also natural calamities. They cannot be called Godly calamities. These natural calamities are fixed in the drama; they are nothing new! They continue to manufacture so many big bombs. They say: We can wipe out whole cities. The bombs that they dropped on Japan were very small ones. They have now created very big bombs. When they have greater difficulties and are unable to tolerate them, they will start to use the bombs. There will be so much damage! They are performing trials to see what happens. They spend billions of rupees on this. Even the salaries of those who manufacture them are very large. You children should be happy: the old world is going to be destroyed. You children are making effort for the new world. Reason says that the old world is definitely going to be destroyed. You children understand what there is in the iron age and what there will be in the golden age. You are now standing at the confluence age. You understand that there won't be so many people in the golden age. Therefore, all of them will be destroyed. These natural calamities also took place a cycle ago. The old world has to be destroyed. There have continued to be many calamities, but those were on a small scale. The whole of this old world is now going to be destroyed. You children should have a lot of happiness. The Father, the Supreme Father, the Supreme Soul, sits here and explains to us spiritual children. This destruction is taking place for you. It is remembered that the flames of destruction emerged from the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Some things mentioned in the Gita have a very good meaning, but no one understands them. They continue to ask for peace. You say that destruction should take place soon so that you can go and be happy! The Father says: Only when you become satopradhan will you be happy. The Father gives many types of points, and they sit very well in the intellects of some but not so well in the intellects of others. The old mothers understand that they have to remember Shiv Baba, and that’s all! For them, it is explained: Consider yourselves to be souls and remember the Father! However, they do claim their inheritance. They live together. Everyone comes to the exhibitions. Sinners like Ajamil and prostitutes etc. all have to be uplifted. Even cleaners come wearing good clothes. Gandhi made the Untouchables free. They eat together with others. The Father doesn’t forbid you at all. He understands that even they have to be uplifted. This isn't connected with the work they do. Everything depends on connecting your intellects in yoga with the Father. You have to remember the Father. The soul says: I am untouchable. We now understand that we were satopradhan deities. Now, at the end, we have become impure by taking rebirth. I, a soul, now have to become pure again. You know how the native woman who used to come in Sindh would go into trance. She would come running to meet Baba. It was explained that she too was a soul. Souls have a right to claim their inheritance from the Father. Her family members were asked to let her continue to take knowledge but they said that there would be upheaval in their community. Because they were afraid, they took her away. You mustn't say ‘no’ to anyone who comes to you. It is remembered that God uplifts innocent women, prostitutes, native women and sages etc.: everyone from the sages to the natives. There will be a lot of attainment from serving the yagya and many will be benefited. Day by day, service through exhibitions will increase. Baba continues to have badges made. Wherever you go you should explain this badge: This is the Father, this is Dada and this is the Father's inheritance. The Father now says: Remember Me and you will become pure! It is also mentioned in the Gita: Constantly remember Me alone. It is just that they have taken out My name and inserted the name of the child. Even the people of Bharat don't understand what the relationship between Radhe and Krishna is. The history of them before their marriage etc. has not been shown at all. Each belonged to a separate kingdom. The Father sits here and explains these things. If they (the sannyasis) were to understand these things and were to say that these are the versions of God Shiva, people would chase them away. They would ask: Where did you learn this? Which guru was that? They would all become upset if they said they learnt it from the BKs. The kingdom of the gurus would then completely end. Many such people come here. They even put something in writing but then they disappear. The Father doesn't give you children any difficulty. He shows you very easy methods. When a couple don't have a child, they ask God to grant them children. Then, when they do have a child, they look after it very well; they educate him. Then, when he grows up, they ask him to earn his own living. A father sustains his child and makes him worthy. So, he is the servant of his children. This Father serves you children and takes you back with Him. A physical father thinks that his children will become independent and become engaged in business and that they will then serve the parents when they become old. That Father doesn't ask for any service for Himself. That One is altruistic. A physical father believes that it is his children's duty to look after him for as long as he lives. He has that desire. That Father says: I do altruistic service. I don't rule a kingdom. I am so altruistic! Whatever others do, they definitely receive the fruit of that. That one is the Father of All. He says: I give you children the kingdom of heaven. You attain such an elevated status! I am just the Master of Brahmand. You too become that, but you also receive the kingdom and then lose it. I neither receive the kingdom nor do I lose it. This is in My part in the drama. You children continue to make effort to claim your inheritance of happiness. All others simply ask for peace. Those gurus say that happiness is like the droppings of a crow. That is why they only want peace. They cannot take this knowledge. They don't understand anything about happiness. The Father explains: Only I can give you the inheritance of peace and happiness. There are no gurus in the golden and silver ages. Ravan doesn’t exist there. That is the Godly kingdom. This drama is predestined. These things will not sit in the intellect of anyone else. Therefore, you children should imbibe these things very well and claim a high status. You are now at the confluence age. You understand that the kingdom of the new world is being established. You are at the confluence age and all the rest are in the iron age. They say that the duration of a cycle is hundreds of thousands of years. They are in total darkness. It is remembered that they were sleeping in the sleep of Kumbhakarna. The victory of the Pandavas has been remembered. You are Brahmins. Only Brahmins create sacrificial fires. This is the greatest, unlimited, most important sacrificial fire of God Rudra. There are many types of limited sacrificial fire. This sacrificial fire is only created once. There are no sacrificial fires in the golden and silver ages because there is no question of calamities etc. there. All of those sacrificial fires are limited. This one is unlimited. This sacrificial fire, in which the unlimited sacrifice has to be made, is created by the unlimited Father. Afterwards, there won't be any sacrificial fires for half a cycle. There is no kingdom of Ravan there. All of those things start when the kingdom of Ravan starts. This unlimited sacrificial fire is only created once, and the whole of the old world is sacrificed into it. This is the unlimited sacrificial fire of the knowledge of Rudra. The main things here are knowledge and yoga. Yoga means remembrance. The word "remembrance" is very sweet, whereas the word "yoga" has become very common. No one understands the meaning of yoga. You can explain that yoga means to remember the Father. Baba, You give us the unlimited inheritance! The soul says: Baba, You have come once again! I had forgotten You! You gave me the sovereignty. You have now come and met me again! I will definitely follow your shrimat. You have to talk to yourself in this way. Baba, You are showing me a very good path. I forget it every cycle. The Father is now making you such that you don't forget. This is why you now have to remember the Father alone. Only by having this remembrance will you receive your inheritance. It is when I come personally in front of you that I explain to you. Until then you continue to sing: You are the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. You sing this praise but you neither understand about souls nor about the Supreme Soul. You now understand that an imperishable part is recorded in such a tiny point. The Father explains this. He is also called the Supreme Father, the Supreme Soul. He is the Supreme Soul. It isn’t that He is like the sun that never becomes dim. I continue to teach you as a teacher does. There are so many children. Look how wonderful this class is! Look at who is studying here! Even innocent women, those without virtues and sages will come and sit here one day. Old women and young children are also sitting here. Have you ever seen such a school? Here, effort is made for remembrance. It is this remembrance that takes time. To make effort for remembrance is also knowledge. There is knowledge for remembrance too. There is also knowledge for explaining the cycle. This is called the real natural nature cure. You souls become completely pure. Those cures are for bodies, whereas this cure is for souls. Alloy has mixed into souls. Real gold makes real jewelry. You children understand that Shiv Baba has personally come here. You children definitely do have to remember the Father. We now have to return home. We have to go from this side to the other side. Remember the Father, the inheritance and your home. That is the sweet silence home. Sorrow is caused by peacelessness whereas happiness is experienced by peace. In the golden age, you have peace, happiness and prosperity; you have everything. There is no question of fighting or quarrelling there. The only concern you children should have is to become satopradhan, real gold, because only then will you claim a high status. You are receiving spiritual food which you have to chew and digest. What main points did we hear today? It has been explained to you that there are two types of pilgrimage – spiritual and physical. Only this spiritual pilgrimage is useful. God speaks: Manmanabhav! Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli This destruction is auspicious and so you mustn't be afraid. Remain constantly happy by having the awareness that the benevolent Father only inspires beneficial things. Constantly have the one concern to become satopradhan, real gold and claim a high status. Continue to chew and digest the spiritual food that you receive. Blessing: May you be constantly cheerful and double light and colour yourself with spiritual colour by keeping spiritual company. The children who make the Father their heart’s true Companion always remain coloured with spiritual company. To keep the company of the true Father, the true Teacher and the true Satguru with your intellect is to have the company of the Truth (satsang). Those who stay in the company of the Truth remain constantly cheerful and double light. They do not experience any type of burden. They experience themselves to be full, as though they have a mine of happiness in them, and that whatever belongs to the Father belongs to them. Slogan:- Make disheartened ones strong with the co-operation of your sweet words and zeal and enthusiasm. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 6 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 6 January 2021 (Wednesday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - तुम जो भी कर्म करते हो उसका फल अवश्य मिलता है, निष्काम सेवा तो केवल एक बाप ही करते हैं" प्रश्नः- यह क्लास बड़ा वन्डरफुल है कैसे? यहाँ मुख्य मेहनत कौन सी करनी होती है? उत्तर:- यही एक क्लास है जिसमें छोटे बच्चे भी बैठे हैं तो बूढ़े भी बैठे हैं। यह क्लास ऐसा वन्डरफुल है जो इसमें अहिल्यायें, कुब्जायें, साधू भी आकर एक दिन यहाँ बैठेंगे। यहाँ है ही मुख्य याद की मेहनत। याद से ही आत्मा और शरीर की नेचरक्युअर होती है परन्तु याद के लिए भी ज्ञान चाहिए। ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- रात के राही....... ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। रूहानी बाप बच्चों को इसका अर्थ भी समझाते हैं। वण्डर तो यह है गीता अथवा शास्त्र आदि बनाने वाले इनका अर्थ नहीं जानते। हर एक बात का अनर्थ ही निकालते हैं। रूहानी बाप जो ज्ञान का सागर पतित-पावन है, वह बैठ इनका अर्थ बताते हैं। राजयोग भी बाप ही सिखलाते हैं। तुम बच्चे जानते हो - अभी फिर से राजाओं का राजा बन रहे हैं और स्कूलों में ऐसे कोई थोड़ेही कहेंगे कि हम फिर से बैरिस्टर बनते हैं। फिर से, यह अक्षर किसको कहने नहीं आयेगा। तुम कहते हो हम 5 हजार वर्ष पहले मिसल फिर से बेहद के बाप से पढ़ते हैं। यह विनाश भी फिर से होना है जरूर। कितने बड़े-बड़े बॉम्ब्स बनाते रहते हैं। बहुत पावरफुल बनाते हैं। रखने लिए तो नहीं बनाते हैं ना। यह विनाश भी शुभ कार्य के लिए है ना। तुम बच्चों को डरने की कोई दरकार नहीं है। यह है कल्याणकारी लड़ाई। बाप आते ही हैं कल्याण के लिए। कहते भी हैं बाप आकर ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश का कर्तव्य कराते हैं। सो यह बॉम्ब्स आदि हैं ही विनाश के लिए। इनसे जास्ती और तो कोई चीज़ है नहीं। साथ-साथ नैचुरल कैलेमिटीज़ भी होती है। उनको कोई ईश्वरीय कैलेमिटीज नहीं कहेंगे। यह कुदरती आपदायें ड्रामा में नूँध हैं। यह कोई नई बात नहीं। कितने बड़े-बड़े बॉम्ब बनाते रहते हैं। कहते हैं हम शहरों के शहर खत्म कर देंगे। अभी जो जापान की लड़ाई में बॉम्ब्स चलाये - यह तो बहुत छोटे थे। अभी तो बड़े-बड़े बॉम्ब्स बनाये हैं। जब जास्ती मुसीबत में पड़ते हैं, सहन नहीं कर सकते तो फिर बॉम्ब्स शुरू कर लेते हैं। कितना नुकसान होगा। वह भी ट्रायल कर देख रहे हैं। अरबों रूपया खर्चा करते हैं। इन बनाने वालों की तनख्वाह भी बहुत होती है। तो तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए। पुरानी दुनिया का ही विनाश होना है। तुम बच्चे नई दुनिया के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। विवेक भी कहता है पुरानी दुनिया खत्म होनी है जरूर। बच्चे समझते हैं कलियुग में क्या है, सतयुग में क्या होगा। तुम अभी संगम पर खड़े हो। जानते हो सतयुग में इतने मनुष्य नहीं होंगे, तो इन सबका विनाश होगा। यह कुदरती आपदायें कल्प पहले भी हुई थी। पुरानी दुनिया खत्म होनी ही है। कैलेमिटीज तो ऐसी बहुत होती आई हैं। परन्तु वह होती हैं थोड़ी अन्दाज में। अभी तो यह पुरानी दुनिया सारी खत्म होनी है। तुम बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए। हम रूहानी बच्चों को परमपिता परमात्मा बाप बैठ समझाते हैं, यह विनाश तुम्हारे लिए हो रहा है। यह भी गायन है रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई। कई बातें गीता में हैं जिनका अर्थ बड़ा अच्छा है, परन्तु कोई समझते थोड़ेही हैं। वह शान्ति मांगते रहते हैं। तुम कहते हो जल्दी विनाश हो तो हम जाकर सुखी होवें। बाप कहते हैं सुखी तब होंगे जब सतोप्रधान होंगे। बाप अनेक प्रकार की प्वाइंट्स देते हैं फिर कोई की बुद्धि में अच्छी रीति बैठती हैं, कोई की बुद्धि में कम। बुढ़ियाएं समझती हैं शिवबाबा को याद करना है, बस। उनके लिए समझाया जाता है - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। फिर भी वर्सा तो पा लेती हैं। साथ में रहती हैं। प्रदर्शनी में सब आयेंगे। अजामिल जैसी पाप आत्माओं, गणिकाओं आदि सबका उद्धार होने का है। मेहतर भी अच्छे कपड़े पहनकर आ जाते हैं। गांधी जी ने अछूतों को फ्री कर दिया। साथ में खाते भी हैं। बाप तो और भी मना नहीं करते हैं। समझते हैं इन्हों का भी उद्धार करना ही है। काम से कोई कनेक्शन नहीं है। इसमें सारा मदार है बाप के साथ बुद्धियोग लगाने का। बाप को याद करना है। आत्मा कहती है मैं अछूत हूँ। अब हम समझते हैं हम सतोप्रधान देवी-देवता थे। फिर पुनर्जन्म लेते-लेते अन्त में आकर पतित बने हैं। अब फिर मुझ आत्मा को पावन बनना है। तुमको मालूम है - सिन्ध में एक भीलनी आती थी, ध्यान में जाती थी। दौड़ कर आए मिलती थी। समझाया जाता था - इनमें भी आत्मा तो है ना। आत्मा का हक है, अपने बाप से वर्सा लेना। उनके घर वालों को कहा गया - इनको ज्ञान उठाने दो। बोले हमारी बिरादरी में हंगामा होगा। डर के मारे उनको ले गये। तो तुम्हारे पास आते हैं, तुम किसको मना नहीं कर सकते हो। गाया हुआ है अबलायें, गणिकायें, भीलनियां, साधू आदि सबका उद्धार करते हैं। साधू लोगों से लेकर भीलनी तक। तुम बच्चे अभी यज्ञ की सर्विस करते हो तो इस सर्विस से बहुत प्राप्ति होती है। बहुतों का कल्याण हो जाता है। दिन-प्रतिदिन प्रदर्शनी सर्विस की बहुत वृद्धि होगी। बाबा बैजेस भी बनवाते रहते हैं। कहाँ भी जाओ तो इस पर समझाना है। यह बाप, यह दादा, यह बाप का वर्सा। अब बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। गीता में भी है - मामेकम् याद करो। सिर्फ उनमें मेरा नाम उड़ाए बच्चे का नाम दे दिया है। भारतवासियों को भी यह पता नहीं है कि राधे-कृष्ण का आपस में क्या संबंध है। उनके शादी आदि की हिस्ट्री कुछ भी नहीं बताते हैं। दोनों अलग-अलग राजधानी के हैं। यह बातें बाप बैठ समझाते हैं। यह अगर समझ जाएं और कह दें कि शिव भगवानुवाच, तो सब उनको भगा दें। कहें तुम यह फिर कहाँ से सीखे हो? वह कौन-सा गुरू है? कहे बी.के. हैं तो सब बिगड़ जाएं। इन गुरूओं की राजाई ही चट हो जाए। ऐसे बहुत आते हैं। लिखकर भी देते हैं, फिर गुम हो जाते हैं। बाप बच्चों को कोई भी तकलीफ नहीं देते हैं। बहुत सहज युक्ति बतलाते हैं। कोई को बच्चा नहीं होता है तो भगवान को कहते हैं बच्चा दो। फिर मिलता है तो उनकी बड़ी अच्छी परवरिश करते हैं। पढ़ाते हैं। फिर जब बड़ा होगा तो कहेंगे अब अपना धन्धा करो। बाप बच्चे को परवरिश कर उनको लायक बनाते हैं तो बच्चों का सर्वेन्ट ठहरा ना। यह बाप तो बच्चों की सेवा कर साथ ले जाते हैं। वो लौकिक बाप समझेगा बच्चा बड़ा हो अपने धन्धे में लग जाए फिर हम बूढ़े होंगे तो हमारी सेवा करेगा। यह बाप तो सेवा नहीं मांगते हैं। यह है ही निष्काम। लौकिक बाप समझते हैं - जब तक जीता हूँ तब तक बच्चों का फर्ज है हमारी सम्भाल करना। यह कामना रखते हैं। यह बाप तो कहते हैं मैं निष्काम सेवा करता हूँ। हम राजाई नहीं करते हैं। मैं कितना निष्काम हूँ। और जो कुछ भी करते हैं तो उसका फल उनको जरूर मिलता है। यह तो है सबका बाप। कहते हैं मैं तुम बच्चों को स्वर्ग की राजाई देता हूँ। तुम कितना ऊंच पद प्राप्त करते हो। मैं तो सिर्फ ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ, सो तो तुम भी हो परन्तु तुम राजाई लेते हो और गॅवाते हो। हम राजाई नहीं लेते हैं, न गॅवाते हैं। हमारा ड्रामा में यह पार्ट है। तुम बच्चे सुख का वर्सा पाने का पुरुषार्थ करते हो। बाकी सब सिर्फ शान्ति मांगते हैं। वो गुरू लोग कहते हैं सुख काग विष्टा समान है इसलिए वह शान्ति ही चाहते हैं। वह यह नॉलेज उठा न सके। उनको सुख का पता ही नहीं है। बाप समझाते हैं शान्ति और सुख का वर्सा देने वाला एक मैं ही हूँ। सतयुग-त्रेता में गुरू होता नहीं, वहाँ रावण ही नहीं। वह है ही ईश्वरीय राज्य। यह ड्रामा बना हुआ है। यह बातें और किसकी बुद्धि में बैठेंगी नहीं। तो बच्चों को अच्छी रीति धारण कर और ऊंच पद पाना है। अभी तुम हो संगम पर। जानते हो नई दुनिया की राजधानी स्थापन हो रही है। तो तुम हो ही संगमयुग पर। बाकी सब हैं कलियुग में। वह तो कल्प की आयु ही लाखों वर्ष कह देते हैं। घोर अन्धियारे में हैं ना। गाया भी हुआ है कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं। विजय तो पाण्डवों की गाई हुई है। तुम हो ब्राह्मण। यज्ञ ब्राह्मण ही रचते हैं। यह तो है सबसे बड़ा बेहद का भारी ईश्वरीय रूद्र यज्ञ। वह हद के यज्ञ अनेक प्रकार के होते हैं। यह रूद्र यज्ञ एक ही बार होता है। सतयुग-त्रेता में फिर कोई यज्ञ होता नहीं क्योंकि वहाँ कोई आपदा आदि की बात नहीं। वह है सब हद के यज्ञ। यह है बेहद का। यह बेहद बाप का रचा हुआ यज्ञ है, जिसमें बेहद की आहुति पड़नी है। फिर आधाकल्प कोई यज्ञ नहीं होगा। वहाँ रावण राज्य ही नहीं। रावण राज्य शुरू होने से फिर यह सब शुरू होते हैं। बेहद का यज्ञ एक ही बार होता है, इनमें यह सारी पुरानी सृष्टि स्वाहा हो जाती है। यह है बेहद का रूद्र ज्ञान यज्ञ। इसमें मुख्य है ज्ञान और योग की बात। योग अर्थात् याद। याद अक्षर बहुत मीठा है। योग अक्षर कॉमन हो गया है। योग का अर्थ कोई नहीं समझते हैं। तुम समझा सकते हो - योग अर्थात् बाप को याद करना है। बाबा आप तो हमको वर्सा देते हैं बेहद का। आत्मा बात करती है - बाबा, आप फिर से आये हो। हम तो आपको भूल गये थे। आपने हमको बादशाही दी थी। अब फिर आकर मिले हो। आपकी श्रीमत पर हम जरूर चलेंगे। ऐसे-ऐसे अन्दर में अपने साथ बातें करनी होती हैं। बाबा, आप तो हमें बहुत अच्छा रास्ता बताते हो। हम कल्प-कल्प भूल जाते हैं। अभी बाप फिर अभुल बनाते हैं इसलिए अब बाप को ही याद करना है। याद से ही वर्सा मिलेगा। मैं जब सम्मुख आता हूँ तब तुमको समझाता हूँ। तब तक गाते रहते हैं - तुम दु:ख हर्ता सुख कर्ता हो। महिमा गाते हैं परन्तु न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं। अभी तुम समझते हो - इतनी छोटी बिन्दी में अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। यह भी बाप समझाते हैं। उनको कहा जाता है परमपिता परमात्मा अर्थात् परम आत्मा। बाकी कोई बड़ा हजारों सूर्य मिसल नहीं हूँ। हम तो टीचर मिसल पढ़ाते रहते हैं। कितने ढेर बच्चे हैं। यह क्लास तो देखो कितना वण्डरफुल है। कौन-कौन इसमें पढ़ते हैं? अबलायें, कुब्जायें, साधू भी एक दिन आकर बैठेंगे। बुढ़ियायें, छोटे बच्चे आदि सब बैठे हैं। ऐसा स्कूल कभी देखा। यहाँ है याद की मेहनत। यह याद ही टाइम लेती है। याद का पुरुषार्थ करना यह भी ज्ञान है ना। याद के लिए भी ज्ञान। चक्र समझाने के लिए भी ज्ञान। नेचुरल सच्चा-सच्चा नेचरक्युअर इसको कहा जाता है। तुम्हारी आत्मा बिल्कुल प्योर हो जाती है। वह होती है शरीर की क्युअर। यह है आत्मा की क्युअर। आत्मा में ही खाद पड़ती है। सच्चे सोने का सच्चा जेवर होता है। अभी यहाँ बच्चे जानते हैं शिवबाबा सम्मुख आया हुआ है। बच्चों को बाप को जरूर याद करना है। हमको अब वापिस जाना है। इस पार से उस पार जाना है। बाप को, वर्से को और घर को भी याद करो। वह है स्वीट साइलेन्स होम। दु:ख होता है अशान्ति से, सुख होता है शान्ति से। सतयुग में सुख-शान्ति-सम्पत्ति सब कुछ है। वहाँ लड़ाई-झगड़े की बात ही नहीं। बच्चों को यही फुरना होना चाहिए - हमको सतोप्रधान, सच्चा सोना बनना है तब ही ऊंच पद पायेंगे। यह रूहानी भोजन मिलता है, उसको फिर उगारना चाहिए। आज कौनसी, कौनसी मुख्य प्वाइंट्स सुनी! यह भी समझाया यात्रायें दो होती हैं - रूहानी और जिस्मानी। यह रूहानी यात्रा ही काम आयेगी। भगवानुवाच - मनमनाभव। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार यह विनाश भी शुभ कार्य के लिए है इसलिए डरना नहीं है, कल्याणकारी बाप सदा कल्याण का ही कार्य कराते हैं, इस स्मृति से सदा खुशी में रहना है। सदा एक ही फुरना रखना है कि सतोप्रधान सच्चा सोना बन ऊंच पद पाना है। जो रूहानी भोजन मिलता है उसे उगारना है। वरदान:- सतसंग द्वारा रूहानी रंग लगाने वाले सदा हर्षित और डबल लाइट भव जो बच्चे बाप को दिल का सच्चा साथी बना लेते हैं उन्हें संग का रूहानी रंग सदा लगा रहता है। बुद्धि द्वारा सत् बाप, सत शिक्षक और सतगुरू का संग करना - यही सतसंग है। जो इस सतसंग में रहते हैं वो सदा हर्षित और डबल लाइट रहते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव नहीं होता। वे ऐसा अनुभव करते जैसे भरपूर हैं, खुशियों की खान मेरे साथ है, जो भी बाप का है वह सब अपना हो गया। स्लोगन:- अपने मीठे बोल और उमंग-उत्साह के सहयोग से दिलशिकस्त को शक्तिवान बनाओ। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 5 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 5 January 2021 (Tuesday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, the words "O God! O Baba!" should never emerge from your mouths. That practice belongs to the path of devotion." Question: Why do you children prefer to dress in white? What does it symbolize? Answer: You have now died alive from this old world and this is why you prefer to dress in white. This white dress symbolizes death. When someone dies, he is covered with a white sheet. You children have now died alive. ♫ Listen Today's Murli ➤ Om Shanti. The spiritual Father sits here and explains to you children. If you don't use the word "spiritual" but just say "the Father" that too is fine. The Father sits here and explains to the children. All of you say that you are brothers. So, the Father sits here and explains to the children. He does not explain to everyone. All of you say that you are brothers. In the Gita, it says: God speaks. To whom does God speak? All are the children of God. He is the Father and so all the children of God are brothers. God must have explained to you and taught you Raj Yoga. The locks on your intellects have now opened. No one else in the world would have such thoughts. Those who receive the message will continue to come to school and study. They will think that they have seen the exhibition and that they now want to go and hear some more knowledge. The first and foremost thing is that these are the versions of the Ocean of Knowledge, the Purifier, the Sermonizer of the Gita, Shiva. First of all, they should understand who it is who is teaching and explaining to us. It is the Supreme Soul, the Ocean of Knowledge, the incorporeal One. He is the Truth. He only tells you the truth. Then there won’t be any questions arising from that. First of all, you have to explain that the Supreme Father, the Supreme Soul, is teaching you Raj Yoga through Brahma. This is the royal status. When they have the faith that the Father from beyond this world, the Father of All, is the one who sits here and explains to you that He is the greatest Authority, they won't have any questions. He is the Purifier. So, when He comes, He must definitely come at His own time. You can see that this is the same Mahabharat War. After destruction, there will be the viceless world. This is the vicious world. People don’t understand that Bharat was viceless. Their intellects don't work at all; they have Godrej locks on them. Only the one Father has the key to those. This is why He is the called the Bestower of Knowledge and the Bestower of the Divine Eye. He gives you each a third eye of knowledge. No one understands who is teaching you. Because they think it is Dada (Brahma Baba), they begin to criticize; they start saying something or other. Therefore, this is the first thing you should explain. It is written in this: God Shiva speaks. He is the Truth. The Father explains: I am the Purifier, Shiva. I have come from the supreme abode to teach you saligrams. That Father is knowledge-full. He explains the secrets of the beginning, the middle and the end of the world. Only at this time do you receive these teachings from the unlimited Father. He is the Creator of the world. He makes the impure world pure. They call out: O Purifier, come! Therefore, first of all, you have to give His introduction. What is your relationship with that Supreme Father, the Supreme Soul? He is the Truth. He gives you true knowledge to change you from an ordinary human into Narayan. You children know that the Father is the Truth and that He creates the land of truth. You come here to change from an ordinary human into Narayan. When you go to a barrister, you understand that you have gone there to become a barrister. You now have the faith that God is teaching you. Some have faith, but their intellects then develop doubts. Then, other people tell them: You used to say that God was teaching you. So, why have you left God and come here? When they develop doubt, they run away. They perform one sinful act or another. God speaks: Lust is the greatest enemy! By conquering it you will become the conquerors of the world. Those who become pure will then go to the pure world. Here, it is a question of Raj Yoga. You will go and rule there. All souls will have to settle their karmic accounts and return home. This is the time of settlement. Your intellects now say that the golden age will definitely be established. The golden age is called the pure world. All the rest will go to the land of liberation. They then have to repeat their own parts. You too continue to make effort on yourselves to become pure and the masters of the pure world. All of you will consider yourselves to be the masters. Even the subjects are the masters. People say: My Bharat! Even great human beings and sannyasis etc. say: My Bharat! You understand that, at this time, everyone in Bharat is a resident of hell. We are now studying Raj Yoga in order to become residents of heaven. Not everyone will become a resident of heaven. Only at this time do you receive this knowledge. Whatever those people relate, it comes from the scriptures; they are authorities of the scriptures. The Father says: While studying the Vedas and scriptures of the path of devotion, they have continued to come down the ladder. All of that is the path of devotion. The Father says: I come when the path of devotion comes to an end. I have to come and grant all devotees the fruit of their devotion. The majority are devotees. All of them continue to call out: O God, the Father! Devotees definitely say, "O God, the Father! O God!" There is a difference between devotion and knowledge. "O God!” must never emerge from your mouths. Human beings have had that practice for half the cycle. You now understand that He is your Father, and so you must no longer say, "O Baba!" You have to claim your inheritance from the Father. First, have the faith that you are receiving your inheritance from the Father. The Father gives you children the right to claim your inheritance. He is the true Father, is He not? The Father knows that He gives His children the nectar of knowledge to imbibe. He sits them on the pyre of knowledge, awakens them from their deep sleep and sends them to heaven. The Father has explained that souls are residents of the land of peace and the land of happiness. The land of happiness is called the viceless world. The deities are completely viceless. The other is the sweet home! You know that is the home of you actors and that you come here from that land of peace to play your parts. We souls are not residents of this place. Those actors are residents of that place. They simply come from their various homes, change their dress and play their parts. You understand that your home is the land of peace where you are to return to. When all the actors have come onto the stage, the Father comes and takes everyone back home. This is why He is called the Liberator and the Guide. He is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. Therefore, where will all of these human beings go? Just think about this! You called out to the Purifier to come here. What for? For your own death! You don't want to stay in the world of sorrow and this is why you say: Let us go home! All of them are believers in liberation. The ancient Raj Yoga of Bharat is very well known. Those people go abroad to teach ancient Raj Yoga. In fact, hatha yogis don't know Raja Yoga at all; their yoga is wrong. This is why you should go and teach them true Raj Yoga. When people see the saffron robes of the sannyasis, they give them so much regard. Even in Buddhism, when they see someone in saffron robes, they give him respect. Sannyasis come later on. At the beginning of the Buddhist religion, there are no sannyasis. When sin increases in the Buddhist religion, the sannyas religion is established. That soul also comes from up above at the beginning of it. His followers follow him down. What would he do by teaching renunciation at the beginning? Renunciation comes later on. They have copied that from here. There are many Christians who give regard to the sannyasis. Saffron robes are the uniform of hatha yogis. You don't have to leave your homes and families, nor are you bound to wear white clothes. However, white clothes are good. You stayed in the bhatthi and this became your dress. Nowadays, people like white clothes very much. When a person dies, he is covered with a white sheet. You have now died alive, and so to dress in white is good. First of all, give someone the Father's introduction. It takes time to explain that there are two fathers. You are not able to explain so much at exhibitions. In the golden age you have one father. At this time, you have three fathers because God enters the body of Prajapita Brahma. He is the Father of everyone. You also have a worldly father. Achcha, which of the three fathers gives you the highest inheritance? How does the incorporeal Father give you the inheritance? He gives it to you through Brahma. You can explain this picture very well. Shiv Baba is incorporeal and this one is Prajapita Brahma, Adi Dev, the Great-Great-Grandfather. The Father says: You don’t call Me, Shiva, "the Great-Great-Grandfather”. I am the Father of All whereas this one is Brahma, the Father of Humanity. All of you are brothers and sisters. Although you are males and females, your intellects understand that you are brothers and sisters. You receive your inheritance from the Father. There cannot be criminal assault between brother and sister. If there is a vision of vice between each other, they fall; they forget the Father. The Father says: After becoming My child, you dirty your face! The unlimited Father sits here and explains to the children. You become very intoxicated. You know that you have to live at home with your families. You have to stay with your worldly relations and fulfil your responsibilities to them. You should call your physical father ‘father’. You mustn’t call him your brother. In an ordinary way, you would call your father ‘father’. Your intellect understands that he is your physical father. You have knowledge. This knowledge is unique. Nowadays, they even call their father by name, but if you were to call your father ‘brother’ in front of a visitor, he would think you had gone mad. You have to be very diplomatic. Your knowledge is incognito and your relationships are incognito. You have to interact with great diplomacy. However, it is good to give regard to one another. You have to fulfil your responsibilities to your relations. Your intellects should go up above. We are claiming our inheritance from Baba, but you have to call your uncle ‘uncle’ and your father ‘father’. Those who haven't become B.K.s would not understand about brother and sister. Only those who have become Brahma Kumars and Kumaris will understand these things. People outside would be shocked to hear this at first. A very good intellect is needed to understand these things. The Father is making the intellects of you children broad and unlimited! Previously, you had limited intellects. Now, your intellects go into the unlimited. He is our unlimited Father. All of them are our brothers and sisters. In terms of relationships, a daughter-in-law should be called daughter-in-law and a mother-in-law should be called mother-in-law. You shouldn’t call them sister, even though both of them come. Even while living at home, you have to interact with great tact. You also have to consider what people would say. Otherwise, they would say that you make husbands into brothers and mother-in-laws into sisters. They would wonder what you are being taught. Only you, and no one else, can understand these things of knowledge. It is said: Only You know Your ways and means. You have now become His children. Therefore, only you know His ways and means. You have to interact with great caution so that no one becomes confused. At exhibitions, you children first have to explain that it is God who is teaching you. Now, tell us who He is! Is it incorporeal Shiva or Shri Krishna? It is after the birth of Shiva that there is the birth of Krishna because the Father teaches Raj Yoga. It has entered the intellects of you children that not until the Supreme Soul, Shiva, comes, can you celebrate His birthday. Until Shiva comes and establishes the land of Krishna, how could you celebrate the birthday of Krishna? They celebrate the birthday of Krishna but they don't understand anything. Krishna was a prince and so it would surely have been in the golden age that he was a prince. There would be the kingdom of deities; it wouldn't be Krishna alone who receives the sovereignty. It would surely be in the land of Krishna. They speak of the land of Krishna and of this being the land of Kans. When the land of Kans was destroyed, the land of Krishna was established. They both exist in Bharat. Kans etc. cannot exist in the new world. The iron age is called the land of Kans. Look how many human beings there are now! There are very few in the golden age. The deities didn’t battle. Call it the land of Krishna or the land of Vishnu, the deity community or the devilish community, it is all here. However, there was neither a war between the deities and the devils nor between the Kauravas and the Pandavas. You conquer Ravan. The Father says: Conquer these five vices and you will become the conquerors of the world. There is no question of battling in this. If you were to say ‘fighting’, that would be violence. You do have to conquer Ravan, but with non-violence. It is simply by remembering the Father that our sins are absolved. There is no question of battling etc. The Father says: You have become tamopradhan and you now have to become satopradhan again. The ancient Raj Yoga of Bharat is very well known. The Father says: Connect your intellects in yoga with Me and your sins will be burnt away. The Father is the Purifier; therefore, connect your intellects in yoga with Him and you will become pure from impure. You are now having yoga with Him in a practical way. There is no question of a battle in this. Those who study well and have yoga with the Father will claim the inheritance from the Father. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli Maya will become very strong and come in front of you. Don’t be afraid of her. Become a conqueror of Maya. Follow shrimat at every step and have mercy for yourself. Show your true chart to the Father. Live as a trustee. Practice staying in remembrance while walking and moving around. Blessing: May you grant a vision of your crown of light to your devotees through your own form and become a specially loved deity. When you became the Father’s children and made a promise for purity, you received a crown of light in return. The jewel-studded crown is nothing compared to this crown of light. The more you continue to inculcate purity into your thoughts, words and deeds, the clearer the crown of light will become and you will then be revealed as the specially loved deities in front of your devotees. Slogan:- Always stay under the canopy of BapDada’s protection and you will become a destroyer of obstacles. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 5 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 5 January 2021 (Tuesday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - तुम्हारे मुख से कभी भी हे ईश्वर, हे बाबा शब्द नहीं निकलना चाहिए, यह तो भक्ति मार्ग की प्रैक्टिस है" प्रश्नः- तुम बच्चे सफेद ड्रेस पसन्द क्यों करते हो? यह किस बात का प्रतीक है? उत्तर:- अभी तुम इस पुरानी दुनिया से जीते जी मर चुके हो इसलिए तुम्हें सफेद ड्रेस पसन्द है। यह सफेद ड्रेस मौत को सिद्ध करता है। जब कोई मरता है तो उस पर भी सफेद कपड़ा डालते हैं, तुम बच्चे भी अभी मरजीवा बने हो। ♫ मुरली सुने ➤ ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, रूहानी अक्षर न कह सिर्फ बाप कहें तो भी ठीक है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। सब अपने को भाई-भाई तो कहते ही हैं। तो बाप बैठ समझाते हैं बच्चों को। सभी को तो नहीं समझाते होंगे। सब अपने को भाई-भाई कहते ही हैं। गीता में लिखा हुआ है - भगवानुवाच। अब भगवानुवाच किसके प्रति? भगवान के हैं सब बच्चे। वह बाप है तो भगवान के बच्चे सब ब्रदर्स हैं। भगवान ने ही समझाया होगा, राजयोग सिखाया होगा। अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला हुआ है। दुनिया में और किसी के भी ऐसे ख्यालात नहीं चल सकते। जिन-जिन को सन्देश मिलता जायेगा वह स्कूल में आते जायेंगे, पढ़ते जायेंगे। समझेंगे प्रदर्शनी तो देखी, अब जाकर कुछ ज्यादा सुने। पहली-पहली मुख्य बात है ज्ञान का सागर, पतित-पावन गीता ज्ञान दाता शिव भगवानुवाच पहले-पहले उनको यह पता पड़े कि इन्हों को सिखलाने वाला अथवा समझाने वाला कौन है! वह सुप्रीम सोल ज्ञान का सागर निराकार है। वह तो है ही सत्य। (ट्रूथ) वह सत्य ही बतायेंगे। फिर उसमें और कोई प्रश्न उठ नहीं सकता। पहले-पहले तो इस पर समझाना है, हमको परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखलाते हैं। यह राजाई पद है। जिसको निश्चय हो जायेगा कि जो सबका बाप है, वह पारलौकिक बाप बैठ समझाते हैं, वही सबसे बड़ी अथॉरिटी है तो फिर दूसरा कोई प्रश्न उठ ही नहीं सकता। वह है पतित-पावन तो जब वह यहाँ आते हैं तो जरूर अपने टाइम पर आते होंगे। तुम देखते भी हो - यह वही महाभारत लड़ाई है। विनाश के बाद फिर वाइसलेस दुनिया होनी है। यह है विशश दुनिया। यह मनुष्य नहीं जानते कि भारत ही वाइसलेस था। कुछ भी बुद्धि चलती नहीं। गाडरेज का ताला लगा हुआ है। उसकी चाबी एक बाप के पास ही है इसलिए उनको ही ज्ञान दाता, दिव्य चक्षु विधाता कहा जाता है। ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं। यह किसको पता नहीं है कि तुमको पढ़ाने वाला कौन है। दादा समझ लेते हैं तब टीका करते हैं। कुछ न कुछ बोलते हैं - इसलिए पहली-पहली बात ही यह समझाओ। इसमें लिखा हुआ भी है - शिव भगवानुवाच। वह तो है ही ट्रूथ। बाप समझाते है मैं पतित-पावन शिव हूँ। मैं परमधाम से आया हूँ, इन सालिग्रामों को पढ़ाने। बाप है ही नॉलेजफुल। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। यह शिक्षा अभी तुमको ही बेहद के बाप से मिल रही है। वही सृष्टि के रचयिता हैं। पतित सृष्टि को पावन बनाने वाले हैं। बुलाते भी हैं हे पतित-पावन आओ तो पहले-पहले उसका ही परिचय देना है। उस परमपिता परमात्मा के साथ आपका क्या सम्बन्ध है? वह है ही सत्य। नर से नारायण बनने की सत्य नॉलेज देते हैं। बच्चे जानते हैं बाप सत्य है, बाप ही सचखण्ड बनाते हैं। तुम नर से नारायण बनने यहाँ आते हो। बैरिस्टर पास जायेंगे तो समझेंगे हम बैरिस्टर बनने आये हैं। अभी तुमको निश्चय है कि हमें भगवान पढ़ाते हैं। कई निश्चय करते भी हैं फिर संशयबुद्धि हो जाते हैं तो उनको सब मनुष्य कहते हैं तुम तो कहते थे, भगवान पढ़ाते हैं फिर भगवान को छोड़ क्यों आये हो? संशय आने से ही भागन्ती हो जाते हैं। कोई न कोई विकर्म करते हैं। भगवानुवाच काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बनेंगे। जो पावन बनेंगे वही पावन दुनिया में चलेंगे। यहाँ है ही राजयोग की बात। तुम जाकर वहाँ राजाई करेंगे। बाकी जो भी आत्मायें हैं वह अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस अपने घर चली जायेंगी। यह कयामत का समय है। अब यह बुद्धि कहती है सतयुग की स्थापना जरूर होनी है। पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है। बाकी सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे। उनको फिर अपना पार्ट रिपीट करना है। तुम भी अपना पुरुषार्थ करते रहते हो। पावन बन और पावन दुनिया का मालिक बनने के लिए। मालिक तो सब अपने को समझेंगे ना। प्रजा भी मालिक है। अभी प्रजा भी कहती है ना - हमारा भारत। बड़े ते बड़े मनुष्य संन्यासी आदि भी कहते हमारा भारत। तुम समझते हो इस समय भारत में सभी नर्कवासी हैं। अभी हम स्वर्गवासी बनने के लिए यह राजयोग सीख रहे हैं। सब तो स्वर्गवासी नहीं बनेंगे। यह अभी ज्ञान आया है। वो लोग जो सुनाते हैं, शास्त्र सुनाते हैं। वह हैं शास्त्रों की अथॉरिटी। बाप कहते हैं यह भक्ति मार्ग के वेद शास्त्र आदि सब पढ़ने से सीढ़ी नीचे उतरते जाते हैं। यह सब है भक्ति मार्ग। बाप कहते हैं जब भक्ति मार्ग पूरा होगा तब ही मैं आऊंगा। मुझे ही आकर सब भक्तों को भक्ति का फल देना है। मैजॉरटी तो भक्तों की है। सब पुकारते रहते हैं ना - हे गाड फादर। भक्तों के मुख से ओ गाड फादर, हे भगवान जरूर निकलेगा। अब भक्ति और ज्ञान में तो फ़र्क है। तुम्हारे मुख से कभी हे ईश्वर, हे भगवान यह अक्षर नहीं निकलेंगे। मनुष्यों को तो यह आधाकल्प की प्रैक्टिस पड़ी हुई है। तुम जानते हो वह तो हमारा बाप है, तुमको हे बाबा थोड़ेही करना है। बाप से तो तुमको वर्सा लेना है। पहले तो यह निश्चय है हम बाप से वर्सा लेते हैं। बाप बच्चों को वर्सा लेने का अधिकारी बनाते हैं। यह तो सच्चा बाप है ना। बाप जानते हैं - यह हमारे बच्चे हैं, जिन्हों को हम ज्ञान अमृत पिलाए, ज्ञान चिता पर बिठाए घोर नींद से जगाए स्वर्ग में ले जाता हूँ। बाप ने समझाया है - आत्मायें वहाँ शान्तिधाम और सुखधाम में रहती हैं। सुखधाम को कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड। सम्पूर्ण निर्विकारी देवतायें हैं ना। और वह है स्वीट होम। तुम जान गये हो कि हमारा होम वह है, हम एक्टर्स उस शान्तिधाम से आते हैं - यहाँ पार्ट बजाने। हम आत्मायें यहाँ के रहवासी नहीं हैं। वह एक्टर्स यहाँ के रहवासी होते हैं। सिर्फ घर से आकर ड्रेस बदलकर पार्ट बजाते हैं। तुम तो समझते हो हमारा घर शान्तिधाम है, वहाँ हम फिर वापिस जाते हैं। जब सभी एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं तब फिर बाप आकर सभी को ले जायेंगे, इसलिए उनको लिब्रेटर, गाइड भी कहा जाता है। दु:ख हर्ता सुख कर्ता है तो इतने सब मनुष्य कहाँ जायेंगे। विचार करो - पतित-पावन को बुलाते हैं। किसलिए? अपनी मौत के लिए, दु:ख की दुनिया में रहने नहीं चाहते हैं, इसलिए कहते हैं घर चलो। यह सब मुक्ति को ही मानने वाले हैं। भारत का प्राचीन राजयोग भी कितना मशहूर है। विलायत में भी जाते हैं प्राचीन राजयोग सिखलाने। वास्तव में हठयोगी तो राजयोग जानते ही नहीं। उन्हों का योग ही रांग है इसलिए तुम्हें जाकर सच्चा राजयोग सिखाना है। मनुष्य को संन्यासियों की कफनी देख उन्हों को कितना मान देते हैं। बौद्ध धर्म में भी संन्यासियों को, कफनी पहनी हुई देख उनको मानते हैं। संन्यासी तो बाद में होते हैं। बौद्ध धर्म में भी शुरू में कोई संन्यासी नहीं होते हैं। जब पाप बढ़ता है, बौद्ध धर्म में तब संन्यास धर्म स्थापन होता है। शुरू में तो वह आत्मायें ऊपर से आती हैं। उनकी संख्या आती है। शुरू में संन्यास सिखलाकर क्या करेंगे, संन्यास होता है बाद में। यह भी यहाँ से कापी करते हैं। क्रिश्चियन में भी बहुत हैं जो संन्यासियों का मान रखते हैं। कफनी की जो पहरवाइस है, वह हठयोगियों की है। तुमको तो घरबार छोड़ना नहीं है। न कोई सफेद कपड़े का बंधन है परन्तु सफेद अच्छा है। तुम भट्ठी में रहे हो तो ड्रेस भी यह हो गई है। आजकल सफेद बहुत पसन्द करते हैं। मनुष्य मरते हैं तो भी सफेद चादर डालते हैं। तुम भी अभी मरजीवा बने हो तो सफेद ड्रेस अच्छी है। तो पहले कोई को भी बाप का परिचय देना है। दो बाप हैं, यह बातें समझने में टाइम लेते हैं। प्रदर्शनी में इतना समझा नहीं सकेंगे। सतयुग में होता है एक बाप। इस समय तुमको 3 बाप हैं क्योंकि भगवान आते हैं प्रजापिता ब्रह्मा के तन में, वह भी तो बाप है सबका। लौकिक बाप भी है। अच्छा अब तीनों बाप से ऊंच वर्सा किसका? निराकार बाप वर्सा कैसे दे। वह फिर देते हैं ब्रह्मा द्वारा। इस चित्र पर तुम बहुत अच्छी रीति समझा सकते हो। शिवबाबा निराकार है और यह है प्रजापिता ब्रह्मा आदि देव, ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर। बाप कहते हैं मुझ शिव को तुम ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर नहीं कहेंगे। मैं सभी का बाप हूँ। यह है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम हो गये सब बहन भाई। भल स्त्री पुरुष हैं परन्तु बुद्धि से जानते हैं हम भाई-बहिन हैं। बाप से वर्सा लेते हैं। भाई-बहन आपस में क्रिमिनल एसाल्ट कर न सकें। अगर दोनों की आपस में विकारी दृष्टि खींचती है तो फिर गिर पड़ते हैं। बाप को भूल जाते हैं। बाप कहते हैं तुम हमारा बच्चा बन फिर मुँह काला करते हो। बेहद का बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं। तुमको यह नशा चढ़ा हुआ है। जानते हो गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। लौकिक सम्बन्धियों को भी मुँह देना है, तोड़ निभाना है। लौकिक बाप को तो तुम बाप कहेंगे ना। उनको तो तुम भाई नहीं कह सकते हो। आर्डनरी वे में बाप को बाप ही कहेंगे। बुद्धि में है यह हमारा लौकिक बाप है। ज्ञान तो है ना। यह ज्ञान बड़ा विचित्र है। आजकल करके नाम भी ले लेते हैं परन्तु कोई विजीटर आदि बाहर के आदमी के सामने भाई कह दो तो वह समझेंगे इनका माथा खराब हुआ है। इसमें बड़ी युक्ति चाहिए। तुम्हारा गुप्त ज्ञान है, गुप्त संबंध है। इसमें बड़ा युक्ति से चलना है। लेकिन एक दो को रिगार्ड देना अच्छा है। लौकिक से भी तोड़ निभाना है। बुद्धि चली जानी चाहिए ऊपर। हम बाबा से वर्सा ले रहे हैं। बाकी चाचे को चाचा, बाप को बाप कहना पड़ेगा। जो बी.के. नहीं बने हैं तो वह भाई-बहन नहीं समझेंगे। जो ब्रह्माकुमार कुमारियां बने हैं वही इन बातों को समझेंगे। बाहर वाले तो पहले सुनकर चमकेंगे। इसमें समझने की बड़ी अच्छी बुद्धि चाहिए। बाप तुम बच्चों की विशालबुद्धि बनाते हैं। तुम पहले हद की बुद्धि में थे। अब बुद्धि चली जाती है बेहद में। हमारा वह बेहद का बाप है। यह सब हमारे भाई बहन हैं। बाकी संबंध में तो बहू को बहू, सासू को सासू ही कहेंगे, बहन थोड़ेही कहेंगे। आते तो दोनों हैं। घर में रहते भी बड़ी युक्ति से चलना होगा। लोक संग्रह को भी देखना पड़ता है। नहीं तो वह लोग कहेंगे यह पति को भाई, सासू को बहन कह देते, यह क्या सीखते हैं। यह ज्ञान की बातें तो तुम ही जानो और न जाने कोई। कहते हैं ना - तुम्हारी गति मति तुम ही जानो। अब तुम उसके बच्चे बने हो तो तुम्हारी गति मत तुम ही जानो। बड़ा सम्भलकर चलना पड़ता है। कहाँ कोई मूँझे नहीं। तो प्रदर्शनी में भी तुम बच्चों को पहले-पहले यह समझाना है कि हमको पढ़ाने वाला भगवान है। अब बताओ वह कौन है? निराकार शिव या श्रीकृष्ण। शिव जयन्ती के बाद फिर आती है कृष्ण जयन्ती क्योंकि बाप राजयोग सिखलाते हैं। बच्चों की बुद्धि में आया ना। जब तक शिव परमात्मा न आये, शिव जयन्ती मना न सकें। जब तक शिव आकर कृष्णपुरी स्थापन न करे तो कृष्ण जयन्ती भी कैसे मनाई जाए। कृष्ण का जन्म तो मनाते हैं परन्तु समझते थोड़ेही हैं। कृष्ण प्रिन्स था तो जरूर सतयुग में प्रिन्स होगा ना। देवी देवताओं की राजधानी होगी। सिर्फ एक कृष्ण को तो बादशाही नहीं मिली होगी। जरूर कृष्णपुरी होगी ना। कहते भी हैं कृष्णपुरी और यह है कंसपुरी। कंसपुरी खत्म हुई फिर कृष्णपुरी स्थापन हुई ना। होती भारत में ही है। नई दुनिया में थोड़ेही यह कंस आदि हो सकते हैं। कंसपुरी कहा जाता है कलियुग को। यहाँ तो देखो कितने मनुष्य हैं। सतयुग में थोड़े होते हैं। देवताओं ने कोई लड़ाई नहीं की। कृष्णपुरी कहो अथवा विष्णुपुरी कहो, दैवी सम्प्रदाय कहो, आसुरी सम्प्रदाय यहाँ है। बाकी न देवताओं और असुरों की लड़ाई हुई, न कौरवों पाण्डवों की हुई है। तुम रावण पर जीत पाते हो। बाप कहते हैं इन 5 विकारों पर जीत पहनो तो तुम जगतजीत बन जायेंगे, इसमें कोई लड़ना नहीं है। लड़ने का नाम ले तो हिंसा हो जाए। रावण पर जीत पानी है,परन्तु नानवायोलेंस से। सिर्फ बाप को याद करने से हमारे विकर्म विनाश होते हैं। लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। बाप कहते हैं तुम तमोप्रधान बन गये हो अब फिर तुमको सतोप्रधान बनना है। भारत का प्राचीन राजयोग मशहूर है। बाप कहते हैं - मेरे साथ बुद्धि का योग लगाओ तो तुम्हारे पाप भस्म होंगे। बाप पतित-पावन है तो उनसे बुद्धियोग लगाना है तब तुम पतित से पावन बन जायेंगे। अब प्रैक्टिकल में तुम उनके साथ योग लगा रहे हो, इसमें लड़ाई की कोई बात नहीं है। जो अच्छी रीति पढ़ेंगे और बाप के साथ योग लगायेंगे वही बाप से वर्सा पायेंगे। अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार भाई-भाई की दृष्टि का अभ्यास करते हुए लौकिक बन्धनों से तोड़ निभाना है। बड़ी युक्ति से चलना है। विकारी दृष्टि बिल्कुल नहीं जानी चाहिए। कयामत के समय सम्पूर्ण पावन बनना है। बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए अच्छी रीति पढ़ाई करनी है और पतित-पावन बाप से योग लगाकर पावन बनना है। वरदान:- कमजोरियों को फुलस्टाप देकर अपने सम्पन्न स्वरूप को प्रख्यात करने वाले साक्षात्कारमूर्त भव विश्व आपके कल्प पहले वाले सम्पन्न स्वरूप, पूज्य स्वरूप का सिमरण कर रही है इसलिए अब अपने सम्पन्न स्वरूप को प्रैक्टिकल में प्रख्यात करो। बीती हुई कमजोरियों को फुलस्टाप लगाओ, दृढ़ संकल्प द्वारा पुराने संस्कार-स्वभाव को समाप्त करो, दूसरों की कमजोरी की नकल मत करो, अवगुण धारण करने वाली बुद्धि का नाश करो, दिव्य गुण धारण करने वाली सतोप्रधान बुद्धि धारण करो तब साक्षात्कार मूर्त बनेंगे। स्लोगन:- अपने अनादि और आदि गुणों को स्मृति में रख उन्हें स्वरूप में लाओ। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 4 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 4 January 2021 (Monday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, continue to follow the Father’s elevated directions at every step. Only listen to the one Father and you will not be attacked by Maya." Question: What is the basis of claiming an elevated status? Answer: In order to claim an elevated status, continue to follow every one of the Father’sdirections. As soon as you children receive a direction from the Father, accept it without further any thoughts. 2. Engage yourself in this spiritual study. You mustn’t remember anyone else. When you die, the world is dead for you; only then can you receive a high status. ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: Having found You, we have found the whole world. Om Shanti. You sweetest, spiritual children heard the song which is sung on the path of devotion. The Father will explain its meaning to you children. You children now understand that you are also claiming your unlimited inheritance from the Father. No one can take that kingdom away from us. Many have taken the kingdom of Bharat. The Muslims took it; the British took it. In fact, it was Ravan who first took it because they followed devilish dictates. The image of monkeys in the form of "Hear no evil, see no evil, speak no evil” must have some significance. The Father explains: On one side, there is the devilish community of Ravan who do not know the Father. On the other side, there are you children. Previously, you didn’t understand this either. The Father also speaks of this one, because he too has performed a lot of devotion. This is the last of his many births. This one was at first pure and has now become impure. I know him. You must now no longer listen to anyone else. The Father says: I am speaking to you children. Yes, when you bring your friends and relatives, I do talk to them a little. The first thing is to become pure, for only then will your intellects be able to imbibe anything. The rules here are very strict. Previously, you were told that you had to stay in the bhatthi for seven days and not remember anyone else at all. You couldn’t write a letter to anyone either. No matter where you lived, you had to stay in the bhatthi all day long. Now you study in the bhatthi and then go outside. Some are amazed by this knowledge; they listen to this knowledge and relate it to others and then Maya comes and they run away. This destination is very high. They don’t listen to the Father. He says: You are in the stage of retirement. Why do you become trapped in others for nothing? Engage yourself in this spiritual study. You should not remember anyone else at all. When you die, the world is dead for you. Only then can you claim a high status. Your effort is to change from an ordinary human into Narayan. You have to follow the Father’s directions at every step, but this too requires courage. It isn’t just a matter of speaking about it. The strings of attachment are no less. You have to destroy all attachment. "Mine is one Shiv Baba and none other! I have taken refuge with Baba. I will never give poison.” When you come to God, Maya does not leave you alone. She will try to make you fall down a lot. Herbalists say that when you take a particular medicine, all of that illness will emerge at first. You mustn’t be afraid of that. It is like that here too. Maya will harass you a great deal and will bring thoughts of vice even in your stage of retirement and attachment will then develop. Baba tells you in advance that all of this will happen. The boxing of Maya will continue for as long as you live. Maya also becomes very strong and will not leave you alone. This too is fixed in the drama. I will not tell Maya not to bring you vicious thoughts. Many write: Baba, have mercy! I do not have mercy for anyone in that way. Here, you have to follow shrimat. If I were to have mercy, everyone would become emperors. This is not in the drama. Those of all religions come. Those who have been transferred to other religions will all emerge. The sapling is being planted. This takes great effort. When new ones come, simply tell them to remember the Father. God Shiva speaks. Krishna is not God. He goes around the cycle of 84 births. There are innumerable opinions and stories. You have to instill this in your intellects very well. You were impure. The Father now tells you how you can become pure. A cycle ago too, He told you: Constantly remember Me alone! Consider yourselves to be souls, renounce all the religions of bodies and die alive! Only remember Me, the one Father! I have come to grant salvation to everyone. It is only the people of Bharat who become elevated. Then, they take 84 births and come down. Tell them: You people of Bharat worship these deities. Who were they? They were the masters of heaven, were they not? Where are they now? Who takes 84 births? In the golden age, there were just these deities. Everyone is now to be destroyed in this great Mahabharat War. Everyone is now impure and tamopradhan. I come and enter this one at the end of his many births. He was a complete devotee; he used to worship Narayan. I enter him and make him into Narayan. Now, you too have to make effort. This deity kingdom is being established. A rosary is being created. At the top is the incorporeal Flower, then there is the dual-bead. They are standing directly below Shiv Baba: the World Father Brahma and the World Mother Saraswati. You are now becoming the masters of the land of Vishnu by making this effort. The people of Bharat say: Bharat belongs to us! You also understand that you are becoming the masters of the world. When we rule the kingdom, there won’t be any other religions. You wouldn’t say: "This is my kingdom.” There is no other kingdom there. Here, there are many. They say "mine” and "yours”. These things don’t exist there. Therefore, the Father says: Children, renounce everything else and constantly remember Me alone and your sins will be absolved. It isn’t that someone should especially sit in front of you to conduct meditation and give you drishti. The Father says: Remember the Father while walking and moving around. Keep your chart. How long did I stay in remembrance throughout the whole day? For how long did I talk to the Father after waking up in the morning? Did I sit in remembrance of Baba today? Make effort on yourself in this way. You have this knowledge in your intellects. In that case, explain it to others too! It doesn’t enter anyone’s intellect that lust is the greatest enemy. They stay here for two to four years and then, when they are slapped with great force by Maya, they fall. Then, they write: Baba, I have dirtied my face! Baba responds: Those who dirty their faces mustn’t come here for 12 months. You made a promise to the Father and yet you then fell into vice. Don’t come to Me! The destination is very high. The Father has come to purify the impure. Many children marry and remain pure. Yes, if a girl is being beaten, a pure marriage is arranged for her in order for her to be saved. In this, too, Maya catches hold of some by their nose and they become defeated. Women too are defeated a great deal! The Father says: You are Supnakha (female devil). All of those names refer to this time. Baba does not allow vicious people to sit here. You have to take advice from the Father at every step. When you surrender yourself, the Father says: Now become a trustee and continue to follow Baba’s advice. Only when you show your chart to Baba can He advise you. These things have to be understood a great deal. You may offer bhog, but I don’t eat it. I am the Donor. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Night Class: 15/06/68 When those who have weak hearts revise the past, the weakness of their hearts is also revised and this is why you children are made to remain firm on the rails of the drama. Only by your having remembrance will there be the maximum benefit for you. It is only by having remembrance that your lifespan will increase. If you children understood the drama, you wouldn’t have any other thoughts. At this time in the drama, you are studying and teaching knowledge. This part will then end. Neither the Father’s part nor our parts will remain. There will neither be the part of His giving nor the parts of us taking. So, both will become one. Our parts will then be in the new world and Baba’s part will be in the land of silence. The reel of our parts is recorded. Our parts are of our reward and Baba’s part is of the land of silence. The parts of giving and taking are recorded; the drama is now being completed. We will then go and rule in our kingdom. That part will then change. Knowledge will stop and we will become that. When the part is completed, no difference will remain. There will not be the parts of the Father and the children. This one also takes the full knowledge. Nothing remains with that One either. There is nothing remaining with the One who gives and there is nothing lacking in those who take, and so both become equal. For this, you need an intellect that will churn the ocean of knowledge. The special effort is for the pilgrimage of remembrance. The Father sits here and explains. In relating it, it becomes a big thing, but it is very subtle when in the intellect. Internally, you know what Shiv Baba’s form is. In explaining it, it becomes a big form. On the path of devotion, they create huge lingams. A soul itself is tiny. This is a wonder! When would you reach the end? Ultimately, they just say, "unending”. Baba has explained that a whole part is recorded in a soul. This is a wonder. You cannot reach the end. You can reach the end of the world cycle. Only you know the Creator and the beginning, middle and end of creation. Baba is knowledge-full. Then, when we also become full, there will be nothing more to attain. The Father enters this one and teaches us. He is just a point. By having a vision of a soul or God, there isn’t that happiness. You have to make effort to remember the Father because only then will your sins be absolved. The Father says: The knowledge in Me will end and it will also end in you. You take knowledge and become elevated. You take everything; nevertheless, the Father is the Father. You souls will remain souls; you will not become the Father. This is knowledge. The Father is the Father and the children are the children. It is a question of churning the ocean of knowledge and going deep within. You also know that everyone has to return home. Everyone is going to return. Only souls will remain. The whole world is to finish. You have to remain fearless in this. You have to make effort to remain fearless. You should have no consciousness of your body. You have to reach that stage. The Father makes you similar to Himself. You children also continue to make others similar to yourselves. You have to make such effort that you only have remembrance of the one Father. You still have time. You have to rehearse this very strongly. If you don’t practice this, you will come to a standstill. Your legs will begin to shake and there will be sudden heart failure. It doesn’t take long for a tamopradhan body to have heart failure. The more you continue to become bodiless and stay in remembrance of the Father, the closer you will continue to come. Only those who have yoga are able to remain fearless. You receive power through yoga and wealth through knowledge. You children need power, and so, in order to receive power, you have to continue to remember the Father. Baba is the eternal Surgeon. He can never become a patient. The Father says: You now have to continue to take the imperishable medicine for yourself. I give such a life-giving herb that no one ever falls ill. Simply continue to remember the Purifier Father and you will become pure. Deities are always free from disease and pure. You children now have the faith that you claim your inheritance every cycle. The Father has come innumerable times just as He has come now. Whatever Baba teaches and explains is Raj Yoga. The Gita etc. belong to the path of devotion. The Father now shows you this path of knowledge. The Father uplifts you by picking you up from the bottom. Those whose intellects have firm faith become beads of the rosary. You children understand that you have come down by performing devotion. The Father has now come and is inspiring you to earn a true income. A worldly father does not enable you to earn such an income like the parlokik Father does. Achcha. Good night and namaste to the children. Essence of Murli Maya will become very strong and come in front of you. Don’t be afraid of her. Become a conqueror of Maya. Follow shrimat at every step and have mercy for yourself. Show your true chart to the Father. Live as a trustee. Practice staying in remembrance while walking and moving around. Blessing: May you grant a vision of your crown of light to your devotees through your own form and become a specially loved deity. When you became the Father’s children and made a promise for purity, you received a crow nof light in return. The jewel-studded crown is nothing compared to this crown of light. The more you continue to inculcate purity into your thoughts, words and deeds, the clearer the crown of light will become and you will then be revealed as the specially loved deities in front of your devotees. Slogan:- Always stay under the canopy of BapDada’s protection and you will become a destroyer of obstacles. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 4 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 4 January 2021 (Monday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - कदम-कदम बाप की श्रीमत पर चलते रहो, एक बाप से ही सुनो तो माया का वार नहीं होगा'' प्रश्नः- ऊंच पद प्राप्त करने का आधार क्या है? उत्तर:- ऊंच पद प्राप्त करने के लिए बाप के हर डायरेक्शन पर चलते रहो। बाप का डायरेक्शन मिला और बच्चों ने माना। दूसरा कोई संकल्प तक भी न आये। 2- इस रूहानी सर्विस में लग जाओ। तुम्हें और कोई की याद नहीं आनी चाहिए। आप मुये मर गई दुनिया तब ऊंच पद मिल सकता है। ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- तुम्हें पाके हमने........ ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने यह गीत सुना। वो है भक्ति मार्ग का गाया हुआ। इस समय बाप इसका रहस्य समझाते हैं। बच्चे भी समझते हैं - अब हम बाप से बेहद का वर्सा पा रहे हैं। वह राज्य हमारा कोई छीन न सके। भारत का राज्य बहुतों ने छीना है ना। मुसलमानों ने छीना, अंग्रेजों ने छीना। वास्तव में पहले तो रावण ने छीना है, आसुरी मत पर। यह जो बन्दरों का चित्र बनाते हैं - हियर नो ईविल, सी नो ईविल.... इनका भी कोई रहस्य होगा ना। बाप समझाते हैं एक तरफ है रावण की आसुरी सम्प्रदाय, जो बाप को नहीं जानते हैं। दूसरी तरफ हो तुम बच्चे। तुम भी पहले नहीं जानते थे। बाप इनके लिए भी सुनाते हैं कि इसने भी बहुत भक्ति की है, इनका यह है बहुत जन्मों के अन्त का जन्म। यही पहले पावन थे, अब पतित बने हैं। इनको मैं जानता हूँ। अभी तुम और किसकी मत सुनो। बाप कहते हैं, मैं तुम बच्चों से बात करता हूँ। हाँ, कभी कोई मित्र-सम्बन्धियों आदि को ले आते हैं तो थोड़ी बात कर लेता हूँ। पहली बात तो है पवित्र बनना है तब ही बुद्धि में धारणा होगी। यहाँ के कायदे बहुत कड़े हैं। आगे कहते थे 7 रोज़ भट्ठी में रहना है, और कोई की याद न आये, न पत्र आदि लिखना है। रहो भल कहाँ भी। परन्तु सारा दिन भट्ठी में रहना पड़े। अभी तो तुम भट्ठी में पड़कर फिर बाहर निकलते हो। कोई तो आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, अहो माया फिर भागन्ती हो गये। यह है बड़ी भारी मंजिल। बाप का कहना नहीं मानते। बाप कहते हैं तुम तो वानप्रस्थी हो। तुम क्यों मुफ्त में फँस पड़े हो। तुम तो इस रूहानी सर्विस में लग जाओ। तुम्हें और कोई की याद नहीं आनी चाहिए। आप मुये मर गई दुनिया तब ऊंच पद मिल सकता है। तुम्हारा पुरुषार्थ ही है - नर से नारायण बनने का। कदम-कदम बाप के डायरेक्शन पर चलना पड़े। परन्तु इसमें भी हिम्मत चाहिए। सिर्फ कहने की बात नहीं है। मोह की रग कम नहीं है, नष्टोमोहा होना है। मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। हम तो बाबा की शरण लेते हैं। हम विष कभी नहीं देंगे। तुम ईश्वर तरफ आते हो तो माया भी तुमको छोड़ेगी नहीं, खूब पछाड़ेगी। जैसे वैद्य लोग कहते हैं - इस दवाई से पहले सारी बीमारी बाहर निकलेगी। डरना नहीं। यह भी ऐसे है। माया खूब सतायेगी, वानप्रस्थ अवस्था में भी विकार के संकल्प ले आयेगी। मोह उत्पन्न हो जायेगा। बाबा पहले से ही बता देते हैं कि यह सब होगा। जहाँ तक जियेंगे, यह माया की बॉक्सिंग चलती रहेगी। माया भी पहलवान बन तुमको छोड़ेगी नहीं। यह ड्रामा में नूँध है। मैं थोड़ेही माया को कहूँगा कि विकल्प न लाओ। बहुत लिखते हैं बाबा कृपा करो। मैं थोड़ेही किस पर कृपा करुँगा। यहाँ तो तुमको श्रीमत पर चलना है। कृपा करूँ फिर तो सब महाराजा बन जाएं। ड्रामा में भी है नहीं। सब धर्म वाले आते हैं। जो और-और धर्म में ट्रान्सफर हो गये होंगे वह निकल आयेंगे। यह सैपलिंग लगता है, इसमें बड़ी मेहनत है। नये जो आते हैं तो सिर्फ कहना है बाप को याद करो। शिव भगवानुवाच। कृष्ण कोई भगवान नहीं है। वह तो 84 जन्मों में आते हैं। अनेक मत, अनेक बातें हैं। यह बुद्धि में पूरा धारण करना है। हम पतित थे। अब बाप कहते हैं तुम पावन कैसे बनो। कल्प पहले भी कहा था - मामेकम् याद करो। अपने को आत्मा समझ देह के सब धर्म छोड़ जीते जी मरो। मुझ एक बाप को ही याद करो। मैं सर्व की सद्गति करने आया हूँ। भारतवासी ही ऊंच बनते हैं फिर 84 जन्म ले नीचे उतरते हैं। बोलो, तुम भारतवासी ही इन देवी-देवताओं की पूजा करते हो। यह कौन हैं? यह स्वर्ग के मालिक थे ना। अभी कहाँ हैं? 84 जन्म कौन लेते हैं? सतयुग में तो यही देवी-देवता थे। अभी फिर इस महाभारत लड़ाई द्वारा सबका विनाश होना है। अभी सब पतित तमोप्रधान हैं। मैं भी इनके बहुत जन्मों के अन्त में ही आकर प्रवेश करता हूँ। यह पूरा भक्त था। नारायण की पूजा करता था। इनमें ही प्रवेश कर फिर इनको नारायण बनाता हूँ। अब तुमको भी पुरुषार्थ करना है। यह डीटी राजधानी स्थापन हो रही है। माला बनती है ना। ऊपर में है निराकार फूल, फिर मेरू युगल। शिवबाबा के नीचे एकदम यह खड़े हैं। जगतपिता ब्रह्मा और जगत अम्बा सरस्वती। अभी तुम इस पुरुषार्थ से विष्णुपुरी के मालिक बनते हो। प्रजा भी तो कहती है ना - भारत हमारा है। तुम भी समझते हो हम विश्व के मालिक हैं। हम राजाई करेंगे, और कोई धर्म होगा ही नहीं। ऐसे नहीं कहेंगे - यह हमारी राजाई है, और कोई राजाई है नहीं। यहाँ बहुत हैं तो हमारा तुम्हारा चलता है। वहाँ यह बातें ही नहीं। तो अब बाप समझाते हैं - बच्चे, और सब बातें छोड़ मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। ऐसे नहीं कोई सामने बैठ निष्ठा (योग) कराये, दृष्टि दे। बाप तो कहते हैं चलते-फिरते बाप को याद करना है। अपना चार्ट रखो - सारे दिन में कितना याद किया? सवेरे उठ कितना समय बाप से बातें की? आज बाबा की याद में बैठे? ऐसे-ऐसे अपने से मेहनत करनी है। नॉलेज तो बुद्धि में है फिर औरों को भी समझाना है। यह किसकी बुद्धि में नहीं आता है कि काम महाशत्रु है। 2-4 वर्ष रहकर फिर माया का थप्पड़ जोर से लगने से गिर पड़ते हैं। फिर लिखते हैं बाबा हमने काला मुँह कर दिया। बाबा लिख देते काला मुँह करने वाले को 12 मास यहाँ आने की दरकार नहीं है। तुम बाप से प्रतिज्ञा कर फिर भी विकार में गिरे, मेरे पास कभी नहीं आना। बड़ी मंजिल है। बाप आये ही हैं पतित से पावन बनाने। बहुत बच्चे शादी कर पवित्र रहते हैं। हाँ, किसी बच्ची पर मार पड़ती है तो उनको बचाने लिए गन्धर्वी विवाह कर पवित्र रहते हैं। उसमें भी कोई-कोई को तो नाक से माया पकड़ लेती है। हार खा लेते हैं। स्त्रियां भी बहुत हार खा लेती हैं। बाप कहते हैं तुम तो सूपनखा हो, यह सब नाम इस समय के ही हैं। यहाँ तो बाबा कोई विकारी को बैठने भी न दे। कदम-कदम पर बाप से राय लेनी पड़े। सरेन्डर हो जाए तो फिर बाप कहेंगे अब ट्रस्टी बनो। राय पर चलते रहो। पोतामेल बतायेंगे तब तो राय देंगे। यह बड़ी समझने की बातें हैं। तुम भोग भल लगाओ परन्तु मैं खाता नहीं हूँ। मैं तो दाता हूँ। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। रात्रि क्लास 15-6-68 पास्ट जो हो गया है उनको रिवाईज करने से जिनकी कमज़ोर दिल है तो उन्हों के दिल की कमज़ोरी भी रिवाईज हो जाती है इसलिये बच्चों को ड्रामा के पट्टे पर ठहराया गया है। मुख्य फायदा है ही याद से। याद से ही आयु बड़ी होनी है। ड्रामा को बच्चे समझ जायें तो कब ख्याल न हो। ड्रामा में इस समय ज्ञान सीखने और सिखाने का चल रहा है। फिर पार्ट बन्द हो जायेगा। न बाप का, न हमारा पार्ट रहेगा। न उनका देने का पार्ट, न हमारा लेने का पार्ट होगा। तो एक हो जायेंगे ना। हमारा पार्ट नई दुनिया में हो जायेगा। बाबा का पार्ट शान्तिधाम में होगा। पार्ट का रील भरा हुआ है ना, हमारा प्रारब्ध का पार्ट, बाबा का शान्तिधाम का पार्ट। देने और लेने का पार्ट पूरा हुआ, ड्रामा ही पूरा हुआ। फिर हम राज्य करने आयेंगे, वह पार्ट चेंज होगा। ज्ञान स्टाप हो जायेगा, हम वह बन जायेंगे। पार्ट ही पूरा तो बाकी फर्क नहीं रहेगा। बच्चे और बाप का भी पार्ट नहीं रहेगा। यह भी ज्ञान को पूरा ले लेते हैं। उनके पास भी कुछ रहता ही नहीं है। न देने वाले पास रहे, न लेने वाले में कमी रही तो दोनों एक दो के समान हो गये। इसमें विचार सागर मंथन करने की बुद्धि चाहिए। खास पुरुषार्थ है याद की यात्रा का। बाप बैठ समझाते हैं। सुनाने में तो मोटी बात हो जाती है, बुद्धि में तो सूक्ष्म है ना। अन्दर में जानते हैं शिव बाबा का रूप क्या है। समझाने में मोटा रूप हो जाता है। भक्ति मार्ग में बड़ा लिंग बना देते हैं। आत्मा है तो छोटी ना। यह है कुदरत। कहाँ तक अन्त पायेंगे? फिर पिछाड़ी में बेअन्त कह देते। बाबा ने समझाया है सारा पार्ट आत्मा में भरा हुआ है। यह कुदरत है। अन्त नहीं पाया जा सकता। सृष्टि चक्र का अन्त तो पाते हैं। रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त को तुम ही जानते हो। बाबा नॉलेजफुल है। फिर हम भी फुल हो जायेंगे। पाने लिये कुछ रहेगा नहीं। बाप इसमें प्रवेश कर पढ़ाते हैं। वह है बिन्दी। आत्मा का वा परमात्मा का साक्षात्कार होने से खुशी थोड़ेही होती है। मेहनत कर बाप को याद करना है तो विकर्म विनाश होंगे। बाप कहते हैं मेरे में ज्ञान बन्द हो जायेगा तो तेरे में भी बन्द हो जायेगा। नॉलेज ले ऊंच बन जाते हैं। सभी कुछ ले लेते हैं फिर भी बाप तो बाप है ना। तुम आत्मायें आत्मा ही रहेंगे, बाप होकर तो नहीं रहेंगे। यह तो ज्ञान है। बाप बाप है, बच्चे बच्चे हैं। यह सभी विचार सागर मंथन कर डीप में जाने की बातें हैं। यह भी जानते हैं जाना तो सभी को है। सभी चले जाने वाले हैं। बाकी आत्मा जाकर रहेगी। सारी दुनिया ही खत्म होनी है। इसमें निडर रहना होता है। पुरुषार्थ करना है निडर हो रहने का। शरीर आदि का कोई भी भान न आवे। उसी अवस्था में जाना है। बाप आप समान बनाते हैं, तुम बच्चे भी आप समान बनाते रहते हो। एक बाप की ही याद रहे ऐसा पुरुषार्थ करना है। अभी टाइम पड़ा है। यह रिहर्सल तीखी करनी पड़े। प्रैक्टिस नहीं होगी तो खड़े हो जायेंगे। टांगे थिरकने लग पड़ेगी और हार्ट फेल अचानक होता रहेगा। तमोप्रधान शरीर को हार्टफेल होने में देरी थोड़ेही लगती है। जितना अशरीरी होते जायेंगे, बाप को याद करते रहेंगे उतना नज़दीक आते जायेंगे। योग वाले ही निडर रहेंगे। योग से शक्ति मिलती है, ज्ञान से धन मिलता है। बच्चों को चाहिए शक्ति। तो शक्ति पाने लिये बाप को याद करते रहो। बाबा है अविनाशी सर्जन। वह कब पेशेन्ट बन न सके। अभी बाप कहते हैं तुम अपनी अविनाशी दवाई करते रहो। हम ऐसी संजीवनी बूटी देते हैं जो कब कोई बीमार न पड़े। सिर्फ पतित-पावन बाप को याद करते रहो तो पावन बन जायेंगे। देवतायें सदैव निरोगी पावन हैं ना। बच्चों को यह तो निश्चय हो गया है हम कल्प कल्प वर्सा लेते हैं। इम्मेमोरियल टाइम बाप आया है जैसे अभी आया है। बाबा जो सिखलाते, समझाते हैं यही राजयोग है। वह गीता आदि सभी भक्ति मार्ग के हैं। यह ज्ञान मार्ग बाप ही बताते हैं। बाप ही आकर नीचे से ऊपर उठाते हैं। जो पक्के निश्चय बुद्धि हैं वही माला का दाना बनते हैं। बच्चे समझते हैं भक्ति करते करते हम नीचे गिरते आये हैं। अभी बाप आकर सच्ची कमाई कराते हैं। लौकिक बाप इतनी कमाई नहीं कराते जितनी पारलौकिक बाप कराते हैं। अच्छा बच्चों को गुडनाईट और नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार माया पहलवान बन सामने आयेगी, उससे डरना नहीं है। मायाजीत बनना है। कदम-कदम श्रीमत पर चल अपने ऊपर आपेही कृपा करनी है। बाप को अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल बताना है। ट्रस्टी होकर रहना है। चलते-फिरते याद का अभ्यास करना है। वरदान:- अपने स्वरूप द्वारा भक्तों को लाइट के क्राउन का साक्षात्कार कराने वाले इष्ट देव भव जबसे आप बाप के बच्चे बने, पवित्रता की प्रतिज्ञा की तो रिटर्न में लाइट का ताज प्राप्त हो गया। इस लाइट के ताज के आगे रत्न जड़ित ताज कुछ भी नहीं है। जितना-जितना संकल्प, बोल और कर्म में प्योरिटी को धारण करते जायेंगे उतना यह लाइट का क्राउन स्पष्ट होता जायेगा और इष्ट देव के रूप में भक्तों के आगे प्रत्यक्ष होते जायेंगे। स्लोगन:- सदा बापदादा की छत्रछाया के अन्दर रहो तो विघ्न-विनाशक बन जायेंगे। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli today: 3 January 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's Murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Revised Date: 3 January 2021 (Sunday).Original Date: 5 October 1987.Publisher: Madhuban, Mount Abu. ................................................................................................................................................. ♫ Listen Today's Murli ➤ "The happiness, contentment and satisfactionof Brahmin life." Today, out of all His extremely beloved, long-lost and now-found Brahmin children, BapDada is especially looking at the children who are filled with the speciality of Brahmin life. Today, at amrit vela, out of all the children who are the decoration of the Brahmin clan, BapDada was selecting those special souls who have contentment, those who have always been content themselves and who have always continued to give others the experience of contentment through their vision, attitude and actions. So, today, BapDada was threading the garland with such jewels of contentment who constantly experience being showered with golden flowers of contentment from BapDada in their every thought and word, in their relationships and connections with those in the gathering and in their every action. They also constantly shower others with golden flowers of contentment. Out of all the souls everywhere, only a few such contented souls were visible. The garland that was prepared was not big; it was a small garland. While repeatedly looking at the garland of the jewels of contentment BapDada was pleased because only such jewels of contentment become the garland around BapDada's neck. They claim a right to the kingdom and also become the beads of the rosary that the devotees turn. BapDada is also looking at the other children who are sometimes content and sometimes come under the shadow of the slightest thought of discontentment and then move away from it; they don't get trapped in it. The third type of children sometimes have discontentment in their thoughts; they are sometimes discontent with themselves, sometimes discontent with adverse situations, sometimes discontent because of their own fluctuation and sometimes discontent with big and small situations. They get caught up in this cycle, then become free from it and then get trapped again. Baba still saw such a garland. So, three garlands were prepared. All are jewels, but you can also understand what the sparkle would be of those who are jewels of contentment and what that would be of those who are the other two types of jewel would be. While repeatedly looking at the three garlands, Father Brahma was pleased and, at the same time, trying to bring the jewels of the second number garland into the first number garland. A heart-to-heart conversation was taking place, because some beads of the second garland were deprived of being in the first garland,due to a slight shadow of discontentment, and they had to be transformed and somehow brought into the first garland. Whilst keeping each one's virtues, specialities and service in front of him, he only said only one thing repeatedly: Let us bring this one into the first garland. There were about 25 to 30 such jewels about whom Father Brahma was having a special heart-to-heart conversation. Father Brahma said: Let these beads also be put in the number one garland. However, he then smiled and said that the Father will definitely bring them into the first garland. There were also such special jewels. While such a heart-to-heart conversation was going on, one thing emerged as to the particular reason for discontentment. Since the special blessing of the confluence age is contentment, why do souls who have attained this blessing from the Bestower of Blessings come into the second garland? The seed of contentment is to have all attainments. The seed of discontentment is a lack of some physical or subtle attainment. Since it is remembered of Brahmins that nothing is lacking in the treasure-store or the lives of Brahmins, why is then there discontentment? Is it that the Bestower of Blessings has made a difference in the blessings He gives or have those who have been given the blessings made a difference in what they take? What happened? The treasure-store of the Bestower of Blessings and the Bestower is full. It is so full that your dynasty lasts for 21 births, that is, the dynasty of the elevated instrument souls who have become BKs over a long period of time, and also the dynasty of the devotees continue to move on the basis of these attainments. When there is such great attainment, why would there be discontentment? Everyone has attained the same limitless treasures from the One, at the same time and through the same method. However, you don't use the treasures you have attained all the time, that is, you don't keep them in your awareness. You become happy when speaking about them, but you are not happy in your heart. There is happiness intellectually but not in the heart. What is the reason? You don't use the treasures of attainment as an embodiment of that awareness. You are aware of them but you don't become an embodiment of that awareness. The attainment is unlimited but you sometimes make it limited and, because of this, your desire for some limited attainment deprives you of the experience of constant contentment, which is the result of unlimited attainment. Limited attainment puts limitations on your heart. This is why you experience discontentment. You then bring limitations into service because the fruit of limited desires is that you don't attain the fruit you want. The fruit of limited desires only brings fulfillment for a temporary period. This is why there is sometimes contentment and at other times discontentment. Limitations do not allow you to experience unlimited intoxication. Therefore, especially check whether you have contentment of the mind, that is, contentment with yourself and contentment with others. The sign of contentment in souls is that they will be content in their minds, in their hearts, with everyone, with the Father and with the drama. Waves of satisfaction will also be visible in their minds and bodies, regardless of whether any adverse situation arises, whether any souls come to oppose them to settle their karmic accounts, or whether some physical suffering of karma comes to the body. Because souls who are free from limited desires are content, they will be visible as stars sparkling with the sparkle of satisfaction. Those who are satisfied will never ask questions in any situation. When they are satisfied, they have no questions. The sign of those who are satisfied is that they are always altruistic and always feel that everyone is blameless. They do not blame anyone. They do not blame the Bestower of Fortune for creating such fortune for them; they do not blame the drama that such are their parts in the drama; they do not blame any person that his nature and sanskars are like that; they do not blame nature that the atmosphere is like that; they do not blame their bodies for their bodies being like that. To be satisfied means to be constantly altruistic and to have an attitude and vision that are free from blaming anyone. So, the speciality of the confluence age is contentment and the sign of contentment is satisfaction. This is the special attainment of Brahmin life. If you do not have contentment and satisfaction, then you haven't taken the benefit of Brahmin life. The happiness of Brahmin life is contentment and satisfaction. If you lead a Brahmin life but do not experience the happiness of that, then, are you only a Brahmin in name or are you a Brahmin who is an embodiment of attainment? So, BapDada is reminding all of you Brahmin children: You have become Brahmins and that is great fortune. However, the inheritance and property of Brahmin life is contentment and the personality of Brahmin life is satisfaction. Never deprive yourself of this experience. You have a right to it. Since the Bestower and the Bestower of Blessings gives you the treasures of attainment with an open heart, since He has already given these to you, then you have to experience your property and personality fully. And also enable others to experience them. Do you understand? Each one of you can ask yourself: In which number garland am I? You are all in a garland but in which number garland are you? Achcha. Today, it is the turn of the Rajasthan and UP groups. Rajasthan means those with the sanskars of a kingdom (of ruling), those who put the sanskars of ruling into their every thought and form in a practical way, that is, those who reveal them. This is what it is to be a resident of Rajasthan. You are like this, are you not? You don't sometimes become subjects, do you? If you are influenced, you would be called subjects; if you are the master then you are the king. Let it not be that you are sometimes the king and sometimes the subject; no. Always have in your awareness the sanskars of ruling naturally. Such children who are residents of Rajasthan have a special importance. Everyone always regards a king with elevated vision, and they would always give the king a high position. A king would always sit on a throne and the subjects would sit below him. So, the souls from Rajasthan with the sanskars of ruling are those who always stay in the high position of a high stage. Have you become like that or are you becoming that? You have become that and you definitely have to become complete. The praise of Rajasthan is no less. The headquarters of this establishment is in Rajasthan. So, you are elevated, are you not? You are high in name and high in your task. The children of such a land of kings (Rajasthan) have come to their home. Do you understand? The land of UP is especially remembered as a pure land. The River Ganges that purifies everyone is also there and, in terms of devotion, the land of Krishna is also in UP. There is a lot of praise of that land. If anyone wants to see the divine activities of Krishna or his birthplace they go to UP. So the speciality of those from UP is to be constantly pure and to make others pure. Just as the Father's praise is that He is the Purifier, so the praise of those from UP is the same as the Father's. You are purifier souls. The star of fortune is sparkling. There is praise of such a fortunate place and stage. "Always pure" is the praise of your stage. So, do you consider yourselves to be fortunate in this way? You are those who are always happy. Seeing your fortune, always remain cheerful. Remain cheerful yourselves and continue to make others cheerful, because a cheerful face is a face that automatically attracts. It is the same as a physical river that draws people to itself. Pilgrims are pulled to go there. No matter how many difficulties they have to face, they are still pulled by the attraction of becoming pure. So, the memorial of the task of making others pure is in UP. Similarly, also become cheerful and an image that attracts. Do you understand? The third group is of double foreigners. Double foreigners means those who attract the Father who is always the Foreigner, because you are equal. The Father is from a foreign land and you are also from foreign lands. There is love for your equals. Friends are loved even more than parents. So double foreigners are like the Father: always beyond bodies and the attraction of bodies. You are foreigners, bodiless and avyakt. So, the Father is pleased to see His children who are equal to Him, those who are bodiless and have the avyakt stage. You are racing well. You are racing well in doing service, in using various facilities and various methods to move forward. You adopt the methods and also make progress. This is why BapDada is giving all the double-foreign children from everywhere many congratulations for service and also reminding you all to be aware of self-progress. Always continue to fly with the flying stage of your self-progress. You always have a right to receive blessings from the Father by having a balance of your ow self-progress and progress in service, and you will always have this right. Achcha. The fourth group that remainsis the Madhuban residents. They are always here. Those who are in the heart are at the hearth. Those who are at the hearth are in the heart. Madhuban is where the maximum Brahma Bhojan is prepared in the right way with discipline. Those from Madhuban are the most beloved, long-lost and now-found ones. All the functions take place in Madhuban. It is those from Madhuban who listen to most of the murlis directly. So, the residents of Madhuban are those who always have a right to elevated fortune. You serve from your hearts. This is why Madhuban residents continue to receive blessings from BapDada and all the Brahmins from their hearts. Achcha. To all of BapDada's special jewels of contentment who have come from everywhere, special love and remembrance from BapDada. As well as that, to the few fortunate souls out of multimillions and to the handful of souls from those few long-lost and now-found souls who have attained the Brahmin life, to the souls who fulfil BapDada's pure thoughts, to the souls who attain the complete right to the property of the confluence-aged Brahmin life, please accept lots and lots of love and remembrance from BapDada, the Bestower of Fortune and the Bestower of Blessings. Dadi Janki and Dadi Chandermani taking leave from BapDada to go on service: Are you going or are you merging Baba in yourselves? Whether you are going or coming, you are always merged. BapDada never sees the special children as separate. Whether in a subtle or a physical form, you are always with Baba, because it is only the mahavir children who fulfil the promise of being with the Father at every moment and of going back with Him. Very few fulfil this promise. This is why wherever such especially beloved mahavir children go, they take the Father with them and the Father always keeps them with Him in the subtle region. He gives His company at every step. Therefore, what would you say? Are you going or coming? This is why Baba asked whether you are going or merging Baba in you. By always staying combined in this way, you will become equal and become merged. You will rest at home for a short while and stay with the Father and will then rule the kingdom, while the Father watches from up above, but you experience the companionship of His company for a short time. Achcha. (Baba, today, you created a wonderful garland.) You people also create a garland, do you not? The garland is still small; a big one will be created. Those who have now become a little unconscious will be brought back into consciousness by nature or time in a short while. The garland will then become big. Achcha. Wherever you go, you have already received blessings from the Father. Everyone will continue to receive blessings from the Father through your every step. When you look at them, they will take the Father's blessings through your drishti. When you speak, they will take blessings through your words and they will also take blessings through your actions. You are going to shower blessings on them as you walk and move. All the souls that are coming now need blessings and the great donation. For you to go means for them to be given the Father's blessings with an open heart. Achcha. Blessing: May you be an invaluable jewel who spends every second and every thought in an invaluable way. Even one second of the confluence age has great value. Just as you receive one hundred thousand in return for one, in the same way, if even one second is wasted, then one hundred thousand are wasted. So, pay this much attention and finish all carelessness. There is at present no one to account for anything, but after some time, there will be repentance, because this time has a lot of value. Those who use their every second and every thought in an invaluable way become invaluable jewels. Slogan: Those who are always yogyukt experience receiving co-operation and become victorious jewels. --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 3 January 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की अव्यक्त मुरली। Revised Date: 3 January 2021 (Sunday).Original Date: 5 October 1987 बापदादा, मधुबन।Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. (Official Murli blog~ listen + read daily murlis). ➤ जरूर पढ़े: मुरली का महत्त्व ♫ मुरली सुने ➤ ब्राह्मण जीवन का सुख - सन्तुष्टता व प्रसन्नता आज बापदादा चारों ओर के अपने अति लाडले, सिकीलधे ब्राह्मण बच्चों में से विशेष ब्राह्मण जीवन की विशेषता सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। आज अमृतवेले बापदादा सर्व ब्राह्मण कुल बच्चों में से उन विशेष आत्माओं को चुन रहे थे जो सदा सन्तुष्टता द्वारा स्वयं भी सदा सन्तुष्ट रहे हैं और औरों को भी सन्तुष्टता की अनुभूति अपनी दृष्टि, वृत्ति और कृति द्वारा सदा कराते आये हैं। तो आज ऐसी सन्तुष्टमणियों की माला पिरो रहे थे जो सदा संकल्प में, बोल में, संगठन के सम्बन्ध-सम्पर्क में, कर्म में सन्तुष्टता के गोल्डन पुष्प बापदादा द्वारा अपने ऊपर बरसाने का अनुभव करते और सर्व प्रति सन्तुष्टता के गोल्डन पुष्पों की वर्षा सदा करते रहते हैं। ऐसी सन्तुष्ट आत्मायें चारों ओर में से कोई-कोई नज़र आई। माला बड़ी नहीं बनी, छोटी-सी माला बनी। बापदादा बार-बार सन्तुष्टमणियों की माला को देख हर्षित हो रहे थे क्योंकि ऐसी सन्तुष्टमणियाँ ही बापदादा के गले का हार बनती है, राज्य अधिकारी बनती है और भक्तों के सिमरण की माला बनती हैं। बापदादा और बच्चों को भी देख रहे थे जो कभी सन्तुष्ट और कभी असन्तुष्ट के संकल्प-मात्र छाया के अन्दर आ जाते हैं और फिर निकल आते हैं, फँस नहीं जाते। तीसरे बच्चे कभी संकल्प की असन्तुष्टता, कभी स्वयं की स्वयं से असन्तुष्टता, कभी परिस्थितियों द्वारा असन्तुष्टता, कभी स्वयं की हलचल द्वारा असन्तुष्टता और कभी छोटी-बड़ी बातों से असन्तुष्टता - इसी चक्र में चलते और निकलते और फिर फँसते रहते। ऐसी माला भी देखी। तो तीन मालायें तैयार हुई। मणियां तो सभी हैं लेकिन सन्तुष्टमणियों की झलक और दूसरे दो प्रकार के मणियों की झलक क्या होगी, यह तो आप भी जान सकते हो। ब्रह्मा बाप बार-बार तीनों मालाओं को देखते हुए हर्षित भी हो रहे थे, साथ-साथ प्रयत्न कर रहे थे कि दूसरे नम्बर की माला की मणियाँ पहली माला में आ जाएं। रूह-रिहान चल रही थी क्योंकि दूसरी माला की कोई-कोई मणि बहुत थोड़ी-सी असन्तुष्टता की छाया-मात्र के कारण पहली माला से वंचित रह गयी है, इसको परिवर्तन कर कैसे भी पहली माला में लावें। एक-एक के गुण, विशेषतायें, सेवा - सबको सामने लाते बार-बार यही बोले कि इसको पहली माला में कर लें। ऐसी 25-30 के करीब मणियाँ थी जिनके ऊपर ब्रह्मा बाप की विशेष रूह-रिहान चल रही थी। ब्रह्मा बाप बोले - पहले नम्बर माला में इन मणियों को भी डालना चाहिए। लेकिन फिर स्वयं ही मुस्कराते हुए यही बोले कि बाप इन्हों को अवश्य पहली में लाकर ही दिखायेंगे। तो ऐसी विशेष मणियाँ भी थी। ऐसे रूह-रिहान चलते हुए एक बात निकली कि असन्तुष्टता का विशेष कारण क्या है? जबकि संगमयुग का विशेष वरदान सन्तुष्टता है, फिर भी वरदाता से वरदान प्राप्त वरदानी आत्मायें दूसरे नम्बर की माला में क्यों आती? सन्तुष्टता का बीज सर्व प्राप्तियाँ हैं। असन्तुष्टता का बीज स्थूल वा सूक्ष्म अप्राप्ति है। जब ब्राह्मणों का गायन है - ‘अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में अथवा ब्राह्मणों के जीवन में', फिर असन्तुष्टता क्यों? क्या वरदाता ने वरदान देने में अंतर रखा वा लेने वालों ने अन्तर कर लिया, क्या हुआ? जब वरदाता, दाता के भण्डार भरपूर हैं, इतने भरपूर हैं जो आपके अर्थात् श्रेष्ठ निमित्त आत्माओं के जो बहुतकाल के ब्रह्माकुमार/ब्रह्माकुमारी बन गये, उन्हों की 21 जन्मों की वंशावली और फिर उनके भक्त, भक्तों की भी वंशावली, वो भी उन प्राप्तियों के आधार पर चलते रहेंगे। इतनी बड़ी प्राप्ति, फिर भी असन्तुष्टता क्यों? अखुट खजाना सभी को प्राप्त है - एक ही द्वारा, एक ही जैसा, एक ही समय, एक ही विधि से। लेकिन प्राप्त हुए खजाने को हर समय कार्य में नहीं लगाते अर्थात् स्मृति में नहीं रखते। मुख से खुश होते हैं लेकिन दिल से खुश नहीं होते। दिमाग की खुशी है, दिल की खुशी नहीं। कारण? प्राप्तियों के खजानों को स्मृति स्वरूप बन कार्य में नहीं लगाते। स्मृति रहती है लेकिन स्मृतिस्वरूप में नहीं आते। प्राप्ति बेहद की है लेकिन उनको कहाँ-कहाँ हद की प्राप्ति में परिवर्तन कर लेते हो। इस कारण हद अर्थात् अल्पकाल की प्राप्ति की इच्छा, बेहद की प्राप्ति के फलस्वरूप जो सदा सन्तुष्टता की अनुभूति हो, उससे वंचित कर देती है। हद की प्राप्ति दिलों में हद डाल देती है इसलिए असन्तुष्टता की अनुभूति होती है। सेवा में हद डाल देते हैं क्योंकि हद की इच्छा का फल मन इच्छित फल नहीं प्राप्त होता। हद की इच्छाओं का फल अल्पकाल की पूर्ति वाला होता है इसलिए अभी-अभी सन्तुष्टता, अभी-अभी असन्तुष्टता हो जाती है। हद, बेहद का नशा अनुभव कराने नहीं देता इसलिए, विशेष चेक करो कि मन की अर्थात् स्वयं की सन्तुष्टता, सर्व की सन्तुष्टता अनुभव होती है? सन्तुष्टता की निशानी - वह मन से, दिल से, सर्व से, बाप से, ड्रामा से सन्तुष्ट होंगे; उनके मन और तन में सदा प्रसन्नता की लहर दिखाई देगी। चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाए, चाहे कोई आत्मा हिसाब-किताब चुक्तू करने वाली सामना करने भी आती रहे, चाहे शरीर का कर्म-भोग सामना करने आता रहे लेकिन हद की कामना से मुक्त आत्मा सन्तुष्टता के कारण सदा प्रसन्नता की झलक में चमकता हुआ सितारा दिखाई देगी। प्रसन्नचित्त कभी कोई बात में प्रश्नचित्त नहीं होंगे। प्रश्न हैं तो प्रसन्न नहीं। प्रसन्नचित्त की निशानी - वह सदा नि:स्वार्थी और सदा सभी को निर्दोष अनुभव करेगा; किसी और के ऊपर दोष नहीं रखेगा - न भाग्यविधाता के ऊपर कि मेरा भाग्य ऐसा बनाया, न ड्रामा पर कि मेरा ड्रामा में ही पार्ट ऐसा है, न व्यक्ति पर कि इसका स्वभाव-संस्कार ऐसा है, न प्रकृति के ऊपर कि प्रकृति का वायुमण्डल ऐसा है, न शरीर के हिसाब-किताब पर कि मेरा शरीर ही ऐसा है। प्रसन्नचित अर्थात् सदा नि:स्वार्थ, निर्दोष वृत्ति-दृष्टि वाले। तो संगमयुग की विशेषता सन्तुष्टता है और सन्तुष्टता की निशानी प्रसन्नता है। यह है ब्राह्मण जीवन की विशेष प्राप्ति। सन्तुष्टता नहीं, प्रसन्नता नहीं तो ब्राह्मण बनने का लाभ नहीं लिया। ब्राह्मण जीवन का सुख है ही सन्तुष्टता, प्रसन्नता। ब्राह्मण जीवन बनी और उसका सुख नहीं लिया तो नामधारी ब्राह्मण हुए वा प्राप्तिस्वरूप ब्राह्मण हुए? तो बाप-दादा सभी ब्राह्मण बच्चों को यही स्मृति दिला रहे हैं - ब्राह्मण बने, अहो भाग्य! लेकिन ब्राह्मण जीवन का वर्सा, प्रापर्टी सन्तुष्टता है। और ब्राह्मण जीवन की पर्सनाल्टी ‘प्रसन्नता' है। इस अनुभव से कभी वंचित नहीं रहना। अधिकारी हो। जब दाता, वरदाता खुली दिल से प्राप्तियों का खजाना दे रहे हैं, दे दिया है तो खूब अपनी प्रापर्टी और पर्सनाल्टी को अनुभव में लाओ, औरों को भी अनुभवी बनाओ। समझा? हर एक अपने से पूछे कि मैं किस नम्बर की माला में हूँ? माला में तो है ही लेकिन किस नम्बर की माला में हूँ। अच्छा। आज राजस्थान और यू.पी. ग्रुप है। राजस्थान अर्थात् राजाई संस्कार वाले, हर संकल्प में, स्वरूप में राजाई संस्कार प्रैक्टिकल में लाने वाले अर्थात् प्रत्यक्ष दिखाने वाले। इसको कहते हैं राजस्थान निवासी। ऐसे हो ना? कभी प्रजा तो नहीं बन जाते हो ना? अगर वशीभूत हो गये तो प्रजा कहेंगे, मालिक हैं तो राजा। ऐसे नहीं कि कभी राजा, कभी प्रजा। नहीं। सदा राजाई संस्कार स्वत: ही स्मृति-स्वरूप में हों। ऐसे राजस्थान निवासी बच्चों का महत्व भी है। राजा को सदैव सभी ऊंची नज़र से देखेंगे और स्थान भी राजा को ऊंचा देंगे। राजा सदैव तख्त पर बैठेगा, प्रजा सदैव नीचे। तो राजस्थान के राजाई संस्कार वाली आत्मायें अर्थात् सदा ऊंची स्थिति के स्थान पर रहने वाले। ऐसे बन गये हो वा बन रहे हो? बने हैं और सम्पन्न बनना ही है। राजस्थान की महिमा कम नहीं है। स्थापना का हेडक्वार्टर ही राजस्थान में है। तो ऊंचे हो गये ना। नाम से भी ऊंचे, काम से भी ऊंचे। ऐसे राजस्थान के बच्चे अपने घर में पहुँचे हैं। समझा? यू.पी. की भूमि विशेष पावन-भूमि गाई हुई है। पावन करने वाली भक्तिमार्ग की गंगा नदी भी वहाँ है और भक्ति के हिसाब से कृष्ण की भूमि भी यू.पी. में ही है। भूमि की महिमा बहुत है। कृष्ण लीला, जन्मभूमि देखनी होगी तो भी यू.पी. में ही जायेंगे। तो यू.पी. वालों की विशेषता है। सदा पावन बन और पावन बनाने की विशेषता सम्पन्न हैं। जैसे बाप की महिमा है पतित पावन... यू.पी. वालों की भी महिमा बाप समान है। पतित-पावनी आत्मायें हो। भाग्य का सितारा चमक रहा है। ऐसे भाग्यवान स्थान और स्थिति - दोनों की महिमा है। सदा पावन - यह है स्थिति की महिमा। तो ऐसे भाग्यवान अपने को समझते हो? सदा अपने भाग्य को देख हर्षित होते स्वयं भी सदा हर्षित और दूसरों को हर्षित बनाते चलो क्योंकि हर्षित-मुख स्वत: ही आकर्षित-मूर्त होते हैं। जैसे स्थूल नदी अपने तरफ खींचती है ना, खींचकर यात्री जाते हैं। चाहे कितना भी कष्ट उठाना पड़े, फिर भी पावन होने का आकर्षण खींच लेता है। तो यह पावन बनाने के कार्य का यादगार यू.पी. में है। ऐसे ही हर्षित और आकर्षित-मूर्त बनना है। समझा? तीसरा ग्रुप डबल विदेशियों का भी है। डबल विदेशी अर्थात् सदा विदेशी बाप को आकर्षित करने वाले, क्योंकि समान हैं ना। बाप भी विदेशी है, आप भी विदेशी हो। हमशरीक प्यारे होते हैं। माँ-बाप से भी फ्रैन्डस ज्यादा प्यारे लगते हैं। तो डबल विदेशी बाप समान सदा इस देह और देह के आकर्षण से परे विदेशी हैं, अशरीरी हैं, अव्यक्त हैं। तो बाप अपने समान अशरीरी, अव्यक्त स्थिति वाले बच्चों को देख हर्षित होते हैं। रेस भी अच्छी कर रहे हैं। सेवा में भिन्न-भिन्न साधन और भिन्न-भिन्न विधि से आगे बढ़ने की रेस अच्छी कर रहे हैं। विधि भी अपनाते और वृद्धि भी कर रहे हैं इसलिए, बापदादा चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों को सेवा की बधाई भी देते और स्व के वृद्धि की स्मृति भी दिलाते हैं। स्व की उन्नति में सदा उड़ती कला द्वारा उड़ते चलो। स्वउन्नति और सेवा की उन्नति के बैलेन्स द्वारा सदा बाप के ब्लैसिंग के अधिकारी हैं और सदा रहेंगे। अच्छा। चौथा ग्रुप है बाकी मधुबन निवासी। वह तो सदा हैं ही। जो दिल पर सो चुल पर, जो चुल पर सो दिल पर। सबसे ज्यादा विधिपूर्वक ब्रह्माभोजन भी मधुबन में होता। सबसे सिकीलधे भी मधुबन निवासी हैं। सब फंक्शन भी मधुबन में होते। सबसे, डायरेक्ट मुरलियाँ भी, ज्यादा मधुबन वाले ही सुनते। तो मधुबन निवासी सदा श्रेष्ठ भाग्य के अधिकारी आत्मायें हैं। सेवा भी दिल से करते हैं इसलिए मधुबन निवासियों को बापदादा और सर्व ब्राह्मणों की मन से आशीर्वाद प्राप्त होती रहती है। अच्छा। चारों ओर की सर्व बापदादा की विशेष सन्तुष्टमणियों को बापदादा की विशेष यादप्यार। साथ-साथ सर्व भाग्यशाली ब्राह्मण जीवन प्राप्त करने वाले कोटों में कोई, कोई में भी कोई सिकीलधी आत्माओं को, बापदादा के शुभ संकल्प को सम्पन्न करने वाली आत्माओं को, संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की प्रापर्टी के सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त करने वाली आत्माओं को विधाता और वरदाता बापदादा की बहुत-बहुत यादप्यार स्वीकार हो। "दादी जानकी जी एवं दादी चन्द्रमणि जी सेवाओं पर जाने की छुट्टी बापदादा से ले रही हैं'' जा रही हो या समा रही हो? जाओ या आओ लेकिन सदा समाई हुई हो। बापदादा अनन्य बच्चों को कभी अलग देखते ही नहीं हैं। चाहे आकार में, चाहे साकार में सदा साथ हैं क्योंकि सिर्फ महावीर बच्चे ही हैं जो यह वायदा निभाते हैं कि हर समय साथ रहेंगे, साथ चलेंगे। बहुत थोड़े यह वायदा निभाते हैं इसलिए, ऐसे महावीर बच्चे, अनन्य बच्चे जहाँ भी जाते बाप को साथ ले जाते हैं और बाप सदा वतन में भी साथ रखते हैं। हर कदम में साथ देते इसलिए जा रही हो, आ रही हो - क्या कहेंगे? इसीलिए कहा कि जा रही हो या समा रही हो। ऐसे ही साथ रहते-रहते समान बन समा जायेगी। घर में थोड़े समय के लिए रेस्ट करेंगी, साथ रहेंगी। फिर आप राज्य करना और बाप ऊपर से देखेंगे। लेकिन साथ का थोड़े समय का अनुभव करना। अच्छा। (आज बाबा आपने कमाल की माला बनाई) आप लोग भी तो माला बनाते हो ना। माला अभी तो छोटी है। अभी बड़ी बनेगी। अभी जो थोड़ा कभी-कभी बेहोश हो जाते हैं, उन्हें थोड़े समय में प्रकृति का वा समय का आवाज होश में ले आयेगा; फिर माला बड़ी बन जायेगी। अच्छा। जहाँ भी जाओ बाप के वरदानी तो हो ही। आपके हर कदम से बाप का वरदान सबको मिलता रहेगा। देखेंगे तो भी बाप का वरदान दृष्टि से लेंगे, बोलेंगे तो बोल से वरदान लेंगे, कर्म से भी वरदान ही लेंगे। चलते-फिरते वरदानों की वर्षा करने के लिए जा रही हो। अभी जो आत्मायें आ रही हैं, उनको वरदान की व महादान की ही आवश्यकता है। आप लोगों का जाना अर्थात् खुले दिल से उन्हों को बाप के वरदान मिलना। अच्छा। वरदान:- बुद्धि रूपी पांव द्वारा इस पांच तत्वों की आकर्षण से परे रहने वाले फरिश्ता स्वरूप भव फरिश्तों को सदा प्रकाश की काया दिखाते हैं। प्रकाश की काया वाले इस देह की स्मृति से भी परे रहते हैं। उनके बुद्धि रूपी पांव इस पांच तत्व की आकर्षण से ऊंचे अर्थात् परे होते हैं। ऐसे फरिश्तों को माया व कोई भी मायावी टच नहीं कर सकते। लेकिन यह तब होगा जब कभी किसी के अधीन नहीं होंगे। शरीर के भी अधिकारी बनकर चलना, माया के भी अधिकारी बनना, लौकिक वा अलौकिक संबंध की भी अधीनता में नहीं आना। स्लोगन:- शरीर को देखने की आदत है तो लाइट का शरीर देखो, लाइट रूप में स्थित रहो। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 2 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 2 January 2021 (Saturday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, to have regard for the Father’s shrimat means never to miss a murli - to obey all the instructions." Question: If you children are asked if you are happy and content, what should you reply with intoxication? Answer: Tell them: I was concerned to find the One who lives beyond in the brahm element. Now that I have found Him, what else would I want? I have attained what I wanted. You children of God are not concerned about anything else. The Father has made you belong to Him and is placing crowns on your heads. So, what do you have to be concerned about? ♫ Listen Today's Murli ➤ Om Shanti. The Father says that it definitely has to be in the intellects of you children that Baba is the Father, the Teacher and the Supreme Guru. You must definitely remember this. No one else can teach you this remembrance. Only the Father comes and teaches you this every cycle. Only He is the Ocean of Knowledge and the Purifier. He is the Father, the Teacher and the Guru. Now that you have each received a third eye of knowledge, you understand this. Although you children understand this, some forget the Father, and so how could they remember the Teacher or the Guru? Maya is so powerful that, even though you know the praise of His three forms, she makes you forget all three of them; she is such an almighty authority! Children also write: Baba, we forget! Maya is so powerful! According to the drama, this is very easy. You children understand that there can never be anyone else like Him. He is the Father, the Teacher and the Satguru. He really is this; it is not a tall story. You should have this understanding inside you, but Maya makes you forget. Some say that they are defeated. So, how could they accumulate multimillions at every step? The deities are portrayed with the symbol of a lotus. This cannot be given to everyone. This study is taught by God, not by human beings. This study can never be taught by human beings. Although the deities are praised, only the one Father is the Highest on High. How could there be extra praise for them since today they have a "donkey-ship” and tomorrow they will have the kingdom? You are now making effort to become like them (Lakshmi and Narayan). You know that many have failed in their efforts. Only those who passed in the previous cycle are studying now. In fact, this knowledge is very easy but Maya makes you forget it. The Father says: Write your chart! However, you are not able to do this. For how long would you sit and write? When you do sit down to write it, you have to check whether you stayed in remembrance for two hours. Then it can also be seen whether you are following the Father’s shrimat by putting it into practise. The Father would understand that, perhaps, such poor, hopeless children are ashamed! Otherwise, shrimat would be put into practice. However, hardly two percent write their charts. Children don't have that much regard for shrimat. Even though they receive murlis, they don't study them. Their hearts must definitely be pinching them that Baba really is speaking the truth. If I don't study the murli, what can I explain to others? (The pilgrimage of remembrance.) Om shanti. The spiritual Father explains to the spiritual children. You children understand that we truly are souls and that the Supreme Father, the Supreme Soul, is teaching us. What else does He say? Remember Me and you will become the masters of heaven! The Father, the study and the Teacher are all included in this. Even the Bestower of Salvation is included in this. All the knowledge is merged in a few words. You come here to revise this. It is only because you yourselves say that you forget that the Father explains this. That is why you come here and revise it. Even though some are living here, they are unable to revise it. It is not in their fortune! The Father inspires you to make effort. Only the one Father inspires you to make effort. There can be no favouritism in this; nor is there a special study. In a worldly study, they employ a teacher especially to give private tuition. That One teaches everyone the same to create their fortune. To what extent would that Teacher teach each one privately? There are so many children! In a worldly study, some students are children of important people and so they are taught privately. Their teacher can understand that someone is a dull student and that he would therefore make him worthy of claiming a scholarship. That Father does not do this. That One teaches everyone the same. Other teachers inspire you to make extra effort. That One doesn't ask any individual to make extra effort. To help someone make extra effort means that his teacher would have special mercy for him, although the teacher might be paid to make special time for teaching the student through which he could become clever. Here, though, there is no question of extra study; there is no question of it at all. He gives you just the one great mantra: Manmanabhav! You understand what happens through remembrance. You understand that the Father is the Purifier. You know that by remembering Him you will become pure. You children now have knowledge. The more remembrance you have, the purer you will become. The less remembrance you have, the less pure you will become. It all depends on the efforts of you children. We have to become Lakshmi and Narayan by remembering the unlimited Father. Everyone knows their praise. It is said: You are charitable souls and we are sinful souls. So many temples have been built to them. What do people go there for? There is no benefit in just having a glimpse. On seeing others going to the temples, they also go. They simply go there to have a glimpse. Some say: So-and-so is going on a pilgrimage and I want to go too. What will happen through that? Nothing at all! You children have also been on pilgrimages. Just as they celebrate all the festivals, so they consider a pilgrimage to be a festival too. You now consider the pilgrimage of remembrance to be a festival. You stay on the pilgrimage of remembrance. There is just the one word: Manmanabhav! This pilgrimage of yours is eternal. They also say that they have been going on pilgrimages eternally. However, you have the knowledge to tell them that you go on this pilgrimage every cycle. Only the Father comes and teaches this pilgrimage. They go on pilgrimage to the four main pilgrimage places for birth after birth. The unlimited Father says: Remember Me and you will become pure! No one else can say that you can become pure by going on a pilgrimage. When people go on a pilgrimage, they remain pure. Nowadays, everything there is so dirty! They don't remain pure. No one knows about this spiritual pilgrimage. The Father has now told you that this remembrance is the only true pilgrimage. Those people go on a pilgrimage and then, when they return, they become the same as they were. They continue to go around and around. Just as Vasco de Gama went around the world, so they also go around. There is the song: We went around everywhere and yet remained very far away from You. No one on the path of devotion can enable you to attain Him. No one has found God; they have remained distant from God. They go on their pilgrimages and then, when they return home, they get trapped in the five vices. All of those pilgrimages are false. You children now understand that this is the most elevated confluence age when the Father comes. One day, everyone will come to know that the Father has come. It is said: "Ultimately, you attain God." But how? No one knows this. You sweetest children understand that you are once again making Bharat into heaven by following shrimat. You only mention the name Bharat. At that time there are no other religions. The whole world becomes pure. There are now innumerable religions. The Father comes and tells you the knowledge of the whole tree. He reminds you of this. You were deities and you became warriors, then merchants and then shudras. You have now become Brahmins. The Father gives you such an easy explanation of "Hum so" (I am what I was). Om means "I, a soul” and it is I, a soul, who goes around the cycle. Those people say that I, a soul, am the Supreme Soul and that the Supreme Soul is each soul. Not a single one of them knows the accurate meaning of "Hum so". The Father says: Constantly remember this mantra! If you don't have the cycle in your intellects, how can you become the rulers of the globe? We souls have now become Brahmins and will then become deities. You can go and ask anyone this and no one will be able to tell you the answer. They don't even understand the meaning of 84 births. "The rise and fall of Bharat” has been remembered. That is fine! You children now understand everything about the stages of satopradhan, sato, rajo, tamo, the sun dynasty, the moon dynasty, the merchant dynasty. Only the Father, who is the Seed, is called the Ocean of Knowledge. He doesn't enter this cycle. It isn't that we souls become Supreme Souls; no! The Father makes us equal to Himself in being knowledge-full. He doesn't make us into God, like Himself. These things have to be understood very clearly because only then will you be able to turn the cycle around in your intellect. This is called the discus of self-realisation. By using your intellect, you can understand how you enter the cycle of 84 births. Everything is included in this. The time, the clans and the dynasties are also all included in this. You children should have all of this knowledge in your intellects. It is only through knowledge that you receive a high status. When you have knowledge, you can also give it to others. You aren’t made to take any exam papers here. In other schools their exam papers come from abroad. The results of those who study abroad are given to them abroad. There, too, they must have an important education minister to have the papers checked. Who checks your papers? You yourselves would do that. You can make yourself into whatever you want. You can claim from the Father whatever status you want by making effort. At the exhibitions, you children ask them: What will you become? A deity, a barrister, or something else? To the extent that you remember the Father and do service, accordingly you will receive the fruit of that. Those who remember the Father very well can also understand that they have to do service. Subjects have to be created. A kingdom is being established, and so all kinds are needed for that. There are no advisers there. Only those who have less wisdom need advisers. There, you don't need to have any advice. Some come to ask Baba for His advice. They ask for advice about gross things. "What should we do with our money”? "How should we carry on with our business?” Baba says: Don't bring those worldly matters to the Father. He sometimes gives a little support to some children so that they don't become disheartened. That is not My business. My business is the Godly business of showing you the path and how you can become the masters of the world. You are receiving shrimat whereas all the rest are devilish dictates. In the golden age there are elevated directions. In the iron age there are devilish dictates. That is the land of happiness. There you won't need to ask: Are you happy and content? Is your health OK? Such questions don't exist there. Such questions are asked here: You don't have any difficulty, do you? Are you happy and content? Many things are also included in this. There is no sorrow there that you would need to ask this. This is the world of sorrow. In fact, no one should ask you these questions. Although Maya makes you fall, you have still found the Father. You should reply: Why are you are asking me about my welfare? We are God’s children. Therefore, why should you ask us about our welfare? I was concerned to find the One who resides beyond, in the brahm element. Now that I have found Him, what else would I be concerned about? Always remember whose children you are! Your intellects have the knowledge that, the war will begin when you become pure. Therefore, when they ask you whether you are happy and content, tell them: We are always happy and content. Even though you may be ill, you still remain in remembrance of the Father. You are happier and even more content here than you are in the golden age. Since you have found the Father who makes you so worthy and gives you the sovereignty of heaven, why should you have any concern? What concern would the children of God have? Even there, the deities have no concern. Therefore, as God is higher than the deities, how can the children of God have any concerns? Baba is teaching us! He is our Teacher and Satguru. Baba is placing crowns on our heads. We are becoming those who are crowned. You know how you receive the crown of the world. The Father doesn't place it on you. You know that, in the golden age, the father places his crown on the head of his son who, in English, is called the Crown Prince. Here, unless the father places the crown on the head of his son, the son is impatient for his father to die, so that he can receive the crown. He wants to become an emperor from a prince. Such things don't exist there. According to the system there, the father places the crown on his son’s head and steps away in his own time. There is no talk of the stage of retirement there. He builds palaces for his children and fulfils all their desires. You can understand that there is only happiness in the golden age. You will receive all happiness in a practical way when you go there. Only you understand what will exist in heaven. Where do you go when you shed your bodies? The Father is now teaching you in a practical way. You know that you really will go to heaven! They say that they are going to heaven, but they don't know what heaven is. For birth after birth, you have been listening to things of ignorance. The Father is now telling you the truth. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli In order to remain constantly happy and content, stay in remembrance of the Father. Put the crown of the kingdom on yourself by studying. Serve Bharat to make it into heaven by following shrimat. Always have regard for shrimat. Blessing: May you be a soul who does subtle service and sees the practical proof of the power of the mind by having a connection and relationship with BapDada. Just as you can see the practical proof of the power of the mind and the power of actions, in the same way, in order to see the practical proof of the most powerful power of silence, let there constantly be a clear connection and relationship with BapDada. This is called the power of yoga. Souls with such power of yoga can give souls sitting far away the physical experience of being personally in front of them. They can invoke souls and transform them. This is subtle service and for this increase the power of concentration. Slogan:- Only those who use all their treasures in a worthwhile way are great donor souls. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 2 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 2 January 2021 (Saturday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - बाप की श्रीमत का रिगार्ड रखना माना मुरली कभी भी मिस नहीं करना, हर आज्ञा का पालन करना'' प्रश्नः- अगर तुम बच्चों से कोई पूछे राज़ी-खुशी हो? तो तुम्हें कौन-सा जवाब फ़लक से देना चाहिए? उत्तर:- बोलो - परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले की, वह मिल गया, बाकी क्या चाहिए। पाना था सो पा लिया.....। तुम ईश्वरीय बच्चों को किसी बात की परवाह नहीं। तुम्हें बाप ने अपना बनाया, तुम्हारे पर ताज रखा फिर परवाह किस बात की। ♫ मुरली सुने ➤ ओम् शान्ति। बाप समझाते हैं बच्चों की बुद्धि में जरूर होगा कि बाबा - बाप भी है, टीचर भी है, सुप्रीम गुरू भी है, इसी याद में जरूर होंगे। यह याद कभी कोई सिखला भी नहीं सकते। बाप ही कल्प-कल्प आकर सिखलाते हैं। वही ज्ञान सागर पतित-पावन भी है। वह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। यह अब समझा जाता है, जबकि ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। बच्चे भल समझते तो होंगे परन्तु बाप को ही भूल जाते हैं तो टीचर गुरू फिर कैसे याद आयेगा। माया बहुत ही प्रबल है जो तीन रूप में महिमा होते हुए भी तीनों को भुला देती है, इतनी सर्वशक्तिमान् है। बच्चे भी लिखते हैं बाबा हम भूल जाते हैं। माया ऐसी प्रबल है। ड्रामा अनुसार है बहुत सहज। बच्चे समझते हैं ऐसा कभी कोई हो नहीं सकता। वही बाप टीचर सतगुरू है - सच-सच, इसमें गपोड़े आदि की कोई बात नहीं। अन्दर में समझना चाहिए ना! परन्तु माया भुला देती है। कहते हैं हम हार खा लेते हैं, तो कदम-कदम में पद्म कैसे होंगे! देवताओं को ही पद्म की निशानी देते हैं। सबको तो नहीं दे सकते। ईश्वर की यह पढ़ाई है, मनुष्य की नहीं। मनुष्य की यह पढ़ाई कभी हो नहीं सकती। भल देवताओं की महिमा की जाती है परन्तु फिर भी ऊंच ते ऊंच एक बाप है। बाकी उनकी बड़ाई क्या है, आज गदाई कल राजाई। अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो ऐसा (लक्ष्मी-नारायण) बनने का। जानते हो इस पुरूषार्थ में बहुत फेल होते हैं। पढ़ते फिर भी इतने हैं जितने कल्प पहले पास हुए थे। वास्तव में ज्ञान है भी बहुत सहज परन्तु माया भुला देती है। बाप कहते हैं अपना चार्ट लिखो परन्तु लिख नहीं पाते हैं। कहाँ तक बैठ लिखें। अगर लिखते भी हैं तो जांच करते हैं - दो घण्टा याद में रहे? फिर वह भी उन्हों को मालूम पड़ता है, जो बाप की श्रीमत को अमल में लाते हैं। बाप तो समझेंगे इन बिचारों को लज्जा आती होगी। नहीं तो श्रीमत अमल में लानी चाहिए। परन्तु दो परसेन्ट मुश्किल चार्ट लिखते हैं। बच्चों को श्रीमत का इतना रिगार्ड नहीं है। मुरली मिलते हुए भी पढ़ते नहीं हैं। दिल में लगता जरूर होगा - बाबा कहते तो सच हैं, हम मुरली ही नहीं पढ़ते तो बाकी औरों को समझायेंगे क्या? (याद की यात्रा) ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह तो बच्चे समझते हैं बरोबर हम आत्मा हैं, हमको परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं। और क्या कहते हैं? मुझे याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनो। इसमें बाप भी आ गया, पढ़ाई और पढ़ाने वाला भी आ गया। सद्गति दाता भी आ गया। थोड़े अक्षर में सारा ज्ञान आ जाता है। यहाँ तुम आते ही हो इसको रिवाइज करने लिए। बाप भी यही समझाते हैं क्योंकि तुम खुद कहते हो हम भूल जाते हैं इसलिए यहाँ आते हैं रिवाइज करने। भल कोई यहाँ रहते हैं तो भी रिवाइज नहीं होता है। तकदीर में नहीं है। तदबीर तो बाप कराते ही हैं। तदबीर कराने वाला एक बाप ही है। इसमें कोई की पास खातिरी भी नहीं हो सकती है। न स्पेशल पढ़ाई है। उस पढ़ाई में स्पेशल पढ़ने लिए टीचर को बुलाते हैं। यह तो तकदीर बनाने लिए सबको पढ़ाते हैं। एक-एक को अलग कहाँ तक पढ़ायेंगे। कितने ढेर बच्चे हैं। उस पढ़ाई में कोई बड़े आदमी के बच्चे होते हैं तो उन्हों को स्पेशल पढ़ाते हैं। टीचर जानते हैं कि यह डल है इसलिए उनको स्कालरशिप लायक बनाते हैं। यह बाप ऐसे नहीं करते हैं। यह तो एकरस सबको पढ़ाते हैं। वह हुआ टीचर का एक्स्ट्रा पुरुषार्थ कराना। यह तो एक्स्ट्रा पुरुषार्थ किसको अलग से कराते नहीं। एक्स्ट्रा पुरुषार्थ माना ही मास्टर कुछ कृपा करते हैं। ऐसे तो भल पैसे लेते हैं, खास टाइम दे पढ़ाते हैं जिससे वह जास्ती पढ़कर होशियार होते हैं। यहाँ तो जास्ती कुछ पढ़ने की बात है ही नहीं। इनकी तो बात ही नई है। एक ही महामन्त्र देते हैं - "मनमनाभव''। याद से क्या होता है, यह तो समझते हो बाप ही पतित-पावन है। जानते हो उनको याद करने से ही पावन बनेंगे। अब तुम बच्चों को ज्ञान है, जितना याद करेंगे उतना पावन बनेंगे। कम याद करेंगे तो कम पावन बनेंगे। यह तुम बच्चों के पुरुषार्थ पर है। बेहद के बाप को याद करने से हमको यह (लक्ष्मी-नारायण) बनना है। उन्हों की महिमा तो हर एक जानते हैं। कहते भी हैं आप पुण्य आत्मा हो, हम पाप आत्मा हैं। ढेर मन्दिर बने हुए हैं। वहाँ सब क्या करने जाते हैं? दर्शन से फ़ायदा तो कुछ भी नहीं। एक-दो को देख चले जाते हैं। बस दर्शन करने जाते हैं। फलाना यात्रा पर जाता है, हम भी जावें। इससे क्या होगा? कुछ भी नहीं। तुम बच्चों ने भी यात्राएं की हैं। जैसे और त्योहार मनाते हैं, वैसे यात्रा भी एक त्योहार समझते हैं। अभी तुम याद की यात्रा भी एक त्योहार समझते हो। तुम याद की यात्रा में रहते हो। अक्षर ही एक है मनमनाभव। यह तुम्हारी यात्रा अनादि है। वह भी कहते हैं - वह यात्रा हम अनादि करते आए हैं। परन्तु तुम अभी ज्ञान सहित कहते हो हम कल्प-कल्प यह यात्रा करते हैं। बाप ही आकर यह यात्रा सिखलाते हैं। वह चारों धाम जन्म बाय जन्म यात्रा करते हैं। यह तो बेहद का बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। ऐसे तो और कोई कभी नहीं कहते कि यात्रा से तुम पावन बनेंगे। मनुष्य यात्रा पर जाते हैं तो वह उस समय पावन रहते हैं, आजकल तो वहाँ भी गन्द लगा पड़ा है, पावन नहीं रहते। इस रूहानी यात्रा का तो किसको पता नहीं है। तुमको अभी बाप ने बताया है - यह याद की यात्रा है सच्ची। वह यात्रा का चक्र लगाने जाते हैं फिर भी वैसे का वैसा बन जाते हैं। चक्र लगाते रहते हैं। जैसे वास्कोडिगामा ने सृष्टि का चक्र लगाया। यह भी चक्र लगाते हैं ना। गीत भी है ना - चारों तरफ लगाये फेरे..... फिर भी हरदम दूर रहे। भक्तिमार्ग में तो कोई मिला नहीं सकते। भगवान कोई को मिला नहीं। भगवान से दूर ही रहे। फेरे लगाकर फिर भी घर में आकर 5 विकारों में फंसते हैं। वह सब यात्रायें हैं झूठी। अभी तुम बच्चे जानते हो यह है पुरुषोत्तम संगमयुग, जबकि बाप आये हैं। एक दिन सब जान जायेंगे बाप आया हुआ है। भगवान आखरीन मिलेगा, लेकिन कैसे? यह तो कोई भी जानते नहीं। यह तो मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि हम श्रीमत पर इस भारत को फिर से स्वर्ग बना रहे हैं। भारत का ही तुम नाम लेंगे। उस समय और कोई धर्म होता नहीं। सारी विश्व पवित्र बन जाती है। अभी तो ढेर धर्म हैं। बाप आकर तुमको सारे झाड़ का नॉलेज सुनाते हैं। तुमको स्मृति दिलाते हैं। तुम सो देवता थे, फिर सो क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र बने। अभी तुम सो ब्राह्मण बने हो। यह हम सो का अर्थ बाप कितना सहज समझाते हैं। ओम् अर्थात् मैं आत्मा फिर हम आत्मा ऐसे चक्र लगाती हैं। वह तो कह देते हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो हम आत्मा। एक भी नहीं जिसको हम सो का अर्थ यथार्थ मालूम हो। तो बाप कहते हैं यह जो मन्त्र है यह हरदम याद रखना चाहिए। चक्र बुद्धि में नहीं होगा तो चक्रवर्ती राजा कैसे बनेंगे? अभी हम आत्मा ब्राह्मण हैं, फिर हम सो देवता बनेंगे। यह तुम कोई से भी जाकर पूछो, कोई नहीं बतायेंगे। वह तो 84 का अर्थ भी नहीं समझते। भारत का उत्थान और पतन गाया हुआ है। यह ठीक है। सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी.... अभी तुम बच्चों को सब मालूम पड़ गया है। बीजरूप बाप को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। वह इस चक्र में नहीं आते हैं। ऐसे नहीं, हम जीव आत्मा सो परमात्मा बन जाते हैं। नहीं, बाप आपसमान नॉलेजफुल बनाते हैं। आप समान गॉड नहीं बनाते हैं। इन बातों को बहुत अच्छी रीति समझना है, तब बुद्धि में चक्र चल सकता है, जिसका नाम स्वदर्शन चक्र रखा है। तुम बुद्धि से समझ सकते हो - हम कैसे इस 84 के चक्र में आते हैं। इसमें सब आ जाता है। समय भी आता है, वर्ण भी आ जाते हैं, वंशावली भी आ जाती है। अब तुम बच्चों की बुद्धि में यह सारा ज्ञान होना चाहिए। नॉलेज से ही ऊंच पद मिलता है। नॉलेज होगी तो औरों को भी देंगे। यहाँ तुमसे कोई पेपर आदि नहीं भराये जाते हैं। उन स्कूलों में जब इम्तहान होते हैं तो पेपर्स विलायत से आते हैं। जो विलायत में पढ़ते होंगे उन्हों की तो वहाँ ही रिजल्ट निकालते होंगे। उनमें भी कोई बड़ा एज्युकेशन अथॉरिटी होगा जो जांच करते होंगे पेपर्स की। तुम्हारे पेपर्स की जांच कौन करेंगे? तुम खुद ही करेंगे। खुद को जो चाहो सो बनाओ। पुरुषार्थ से जो चाहे सो पद बाप से ले लो। प्रदर्शनी आदि में बच्चे पूछते हैं ना - क्या बनेंगे? देवता बनेंगे, बैरिस्टर बनेंगे.... क्या बनेंगे? जितना बाप को याद करेंगे, सर्विस करेंगे उतना फल मिलेगा। जो अच्छी रीति बाप को याद करते हैं वह समझते हैं हमको सर्विस भी करनी है। प्रजा बनानी है ना! यह राजधानी स्थापन हो रही है। तो उसमें सब चाहिए। वहाँ वजीर होते नहीं। वजीर की दरकार उनको रहती जिसको अक्ल कम होता है। तुमको वहाँ राय की दरकार नहीं रहती है। बाबा के पास राय लेने आते हैं - स्थूल बातों की राय लेते हैं, पैसे का क्या करें? धन्धा कैसे करें? बाबा कहते हैं यह दुनियावी बातें बाप के पास नहीं ले आओ। हाँ, कहाँ दिलशिकस्त बन न जाएं तो कुछ न कुछ आथत देकर बता देते हैं। यह कोई मेरा धन्धा नहीं है। मेरा तो ईश्वरीय धन्धा है तुमको रास्ता बताने का। तुम विश्व का मालिक कैसे बनो? तुमको मिली है श्रीमत। बाकी सब हैं आसुरी मत। सतयुग में कहेंगे श्रीमत। कलियुग में आसुरी मत। वह है ही सुखधाम। वहाँ ऐसे भी नहीं कहेंगे कि राजी-खुशी हो? तबियत ठीक है? यह अक्षर वहाँ होते नहीं। यह यहाँ पूछा जाता है। कोई तकलीफ तो नहीं है? राजी-खुशी हो? इसमें भी बहुत बातें आ जाती हैं। वहाँ दु:ख है ही नहीं, जो पूछा जाए। यह है ही दु:ख की दुनिया। वास्तव में तुमसे कोई पूछ नहीं सकता। भल माया गिराने वाली है तो भी बाप मिला है ना। तुम कहेंगे - क्या तुम खुश-खैराफत पूछते हो! हम ईश्वर के बच्चे हैं, हमसे क्या खुश-खैराफत पूछते हो। परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले बाप की, वह मिल गया, फिर किसकी परवाह! यह हमेशा याद करना चाहिए - हम किसके बच्चे हैं! यह भी बुद्धि में ज्ञान है - कि जब हम पावन बन जायेंगे तो फिर लड़ाई शुरू हो जायेगी। तो जब भी तुमसे कोई पूछे कि तुम खुश राज़ी हो? तो बोलो हम तो सदैव खुशराज़ी हैं। बीमार भी हो तो भी बाप की याद में हो। तुम स्वर्ग से भी जास्ती यहाँ खुश-राज़ी हो। जबकि स्वर्ग की बादशाही देने वाला बाप मिला है, जो हमको इतना लायक बनाते हैं तो हमको क्या परवाह रखी है! ईश्वर के बच्चों को क्या परवाह! वहाँ देवताओं को भी परवाह नहीं। देवताओं के ऊपर तो है ईश्वर। तो ईश्वर के बच्चों को क्या परवाह हो सकती है। बाबा हमको पढ़ाते हैं। बाबा हमारा टीचर, सतगुरू है। बाबा हमारे ऊपर ताज रख रहे हैं, हम ताजधारी बन रहे हैं। तुम जानते हो हमको विश्व का ताज कैसे मिलता है। बाप नहीं ताज रखते। यह भी तुम जानते हो सतयुग में बाप अपना ताज अपने बच्चों पर रखते हैं, जिसको अंग्रेजी में कहते हैं क्राउन प्रिन्स। यहाँ जब तक बाप का ताज बच्चे को मिले तब तक बच्चे को उत्कण्ठा रहेगी - कहाँ बाप मरे तो ताज हमारे सिर पर आवे। आश होगी प्रिन्स से महाराजा बनूँ। वहाँ तो ऐसी बात नहीं होती। अपने समय पर कायदे अनुसार बाप बच्चों को ताज देकर फिर किनारा कर लेते हैं। वहाँ वानप्रस्थ की चर्चा होती नहीं। बच्चों को महल आदि बनाकर देते हैं, आशायें सब पूरी हो जाती हैं। तुम समझ सकते हो सतयुग में सुख ही सुख है। प्रैक्टिकल में सब सुख तब पायेंगे जब वहाँ जायेंगे। वह तो तुम ही जानो, स्वर्ग में क्या होगा? एक शरीर छोड़ फिर कहाँ जायेंगे? अभी तुम्हें प्रैक्टिकल में बाप पढ़ा रहे हैं। तुम जानते हो हम सच-सच स्वर्ग में जायेंगे। वह तो कह देते हम स्वर्ग में जाते हैं, पता भी नहीं है स्वर्ग किसको कहा जाता है। जन्म-जन्मान्तर यह अज्ञान की बातें सुनते आये, अभी बाप तुमको सत्य बातें सुनाते हैं। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार सदा राज़ी-खुशी रहने के लिए बाप की याद में रहना है। पढ़ाई से अपने ऊपर राजाई का ताज रखना है। श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है। सदा श्रीमत का रिगार्ड रखना है। वरदान:- कनेक्शन और रिलेशन द्वारा मन्सा शक्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण देखने वाले सूक्ष्म सेवाधारी भव जैसे वाणी की शक्ति वा कर्म की शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाई देता है वैसे सबसे पावरफुल साइलेन्स शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण देखने के लिए बापदादा के साथ निरन्तर क्लीयर कनेक्शन और रिलेशन हो, इसे ही योगबल कहा जाता है। ऐसी योगबल वाली आत्मायें स्थूल में दूर रहने वाली आत्मा को सम्मुख का अनुभव करा सकती हैं। आत्माओं का आह्वान कर उन्हें परिवर्तन कर सकती हैं। यही सूक्ष्म सेवा है, इसके लिए एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ। स्लोगन:- अपने सर्व खजानों को सफल करने वाले ही महादानी आत्मा हैं। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 1 Jan 2021 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 1 January 2021 (Friday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, you have to go to the pure world. Therefore, conquer lust, the great enemy. Become conquerors of lust and thereby conquerors of the world." Question: What vision can you give everyone through your activity? Answer: Each one of you can give a vision as to whether you are a swan or a stork through your activity. Swans never cause anyone sorrow. Storks cause sorrow because they are vicious. You children are now becoming swans from storks. The duty of you children who are becoming those with divine intellects is to make everyone else into one with a divine intellect. ♫ Listen Today's Murli ➤ Om Shanti. When you say "Om shanti" you remember your original religion. You also remember your home, but you mustn't just sit at home. You are the children of the Father and so you definitely have to remember your heaven. So, by saying "Om shanti" all of this knowledge enters your intellect. I, a soul, am an embodiment of peace. I am a child of the Father, the Ocean of Peace. The Father, who establishes heaven, is making us into embodiments of purity and peace. The main aspect is purity. It is the world that becomes pure and impure. Not a single vicious person exists in the pure world. The five vices exist in the impure world and that is why this world is called a vicious world. That is the viceless world. While coming down the ladder from the viceless world, you come into the vicious world. That is the pure world and this is the impure world. That is the day, happiness. This is the night of wandering. In fact, no one wanders at night, but devotion is said to be like wandering. You children have now come here to attain salvation. You souls were full of all those sins; you had the five vices. Of those, the main vice is lust. It is through this that human beings become sinful souls. Everyone knows that he or she is an impure and sinful soul. Because of the one vice of lust, all qualifications are ruined. This is why the Father says: Conquer lust and you will become conquerors of the world, which means, the masters of the new world. Therefore, you should have that much happiness in you. When human beings become impure, they don't understand anything. The Father says: You shouldn't have any of the vices. The main vice is lust and it is because of this vice that there is so much upheaval. There is so much peacelessness in every home. There are cries of distress everywhere. Why are there cries of distress in this world? Because they are sinful souls. It is because of the vices that they are called devils. You now understand that nothing in this world is useful; the haystack has to be set on fire. Whatever you can see with your physical eyes is going to be set ablaze. Souls cannot be set on fire. It is as though souls are always insured; they are always alive. Does anyone ever insure a soul? Bodies can be insured. Souls are imperishable. It is has been explained to you children that this is a play. Souls reside up above and are completely separate from the five elements. All the things of the world are created from the five elements. Souls are never created; they always exist. It is just that they become charitable souls and sinful souls. These names are given to souls: charitable soul or sinful soul. Souls become so dirty because of the five vices! The Father has now come to liberate you from all sins. It is the vices that ruin the whole character. People don’t even understand what a good character is. This is the highest-on-high spiritual Government. Instead of you being called the Pandava Government, you can be called the Godly Government. You understand that you are the Godly Government. What does the Godly Government do? It makes souls pure and changes them into deities. Where else would deities come from? No one knows this. Deities are also human beings but how did they become deities and who made them that? Deities only exist in heaven. Residents of heaven definitely become residents of hell and then they become residents of heaven once again. You didn't know this, and so how could anyone else know it? You now understand that the drama is predestined and that all of these souls are actors. Keep all of these aspects in your intellects. You should have the study in your intellects and you also definitely have to become pure. It is very bad to become impure. It is souls that become impure. They continue to become impure with one another. It is your business to make the impure pure. Become pure and you will go to the pure world. You souls understand this. If there is no soul, the body cannot remain and cannot respond. You souls understand that, originally, you resided in the pure world. The Father has now explained how you became completely senseless and that this is why you became worthy of the impure world. Now, until you become pure, you cannot become worthy of heaven. Comparison with heaven is made at the confluence age. There is no comparison made there. It is only at this confluence age that you receive all the knowledge. You receive the weapons with which to become pure. Only the One is called the Purifier Baba. You tell Him: Make us pure like them; they are the masters of heaven. You know that you were the masters of heaven, and then, while taking 84 births, you became impure. This one has been named "Shyam Sundar". They make dark blue images of Krishna but they don't understand the meaning of that. You receive such a clear understanding of Krishna. They have shown two worlds but, in fact, there aren't two worlds; there is just the one world. It becomes new and then old. At first, a baby is new and then, as he grows up, he becomes old. You beat your heads so much to explain to them. You are establishing your own kingdom. Lakshmi and Narayan also understood this, did they not? They became so sweet by understanding this. Who explained to them? God! There is no question of a war. God is so sensible and knowledge-full! He is so pure! All human beings go and bow down in front of an image of Shiva, but they don't know who He is or what He does. They simply continue to say, "Shiv Kashi Vishwanath Ganga..." (Temple of Shiva at Kashi where the Ganges emerged from the Lord of the World). They don't understand the meaning of that at all! When you explain to them, they say: What can you explain to us? We have studied all the Vedas and scriptures. However, no one knows what the kingdom of Rama is. The golden age, the new world, is called the kingdom of Rama. Those of you who imbibe this are also number-wise. Some of you even forget this because your intellects are completely like stone. So, it is the duty of those with divine intellects to make others the same. Those with stone intellects will continue with the same activity. This is because there are swans and storks. Swans never cause anyone sorrow. Storks cause sorrow. Some behave completely like storks and they have all the vices. Many very vicious ones come here too. They are called devils. They cannot be recognised. Many vicious ones go to the various centres. They make excuses saying that they are Brahmins, but that is a lie. This is called the world of lies. The new world is the world of truth. It is now the confluence age. There is so much difference! Those who tell lies and do everything false become third grade. There are first grade and second grade too. The Father says: You have to give the complete proof of purity. Some say that it is impossible to live together and remain pure. Therefore, you children have to explain to them. Because some don’t have any power of yoga, they aren’t fully able to explain something as easy as this. No one explains to them that it is God who is teaching us here. He says: By becoming pure you will become the masters of heaven for 21 births. That is the pure world. There cannot be anyone impure in the pure world. The five vices don't exist there. That is the viceless world and this is the vicious world. We are receiving the sovereignty of the golden age. Therefore, why should we not become pure for one birth? We are winning such a huge lottery! This is why there is so much happiness. Deities are pure. Only the Father makes you pure from impure. Therefore, you should tell them that you are given this temptation. Only the Father makes you become like them. No one but the Father can make the world new. Only God comes to change humans into deities. This night of His is remembered. It is said: Knowledge, devotion and disinterest. Knowledge and devotion are each for half the time. After devotion, there is disinterest. You now have to return home. Therefore, you have to shed your costumes, your bodies. You must no longer live in this dirty world. The cycle of 84 births has now come to an end. We now have to return to the pure world via the abode of peace. First of all, you mustn’t forget the aspect of Alpha. You children also understand that the old world is to be destroyed. The Father is establishing the new world. The Father has come many times to establish heaven. Hell is to be destroyed. Hell is so big and heaven is so small! In the new world there is just one religion, whereas there are innumerable religions here. Who established the one religion? It wasn't Brahma who did that. Brahma becomes impure and then pure. You wouldn't say of Me: The impure One who becomes pure. When they are pure, they are called Lakshmi and Narayan. There is the day of Brahma and the night of Brahma. This one is Prajapita. Shiv Baba is called the eternal Creator. The word "eternal" refers to the Father. The Father is eternal and therefore souls too are eternal. The play is also eternal. The drama is predestined. The self, the soul, receives the knowledge of the beginning, the middle and the end of the whole duration of the world cycle. Who gives this? The Father. You belong to the Lord and Master for 21 births, and you then become orphans in the kingdom of Ravan. It is then that everyone’s character is spoilt because the vices enter. However, it isn't that there are two worlds. People believe that hell and heaven exist at the same time. Everything is now being explained to you children so clearly! You are now incognito. Look at what has been written in the scriptures! They have completely tangled everything up. No one but the Father can untangle everything that is tangled. People call out to Him: I am of no use, so come and purify me and reform my character! Your characters arebeing reformed so much! However, when it comes to others, instead of being reformed, they are becoming even more spoilt. Everything can be known from one's behaviour. Today, someone may be called a maharathi or a swan, whereas tomorrow he becomes like a stork. It doesn't take long! Maya is incognito. Anger is not visible either. When someone starts barking, it emerges and it is then visible. Then, those who were amazed by listening to the knowledge and relating it to others run away. They fall so far! They become completely like stone. There is the story of the Court of Indra. Such ones can be recognised; they should not come into this gathering. Anyone who has received even a little knowledge will go to heaven, because knowledge is never destroyed. The Father says: You now have to make effort and claim a high status. If you indulge in vice, your status will become degraded. You first become part of the sun dynasty, then the moon dynasty and then the merchant dynasty and then the shudra dynasty. You now understand how the cycle turns. They say that there are still 40,000 years of the iron age to go. You have to come down the ladder. If it were another 40,000 years, there would be so many human beings! In just 5000 years, there are so many human beings that there isn't even enough to eat. Therefore, if there were that many thousands of years more, the population would expand so much! So, the Father comes and gives you patience. Impure human beings continue to fight one another. Their intellects cannot turn towards this side. Look how much your intellects have changed. In spite of that, Maya definitely deceives you. You have to become completely ignorant of the knowledge of all desires. If there are any desires, everything is lost. You become completely worth not a penny. Maya continues to deceive even very good maharathis in one way or another. They cannot then climb into the heart, just as some cannot climb into their parents' hearts. Some children are such that they even kill their lokik parents! They even kill their family! They are very sinful souls. Look at what Ravan does! This world is very dirty. You mustn't attach your heart to it. A lot of courage is needed to become pure. Purity is the main thing needed to claim the prize of the sovereignty of the world and that is why you tell the Father to come and purify you. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli In order to be saved from being deceived by Maya, become completely ignorant of the knowledge of all desires. Don’t attach your heart to this dirty world. Give the complete proof of purity. The highest character is that of purity. In order to reform yourself, you definitely have to become pure. Blessing: May you be introverted and experience the divine activities of the subtle powers with your concentrated form. The basis of concentration is introverted. Those who are introverted experience the power of divine activities within themselves. To invoke souls, to have heart-to-heart conversations with souls, to transform the sanskars and nature of souls, to have a connection with the Father; in order to do such spiritual service in the world of souls, increase your power of concentration. By doing this, all types of obstacles will automatically finish. Slogan:- To imbibe all attainments in the self and be revealed on the world stage is the basis of revelation. Special note: This month of January is the month of memories of sweet sakar Baba. In order to make yourselves powerful, you especially have to become introverted and experience the divine activities of the subtle powers. Maintain your avyakt stage for the whole month. Maintain silence of the mind and the mouth. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .