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- आज की मुरली 1 Jan 2021- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 1 January 2021 (Friday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - तुम्हें पावन दुनिया में चलना है इसलिए काम महाशत्रु पर जीत पानी है, कामजीत, जगतजीत बनना है'' प्रश्नः- हर एक अपनी एक्टिविटी से कौन-सा साक्षात्कार सबको करा सकते हैं? उत्तर:- मैं हंस हूँ या बगुला हूँ? यह हर एक अपनी एक्टिविटी से सबको साक्षात्कार करा सकते हैं क्योंकि हंस कभी किसी को दु:ख नहीं देंगे। बगुले दु:ख देते हैं, वह विकारी होते हैं। तुम बच्चे अभी बगुले से हंस बने हो। तुम पारसबुद्धि बनने वाले बच्चों का कर्तव्य है सबको पारसबुद्धि बनाना। ♫ मुरली सुने ➤ ओम् शान्ति। जब ओम् शान्ति कहा जाता है तो अपना स्वधर्म याद पड़ता है। घर की भी याद आती है। परन्तु घर में बैठ तो नहीं जाना है। बाप के बच्चे हैं तो जरूर अपना स्वर्ग भी याद करना पड़े। तो ओम् शान्ति कहने से यह सारा ज्ञान बुद्धि में आ जाता है। मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शान्ति के सागर बाप का बच्चा हूँ। जो बाप स्वर्ग स्थापन करते हैं वह बाप ही हमको पवित्र शान्त स्वरूप बनाते हैं। मुख्य बात है पवित्रता की। दुनिया ही पवित्र और अपवित्र बनती है। पवित्र दुनिया में एक भी विकारी नहीं है। अपवित्र दुनिया में 5 विकार हैं, इसलिए कहा जाता है विकारी दुनिया। वह है निर्विकारी दुनिया। निर्विकारी दुनिया से सीढ़ी उतरते-उतरते फिर नीचे विकारी दुनिया में आते हैं। वह है पावन दुनिया, यह है पतित दुनिया। वह है दिन, सुख। यह है भटकने की रात। यूँ तो रात में कोई भटकता नहीं है। परन्तु भक्ति को भटकना कहा जाता है। तुम बच्चे अब यहाँ आये हो सद्गति पाने। तुम्हारी आत्मा में सब पाप थे, 5 विकार थे। उनमें भी मुख्य है काम विकार, जिससे ही मनुष्य पाप आत्मा बनते हैं। यह तो हर एक जानते हैं हम पतित हैं और पाप आत्मा भी हैं। एक काम विकार के कारण सब क्वालिफिकेशन बिगड़ पड़ती हैं इसलिए बाप कहते हैं काम को जीतो तो तुम जगतजीत अर्थात् नये विश्व के मालिक बनेंगे। तो अन्दर में इतनी खुशी रहनी चाहिए। मनुष्य पतित बनते हैं तो कुछ भी समझते नहीं। बाप समझाते हैं - कोई भी विकार नहीं होना चाहिए। मुख्य है काम विकार, इस पर कितने हंगामें होते हैं। घर-घर में कितनी अशान्ति, हाहाकार हो जाता है। इस समय दुनिया में हाहाकार क्यों है? क्योंकि पाप आत्मायें हैं। विकारों के कारण ही असुर कहा जाता है। अभी तुम समझते हो इस समय दुनिया में कोई भी काम की चीज़ नहीं, भंभोर को आग लगनी है। जो कुछ इन आंखों से देखा जाता है, सबको आग लग जायेगी। आत्मा को तो आग लगती नहीं। आत्मा तो सदैव जैसे इन्श्योर है, सदैव जीती रहती। आत्मा को कभी इन्श्योर कराते हैं क्या? शरीर को इन्श्योर कराया जाता है। आत्मा अविनाशी है। बच्चों को समझाया गया है - यह खेल है। आत्मा तो ऊपर रहने वाली 5 तत्वों से बिल्कुल अलग है। 5 तत्वों से सारी दुनिया की सामग्री बनती है। आत्मा तो नहीं बनती है। आत्मा सदैव है ही। सिर्फ पुण्य आत्मा, पाप आत्मा बनती है। आत्मा पर ही नाम पड़ता है पुण्य आत्मा, पाप आत्मा। 5 विकारों से कितने गन्दे बन जाते हैं। अब बाप आये हैं पापों से छुड़ाने। विकार ही सारा कैरेक्टर बिगाड़ते हैं। कैरेक्टर किसको कहा जाता है, यह भी समझते नहीं। यह है ऊंच ते ऊंच रूहानी गवर्नमेन्ट। पाण्डव गवर्नमेन्ट न कह तुमको ईश्वरीय गवर्नमेन्ट कह सकते हैं। तुम समझते हो हम ईश्वरीय गवर्नमेन्ट हैं। ईश्वरीय गवर्नमेन्ट क्या करती है? आत्माओं को पवित्र बनाकर देवता बनाती है। नहीं तो देवता कहाँ से आये? यह कोई भी नहीं जानते, हैं तो यह भी मनुष्य परन्तु देवता कैसे थे, किसने बनाया? देवतायें तो होते ही हैं स्वर्ग में। तो उन्हों को स्वर्गवासी किसने बनाया? स्वर्गवासी फिर जरूर नर्कवासी बनते हैं फिर स्वर्गवासी। यह भी तुम नहीं जानते थे तो और फिर कैसे जानेंगे! अब तुम समझते हो कि ड्रामा बना हुआ है, इतने सब एक्टर्स हैं। यह सब बातें बुद्धि में होनी चाहिए। पढ़ाई तो बुद्धि में होनी चाहिए ना और पवित्र भी जरूर बनना है। पतित बनना बहुत खराब बात है। आत्मा ही पतित बनती है। एक-दो में पतित बनते हैं। पतितों को पावन बनाना यह तुम्हारा धन्धा है। पावन बनो तो पावन दुनिया में चलेंगे। यह आत्मा समझती है। आत्मा न हो तो शरीर भी ठहर न सके, रेसपान्ड मिल न सके। आत्मा जानती है हम असुल पावन दुनिया के रहवासी हैं। अभी बाप ने समझाया है तुम बिल्कुल ही बेसमझ थे, इसलिए पतित दुनिया के लायक बन पड़े हो। अब जब तक पावन नहीं बनेंगे तब तक स्वर्ग के लायक नहीं बन सकेंगे। स्वर्ग की भेंट भी संगम पर की जाती है। वहाँ थोड़ेही भेंट कर सकेंगे। इस संगमयुग पर ही तुमको सारा ज्ञान मिलता है। पवित्र बनने का हथियार मिलता है। एक को ही कहा जाता है पतित-पावन बाबा, हमको ऐसा पावन बनाओ। यह स्वर्ग के मालिक हैं ना। तुम जानते हो हम ही स्वर्ग के मालिक थे फिर 84 जन्म लेकर पतित बने हैं। श्याम और सुन्दर, इनका नाम भी ऐसा रखा है। कृष्ण का चित्र श्याम बना देते हैं परन्तु अर्थ थोड़ेही समझते हैं। कृष्ण की भी तुमको कितनी क्लीयर समझानी मिलती है। इनमें दो दुनियायें कर दी हैं। वास्तव में दो दुनियायें तो हैं नहीं। दुनिया एक ही है। वह नई और पुरानी होती है। पहले छोटे बच्चे नये होते हैं फिर बड़े बन बूढ़े होते हैं। तो तुम कितना माथा मारते हो समझाने के लिए, अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो ना। लक्ष्मी-नारायण ने समझा है ना। समझ से कितने मीठे बने हैं। किसने समझाया? भगवान ने। लड़ाई आदि की तो बात ही नहीं। भगवान कितना समझदार, नॉलेजफुल है। कितना पवित्र है। शिव के चित्र आगे सब मनुष्य जाकर नमन करते हैं परन्तु वह कौन है, क्या करते हैं, यह कोई नहीं जानते। शिव काशी विश्वनाथ गंगा.... बस सिर्फ कहते रहते हैं। अर्थ ज़रा भी नहीं समझते। समझाओ तो कहेंगे तुम क्या हमको समझायेंगे। हम तो वेद-शास्त्र आदि सब पढ़े हैं। परन्तु राम राज्य किसको कहा जाता है, यह भी कोई जानते नहीं। राम राज्य सतयुग नई दुनिया को कहा जाता है। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जिनको धारणा होती है। कई तो भूल भी जाते हैं क्योंकि बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि बन गये हैं। तो अब पारसबुद्धि जो बने हैं उनका काम है औरों को पारसबुद्धि बनाना। पत्थरबुद्धि की एक्टिविटी वही चलती रहेगी क्योंकि हंस और बगुले हो गये ना। हंस कभी किसको दु:ख नहीं देते। बगुले दु:ख देते हैं। कई हैं जिनकी चाल ही बगुले मिसल होती है, उनमें सब विकार होते हैं। यहाँ भी ऐसे बहुत विकारी आ जाते हैं, जिनको असुर कहा जाता है। पहचान नहीं रहती। बहुत सेन्टर्स पर भी विकारी आते हैं, बहाना बनाते हैं, हम ब्राह्मण हैं, परन्तु है झूठ। इसको कहा ही जाता है झूठी दुनिया। वह नई दुनिया सच्ची दुनिया है। अभी है संगम। कितना फ़र्क रहता है। जो झूठ बोलने वाले, झूठा काम करने वाले हैं, वह थर्ड ग्रेड बनते हैं। फर्स्ट ग्रेड, सेकेण्ड ग्रेड तो होते हैं ना। बाप कहते हैं पवित्रता का भी पूरा सबूत देना है। कई कहते हैं यह दोनों इकट्ठे रहकर पवित्र रहते, यह तो इम्पासिबुल है। तो बच्चों को समझाना चाहिए। योगबल न होने कारण इतनी सहज बात भी पूरी रीति समझा नहीं सकते हैं। उनको यह बात कोई नहीं समझाते कि यहाँ हमको भगवान पढ़ाते हैं। वह कहते पवित्र बनने से तुम 21 जन्म स्वर्ग के मालिक बनेंगे। वह है पवित्र दुनिया। पवित्र दुनिया में पतित कोई हो न सके। 5 विकार ही नहीं हैं। वह है वाइसलेस वर्ल्ड। यह है विशश वर्ल्ड। हमको सतयुग की बादशाही मिलती है तो हम एक जन्म के लिए क्यों नहीं पावन बनेंगे! जबरदस्त लॉटरी मिलती है हमको। तो खुशी होती है। देवी-देवता पवित्र हैं ना। अपवित्र से पवित्र भी बाप ही बनायेंगे। तो बताना चाहिए हमको यह टैम्पटेशन है। बाप ही ऐसा बनाते हैं। बाप बिगर तो नई दुनिया कोई बना न सके। मनुष्य से देवता बनाने भगवान ही आते हैं, जिसकी रात्रि गाई जाती है। यह भी समझाया है ज्ञान, भक्ति, वैराग्य। ज्ञान और भक्ति आधा-आधा है। भक्ति के बाद है वैराग्य। अब घर जाना है, यह शरीर रूपी कपड़े उतार देने हैं। इस छी-छी दुनिया में नहीं रहना है। 84 का चक्र अब पूरा हुआ। अब वाया शान्तिधाम जाना है। पहले-पहले अल्फ की बात नहीं भूलनी है। यह भी बच्चे समझते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं। बाप अनेक बार आये हैं स्वर्ग की स्थापना करने। नर्क का विनाश हो जाना है। नर्क कितना बड़ा है, स्वर्ग कितना छोटा है। नई दुनिया में एक ही धर्म होता है। यहाँ हैं अनेक धर्म। एक धर्म किसने स्थापन किया? ब्रह्मा ने तो नहीं किया। ब्रह्मा ही पतित सो फिर पावन बनता है। मेरे लिए तो नहीं कहेंगे पतित सो पावन। पावन हैं तो लक्ष्मी-नारायण नाम है। ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। यह प्रजापिता है ना। शिवबाबा को अनादि क्रियेटर कहा जाता है। अनादि अक्षर बाप के लिए है। बाप अनादि तो आत्मायें भी अनादि हैं। खेल भी अनादि है। बना बनाया ड्रामा है। स्व आत्मा को सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त, ड्यूरेशन का ज्ञान मिलता है। यह किसने दिया? बाप ने। तुम 21 जन्मों के लिए धनके बन जाते हो फिर रावण के राज्य में निधनके बन जाते हो। यहाँ से ही कैरेक्टर बिगड़ते हैं, विकार हैं ना। बाकी दो दुनियायें नहीं हैं। मनुष्य तो फिर समझते हैं नर्क-स्वर्ग सब इकट्ठे ही चलते हैं। अभी तुम बच्चों को कितना क्लीयर समझाया जाता है। अभी तुम गुप्त हो। शास्त्रों में तो क्या-क्या लिख दिया है। सूत कितना मूँझा हुआ है। सिवाए बाप के कोई सुलझा न सके। उन्हें ही पुकारते हैं - हम कोई काम के नहीं रहे हैं, आकर पावन बनाए हमारे कैरेक्टर सुधारो। तुम्हारे कितने कैरेक्टर सुधरते हैं। कोई-कोई के तो सुधरने बदले और ही बिगड़ते हैं। चलन से भी मालूम पड़ जाता है। आज महारथी हंस कहलाते हैं, कल बगुला बन पड़ते। देरी नहीं लगती है। माया भी गुप्त है ना। क्रोध कोई देखने में थोड़ेही आता है। भौं-भौं करते हैं तो फिर वह बाहर निकलने से दिखाई पड़ता है। फिर आश्चर्यवत् सुनन्ती.... कथन्ती भागन्ती हो जाते हैं। कितना गिरते हैं। एकदम पत्थर बन जाते हैं। इन्द्रप्रस्थ की भी बात है ना। मालूम तो पड़ ही जाता है। ऐसा फिर सभा में नहीं आना चाहिए। थोड़ा-बहुत ज्ञान सुना है तो स्वर्ग में आ ही जाते हैं। ज्ञान का विनाश नहीं हो सकता। अब बाप कहते हैं - तुमको पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है। अगर विकार में गये तो पद भ्रष्ट कर देंगे। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे फिर वैश्य वंशी, शूद्र वंशी। अभी तुम समझते हो यह चक्र कैसे फिरता है। वह तो कलियुग की आयु ही 40 हज़ार वर्ष कह देते हैं। सीढ़ी तो नीचे उतरनी होती है ना। 40 हज़ार वर्ष हों तो मनुष्य ढेर हो जाएं। 5 हज़ार वर्ष में ही इतने मनुष्य हैं, जो खाने को नहीं मिलता। तो इतने हज़ार वर्षों में कितनी वृद्धि हो जाए। तो बाप आकर धीरज देते हैं। पतित मनुष्यों को तो लड़ना ही है। उन्हों की बुद्धि इस तरफ आ न सके। अब तुम्हारी बुद्धि देखो कितनी बदलती है फिर भी माया धोखा जरूर देती है। इच्छा मात्रम् अविद्या। कोई इच्छा की तो गया। वर्थ नाट ए पेनी बन जाते हैं। अच्छे-अच्छे महारथियों को भी माया कोई न कोई प्रकार से कभी धोखा देती रहती हैं। फिर वह दिल पर चढ़ नहीं सकते। जैसे लौकिक माँ-बाप के दिल पर नहीं चढ़ते हैं। कोई तो बच्चे ऐसे होते हैं जो बाप को भी खत्म कर देते हैं। परिवार को खत्म कर देते हैं। महान पाप आत्मायें हैं। रावण क्या कर देते, बहुत डर्टी दुनिया है। इनसे कभी दिल नहीं लगानी चाहिए। पवित्र बनने की बड़ी हिम्मत चाहिए। विश्व के बादशाही की प्राइज़ लेने के लिए पवित्रता मुख्य है इसलिए बाप को कहते हैं कि आकर पावन बनाओ। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार माया के धोखों से बचने के लिए इच्छा मात्रम् अविद्या बनना है। इस डर्टी दुनिया से दिल नहीं लगानी है। पवित्रता का पूरा-पूरा सबूत देना है। सबसे ऊंचा कैरेक्टर ही पवित्रता है। अपने आपको सुधारने के लिए पवित्र जरूर बनना है। वरदान:- अपने एकाग्र स्वरूप द्वारा सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करने वाले अन्तर्मुखी भव एकाग्रता का आधार अन्तर्मुखता है। जो अन्तर्मुखी हैं वे अन्दर ही अन्दर सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करते हैं। आत्माओं का आह्वान करना, आत्माओं से रूहरिहान करना, आत्माओं के संस्कार स्वभाव को परिवर्तन करना, बाप से कनेक्शन जुड़वाना - ऐसे रूहों की दुनिया में रूहानी सेवा करने के लिए एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ, इससे सर्व प्रकार के विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे। स्लोगन:- सर्व प्राप्तियों को स्वयं में धारण कर विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष होना ही प्रत्यक्षता का आधार है। विशेष नोट:- यह जनवरी मास मीठे साकार बाबा की स्मृतियों का मास है, स्वयं को समर्थ बनाने के लिए विशेष अन्तर्मुखी बन सूक्ष्म शक्तियों की लीलाओं का अनुभव करना है। पूरा ही मास अपनी अव्यक्त स्थिति में रहना है। मन और मुख का मौन रखना है। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli: 31 Dec 2020 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 31 December 2020 (Thursday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, this is your Godly mission. You have to make everyone belong to God and enable them to receive their unlimited inheritance." Question: When will the mischief caused by the sense organs finish? Answer: The mischief of your sense organs will finish when you souls reach the stage of the silver age, that is, when you souls reach your Sato stage. It is now your return journey and so you have to keep your sense organs under control. Don't secretly perform any act through which you, the soul, would become impure. Continue to follow the precautions that the imperishable Surgeon gives you. ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: Look at your face in the mirror of your heart, o man! Om Shanti. The spiritual Father explains to the spiritual children. He doesn’t explain to only you children sitting here. All of you spiritual, mouth-born children of Prajapita Brahma know that the Father explains to you Brahmins. Previously, you were shudras and you have now become Brahmins. The Father has explained to you the account of the different clans. The world does not understand about these clans. There is only praise of them. You are now part of the Brahmin clan and you will then become part of the deity clan. Just think whether these aspects are right. Judge for yourselves. Listen to Me and then compare: compare the scriptures, which you have been listening to for birth after birth, with what the Father, the Ocean of Knowledge, says. Judge what is right. You have completely forgotten the Brahmin religion and clan. The variety-form image is created accurately. You can explain using that image. However, all the pictures with so many arms that have been created and the images of the goddesses holding weapons etc. are wrong. Those pictures belong to the path of devotion. They see everything with their eyes and yet they do not understand! They do not know about anyone's occupation. You children have now come to know about souls and you also know about your 84 births. Just as the Father is explaining to you, so you then have to explain to others. Shiv Baba will not go to everyone. The Father definitely needs helpers. Therefore, this is your Godly mission. You make everyone belong to God. You explain that He is the unlimited Father of all of us souls. We receive the unlimited inheritance from Him. Just as you remember your worldly fathers, in the same way, you have to remember the Father from beyond this world even more. Physical fathers give temporary happiness, whereas the unlimited Father gives unlimited happiness. All souls now receive this knowledge. You now know that there are three fathers: the lokik father, the alokik father and the Parlokik. The unlimited Father is explaining to you through the alokik father. No one knows this father. No one knows the biography of Brahma; his occupation too has to be known. They sing praise of Shiva and Krishna, but what about the praise of Brahma? The incorporeal Father definitely needs a mouth through which nectar can be given. They cannot remember the Father accurately on the path of devotion. Now you know and understand that this is Shiv Baba's chariot. Chariots are decorated. The horse of Hussein is also decorated. You children explain to human beings so well. You praise everyone. You tell them that we were those deities and that, after taking 84 births, we have become tamopradhan. If you want to become satopradhan now, then you need to have yoga. However, hardly anyone understands this. If they were to understand this, their mercury of happiness would rise. The mercury of happiness of the one who is explaining would rise even more. To give the introduction of the unlimited Father is not a small matter. They don't understand. They ask: How is this possible? You relate the life story of the unlimited Father. The Father says: Children, now become pure. You used to call out: O Purifier, come! The word "Manmanabhav" is also mentioned in the Gita, but no one understands the meaning of it. The Father explains the knowledge of souls so clearly. None of these aspects are mentioned in any of the scriptures. Although it is said that a soul is a point, a star sparkling in the centre of the forehead, this is not clear in anyone's intellect. This aspect too has to be known. In the iron age everyone is unrighteous. In the golden age everyone is righteous. People on the path of devotion believe that all of those are ways to meet God. That is why you make people fill in forms regarding their purpose in coming here. In this way you have to give the introduction of the unlimited Father. You ask them: Who is the Father of all souls? If you say that He is omnipresent, it makes no sense. The most important thing is: Who is the Father of all? You can also explain to all the members of your own homes. It is necessary to have one or two important pictures like the tree, the ladder and the Trimurti. People of other religions can understand from the picture of the tree when their religions were established. On this basis we can go to heaven. Those who come later on cannot go to heaven but will go to the land of peace. A lot can be clarified with the picture of the tree. The souls of those religions that emerge later on will definitely go up above and remain there. The entire foundation is in your intellects. The Father says: The sapling of the original eternal deity religion has been planted, but you also have to create the leaves; without the leaves, there is no tree. That is why Baba inspires us to make effort to make others similar to ourselves. People of other religions do not have to create leaves. They come from up above and lay the foundation; then the leaves (souls) continue to come from up above. You hold these exhibitions in order to make the tree grow; the leaves emerge in this way. Then, when a storm comes, they either fall off or they wither. The original eternal deity religion is being established. There is no question of fighting in this. You just have to remember the Father and inspire others to remember Him. You have to tell everyone to forget all of creation, because you cannot receive your inheritance from the creation. You have to remember the Father alone who is the Creator and no one else. If, after receiving knowledge and belonging to the Father, you perform any impure act, a huge burden accumulates on your head. The Father has come to purify you. However, if you perform any such acts, you would then become even more impure. That is why Baba says: Do not perform any act which would create a loss. The Father would then be defamed. Don't perform any such actions that they would increase your account of sin. Precautions have to be taken. While taking medicine, you also have to take precautions. If your doctor says that you are not to eat anything sour, you have to listen to him. You have to keep your sense organs under your control. If you eat something secretly, that medicine would not have any effect. That is called temptation. The Father gives you teachings that you must not do this. He is the Surgeon. They write to Baba saying: I have many thoughts. You have to be very cautious. Many dirty thoughts will enter your minds and your dreams, but do not be afraid of them. These aspects do not exist in the golden and silver ages. When you come nearer to the silver age your sense organs will stop their mischief. Your sense organs will come under your control. In the golden and silver ages they were under your control. When you reach the silver-aged stage your sense organs will come under control. Then, when you attain the golden-aged stage, you will become satopradhan and your sense organs will be totally controlled. Your sense organs were under control, were they not? This is not a new thing. Today, we are under the influence of the sense organs; tomorrow, after we have made effort, they will be under our influence. You have been descending for 84 births. It is now the return journey. You all have to reach your satopradhan stage. Check your chart to see how much charity and how much sin you have accumulated. By having remembrance of the Father, you will become silver aged from iron aged and your sense organs will be under control. You will then feel that there are no longer any storms. That stage will also come. You will then go to the golden age. While making effort to become pure, your mercury of happiness will rise. Explain to those who come how they have taken 84 births. However, only those who have taken 84 births will understand. Tell them: By remembering the Father you will become masters. If they don't understand about 84 births, they probably didn't become the masters of the kingdom. We give courage and explain good things. You have fallen down. Those who have taken 84 births will instantly have awareness. The Father says: When you were in the land of peace, you were pure. I am now showing you the path to the lands of peace and happiness. No one else can show you the path. Only pure souls can go to the land of peace. You will remove the rust and attain a high status according to the efforts you make. You can see each one's efforts and Baba also gives a great deal of help. This one is an old child. You have to feel the pulse of everyone. Those who are clever will immediately understand. This is the unlimited Father and you will definitely receive the inheritance of heaven from Him. We did receive it, but we no longer have it and we are now receiving it once again. The aim and objective is in front of us. After the Father established heaven, we were the masters of heaven. Then, while taking 84 births, we continued to descend. This is now your final birth. History will definitely repeat itself. Explain the entire cycle of 84 births. The more the number of people who understand, the more the number of leaves that will be created. You also make many others equal to yourselves. You say: We have come to liberate the whole world from the chains of Maya. The Father says: I come to liberate everyone from Ravan. You children also understand that the Father is the Ocean of Knowledge. You receive knowledge and become master oceans of knowledge. Knowledge is separate from devotion. You now know that only the Father teaches you the ancient Raj Yoga of Bharat. No human being can teach it, but how can we explain this to everyone? Here, many obstacles are created by devils. Previously, we used to believe that they were perhaps throwing rubbish, but we now understand how they create obstacles. It is nothing new! This happened a cycle ago as well. The entire cycle turns around in your intellects. Baba is explaining to us the significance of the beginning, the middle and the end of the world cycle. Baba also gives us each the title of a Lighthouse. In one eye we have the land of liberation and in the other eye we have the land of liberation-in-life. You have to go to the land of peace and then to the land of happiness. This is the land of sorrow. The Father says: Forget everything that you see with your physical eyes. Remember your land of peace. Souls have to remember their Father; this is known as unadulterated yoga. Listen to knowledge only from the One; this is known as unadulterated knowledge. You have to remember only the One. Mine is One and none other. Unless you have the faith that you are a soul, you are unable to remember the One. The soul says: I will only belong to one Baba. I, the soul, want to go to Baba. This body is old and decayed; let there be no attachment to it. This is an aspect of knowledge. It is not that you do not have to take care of your body. Internally, you have to understand that this is an old skin which you now have to shed. Yours is unlimited renunciation. They (sannyasis) go away into the jungle, whereas you have to live at home and stay in remembrance. While staying in remembrance you can leave your body. Wherever you may be, remember the Father. If you stay in remembrance and spin the cycle of self realization, you can then claim a high status wherever you may be living. The more effort you make individually, the higher the status you claim. While staying at home, stay on the pilgrimage of remembrance. There is very little time left before the final result. The new world also has to be ready. If you were to attain the karmateet stage now, you would have to stay in the subtle region. After staying in the subtle region you still have to take birth. As you move forward, you will have visions of all of this. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli Only listen to the one Father. Stay in unadulterated remembrance of the One. Take care of your body but do not have any attachment to it. Follow fully all the precautions given by the Father. Do not perform any such actions that would defame the Father and create an account of sin. Do not cause a loss for yourself. Blessing: May you be a great donor and donate jewels of knowledge from the safe of your broad and unlimited intellect. The intellect is the most elevated organ of all. The foreheads of those who have unlimited and broad intellects, that is, those whose intellects are wholesome and healthy sparkle because the safe of their intellects are filled with all the knowledge. They donate jewels of knowledge from the safe of their intellects and become great donors. You constantly continue to give the food of knowledge to your intellect. If your intellect is filled with the power of knowledge, it is then able to put matter right with the power of yoga. Those who have elevated intellects earn the most elevated income from having full knowledge and receive the sovereignty of Paradise. Slogan:- In order to experience the stage of an embodiment of power, slow down the speed of your thoughts. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 31 Dec 2020- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 31 December 2020 (Thursday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Visit Official Murli blog to listen and read daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - तुम्हारी यह ईश्वरीय मिशन है, तुम सबको ईश्वर का बनाकर उन्हें बेहद का वर्सा दिलाते हो" प्रश्नः- कर्मेन्द्रियों की चंचलता समाप्त कब होगी? उत्तर:- जब तुम्हारी स्थिति सिलवर एज़ तक पहुँचेगी अर्थात् जब आत्मा त्रेता की सतो स्टेज तक पहुँच जायेगी तो कर्मेन्द्रियों की चंचलता बंद हो जायेगी। अभी तुम्हारी रिटर्न जरनी है इसलिए कर्मेन्द्रियों को वश में रखना है। कोई भी छिपाकर ऐसा कर्म नहीं करना जो आत्मा पतित बन जाए। अविनाशी सर्जन तुम्हें जो परहेज बता रहे हैं, उस पर चलते रहो। ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी... ओम् शान्ति। रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं। न सिर्फ तुम बच्चों को, जो भी रूहानी बच्चे प्रजापिता ब्रह्मा मुख-वंशावली हैं, वह जानते हैं। हम ब्राह्मणों को ही बाप समझाते हैं। पहले तुम शूद्र थे फिर आकर ब्राह्मण बने हो। बाप ने वर्णों का भी हिसाब समझाया है। दुनिया में वर्णों को भी समझते नहीं। सिर्फ गायन है। अभी तुम ब्राह्मण वर्ण के हो फिर देवता वर्ण के बनेंगे। विचार करो यह बात राईट है? जज योर सेल्फ। हमारी बात सुनो और भेंट करो। शास्त्र जो जन्म-जन्मान्तर सुने हैं और जो ज्ञान सागर बाप समझाते हैं उनकी भेंट करो - राइट क्या है? ब्राह्मण धर्म अथवा कुल बिल्कुल भूले हुए हैं। तुम्हारे पास विराट रूप का चित्र राइट बना हुआ है, इस पर समझाया जाता है। बाकी इतनी भुजाओं वाले चित्र जो बनाये हैं और देवियों को हथियार आदि बैठ दिये हैं, वह सब हैं रांग। यह भक्ति मार्ग के चित्र हैं। इन आंखों से सब देखते हैं परन्तु समझते नहीं। कोई के आक्युपेशन का पता नहीं है। अभी तुम बच्चों को अपनी आत्मा का पता पड़ा है। और 84 जन्मों का भी मालूम पड़ा है। जैसे बाप तुम बच्चों को समझाते हैं, तुमको फिर औरों को समझाना है। शिवबाबा तो सबके पास नहीं जायेंगे। जरूर बाप के मददगार चाहिए ना इसलिए तुम्हारी है ईश्वरीय मिशन। तुम सबको ईश्वर का बनाते हो। समझाते हो वह हम आत्माओं का बेहद का बाप है। उनसे बेहद का वर्सा मिलेगा। जैसे लौकिक बाप को याद किया जाता है, उनसे भी जास्ती पारलौकिक बाप को याद करना पड़े। लौकिक बाप तो अल्पकाल के लिए सुख देते हैं। बेहद का बाप बेहद का सुख देते हैं। यह अभी आत्माओं को ज्ञान मिलता है। अभी तुम जानते हो 3 बाप हैं। लौकिक, पारलौकिक और अलौकिक। बेहद का बाप अलौकिक बाप द्वारा तुमको समझा रहे हैं। इस बाप को कोई भी जानते नहीं। ब्रह्मा की बायोग्राफी का किसको पता नहीं है। उनका आक्यूपेशन भी जानना चाहिए ना। शिव की, श्रीकृष्ण की महिमा गाते हैं बाकी ब्रह्मा की महिमा कहाँ? निराकार बाप को जरूर मुख तो चाहिए ना, जिससे अमृत दे। भक्ति मार्ग में बाप को कभी यथार्थ रीति याद नहीं कर सकते हैं। अभी तुम जानते हो, समझते हो शिवबाबा का रथ यह है। रथ को भी श्रृंगार करते हैं ना। जैसे मुहम्मद के घोड़े को भी सजाते हैं। तुम बच्चे कितना अच्छी रीति मनुष्यों को समझाते हो। तुम सभी की बड़ाई करते हो। बोलते हो तुम यह देवता थे फिर 84 जन्म भोग तमोप्रधान बने हो। अब फिर सतोप्रधान बनना है तो उसके लिए योग चाहिए। परन्तु बड़ा मुश्किल कोई समझते हैं। समझ जाएं तो खुशी का पारा चढ़े। समझाने वाले का तो और ही पारा चढ़ जाए। बेहद के बाप का परिचय देना कोई कम बात है क्या। समझ नहीं सकते। कहते हैं यह कैसे हो सकता। बेहद के बाप की जीवन कहानी सुनाते हैं। अब बाप कहते हैं - बच्चे, पावन बनो। तुम पुकारते थे ना कि हे पतित-पावन आओ। गीता में भी मनमनाभव अक्षर है परन्तु उनकी समझानी कोई के पास है नहीं। बाप आत्मा का ज्ञान भी कितना क्लीयर कर समझाते हैं। कोई शास्त्र में यह बातें हैं नहीं। भल कहते हैं आत्मा बिन्दी है, भ्रकुटी के बीच स्टार है। परन्तु यथार्थ रीति किसी की बुद्धि में नहीं है। वह भी जानना पड़े। कलियुग में है ही अनराइटियस। सतयुग में हैं सब राइटियस। भक्ति मार्ग में मनुष्य समझते हैं - यह सब ईश्वर से मिलने के रास्ते हैं इसलिए तुम पहले फॉर्म भराते हो - यहाँ क्यों आये हो? इससे भी तुमको बेहद के बाप का परिचय देना है। पूछते हो आत्मा का बाप कौन? सर्वव्यापी कहने से तो कोई अर्थ ही नहीं निकलता। सबका बाप कौन? यह है मुख्य बात। अपने-अपने घर में भी तुम समझा सकते हो। एक-दो मुख्य चित्र सीढ़ी, त्रिमूर्ति, झाड़ यह बहुत जरूरी है। झाड़ से सब धर्म वाले समझ सकते हैं कि हमारा धर्म कब शुरू हुआ! हम इस हिसाब से स्वर्ग में जा सकते हैं? जो आते ही पीछे हैं वह तो स्वर्ग में जा न सके। बाकी शान्ति-धाम में जा सकेंगे। झाड़ से भी बहुत क्लीयर होता है। जो-जो धर्म पीछे आये हैं उन्हों की आत्मायें जरूर ऊपर में जाए विराजमान होंगी। तुम्हारी बुद्धि में सारा फाउन्डेशन लगाया जाता है। बाप कहते हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग तो लगा फिर झाड़ के पत्ते भी तुमको बनाने हैं, पत्ते बिगर तो झाड़ होता नहीं इसलिए बाबा पुरुषार्थ कराते रहते हैं - आप-समान बनाने के लिए। और धर्म वालों को पत्ते नहीं बनाने पड़ते हैं। वह तो ऊपर से आते हैं, फाउण्डेशन लगाते हैं। फिर पत्ते पीछे ऊपर से आते-जाते हैं। तुम फिर झाड़ की वृद्धि के लिए यह प्रदर्शनी आदि करते हो। इससे पत्ते लगते हैं, फिर तूफान आने से गिर पड़ते हैं, मुरझा जाते हैं। यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। सिर्फ बाप को याद करना और कराना है। तुम सबको कहते हो और जो भी रचना है उनको छोड़ो। रचना से कभी वर्सा मिल न सके। रचयिता बाप को ही याद करना है। और किसकी याद न आये। बाप का बनकर, ज्ञान में आकर फिर अगर कोई ऐसा काम करते हैं तो उसका बोझा सिर पर बहुत चढ़ता है। बाप पावन बनाने आते हैं और फिर ऐसा कुछ काम करते हैं तो और ही पतित बन पड़ते हैं इसलिए बाबा कहते हैं ऐसा कोई काम नहीं करो जो घाटा पड़ जाए। बाप की ग्लानि होती है ना। ऐसा कर्म नहीं करो जो विकर्म जास्ती हो जाएं। परहेज भी रखनी है। दवाई में भी परहेज रखी जाती है। डॉक्टर कहे यह खटाई आदि नहीं खाना है तो मानना चाहिए। कर्मेन्द्रियों को वश करना पड़ता है। अगर छिपाकर खाते रहेंगे तो फिर दवाई का असर नहीं होगा। इसको कहा जाता है आसक्ति। बाप भी शिक्षा देते हैं - यह नहीं करो। सर्जन है ना। लिखते हैं बाबा मन में संकल्प बहुत आते हैं। खबरदार रहना है। गन्दे स्वप्न, मन्सा में संकल्प आदि बहुत आयेंगे, इनसे डरना नहीं है, सतयुग-त्रेता में यह बातें होती नहीं। तुम जितना आगे नज़दीक होते जायेंगे, सिलवर एज तक पहुँचेंगे तब कर्मेन्द्रियों की चंचलता बन्द हो जायेगी। कर्मेन्द्रियाँ वश हो जायेंगी। सतयुग-त्रेता में वश थी ना। जब उस त्रेता की अवस्था तक आओ तब वश होंगी। फिर सतयुग की अवस्था में आयेंगे तो सतोप्रधान बन जायेंगे फिर सब कर्मेन्द्रियाँ पूरी वश हो जायेंगी। कर्मेन्द्रियाँ वश थी ना। नई बात थोड़ेही है। आज कर्मेन्द्रियों के वश हैं, कल फिर पुरुषार्थ कर कर्मेन्द्रियों को वश कर लेते हैं। वह तो 84 जन्मों में उतरते आये हैं। अभी रिटर्न जरनी है, सबको सतोप्रधान अवस्था में जाना है। अपना चार्ट देखना है - हमने कितने पाप, कितने पुण्य किये हैं। बाप को याद करते-करते आइरन एज से सिलवर एज तक पहुँच जायेंगे तो कर्मेन्द्रियाँ वश हो जायेंगी। फिर तुमको महसूस होगा - अभी कोई तूफान नहीं आते हैं। वह भी अवस्था आयेगी। फिर गोल्डन एज में चले जायेंगे। मेहनत कर पावन बनने से खुशी का पारा भी चढ़ेगा। जो भी आते हैं उनको समझाना है - कैसे तुमने 84 जन्म लिए हैं? जिसने 84 जन्म लिए हैं, वही समझेंगे। कहेंगे अब बाप को याद कर मालिक बनना है। 84 जन्म नहीं समझते हो तो शायद राजाई के मालिक नहीं बने होंगे। हम तो हिम्मत दिलाते हैं, अच्छी बात सुनाते हैं। तुम नीचे गिर पड़ते हो। जिसने 84 जन्म लिए होंगे उनको झट स्मृति आयेगी। बाप कहते हैं तुम शान्तिधाम में पवित्र तो थे ना। अब फिर तुमको शान्तिधाम, सुखधाम में जाने का रास्ता बताते हैं। और कोई भी रास्ता बता न सके। शान्ति-धाम में भी पावन आत्मायें ही जा सकेंगी। जितना खाद निकलती जायेगी उतना ऊंच पद मिलेगा, जो जितना पुरुषार्थ करे। हर एक के पुरुषार्थ को तो तुम देख रहे हो, बाबा भी बहुत अच्छी मदद करता है। यह तो जैसे पुराना बच्चा है। हर एक की नब्ज को समझते हो ना। सयाने जो होंगे वह झट समझ जायेंगे। बेहद का बाप है, उनसे जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। मिला था, अब नहीं है फिर मिल रहा है। एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ा है। बाप ने जब स्वर्ग की स्थापना की थी, तुम स्वर्ग के मालिक थे। फिर 84 जन्म ले नीचे उतरते आये हो। अभी है यह तुम्हारा अन्तिम जन्म। हिस्ट्री रिपीट तो जरूर करेगी ना। तुम सारा 84 का हिसाब बताते हो। जितना समझेंगे उतना पत्ते बनते जायेंगे। तुम भी बहुतों को आप समान बनाते हो ना। तुम कहेंगे हम आये हैं - सारे विश्व को माया की जंजीरों से छुड़ाने। बाप कहते हैं मैं सबको रावण से छुड़ाने आता हूँ। तुम बच्चे भी समझते हो बाप ज्ञान का सागर है। तुम भी ज्ञान प्राप्त कर मास्टर ज्ञान सागर बनते हो ना। ज्ञान अलग है, भक्ति अलग है। तुम जानते हो भारत का प्राचीन राजयोग बाप ही सिखलाते हैं। कोई मनुष्य सिखला नहीं सकते। परन्तु यह बात सबको कैसे बतायें? यहाँ तो असुरों के विघ्न भी बहुत पड़ते हैं। आगे तो समझते थे शायद कोई किचड़ा डालते हैं। अभी समझते हो यह विघ्न कैसे डालते हैं। नथिंग न्यू। कल्प पहले भी यह हुआ था। तुम्हारी बुद्धि में यह सारा चक्र फिरता रहता है। बाबा हमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझा रहे हैं, बाबा हमको लाइट हाउस का भी टाइटिल देते हैं। एक आंख में मुक्तिधाम, दूसरी आंख में जीवन-मुक्तिधाम। तुमको शान्तिधाम में जाकर फिर सुखधाम में आना है। यह है ही दु:खधाम। बाप कहते हैं इन आंखों से जो कुछ तुम देखते हो, उनको भूलो। अपने शान्तिधाम को याद करो। आत्मा को अपने बाप को याद करना है, इसको ही अव्यभिचारी योग कहा जाता है। ज्ञान भी एक से ही सुनना है। वह है अव्यभिचारी ज्ञान। याद भी एक को करो। मेरा तो एक, दूसरा न कोई। जब तक अपने को आत्मा निश्चय नहीं करेंगे तब तक एक की याद आयेगी नहीं। आत्मा कहती है मैं तो एक बाबा की ही बनूंगी। मुझे जाना है बाबा के पास। यह शरीर तो पुराना जड़जड़ीभूत है, इनमें भी ममत्व नहीं रखना है। यह ज्ञान की बात है। ऐसे नहीं कि शरीर की सम्भाल नहीं करनी है। अन्दर में समझना है - यह पुरानी खाल है, इनको तो अब छोड़ना है। तुम्हारा है बेहद का संन्यास। वह तो जंगल में चले जाते हैं। तुमको घर में रहते याद में रहना है। याद में रहते-रहते तुम भी शरीर छोड़ सकते हो। कहाँ भी हो तुम बाप को याद करो। याद में रहेंगे, स्वदर्शन चक्रधारी बनेंगे तो कहाँ भी रहते तुम ऊंच पद पा लेंगे। जितना इन्डीविज्युअल मेहनत करेंगे उतना पद पायेंगे। घर में रहते भी याद की यात्रा में रहना है। अभी फाइनल रिजल्ट में थोड़ा टाइम पड़ा है। फिर नई दुनिया भी तैयार चाहिए ना। अभी कर्मातीत अवस्था हो जाए तो सूक्ष्मवतन में रहना पड़े। सूक्ष्मवतन में रहकर भी फिर जन्म लेना पड़ता है। आगे चलकर तुमको सब साक्षात्कार होगा। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार एक बाप से ही सुनना है। एक की ही अव्यभिचारी याद में रहना है। इस शरीर की सम्भाल रखनी है, लेकिन ममत्व नहीं रखना है। बाप ने जो परहेज बताई है उसे पूरा पालन करना है। कोई भी ऐसा कर्म नहीं करना है जो बाप की ग्लानि हो, पाप का खाता बनें। अपने को घाटे में नहीं डालना है। वरदान:- अपनी विशाल बुद्धि रूपी तिजोरी द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करने वाले महादानी भव बुद्धि सभी कर्मेन्द्रियों में शिरोमणी गाई हुई है। जो विशाल बुद्धि हैं अर्थात् जिनकी बुद्धि सालिम है, उनका मस्तक सदा चमकता है क्योंकि बुद्धि रूपी तिजोरी में सारा ज्ञान भरा हुआ है। वे अपने बुद्धि रूपी तिजोरी से ज्ञान रत्नों का दान कर महादानी बन जाते हैं। तुम बुद्धि को सदा ज्ञान का भोजन देते रहो, बुद्धि अगर ज्ञान बल से भरपूर है तो प्रकृति को भी योगबल से ठीक कर लेती है। सर्वोत्तम बुद्धि वाले सम्पूर्ण ज्ञान से सर्वोत्तम कमाई कर वैकुण्ठ की बादशाही प्राप्त करते हैं। स्लोगन:- शक्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करना है तो संकल्पों की गति को धैर्यवत बनाओ। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli today: 30 Dec 2020 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 30 December 2020 (Wednesday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, at the confluence age you receive the blessing of truth from the true Father. Therefore you must never lie." Question: What effort do you children definitely have to make in order to become vice less? Answer: You definitely have to make the effort to become soul conscious. Practice only seeing the soul in the centre of the forehead. Consider yourself to be a soul as you talk to souls and listen to souls. Your vision should not fall on their bodies. This is the main effort you have to make and it is in this effort that there are obstacles. Practice as much as possible, "I am a soul, I am a soul." ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: Salutations to Shiva! Om Shanti. The Father has reminded you sweet children how the world cycle turns. Now, you children know that whatever you have come to know from the Father and the path that the Father has shown you are not known by anyone in the world. He has also explained the meaning of "Those who become the worthy-of-worship masters of the world then become worshippers.” You wouldn't say this of the Supreme Soul. It has entered your awareness that this is absolutely right. Only the Father tells you the news of the beginning, the middle and the end of the world. No one else can be called the Ocean of Knowledge. This is not the praise of Shri Krishna. Krishna is the name of that soul’s body. He is a bodily being; he cannot have all this knowledge. You understand that soul is now receiving knowledge. This is a wonderful thing. No one but the Father can explain this. There are many sages and holy men who teach many different types of hatha yoga etc. All of that is the path of devotion. You don't worship anyone in the golden age. You don't become worshippers there. It is of them that it is said: They were worthy-of-worship deities. However, they are no longer that, those same worthy-of-worship ones have now become worshippers. The Father says: This one also used to perform worship. At this time the people of the whole world are worshippers. In the new world, there is only the one deity religion of those who are worthy of worship. You children are now aware that, according to the dramaplan, this is absolutely right. This is truly the Gita episode. It is just that they have changed the name in the Gita and you make effort to explain this. For 2500 years, they have been thinking that the Gita was spoken by Krishna. Now, it would take time, would it not, for them to understand in one birth that it was incorporeal God who spoke the Gita? He has also explained how tall and complicated the tree of devotion is. You can write that the Father is teaching you Raj Yoga. You children who have such faith can explain to others with that faith. If there isn’t that faith, you yourselves become confused about how to explain to others and are afraid that there might be some upheaval. You haven’t yet become fearless. You will be fearless when you become completely soul conscious. It is on the path of devotion that they have fear. All of you are brave warriors. No one in the world knows how to conquer Maya. You children now remember that the Father also told you previously: Manmanabhav! Only the Purifier Father comes and explains this to you. Although this term is mentioned in the Gita, no one can explain it. The Father says: Children, may you be soul conscious! These expressions in the Gita are like a pinch of salt in a sackful of flour. The Father instills faith in you about everything. Those who have faithful intellects become victorious. You are now claiming your inheritance from the Father. The Father says: You definitely have to live at home with your families. There is no need for all of you to come and live here. Service has to be done and centres have to be opened. You are the Salvation Army. You are the Godly mission. Previously, you belonged to the shudra mission of Maya, whereas you now belong to the Godly mission. You are very important. What praise is there of Lakshmi and Narayan? They rule in the same way that kings rule, but they are called, "Full of all virtues and the masters of the world”, because there is no other kingdom at that time. You children now understand how they became the masters of the world. We are now becoming deities. Therefore, how can we bow down to them? You have now become knowledge-full. Those who don’t have knowledge continue to bow their heads. You also now know everyone’s occupation. You can explain which pictures are right and which ones are wrong. You can also explain that this is the kingdom of Ravan and it is about to be set on fire. The haystack has to be set on fire. The world is said to be like a haystack. You have to explain the words that have been used. They have created many pictures on the path of devotion. In fact, originally, there is the worship of Shiv Baba and then of Brahma, Vishnu and Shankar. The Trimurti that they have created is right. Then, there are this Lakshmi and Narayan. Saraswati is also included with Brahma in the Trimurti. They create so many pictures on the path of devotion. They even worship Hanuman. You are becoming brave warriors. In the temple, some are portrayed riding elephants and others riding horses. However, how could any of them (the deities) be riding them like that? The Father says: Maharathis. A maharathi means one who rides an elephant. Therefore, they have portrayed them riding elephants. The meaning of how the alligator ate the elephant has also been explained to you. The Father explains: Maya, the alligator, sometimes swallows maharathis. You now understand this knowledge. Maya eats good maharathis. These things are aspects of knowledge. No one else can explain these things. The Father says: Become viceless and imbibe divine virtues. Every cycle, the Father says: Lust is the greatest enemy. It requires effort for you to gain victory over that. You belong to the Father of People. Therefore, you are brothers and sisters. In fact, you are originally souls. A soul is speaking to souls. You have to remember that it is the soul that hears everything through these ears. I am speaking to souls and not bodies. We souls are originally brothers. Then we become one another’s brothers and sisters. You have to relate this to brothers. Your vision should go towards the soul. I am speaking to my brother. Brother, are you listening? Yes, I, a soul, am listening. There is a child in Bikaneer who always writes "soul this" and "soul that". "I, a soul, am writing through this body." "I, a soul, think this." "I, a soul, am doing this." To become soul conscious requires effort. I, a soul, say "Namaste”. When Baba says "spiritual children” he has to look at the foreheads. It is the souls that listen. I am speaking to this soul. Similarly, your vision should fall on the soul that is in the centre of the forehead. Obstacles come when your vision falls on the body. Speak to souls! Look at the souls! Renounce body consciousness! This soul also understands that the Father is sitting in the centre of the forehead and that you say "namaste” to Him. Your intellects have the knowledge that each of you is a soul and that it is the soul that listens. Previously, you didn’t have this knowledge. You received those bodies in order to play your parts. This is why a name is given to each body. It is at this time that you have to become soul conscious in order to return home. Those names have been given to you to play your parts. No activity can take place without names. There will be business activity there too, but you will have become satopradhan. That is why there are no sinful actions there; you won’t perform any actions that are sinful. The kingdom of Maya doesn’t exist there. The Father says: You souls now have to return home. Those are old bodies. Then, you will go to the golden and silver ages. There is no need for knowledge there. Why are you given knowledge here? Because you are in a state of degradation. You will perform actions there too, but they will be neutral actions. The Father says: Let your hands do the work and your heart be with the Father! Souls remember the Father. In the golden age you are pure and so all your activities are true. In the tamopradhan kingdom of Ravan all your activities are false. This is why people go on pilgrimages etc. No one commits any sin in the golden age, so they do not have to go on pilgrimages etc. Whatever you do there is truthful. You have received the blessing of truth. There is no question of any vice there. There is no need for lies in any activities. Here, because of greed, they continue to cheat and steal. These things do not exist there. According to the drama, you become such flowers. That world is viceless, whereas this world is vicious. You have the whole play in your intellects. Only at this time do you have to make effort to become pure. Through the power of yoga, you become the masters of the world. The power of yoga is the main thing. The Father says: No one on the path of devotion has been able to attain Me by doing penance or having sacrificial fires etc. Everyone has to go through the stages of sato, rajo and tamo. This knowledge is very easy and entertaining. It does require you to make effort too. It is this yoga, through which you become satopradhan, that is praised. Only the Father shows you the path to become satopradhan from tamopradhan. No one else can give you this knowledge. Even though some go to the moon and some even walk on water, that is not Raj Yoga. They cannot change from ordinary humans into Narayan. Here, you understand that you belonged to the original, eternal, deity religion and are now once again becoming that. You now remember that the Father also explained this to you in the previous cycle. The Father says: Those who have faithful intellects become victorious. If someone doesn’t have faith, he won’t come to listen. Even after having faithful intellects, some become those with doubtful intellects. Many very good maharathis also develop doubts. There is body consciousness because of just a small storm of Maya. Bap and Dada are combined. Shiv Baba gives you knowledge and then who knows whether He goes away or what happens? Should you ask Baba whether He is always here or if He goes away? You cannot ask the Father this question. The Father says: I am showing you the way to become pure from impure. I come and go; I have a lot of work to do. I come to the children and even have tasks accomplished through them. No one should have doubts about this. Your duty is to remember the Father. By having doubts, you fall. Maya slaps you very hard. The Father says: I enter this one at the end of the last of his many births. You children have the faith that it really is only the Father who gives us this knowledge. No one else can give it. The Father knows that, in spite of this, so many fall even after having faith. You have to become pure. Therefore, the Father says: Constantly remember Me alone! Don’t get caught up in anything else. When you speak in that way, it is understood that you don’t have firm faith. First of all, understand the one thing through which your sins are absolved. There is no need to speak of useless matters. Your sins will be absolved by having remembrance of the Father. So, why do you get involved in other things? When you see that someone is becoming confused by the questions and answers, tell him: Forget those things and just make the effort to remember the one Father. When you develop doubt, you stop studying and then there’ll be no benefit. Explain after feeling their pulse. If they have any doubt, make them have firm faith in one point alone. You have to explain with great tact. You children should first of all have the faith that Baba has come and is making us pure. You have this happiness. If you don’t study, you fail. How could such a soul then be happy? At school, they have the same study, but some study and then earn hundreds of thousands, whereas others earn five to ten rupees. Your aim and objective is to change from ordinary humans into Narayan. A kingdom is being established. You are to change from ordinary humans into deities. Deities have a huge kingdom. To claim a high status in that depends on how you study and your activity. Your activities should be very good. Baba even says of himself: I haven’t yet reached my karmateet stage. I too have to become perfect; I haven’t become that yet. Knowledge is very easy. It is also easy to remember the Father, but you should at least do it. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli Never stop studying by developing doubt about any aspect. In order to become pure, first of all remember the one Father. Don’t become involved in other matters. Obstacles come when your vision falls on bodies. Therefore, always look at the centre of the forehead. Consider yourselves to be souls and talk to souls. Become soul conscious. Become fearless when you do service. Blessing: May you become an embodiment of power and destroy the iron-aged mountain of weaknesses with your determined thoughts. When you are disheartened, influenced by a sanskar or adverse situation, attracted to a person or material comfort, give a finger of determined thoughts to the iron-aged mountain of all these weaknesses and destroy it for all time that is, become victorious. "Victory is the garland around your neck”. With this awareness, you will always be an embodiment of power. This is the return of love. Just as sakar Baba demonstrated this by becoming a pillar in his stage, follow the Father in the same way and become a pillar of all virtues. Slogan:- Facilities are for service, not for your luxury or comfort. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 30 Dec 2020- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 30 December 2020 (Wednesday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. (Official Murli blog~ listen + read daily murlis). ➤ जरूर पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - सत बाप द्वारा संगम पर तुम्हें सत्य का वरदान मिलता है इसलिए तुम कभी भी झूठ नहीं बोल सकते हो'' प्रश्नः- निर्विकारी बनने के लिए आप बच्चों को कौन सी मेहनत जरूर करनी है? उत्तर:- आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत जरूर करनी है। भृकुटी के बीच में आत्मा को ही देखने का अभ्यास करो। आत्मा होकर आत्मा से बात करो, आत्मा होकर सुनो। देह पर दृष्टि न जाए - यही मुख्य मेहनत है, इसी मेहनत में विघ्न पड़ते हैं। जितना हो सके यह अभ्यास करो - कि "मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ।'' ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- ओम् नमो शिवाए........ ओम् शान्ति। मीठे बच्चों को बाप ने स्मृति दिलाई है कि सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। अभी तुम बच्चे जानते हो हमने बाप से जो कुछ जाना है, बाप ने जो रास्ता बताया है, वह दुनिया में कोई नहीं जानता। आपेही पूज्य, आपेही पुजारी का अर्थ भी तुम्हें समझाया है, जो पूज्य विश्व के मालिक बनते हैं, वही फिर पुजारी बनते हैं। परमात्मा के लिए ऐसे नहीं कहेंगे। अब तुम्हें स्मृति में आया कि यह तो बिल्कुल राइट बात है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का समाचार बाप ही सुनाते हैं, और किसको भी ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता है। यह महिमा श्रीकृष्ण की नहीं है। कृष्ण नाम तो शरीर का है ना। वह शरीरधारी है, उनमें सारा ज्ञान हो न सके। अभी तुम समझते हो, उनकी आत्मा ज्ञान ले रही है। यह वन्डरफुल बात है। बाप बिगर कोई समझा न सके। ऐसे तो बहुत साधू-सन्त भिन्न-भिन्न प्रकार के हठयोग आदि सिखलाते रहते हैं। वह सब है भक्ति मार्ग। सतयुग में तुम कोई की भी पूजा नहीं करते हो। वहाँ तुम पुजारी नहीं बनते हो। उनको कहा ही जाता है - पूज्य देवी-देवता थे, अब नहीं है। वही पूज्य फिर अब पुजारी बने हैं। बाप कहते हैं यह भी पूजा करते थे ना। सारी दुनिया इस समय पुजारी है। नई दुनिया में एक ही पूज्य देवी-देवता धर्म रहता है। बच्चों को स्मृति में आया बरोबर ड्रामा के प्लैन अनुसार यह बिल्कुल राइट है। गीता एपीसोड बरोबर है। सिर्फ गीता में नाम बदल दिया है। जिस समझाने के लिए ही तुम मेहनत करते हो। 2500 वर्ष से गीता कृष्ण की समझते आये हैं। अब एक जन्म में समझ जाएं कि गीता निराकार भगवान ने सुनाई, इसमें टाइम तो लगता है ना। भक्ति का भी समझाया है, झाड़ कितना लम्बा-चौड़ा है। तुम लिख सकते हो बाप हमको राजयोग सिखा रहे हैं। जिन बच्चों को निश्चय हो जाता है तो वे निश्चय से समझाते भी हैं। निश्चय नहीं तो खुद भी मूंझते रहते हैं - कैसे समझायें, कोई हंगामा तो नहीं होगा। निडर तो अभी हुए नहीं हैं ना। निडर तब होंगे जब पूरे देही-अभिमानी बन जाएं, डरना तो भक्ति मार्ग में होता है। तुम सब हो महावीर। दुनिया में तो कोई नहीं जानते कि माया पर जीत कैसे पहनी जाती है। तुम बच्चों को अब स्मृति में आया है। आगे भी बाप ने कहा था मनमनाभव। पतित-पावन बाप ही आकर यह समझाते हैं, भल गीता में अक्षर है परन्तु ऐसे कोई समझाते नहीं। बाप कहते हैं बच्चे देही-अभिमानी भव। गीता में अक्षर तो हैं ना - आटे में नमक मिसल। हर एक बात का बाप निश्चय बिठाते हैं। निश्चयबुद्धि विजयन्ती। तुम अभी बाप से वर्सा ले रहे हो। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में भी जरूर रहना है। सबको यहाँ आकर बैठने की दरकार नहीं। सर्विस करनी है, सेन्टर्स खोलने हैं। तुम हो सैलवेशन आर्मी। ईश्वरीय मिशन हो ना। पहले शूद्र मायावी मिशन के थे, अभी तुम इश्वरीय मिशन के बने हो। तुम्हारा महत्व बहुत है। इन लक्ष्मी-नारायण की क्या महिमा है। जैसे राजायें होते हैं, वैसे राज्य करते हैं। बाकी इन्हों को कहेंगे सर्वगुण सम्पन्न, विश्व का मालिक क्योंकि उस समय और कोई राज्य नहीं होता। अभी बच्चे समझ गये हैं - विश्व के मालिक कैसे बनें? अभी हम सो देवता बनते हैं तो फिर उन्हों को माथा कैसे झुका सकेंगे। तुम नॉलेजफुल बन गये हो, जिनको नॉलेज नहीं है वह माथा टेकते रहते हैं। तुम सबके आक्यूपेशन को अभी जान गये हो। चित्र रांग कौन से हैं, राइट कौन से हैं, वह भी तुम समझा सकते हो। रावण राज्य का भी तुम समझाते हो। यह रावण राज्य है, इनको आग लग रही है। भंभोर को आग लगनी है, भंभोर विश्व को कहा जाता है। अक्षर जो गाये जाते हैं उन पर समझाया जाता है। भक्ति मार्ग में तो अनेक चित्र बनाये हैं। वास्तव में असुल होती है - शिवबाबा की पूजा, फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की। त्रिमूर्ति जो बनाते हैं वह राइट है। फिर यह लक्ष्मी-नारायण बस। त्रिमूर्ति में ब्रह्मा-सरस्वती भी आ जाते हैं। भक्तिमार्ग में कितने चित्र बनाते हैं। हनुमान की भी पूजा करते हैं। तुम महावीर बन रहे हो ना। मन्दिर में भी कोई की हाथी पर सवारी, कोई की घोड़े पर सवारी दिखाई है। अब ऐसी सवारी थोड़ेही है। बाप कहते हैं महारथी। महारथी माना हाथी पर सवार। तो उन्होंने फिर हाथी की सवारी बना दी है। यह भी समझाया है कैसे गज को ग्राह खाते हैं। बाप समझाते हैं जो महारथी हैं, कभी-कभी उनको भी माया ग्राह हप कर लेती है। तुमको अभी ज्ञान की समझ आई है। अच्छे-अच्छे महारथियों को माया खा जाती है। यह हैं ज्ञान की बातें, इनका वर्णन कोई कर न सके। बाप कहते हैं निर्विकारी बनना है, दैवीगुण धारण करने हैं। कल्प-कल्प बाप कहते हैं - काम महाशत्रु है। इसमें है मेहनत। इस पर तुम विजय पाते हो। प्रजापिता के बने तो भाई-बहन हो गये। वास्तव में असल तुम हो आत्मायें। आत्मा, आत्मा से बात करती है। आत्मा ही इन कानों से सुनती है, यह याद रखना पड़े। हम आत्मा को सुनाते हैं, देह को नहीं। असुल में हम आत्मायें भाई-भाई हैं फिर आपस में भाई-बहन भी हैं। सुनाना तो भाई को होता है। दृष्टि आत्मा तरफ जानी चाहिए। हम भाई को सुनाते हैं। भाई सुनते हो? हाँ मैं आत्मा सुनता हूँ। बीकानेर में एक बच्चा है जो सदैव आत्मा-आत्मा कह लिखता है। मेरी आत्मा इस शरीर द्वारा लिख रही है। मुझ आत्मा का यह विचार है। मेरी आत्मा यह करती है। तो यह आत्म-अभिमानी बनना मेहनत की बात है ना। मेरी आत्मा नमस्ते करती है। जैसे बाबा कहते हैं - रूहानी बच्चे। तो भ्रकुटी तरफ देखना पड़े। आत्मा ही सुनने वाली है, आत्मा को मैं सुनाता हूँ। तुम्हारी नज़र आत्मा पर पड़नी चाहिए। आत्मा भ्रकुटी के बीच में है। शरीर पर नज़र पड़ने से विघ्न आते हैं। आत्मा से बात करनी है। आत्मा को ही देखना है। देह-अभिमान को छोड़ो। आत्मा जानती है - बाप भी यहाँ भ्रकुटी के बीच में बैठा है। उनको हम नमस्ते करते हैं। बुद्धि में यह ज्ञान है हम आत्मा हैं, आत्मा ही सुनती है। यह ज्ञान आगे नहीं था। यह देह मिली है पार्ट बजाने के लिए इसलिए देह पर ही नाम रखा जाता है। इस समय तुमको देही-अभिमानी बन वापिस जाना है। यह नाम रखा है पार्ट बजाने। नाम बिगर तो कारोबार चल न सके। वहाँ भी कारोबार तो चलेगी ना। परन्तु तुम सतोप्रधान बन जाते हो इसलिए वहाँ कोई विकर्म नहीं बनेंगे। ऐसा काम ही तुम नहीं करेंगे जो विकर्म बने। माया का राज्य ही नहीं। अब बाप कहते हैं - तुम आत्माओं को वापिस जाना है। यह तो पुराने शरीर हैं फिर जायेंगे सतयुग-त्रेता में। वहाँ ज्ञान की दरकार ही नहीं। यहाँ तुमको ज्ञान क्यों देते हैं? क्योंकि दुर्गति को पाये हुए हो। कर्म तो वहाँ भी करना है परन्तु वह अकर्म हो जाता है। अब बाप कहते हैं हथ कार डे.. आत्मा याद बाप को करती है। सतयुग में तुम पावन हो तो सारी कारोबार पावन होती है। तमोप्रधान रावण राज्य में तुम्हारी कारोबार खोटी हो जाती है, इसलिए मनुष्य तीर्थ यात्रा आदि पर जाते हैं। सतयुग में कोई पाप करते नहीं जो तीर्थों आदि पर जाना पड़े। वहाँ तुम जो भी काम करते हो वह सत्य ही करते हो। सत्य का वरदान मिल गया है। विकार की बात ही नहीं। कारोबार में भी झूठ की दरकार नहीं रहती। यहाँ तो लोभ होने के कारण मनुष्य चोरी ठगी करते हैं, वहाँ यह बातें होती नहीं। ड्रामा अनुसार तुम ऐसे फूल बन जाते हो। वह है ही निर्विकारी दुनिया, यह है विकारी दुनिया। सारा खेल बुद्धि में है। इस समय ही पवित्र बनने के लिए मेहनत करनी पड़े। योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो, योगबल है मुख्य। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग के यज्ञ तप आदि से कोई भी मेरे को प्राप्त नहीं करते। सतो-रजो-तमो में जाना ही है। ज्ञान बड़ा सहज और रमणीक है, मेहनत भी है। इस योग की ही महिमा है जिससे तुमको सतोप्रधान बनना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने का रास्ता बाप ही बतलाते हैं। दूसरा कोई यह ज्ञान दे न सके। भल कोई चन्द्रमा तक चले जाते हैं, कोई पानी से चले जाते हैं। परन्तु वह कोई राजयोग नहीं है। नर से नारायण तो नहीं बन सकते। यहाँ तुम समझते हो हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे जो फिर अब बन रहे हैं। स्मृति आई है। बाप ने कल्प पहले भी यह समझाया था। बाप कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयन्ती। निश्चय नहीं तो वह सुनने आयेंगे ही नहीं। निश्चयबुद्धि से फिर संशयबुद्धि भी बन जाते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे महारथी भी संशय में आ जाते हैं। माया का थोड़ा तूफान आने से देह-अभिमान आ जाता है। यह बापदादा दोनों ही कम्बाइन्ड हैं ना। शिवबाबा ज्ञान देते हैं फिर चले जाते हैं वा क्या होता है, कौन बताये। बाबा से पूछें क्या आप सदैव हो या चले जाते हो? बाप से तो यह नहीं पूछ सकते हैं ना। बाप कहते हैं मैं तुमको रास्ता बताता हूँ पतित से पावन होने का। आऊं, जाऊं, मुझे तो बहुत काम करने पड़ते हैं। बच्चों के पास भी जाता हूँ, उनसे कार्य कराता हूँ। इसमें संशय की कोई बात न लाए। अपना काम है - बाप को याद करना। संशय में आने से गिर पड़ते हैं। माया थप्पड़ ज़ोर से मार देती है। बाप ने कहा है बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में मैं इनमें आता हूँ। बच्चों को निश्चय है बरोबर बाप ही हमें यह ज्ञान दे रहे हैं, और कोई दे न सके। फिर भी इस निश्चय से कितने गिर पड़ते हैं, यह बाप जानते हैं। तुमको पावन बनना है तो बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, और कोई बातों में नहीं पड़ो। तुम यह ऐसी बातें करते हो तो समझ में आता है - पक्का निश्चय नहीं है। पहले एक बात को समझो जिससे तुम्हारे पाप नाश होते हैं, बाकी फालतू बातें करने की दरकार नहीं। बाप की याद से विकर्म विनाश होंगे फिर और बातों में क्यों आते हो! देखो कोई प्रश्न-उत्तर में मूंझता है तो उसे बोलो कि तुम इन बातों को छोड़ एक बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करो। संशय में आया तो पढ़ाई ही छोड़ देंगे फिर कल्याण ही नहीं होगा। नब्ज देखकर समझाना है। संशय में है तो एक प्वाइंट पर खड़ा कर देना है। बहुत युक्ति से समझाना पड़ता है। बच्चों को पहले यह निश्चय हो - बाबा आया हुआ है, हमको पावन बना रहे हैं। यह तो खुशी रहती है। नहीं पढ़ेंगे तो नापास हो जायेंगे, उनको खुशी भी क्यों आयेगी। स्कूल में पढ़ाई तो एक ही होती है। फिर कोई पढ़कर लाखों की कमाई करते हैं, कोई 5-10 रूपया कमाते हैं। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है नर से नारायण बनना। राजाई स्थापन होती है। तुम मनुष्य से देवता बनेंगे। देवताओं की तो बड़ी राजधानी है, उसमें ऊंच पद पाना वह फिर पढ़ाई और एक्टिविटी पर है। तुम्हारी एक्टिविटी बड़ी अच्छी होनी चाहिए। बाबा अपने लिए भी कहते हैं - अभी कर्मातीत अवस्था नहीं बनी है। हमको भी सम्पूर्ण बनना है, अभी बने नहीं हैं। ज्ञान तो बड़ा सहज है। बाप को याद करना भी सहज है परन्तु जब करें ना। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार किसी भी बात में संशय बुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। पहले तो पावन बनने के लिए एक बाप को याद करना है, दूसरी बातों में नहीं जाना है। शरीर पर नज़र जाने से विघ्न आते हैं, इसलिए भ्रकुटी में देखना है। आत्मा समझ, आत्मा से बात करनी है। आत्म-अभिमानी बनना है। निडर बनकर सेवा करनी है। वरदान:- दृढ़ संकल्प द्वारा कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को समाप्त करने वाले समर्थी स्वरूप भव दिलशिकस्त होना, किसी भी संस्कार वा परिस्थिति के वशीभूत होना, व्यक्ति वा वैभवों के तरफ आकर्षित होना - इन सब कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को दृढ़ संकल्प की अंगुली देकर सदाकाल के लिए समाप्त करो अर्थात् विजयी बनो। विजय हमारे गले की माला है - सदा इस स्मृति से समर्थी स्वरूप बनो। यही स्नेह का रिटर्न है। जैसे साकार बाप ने स्थिति का स्तम्भ बनकर दिखाया ऐसे फालो फादर कर सर्वगुणों के स्तम्भ बनो। स्लोगन:- साधन सेवाओं के लिए हैं, आरामपसन्द बनने के लिए नहीं। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- आज की मुरली 29 Dec 2020- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 29 December 2020 (Tuesday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. (Official Murli blog~ listen + read daily murlis). ➤ जरूर पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - संगमयुग पर तुम ब्राह्मण सम्प्रदाय बने हो, तुम्हें अब मृत्युलोक के मनुष्य से अमरलोक का देवता बनना है'' प्रश्नः- तुम बच्चे किस नॉलेज को समझने के कारण बेहद का संन्यास करते हो? उत्तर:- तुम्हें ड्रामा की यथार्थ नॉलेज है, तुम जानते हो ड्रामानुसार अब इस सारे मृत्युलोक को भस्मीभूत होना है। अभी यह दुनिया वर्थ नाट एपेनी बन गई है, हमें वर्थ पाउण्ड बनना है। इसमें जो कुछ होता है वह फिर हूबहू कल्प के बाद रिपीट होगा इसलिए तुमने इस सारी दुनिया से बेहद का संन्यास किया है। ♫ मुरली सुने ➤ गीत:- आने वाले कल की तुम........ ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत की लाइन सुनी। आने वाला है अमरलोक। यह है मृत्युलोक। अमरलोक और मृत्यु-लोक का यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। अब बाप पढ़ाते हैं संगम पर, आत्माओं को पढ़ाते हैं इसलिए बच्चों को कहते हैं आत्म-अभिमानी हो बैठो। यह निश्चय करना है - हमको बेहद का बाप पढ़ाते हैं। हमारी एम ऑब्जेक्ट यह है - लक्ष्मी-नारायण या मृत्युलोक के मनुष्य से अमरलोक का देवता बनना। ऐसी पढ़ाई तो कभी कानों से नहीं सुनी, न किसको कहते हुए देखा जो कहे बच्चों तुम आत्म-अभिमानी हो बैठो। यह निश्चय करो कि बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं। कौन सा बाप? बेहद का बाप निराकार शिव। अभी तुम समझते हो हम पुरुषोत्तम संगमयुग पर हैं। अभी तुम ब्राह्मण सम्प्रदाय बने हो फिर तुमको देवता बनना है। पहले शूद्र सम्प्रदाय के थे। बाप आकर पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाते हैं। पहले सतोप्रधान पारसबुद्धि थे, अब फिर बनते हैं। ऐसे नहीं कहना चाहिए कि सतयुग के मालिक थे। सतयुग में विश्व के मालिक थे। फिर 84 जन्म ले सीढ़ी उतरते-उतरते सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आये हैं। पहले सतोप्रधान थे तो पारसबुद्धि थे फिर आत्मा में खाद पड़ती है। मनुष्य समझते नहीं। बाप कहते हैं - तुम कुछ नहीं जानते थे। ब्लाइन्डफेथ था। सिवाए जानने के किसकी पूजा करना वा याद करना उसको ब्लाइन्डफेथ कहा जाता है। और अपने श्रेष्ठ धर्म, श्रेष्ठ कर्म को भी भूल जाने से वह कर्म भ्रष्ट, धर्म भ्रष्ट बन पड़ते हैं। भारतवासी इस समय दैवी धर्म से भी भ्रष्ट हैं। बाप समझाते हैं वास्तव में तुम हो प्रवृत्ति मार्ग वाले। वही देवतायें जब अपवित्र बनते हैं तब देवी-देवता कह नहीं सकते इसलिए नाम बदल हिन्दू धर्म रख दिया है। यह भी होता है ड्रामा प्लैन अनुसार। सभी एक बाप को ही पुकारते हैं - हे पतित-पावन आओ। वह एक ही गॉड फादर है जो जन्म-मरण रहित है। ऐसे नहीं कि नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ है। आत्मा का वा परमात्मा का रूप बहुत सूक्ष्म है, जिसको स्टॉर व बिन्दू कहते हैं। शिव की पूजा करते हैं, शरीर तो है नहीं। अब आत्मा बिन्दी की पूजा हो न सके इसलिए उनको बड़ा बनाते हैं पूजा के लिए। समझते हैं शिव की पूजा करते हैं। परन्तु उनका रूप क्या है, वह नहीं जानते। यह सब बातें बाप इस समय ही आकर समझाते हैं। बाप कहते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। 84 लाख योनियों का तो एक गपोड़ा लगा दिया है। अब बाप तुम बच्चों को बैठ समझाते हैं। अभी तुम ब्राह्मण बने हो फिर देवता बनना है। कलियुगी मनुष्य हैं शूद्र। तुम ब्राह्मणों की एम ऑब्जेक्ट है मनुष्य से देवता बनने की। यह मृत्युलोक पतित दुनिया है। नई दुनिया वह थी, जहाँ यह देवी-देवतायें राज्य करते थे। एक ही इनका राज्य था। यह सारे विश्व के मालिक थे। अभी तो तमोप्रधान दुनिया है। अनेक धर्म हैं। यह देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो गया है। देवी-देवताओं का राज्य कब था, कितना समय चला, यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई नहीं जानते। बाप ही आकर तुमको समझाते हैं। यह है गॉड फादरली वर्ल्ड युनिवर्सिटी, जिसकी एम ऑब्जेक्ट है अमरलोक का देवता बनाना। इनको अमर-कथा भी कहा जाता है। तुम इस नॉलेज से देवता बन काल पर जीत पाते हो। वहाँ कभी काल खा नहीं सकता। मरने का वहाँ नाम नहीं। अभी तुम काल पर जीत पहन रहे हो, ड्रामा के प्लैन अनुसार। भारतवासी भी 5 वर्ष या 10 वर्ष का प्लैन बनाते हैं ना। समझते हैं हम रामराज्य स्थापन कर रहे हैं। बेहद के बाप का भी प्लैन हैं रामराज्य बनाने का। वह तो सब हैं मनुष्य। मनुष्य तो रामराज्य स्थापन कर न सके। रामराज्य कहा ही जाता है सतयुग को। इन बातों को कोई जानते नहीं हैं। मनुष्य कितनी भक्ति करते हैं, जिस्मानी यात्रायें करते हैं। दिन अर्थात् सतयुग-त्रेता में इन देवताओं का राज्य था। फिर रात में भक्ति मार्ग शुरू होता है। सतयुग में भक्ति नहीं होती है। ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, यह बाप समझाते हैं। वैराग्य दो प्रकार का है - एक है हठयोगी निवृत्ति मार्ग वालों का, वह घरबार छोड़ जंगल में जाते हैं। अब तुमको तो बेहद का संन्यास करना है, सारे मृत्युलोक का। बाप कहते हैं यह सारी दुनिया भस्मीभूत होने वाली है। ड्रामा को बहुत अच्छी रीति समझना है। जूं मिसल टिक-टिक होती रहती है। जो कुछ होता है फिर कल्प 5 हज़ार वर्ष बाद हूबहू रिपीट होगा। इसको बहुत अच्छी रीति समझकर बेहद का संन्यास करना है। समझो कोई विलायत जाते हैं कहेंगे वहाँ हम यह नॉलेज पढ़ सकते हैं? बाप कहते हैं हाँ कहाँ भी बैठ तुम पढ़ सकते हो। इसमें पहले 7 रोज़ का कोर्स लेना पड़ता है। बहुत सहज है, आत्मा को सिर्फ यह समझना होता है। हम सतोप्रधान विश्व के मालिक थे तब सतोप्रधान थे। अब तमोप्रधान बन गये हैं। 84 जन्मों में बिल्कुल ही वर्थ नाट एपेनी बन पड़े हैं। अब फिर हम पाउण्ड कैसे बनें? अब कलियुग है फिर जरूर सतयुग होना है, बाप कितना सिम्पुल समझाते हैं, 7 दिन का कोर्स समझना है। कैसे हम सतोप्रधान से तमोप्रधान बने हैं। काम चिता पर बैठ तमोप्रधान बने हैं। अब फिर ज्ञान चिता पर बैठ सतोप्रधान बनना है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है, चक्र फिरता रहता है ना। अभी है संगमयुग फिर सतयुग होगा। अभी हम कलियुगी विशश बने हैं, सो फिर सतयुगी वाइसलेस कैसे बनें? उसके लिए बाप रास्ता बताते हैं। पुकारते भी हैं हमारे में कोई गुण नहीं है। अब हमको ऐसा गुणवान बनाओ। जो कल्प पहले बने थे उन्हों को ही फिर बनना है। बाप समझाते हैं - पहले-पहले तो अपने को आत्मा समझो। आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। अभी तुमको देही-अभिमानी बनना है। अभी ही तुम्हें देही-अभिमानी बनने की शिक्षा मिलती है। ऐसे नहीं तुम सदैव देही-अभिमानी रहेंगे। नहीं, सतयुग में तो नाम शरीर के रहते हैं। लक्ष्मी-नारायण के नाम पर ही सारी कारोबार चलती है। अभी यह है संगमयुग जबकि बाप समझाते हैं। तुम नंगे (अशरीरी) आये थे फिर अशरीरी बन वापिस जाना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। यह है रूहानी यात्रा। आत्मा अपने रूहानी बाप को याद करती है। बाप को याद करने से ही पाप भस्म हो जायेंगे, इनको योग अग्नि कहा जाता है। याद तो तुम कहाँ भी कर सकते हो। 7 रोज़ में समझाना होता है। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, कैसे हम सीढ़ी उतरते हैं? अब फिर इस एक ही जन्म में चढ़ती कला होती है। विलायत में बच्चे रहते हैं, वहाँ भी मुरली जाती है। यह स्कूल हैं ना। वास्तव में यह है गॉड फादरली युनिवर्सिटी। गीता का ही राजयोग है। परन्तु श्रीकृष्ण को भगवान नहीं कहा जाता। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी देवता कहा जाता है। अभी तुम पुरुषार्थ कर फिर सो देवता बनते हो। प्रजापिता ब्रह्मा भी जरूर यहाँ होगा ना। प्रजापिता तो मनुष्य है ना। प्रजा जरूर यहाँ ही रची जाती है। हम सो का अर्थ बाप ने बहुत सहज रीति समझाया है। भक्ति मार्ग में तो कह देते हम आत्मा सो परमात्मा, इसलिए परमात्मा को सर्वव्यापी कह देते। बाप कहते हैं सबमें व्यापक है आत्मा। मैं कैसे व्यापक होऊंगा? तुम मुझे बुलाते ही हो - हे पतित-पावन आओ, हमको पावन बनाओ। निराकार आत्मायें सब आकर अपना-अपना रथ लेती हैं। हर एक अकाल मूर्त आत्मा का तख्त है यह। तख्त कहो अथवा रथ कहो। बाप को तो रथ है नहीं। वह निराकार ही गाया जाता है। न सूक्ष्म शरीर है, न स्थूल शरीर है। निराकार खुद रथ में जब बैठे तब बोल सके। रथ बिगर पतितों को पावन कैसे बनायेंगे? बाप कहते हैं मैं निराकार आकर इनका लोन लेता हूँ। टेप्रेरी लोन लिया है, इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है। बाप ही सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताए तुम बच्चों को त्रिकालदर्शी बनाते हैं। और कोई मनुष्य यह नॉलेज जान नहीं सकते। इस समय सब नास्तिक हैं। बाप आकर आस्तिक बनाते हैं। रचयिता-रचना का राज़ बाप ने तुमको बताया है। अब तुम्हारे सिवाए और कोई समझा न सके। तुम ही इस ज्ञान से फिर यह इतना ऊंच पद पाते हो। यह ज्ञान सिर्फ अभी ही तुम ब्राह्मणों को मिलता है। बाप संगम पर ही आकर यह ज्ञान देते हैं। सद्गति देने वाला एक बाप ही है। मनुष्य, मनुष्य को सद्गति दे न सके। वह सब गुरू हैं भक्ति मार्ग के। सतगुरू एक ही है, उनको कहा जाता है वाह सतगुरू वाह! इनको पाठशाला भी कहा जाता है। एम ऑब्जेक्ट नर से नारायण बनने की है। वह सब हैं भक्ति मार्ग की कथायें। गीता से भी कोई प्राप्ति नहीं होती। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को सम्मुख आकर पढ़ाता हूँ, जिससे तुम यह पद पाते हो। इसमें मुख्य है पवित्र बनने की बात। बाप की याद में रहना है। इसी में ही माया विघ्न डालती है। तुम बाप को याद करते हो अपना वर्सा पाने के लिए। यह नॉलेज सब बच्चों के पास जाती है। कभी भी मुरली मिस न हो। मुरली मिस हुई गोया एबसेन्ट पड़ जाती है। मुरली से कहाँ भी बैठे रिफ्रेश होते रहेंगे। श्रीमत पर चलना पड़े। बाहर में जाते हैं तो बाप समझाते हैं - पवित्र जरूर बनना है, वैष्णव होकर रहना है। वैष्णव भी दो प्रकार के होते हैं, वैष्णव, वल्लभाचारी भी होते हैं परन्तु विकार में जाते हैं। पवित्र तो हैं नहीं। तुम पवित्र बन विष्णुवंशी बनते हो। वहाँ तुम वैष्णव रहेंगे, विकार में नहीं जायेंगे। वह है अमरलोक, यह है मृत्युलोक, यहाँ विकार में जाते हैं। अभी तुम विष्णुपुरी में जाते हो, वहाँ विकार होता नहीं। वह है वाइसलेस वर्ल्ड। योगबल से तुम विश्व की बादशाही लेते हो। वह दोनों आपस में लड़ते हैं, माखन बीच में तुमको मिलता है। तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो। सभी को यही पैगाम देना है। छोटे बच्चों का भी हक है। शिवबाबा के बच्चे हैं ना। तो सबका हक है। सबको कहना है अपने को आत्मा समझो। माँ-बाप में ज्ञान होगा तो बच्चों को भी सिखायेंगे - शिवबाबा को याद करो। सिवाए शिवबाबा के दूसरा न कोई। एक की याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। इसमें पढ़ाई बहुत अच्छी चाहिए। विलायत में रहते भी तुम पढ़ सकते हो। इसमें किताब आदि कुछ भी नहीं चाहिए। कहाँ भी बैठे तुम पढ़ सकते हो। बुद्धि से याद कर सकते हो। यह पढ़ाई इतनी सहज है। योग अथवा याद से बल मिलता है। तुम अभी विश्व का मालिक बन रहे हो। बाप राजयोग सिखाकर पावन बनाते हैं। वह है हठयोग, यह है राजयोग। इसमें परहेज बहुत अच्छी रीति चाहिए। इन लक्ष्मी-नारायण जैसा सर्वगुण सम्पन्न बनना है ना। खान पान की भी परहेज चाहिए, और दूसरी बात बाप को याद करना है तो जन्म जन्मान्तर के पाप कट जायेंगे। इसको कहा जाता है सहज राजयोग, राजाई प्राप्त करने के लिए। अगर राजाई न ली तो गरीब बन जायेंगे। श्रीमत पर पूरा चलने से श्रेष्ठ बनेंगे। भ्रष्ट से श्रेष्ठ बनना है। उसके लिए बाप को याद करना है। कल्प पहले भी तुमने ही यह ज्ञान लिया था, जो फिर अब लेते हो। सतयुग में और कोई राज्य नहीं था। उसको कहा जाता है सुखधाम। अभी यह है दु:खधाम और जहाँ से हम आत्मायें आई हैं वह है शान्तिधाम। शिव-बाबा को वन्डर लगता है - दुनिया में मनुष्य क्या-क्या करते हैं! बच्चे कम पैदा हों उसके लिए भी कितना माथा मारते रहते हैं। समझते नहीं यह तो बाप का ही काम है। बाप झट एक धर्म की स्थापना कर बाकी सब अनेक धर्मों का विनाश करा देते हैं, एक धक से। वो लोग कितनी दवाइयां आदि निकालते हैं पैदाइस कम करने लिए। बाप के पास तो एक ही दवाई है। एक धर्म की स्थापना होनी है। वह समय आयेगा सब कहेंगे यह तो पवित्र बन रहे हैं। फिर दवाई आदि की भी क्या दरकार है। तुमको बाबा ने ऐसी दवाई दी है मनमनाभव की, जिससे तुम 21 जन्मों के लिए पवित्र बन जाते हो। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार पवित्र बनकर पक्का वैष्णव बनना है। खान-पान की भी पूरी परहेज करनी है। श्रेष्ठ बनने के लिए श्रीमत पर जरूर चलना है। मुरली से स्वयं को रिफ्रेश करना है, कहाँ भी रहते सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है। मुरली एक दिन भी मिस नहीं करनी है। वरदान:- जुदाई को सदाकाल के लिए विदाई देने वाले स्नेही स्वरूप भव जो स्नेही को पसन्द है वही स्नेह करने वाले को पसन्द हो - यही स्नेह का स्वरूप है। चलना-खाना-पीना-रहना स्नेही के दिलपसन्द हो इसलिए जो भी संकल्प वा कर्म करो तो पहले सोचो कि यह स्नेही बाप के दिलपसन्द है। ऐसे सच्चे स्नेही बनो तो निरन्तर योगी, सहजयोगी बन जायेंगे। यदि स्नेही स्वरूप को समान स्वरूप में परिवर्तन कर दो तो अमर भव का वरदान मिल जायेगा और जुदाई को सदाकाल के लिए विदाई मिल जायेगी। स्लोगन:- स्वभाव इज़ी और पुरूषार्थ अटेन्शन वाला बनाओ। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli today: 29 Dec 2020 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 29 December 2020 (Tuesday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, at this confluence age, you belong to the Brahmin community. You now have to change from human beings of the land of death into deities of the land of immortality." Question: On the basis of understanding which knowledge are you children able to have unlimited renunciation? Answer: You have the accurate knowledge of the drama. You know that, according to the drama, the whole land of death has to be burnt. This world is worth not a penny. We have to become worth a pound. Whatever happens in the drama is going to repeat identically after a cycle. This is why you have unlimited renunciation of the whole world. ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: You are the fortune of tomorrow. Om Shanti. death. This is the elevated confluence age in between the land of death and the land of immortality. The Father teaches us now at the confluence age. He teaches souls. Therefore, He says to you children: Sit in soul consciousness! Have the faith that the unlimited Father is teaching you. Our aim and objective is to become Lakshmi and Narayan, to change from human beings of the land of death into deities of the land of immortality. Your ears would never have heard such teachings nor would you ever have seen anyone telling children to sit in soul consciousness. Develop the faith that the unlimited Father is teaching us. Which Father? It is the unlimited Father; it is incorporeal Shiva. You now understand that we are at the elevated confluence age. You have now become part of the Brahmin community. You then have to become deities. Previously, you belonged to the shudra community. The Father comes and changes you from those with stone intellects into those with divine intellects. You were originally those with satopradhan, divine intellects and you are now becoming those once again. You should not say that you were the masters of the golden age. In the golden age, you were the masters of the world. While taking 84 births and coming down the ladder, you changed from satopradhan to sato, rajo and tamo. Originally, when you were satopradhan, your intellects were divine. Then, alloy became mixed into souls. Human beings do not understand this. The Father says: You did not know anything; you only had blind faith. It is called blind faith when you worship someone or remember someone without knowing him. By forgetting your elevated religion and elevated actions, you become corrupt in actions and corrupt in religion. From being in their divine religion, the people of Bharat have become corrupt. The Father explains: In reality, you are the ones who belong to the family path. When those deities become impure, they can no longer be called deities. That is why they changed their name and called themselves Hindus. This also happens according to the dramaplan. Everyone calls out to the one Father: O Purifier come! He is the only Godfather who is free from rebirth. It is not that there is anything without a name or form. The form of a soul and the Supreme Soul is very subtle. A soul is called a star and also a point. Shiva is worshipped but He does not have a body and a soul, a point, cannot be worshipped. Therefore, in order to worship Him, they make a large image of it. They believe that they are worshipping Shiva, but they do not know His name or form. It is only now that the Father comes and explains all of these aspects. The Father says: You do not know about your births. They have told a lie about 8.4 million species. The Father now sits here and explains to you children. You have now become Brahmins and are to become deities. People of the iron age are shudras. The aim and objective of you Brahmins is to become deities from ordinary human beings. This land of death is an impure world. It used to be the new world where the deities ruled. There was only their kingdom. They were the masters of the whole world. The world is now tamopradhan. There are many religions. The deity religion has disappeared. No one knows the history and geography of the world in regard to when or for how long the deities ruled. Only the Father comes and explains this to you. This is the Godfatherly World University whose aim and objective is to make you into the deities of the land of immortality. This is also known as the story of immortality. You become deities and conquer death with this knowledge. You will never be eaten by death there; there is no mention of death there. You are conquering death according to the drama plan. The people of Bharat make five to ten-year plans. They also believe they are establishing the kingdom of Rama. The unlimited Father too has a plan to create the kingdom of Rama. They are all human beings. Human beings cannot establish the kingdom of Rama. The golden age is known as the kingdom of Rama. No one knows about these things. Human beings perform so much devotion and go on physical pilgrimages. The day means when it is the kingdom of deities in the golden and silver ages. The path of devotion starts in the night. There is no devotion in the golden age. The Father explains about knowledge, devotion and disinterest. There are two types of disinterest. One is that of the hatha yogis of the path of isolation - they leave their homes and go into the forests. You now have to have unlimited renunciation of the whole land of death. The Father says: This whole world is going to be completely burnt. You have to understand the drama very well. It continues to tick away like a louse. Whatever is happening now is going to repeat identically after a cycle of 5000 years. You must understand this very well and have unlimited renunciation. For instance, when someone goes abroad, he asks: "Can I study this knowledge over there?” The Father replies: You can study this knowledge wherever you sit. For this you first have to take the seven days’ course. It is very easy for a soul to understand all of these aspects. When you were the masters of the satopradhan world, you were satopradhan. You have now become tamopradhan. Having taken 84 births, you have become absolutely worth not a penny. How do you become worth a pound? It is now the iron age and it will then definitely become the golden age. The Father explains in such a simple way. You have to understand the seven days’ course: how you became tamopradhan from satopradhan. You became tamopradhan by sitting on the pyre of lust. You now have to sit on the pyre of knowledge and become satopradhan. The history and geography of the world repeat and the cycle continues to turn. It is now the confluence age and it will then be the golden age. You have now become vicious in the iron age. So, how will you become viceless as in the golden age? The Father shows the way to do this. They call out: We have no virtues. Make us full of virtues! Only those who became this a cycle ago will become this again. The Father explains: First, consider yourselves to be souls! A soul leaves a body and takes another. You now have to become soul conscious. It is now that you receive the knowledge of how to become soul conscious. It is not that you are able to remain constantly soul conscious. In the golden age, your bodies will have names. All the activities of Lakshmi and Narayan are carried out through their names. This is now the confluence age when the Father explains. You came bodiless and you have to return bodiless. Consider yourselves to be souls and remember the Father! This is the spiritual pilgrimage. A soul remembers his spiritual Father. It is only by remembering the Father that your sins will be burnt. This is called the fire of yoga. You can remember Him anywhere. In seven days you have to explain how the cycle turns and how we come down the ladder. It is only in this one birth that there is the ascending stage. Murlis are also sent abroad to the children who live there. This is a school. In fact, this is a Godfatherly University. This is the Raj Yoga that is mentioned in the Gita. However, Shri Krishna cannot be God, as even Brahma, Vishnu and Shankar are deities. You are now making effort to become deities again. Prajapita Brahma would also definitely be here; the Father of the People is a human being. People are surely created here. The Father has given a very easy explanation of the meaning of "Hum so". On the path of devotion, they say that a soul is the Supreme Soul. That is why they say that God is omnipresent. The Father says: It is a soul that is present in everyone. How could I be present in everyone? You call out to Me: O Purifier come and purify us! Incorporeal souls come and take their own chariots. Those are the thrones of all immortal souls. You can call it a throne or a chariot. The Father does not have a chariot of His own. He is remembered as the Incorporeal. He neither has a corporeal body nor a subtle body. Only when the incorporeal One sits in a chariot can He speak. How could He purify the impure without a chariot? The Father says: I, the incorporeal One, come and take this one on loan. It is a temporary loan. He is called "The Lucky Chariot”. The Father makes you children trikaldarshi by explaining the secrets of the beginning, middle and end of the world. No other human beings can know this knowledge. At present, all are atheists. The Father comes and makes you into theists. He has told you the secrets of the Creator and creation. No one else, apart from you, can explain this. You attain such a high status through this knowledge. Only at this time do you Brahmins receive this knowledge. The Father comes now, at the confluence, to give this knowledge. The Father is the only One who grants salvation. No human being can grant salvation to another. All of those gurus belong to the path of devotion. The Satguru is only one. It is of Him that it is said, "Wah Satguru! Wah!” This is called a school. The aim and objective is to become Narayan from an ordinary human being. All of those stories belong to the path of devotion. There is no attainment by studying the Gita. The Father says: I come to teach you children personally. It is through this that you attain that status. The main aspect in this is to become pure. You have to remember the Father. It is in this that Maya creates obstacles. You remember the Father in order to claim your inheritance. This knowledge is sent to all the children. No murli should ever be missed. To miss a murli means to receive an absent mark. Wherever you are, you can still be refreshed by a murli. You have to follow shrimat. The Father explains: Even when you go abroad, you definitely do have to remain pure! You have to be a Vaishnav. There are two types of Vaishnav, true Vaishnavs and the Vallabhcharis who indulge in vice; they are not pure. You become pure and also become part of the dynasty of Vishnu. You remain Vaishnavs there; you do not indulge in vice. That is the land of immortality. This is the land of death where people indulge in vice. You are now going to the land of Vishnu where there are no vices. That is the viceless world. You claim sovereignty over the world with the power of your yoga. Those two sides fight each other and you take the butter from in between them. You are establishing your own kingdom. Give this message to everyone. Even small children have a right to hear this. They are the children of Shiv Baba, and they therefore all have a right to it. Tell everyone: Consider yourself to be a soul! When a mother and father have this knowledge, they will also teach their children to remember Shiv Baba. No one, other than Shiv Baba, is to be remembered. By having remembrance of the One, you become satopradhan from tamopradhan. You need to study very well for this. You can study this even while living abroad. You don’t need any books for this. You can study this while sitting anywhere. You can have remembrance with your intellect. This study is very easy. You receive power by having yoga, remembrance. You are now becoming the masters of the world. The Father purifies you by teaching you Raj Yoga. That is hatha yoga; this is Raj Yoga. You have to take a lot of precautions in this. You have to become full of all virtues like Lakshmi and Narayan. You have to take precautions with your food and drink. You also have to remember the Father so that your sins of many births can be cut away. This is known as easy Raj Yoga to attain the kingdom. If you do not claim the kingdom you become poor. You become elevated by following shrimat fully. You have to become elevated from degraded. For this, you have to remember the Father. You are those who received this knowledge a cycle ago and are receiving it again. There is no other kingdom in the golden age. That is called the land of happiness. This is now the land of sorrow, whereas the place from where we souls come is the land of peace. Shiv Baba is amazed at the activities that human beings perform in this world! People beat their heads so much in order that there should be fewer children born. They don't understand that that task is only the Father's task. The Father instantly establishes one religion and inspires the destruction of all others. Those people create so many new drugs for birth control. The Father has only one medicine. One religion has to be established. The time will come when you will all say that you have become pure. Then, there will be no need for any medicine. Baba has given you the medicine of "Manmanabhav”, through which you become pure for 21 births. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli Become a real Vaishnav by remaining pure. Take full precautions about your food and drink. In order to become elevated you definitely have to follow shrimat. Refresh yourself with a murli. Wherever you live, make effort to become satopradhan. You must never miss a murli for even a day. Blessing: May you be a loving form and bid farewell to separation for all time. Whatever the person you love loves, it is loved by yourself (one who loves others): this is the form of love. Let your moving, eating, drinking and living be liked by the one whom you love. Therefore, whatever thoughts you have or actions you perform, first of all, think: Would the Father whom I love like this? Become one who is truly loving (like the Father) and you will become a constant and easy yogi. When you transform the loving form into an equal form, you will receive the blessing of being immortal and you will have bade farewell to separation for all time. Slogan:- Let your nature be easy and your efforts filled with attention. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- BK murli today: 28 Dec 2020 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 28 December 2020 (Monday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, charity begins at home. This means that you first of all have to make effort to become soul conscious and then tell others. When you give knowledge to others, whilst considering yourself to be a soul, the sword of knowledge will be filled with power." Question: By making effort in which two aspects at the confluence age will you become the masters of the golden-aged throne? Answer: 1.Make the effort to maintain a stage of equanimity in happiness and sorrow and in praise and defamation. If someone says wrong things or becomes angry, just remain quiet; don’t respond. 2. Make your eyes civil. Criminal eyes should completely finish. We souls are brothers. Give knowledge to others while considering them to be souls. Make the effort to become soul conscious and you will become the masters of the golden-aged throne. Only those who become completely pure will be seated on the throne. ♫ Listen Today's Murli ➤ Om Shanti. The spiritual Father speaks to the spiritual children. Each of you souls has received a third eye which can also be called the eye of knowledge. You see your brothers with this eye. You understand with your intellects that, when you see others as brothers, your sense organs won’t make mischief. When you continue to do this, the eyes that have become criminal will become civil. The Father says: You do have to make some effort in order to become the masters of the world! Therefore, now make this effort. In order for you to make effort, Baba gives you new and deep points every day. Therefore, now, instill the habit of giving knowledge to others while considering them to be brothers. Then the saying "We are all brothers” will become practical. You are now true brothers because you know your Father. The Father is doing service along with you children. When you children maintain courage, the Father helps. So the Father comes and gives you the courage to do service. Therefore, this is easy, is it not? You have to practice this every day; do not be lazy. You children receive these new points. You children know that Baba is teaching you brothers. Souls are studying this spiritual knowledge. It is called spiritual knowledge. Only at this time do you receive spiritual knowledge from the spiritual Father because He only comes at the confluence age when the world has to change. Only when the world has to change do you receive this spiritual knowledge. The Father comes and gives you spiritual knowledge: Consider yourselves to be souls. You souls came bodiless and you then adopted bodies here. You have taken 84 births from the beginning. Just as you come down, number-wise, in the same way, you make effort, number-wise, in knowledge and yoga. Then, it is seen that whatever effort each of you made in the previous cycle, that is being made in the same way now. Each of you has to make effort for yourself. You are not going to make effort for anyone else. You have to make effort for yourself by considering yourself to be a soul. What does it matter to you what others are doing? "Charity begins at home” means that you yourself have to make effort first and then ask others (your brothers) to do the same. When you first consider yourself to be a soul and give knowledge to souls, your sword of knowledge will then be filled with power. This does require some effort. Therefore, you definitely have to tolerate something or other. It is at this time that happiness and sorrow, respect and disrespect, praise and defamation all have to be tolerated a little. Whenever anyone says wrong things, just remain quiet. When one person becomes quiet, the other one can’t become angry. When one person says something and the other person responds in the same way, that is like clapping with the mouth. If one person says something but the other one remains quiet, everything then quietens down. This is what the Father teaches. Whenever you see someone becoming angry, just remain quiet and that person’s anger will automatically cool down. There won’t be any clapping (response) then. When there is some response, there will be conflict and this is why the Father says: Children, never respond in the same way over such matters, in either of the vices of lust or anger. You children have to benefit everyone. Why have so many centres been created? Such centres would also have been established in the previous cycle. The Father, the Deity of all deities, continues to see that many children are interested in opening a centre. They say: I will open a centre and pay all the expenses. Day by day, it will continue to happen like that because, as the time for destruction comes closer interest in doing service of this kind will increase. Bap and Dada are now together. Therefore, they are looking at each of you to see what effort you are making and what status you will receive. The efforts of some are the highest level, those of others are mediocre and those of some are the lowest. This can be seen. In a school too, a teacher sees in which subjects the students fluctuate. It is the same here. Some children pay attention very well and so they consider themselves to be the highest. Sometimes, they make a mistake and don’t stay in remembrance. Therefore, they consider themselves to be very low. This is a school. Children say: Baba, sometimes, I am very happy but at other times, my happiness decreases. Therefore, Baba continues to explain: If you want to be happy, become "Manmanabhav”! Consider yourself to be a soul and remember the Father! Just as you look at the Supreme Soul in front of you and you see that He is sitting on the Immortal Throne, in the same way, look at your brothers while considering yourself to be a soul, and then talk to them. I am giving knowledge to my brother; not to a sister, but to a brother. You are giving knowledge to souls. When you instill this habit, your criminal eye, which has been deceiving you will gradually stop. What would a soul do to a soul? It is when there is body consciousness that you fall. Many say: Baba, my eyes are criminal. Achcha, in that case, now make your criminal eyes civil. The Father has given each of you souls a third eye. When you look at everything with your third eye, your habit of looking at the bodies will finish. Baba continues to give directions to the children. He also says the same thing to this one (Brahma). This Baba also has to look at the soul in the body. Therefore, this is called spiritual knowledge. Look how elevated the status you receive is! It is a very powerful status. Therefore, you also have to make effort accordingly. Baba also understands that everyone’s efforts will be the same as they were in the previous cycle. Some will become kings and queens and some will become part of the subjects. So, when you especially conduct meditation for everyone and consider yourself to be a soul while looking at other souls in the centre of their foreheads, the service they do will be very good. Those who sit here in soul consciousness only look at souls. Practice this a great deal. If you want to claim a high status, you have to make some effort. This is the only effort you souls have to make. You only receive this spiritual knowledge once; you cannot receive it at any other time. It cannot be received in the iron age or the golden age; it can only be received at the confluence age and, in that too, only Brahmins receive it. Remember this very firmly. Only when you first become Brahmins can you then become deities. How could you become deities if you didn’t become Brahmins? It is only at this confluence age that you make this effort. At no other time will it be said: Consider yourself to be a soul and also consider others to be souls when giving them knowledge. Churn everything that the Father explains to you. Judge for yourself whether it is right or not, whether it is beneficial for you. You will then instil in yourself the habit of giving your brothers the teachings that the Father has given you. These have to be given to females as well as males. After all, they have to be given to souls. It is souls that have become male or female, brothers or sisters. The Father says: I give you children knowledge. I look at you children and see souls, and you souls also understand that the Supreme Soul, who is your Father, is giving you knowledge. This is called having spiritual consciousness. This is called, "The give and take of spiritual knowledge of the Supreme Soul with souls". The Father teaches you that whenever a visitor etc. comes, you have to consider yourself to be a soul and give the introduction of the Father to that soul. The soul, not the body, has knowledge. Therefore, give knowledge to that one while considering him to be a soul. When you do this they will also enjoy it. There will be power in your words. Because you become soul conscious, your sword of knowledge will be filled with power. Therefore, practice this and see for yourself! Baba says: Judge for yourself whether this too is right. This is not anything new for you children because the Father explains everything very easily. You have been around the cycle and the play is now coming to an end. You now have to stay in remembrance of Baba. You are becoming satopradhan from tamopradhan in order to become the masters of the satopradhan world. You will then come down the ladder again in the same way. Look how He explains in such a simple way! I have to come every 5000 years. I am bound by the drama plan. I come and teach you children this very easy pilgrimage of remembrance. By having remembrance of the Father, your final thoughts will lead you to your destination. This refers to this time. This is the final period of time. It is at this time that the Father sits here and shows you the way. He says: Constantly remember Me alone and you will receive salvation. Children understand what they are to become by studying. Here, too, you understand that you will go and become deities in the new world. This is not anything new. The Father repeatedly says: Nothing new! You have to go up and come down the ladder. There is the story of the genie: he was given the work of going up and down a ladder. This play is about going up and coming down. By staying on the pilgrimage of remembrance, you will become very strong. Therefore, the Father sits here and teaches you children different ways and says: Children now become soul conscious. Everyone now has to return home. You souls have become tamopradhan while taking the full 84 births. It is the people of Bharat who go through the stages of sato, rajo and tamo. None of those of other nationalities can be said to have taken the full 84 births. The Father has come and told you that everyone has his own part in the play. Souls are so tiny! Scientists cannot understand how an imperishable part is recorded in such a tiny soul. This is the most wonderful aspect! A soul is so tiny, but just see how big a part he plays; and that too is imperishable! This drama too is imperishable and also predestined. It isn’t that anyone should ask when it was created. No; this is nature. This knowledge is very wonderful. No one else can ever give this knowledge. No one else has the power to give this knowledge. Therefore, the Father explains to you children every day. Now practice: I am giving knowledge to my brother soul in order to make him similar to myself. He too has to claim his inheritance from the Father because all souls have a right. Baba comes to give all souls their inheritance of peace or happiness. When we are in our kingdom, all other souls are in the land of peace and then there will be the cries of victory. When we are there, there will only be happiness. This is why the Father says: Become pure! The greater your purity, the greater the attraction. When you become completely pure, you will be seated on the throne. So practice this! Don’t think that you have heard it and just let it out of the other ear. No, you cannot continue without practicing considering yourself to be a soul while sitting and explaining to the other person, your brother soul. The spiritual Father explains to you spiritual children. This is called spiritual knowledge. The spiritual Father is the One who gives this. When you children become completely spiritual and pure, you will become the masters of the golden-aged throne. Those who don’t become pure will not become part of the rosary. There must be some significance in the rosary. No one else knows the secret of the rosary. Why do people turn the beads of a rosary? Because you helped the Father a great deal. So, why wouldn’t you be remembered? You are remembered and you are also worshipped; even your bodies are worshipped. However, with regard to Myself, it is just the soul that is worshipped. Look, you are worshipped in two ways – even more than I! Since you become deities, you are worshipped as deities (later on). This is why you are ahead of Me in being worshipped. You are ahead in having your memorial and you are also ahead in receiving your kingdom. Look how elevated I make you! There is a lot of love for lovely children. Those children are seated on the shoulder or the head. Baba places you children on top of the head. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli In order to be threaded in the rosary, become soul conscious and stay on the pilgrimage of remembrance with great intensity. Follow the Father’s directions and become pure. Do service to make many others similar to yourself by giving them the Father’s message. You have to live here in simplicity. In order to be able to watch the final scenes of the cries of distress, you have to become mahavirs (courageous warriors). Blessing: May you be an intense effort-maker who follows the Father in every action and gives the response of love. You automatically follow the one you love. Always remember to ask yourself: Am I following the Father in the action I am performing? If not, then stop there and then. By copying the Father, you become equal to the Father. Just as you use carbon paper to make a copy, in the same way, use the paper of attention and a copy will be made because now is the only time to become an intense effort-maker and make yourself full of every power. If you are unable to make yourself full, then take someone’s help. Otherwise, as you carry on, it will become "too late”. Slogan:- The fruit of contentment is happiness and by being happy, all your questions finish. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .
- आज की मुरली 28 Dec 2020- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 28 December 2020 (Monday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. (Official Murli blog~ listen + read daily murlis). ➤ जरूर पढ़े: मुरली का महत्त्व "मीठे बच्चे - चैरिटी बिगन्स एट होम अर्थात् पहले खुद आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करो फिर दूसरों को कहो, आत्मा समझकर आत्मा को ज्ञान दो तो ज्ञान तलवार में जौहर आ जायेगा" प्रश्नः- संगमयुग पर किन दो बातों की मेहनत करने से सतयुगी तख्त के मालिक बन जायेंगे? उत्तर:- 1. दु:ख-सुख, निंदा-स्तुति में समान स्थिति रहे - यह मेहनत करो। कोई भी कुछ उल्टा-सुल्टा बोले, क्रोध करे तो तुम चुप हो जाओ, कभी भी मुख की ताली नहीं बजाओ। 2. आंखों को सिविल बनाओ, क्रिमिनल आई बिल्कुल समाप्त हो जाए, हम आत्मा भाई-भाई हैं, आत्मा समझकर ज्ञान दो, आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करो तो सतयुगी तख्त के मालिक बन जायेंगे। सम्पूर्ण पवित्र बनने वाले ही गद्दी नशीन बनते हैं। ♫ मुरली सुने ➤ ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों से बात करते हैं, तुम आत्माओं को यह तीसरा नेत्र मिला है जिसको ज्ञान का नेत्र भी कहा जाता है, उनसे तुम देखते हो अपने भाइयों को। तो यह बुद्धि से समझते हो ना कि जब हम भाई-भाई को देखेंगे तो कर्मेन्द्रियाँ चंचल नहीं होंगी। और ऐसे करते-करते आंखें जो क्रिमिनल हैं वह सिविल हो जायेंगी। बाप कहते हैं विश्व का मालिक बनने के लिए मेहनत तो करनी पड़ेगी ना। तो अभी यह मेहनत करो। मेहनत करने के लिए बाबा नई-नई गुह्य प्वाइंट्स सुनाते हैं ना। तो अभी अपने को भाई-भाई समझकर ज्ञान देने की आदत डालनी है। फिर यह जो गाया जाता है कि "वी आर ऑल ब्रदर्स'' - यह प्रैक्टिकल हो जायेगा। अभी तुम सच्चे-सच्चे ब्रदर्स हो क्योंकि बाप को जानते हो। बाप तुम बच्चों के साथ सर्विस कर रहे हैं। हिम्मते बच्चे मददे बाप। तो बाप आकरके यह हिम्मत देते हैं सर्विस करने की। तो यह सहज हुआ ना। तो रोज़ यह प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, सुस्त नहीं होना चाहिए। यह नई-नई प्वाइंट्स बच्चों को मिलती हैं, बच्चे जानते हैं कि हम भाइयों को बाबा पढ़ा रहे हैं। आत्मायें पढ़ती हैं, यह रूहानी नॉलेज है, इसे स्प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है। सिर्फ इस समय रूहानी नॉलेज, रूहानी बाप से मिलती है क्योंकि बाप आते ही हैं संगमयुग पर जबकि सृष्टि बदलती है, यह रूहानी नॉलेज मिलती भी तब है जब सृष्टि बदलने वाली है। बाप आकर यही तो रूहानी नॉलेज देते हैं कि अपने को आत्मा समझो। आत्मा नंगी (अशरीरी) आई थी, यहाँ फिर शरीर धारण करती है। शुरू से अब तक आत्मा ने 84 जन्म लिये हैं। परन्तु नम्बरवार जो जैसे आये होंगे, वह वैसे ही ज्ञान-योग की मेहनत करेंगे। फिर देखने में भी आता है कि जैसे जिसने कल्प पहले जो पुरूषार्थ किया, मेहनत किया वह अभी भी ऐसे ही मेहनत करते रहते हैं। अपने लिए मेहनत करनी है। दूसरे कोई के लिए तो नहीं करनी होती है। तो अपने को ही आत्मा समझ करके अपने साथ मेहनत करनी है। दूसरा क्या करता है, उसमें हमारा क्या जाता है। चैरिटी बिगन्स एट होम माना पहले-पहले खुद मेहनत करनी है, पीछे दूसरों को (भाइयों को) कहना है। जब तुम अपने को आत्मा समझ करके आत्मा को ज्ञान देंगे तो तुम्हारी ज्ञान तलवार में जौहर रहेगा। मेहनत तो है ना। तो जरूर कुछ न कुछ सहन करना पड़ता है। इस समय दु:ख-सुख, निंदा-स्तुति, मान-अपमान यह सब थोड़ा बहुत सहन करना पड़ता है। तो जब भी कोई उल्टा-सुल्टा बोलता है तो कहते हैं चुप। जब कोई चुप कर देते हैं तो पीछे कोई गुस्सा क्या करेंगे। जब कोई बात करते हैं और दूसरा भी बात करते हैं तो मुख की ताली बजती है। अगर एक ने मुख की ताली बजाई और दूसरे ने शान्त किया तो चुप। बस यह बाप सिखलाते हैं। कभी भी देखो कोई क्रोध में आते हैं तो चुप हो जाओ, आपेही उसका क्रोध शान्त हो जायेगा। दूसरी ताली बजेगी नहीं। अगर ताली से ताली बजी तो फिर गड़बड़ हो जाती है इसलिए बाप कहते हैं बच्चे कभी भी इन बातों में ताली नहीं बजाओ। न विकार की, न काम की, न क्रोध की। बच्चों को हर एक का कल्याण करना ही है, इतने जो सेन्टर्स बने हुए हैं किसलिए? कल्प पहले भी तो ऐसे सेन्टर्स निकले होंगे। देवों का देव बाप देखते रहते हैं कि बहुत बच्चों को यह शौक रहता है कि बाबा सेन्टर्स खोलूं। हम सेन्टर खोलते हैं, हम खर्चा उठायेंगे। तो दिन-प्रतिदिन ऐसे होते जायेंगे क्योंकि जितना विनाश के दिन नज़दीक होते जायेंगे उतना फिर इस तरफ भी सर्विस का शौक बढ़ता जायेगा। अभी बापदादा दोनों इकट्ठे हैं तो हर एक को देखते हैं कि क्या पुरूषार्थ करते हैं? क्या पद पायेंगे? किसका पुरूषार्थ उत्तम, किसका मध्यम, किसका कनिष्ट है? वह तो देख रहे हैं। टीचर भी स्कूल में देखते हैं कि स्टूडेन्ट किस सब्जेक्ट में ऊपर-नीचे होते हैं। तो यहाँ भी ऐसे ही है। कोई बच्चे अच्छी तरह से अटेन्शन देते हैं तो अपने को ऊंचा समझते हैं। कोई समय फिर भूल करते हैं, याद में नहीं रहते हैं तो अपने को कम समझते हैं। यह स्कूल है ना। बच्चे कहते हैं बाबा हम कभी-कभी बहुत खुशी में रहते हैं, कभी-कभी खुशी कम हो जाती है। तो बाबा अभी समझाते रहते हैं कि अगर खुशी में रहना चाहते हो तो मनमनाभव, अपने को आत्मा समझो और बाप को भी याद करो। सामने परमात्मा को देखो तो वो अकाल तख्त पर बैठा हुआ है। ऐसे भाइयों की तरफ भी देखो, अपने को आत्मा समझ करके फिर भाई से बात करो। भाई को हम ज्ञान देते हैं। बहन नहीं, भाई-भाई। आत्माओं को ज्ञान देते हैं अगर यह आदत तुम्हारी पड़ जायेगी तो तुम्हारी जो क्रिमिनल आई है, जो तुमको धोखा देती है वह आहिस्ते-आहिस्ते बन्द हो जायेगी। आत्मा-आत्मा में क्या करेगी? जब देह-अभिमान आता है तब गिरते हैं। बहुत कहते हैं बाबा हमारी क्रिमिनल आई है। अच्छा क्रिमिनल आई को अभी सिविल आई बनाओ। बाप ने आत्मा को दिया ही है तीसरा नेत्र। तीसरे नेत्र से देखेंगे तो फिर तुम्हारी देह को देखने की आदत मिट जायेगी। बाबा बच्चों को डायरेक्शन तो देते रहते हैं, इनको (ब्रह्मा को) भी ऐसे ही कहते हैं। यह बाबा भी देह में आत्मा को देखेंगे। तो इसको ही कहा जाता है रूहानी नॉलेज। देखो, पद कितना ऊंच पाते हो। जबरदस्त पद है। तो पुरुषार्थ भी ऐसा करना चाहिए। बाबा भी समझते हैं कल्प पहले मुआफिक सबका पुरुषार्थ चलेगा। कोई राजा-रानी बनेंगे, कोई प्रजा में चले जायेंगे। तो यहाँ जब बैठकर नेष्ठा (योग) भी करवाते हो तो अपने को आत्मा समझ करके दूसरे की भी भ्रकुटी में आत्मा को देखते रहेंगे तो फिर उनकी सर्विस अच्छी होगी। जो देही-अभिमानी होकर बैठते हैं वो आत्माओं को ही देखते हैं। इसकी खूब प्रैक्टिस करो। अरे ऊंच पद पाना है तो कुछ तो मेहनत करेंगे ना। तो अभी आत्माओं के लिए यही मेहनत है। यह रूहानी नॉलेज एक ही दफा मिलती है और कभी भी नहीं मिलेगी। न कलियुग में, न सतयुग में, सिर्फ संगमयुग में सो भी ब्राह्मणों को। यह पक्का याद कर लो। जब ब्राह्मण बनेंगे तब देवता बनेंगे। ब्राह्मण नहीं बने तो फिर देवता कैसे बनेंगे? इस संगमयुग में ही यह मेहनत करते हैं। और कोई समय में यह नहीं कहेंगे कि अपने को आत्मा, दूसरे को भी आत्मा समझ उनको ज्ञान दो। बाप जो समझाते हैं उस पर विचार सागर मंथन करो। जज करो कि क्या यह ठीक है, हमारे फायदे की बात है? हमको आदत पड़ जायेगी कि बाप की जो शिक्षा है सो भाइयों को देना है, फीमेल को भी देना है तो मेल को भी देना है। देना तो आत्माओं को ही है। आत्मा ही मेल, फीमेल बनी है। बहन-भाई बनी है। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को ज्ञान देता हूँ। मैं बच्चों की तरफ, आत्माओं को देखता हूँ और आत्मायें भी समझती हैं कि हमारा परमात्मा जो बाप है वह ज्ञान देते हैं तो इसको कहेंगे यह रूहानी अभिमानी बने हैं। इसको ही कहा जाता स्प्रीचुअल ज्ञान की लेन-देन - आत्मा की परमात्मा के साथ। तो यह बाप शिक्षा देते हैं कि जब भी कोई विजीटर आदि आते हैं तो भी अपने को आत्मा समझ, आत्मा को बाप का परिचय देना है। आत्मा में ज्ञान है, शरीर में नहीं है। तो उनको भी आत्मा समझ करके ही ज्ञान देना है। इससे उनको भी अच्छा लगेगा। जैसेकि यह जौहर है तुम्हारे मुख में। इस ज्ञान की तलवार में जौहर भर जायेगा क्योंकि देही-अभिमानी होते हो ना। तो यह भी प्रैक्टिस करके देखो। बाबा कहते हैं जज करो - यह ठीक है? और बच्चों के लिए भी यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि बाप समझाते ही सहज करके हैं। चक्र लगाया, अब नाटक पूरा होता है, अभी बाबा की याद में रहते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान बन, सतोप्रधान दुनिया का मालिक बनते हैं फिर ऐसे ही सीढ़ी उतरते हैं, देखो कितना सहज बताते हैं। हर 5 हज़ार वर्ष के बाद मेरे को आना होता है। ड्रामा के प्लैन अनुसार मैं बंधायमान हूँ। आकरके बच्चों को बहुत सहज याद की यात्रा सिखलाता हूँ। बाप की याद में अन्त मती सो गति हो जायेगी, यह इस समय के लिए है। यह अन्तकाल है। अभी इस समय बाप बैठ करके युक्ति बतलाते हैं कि मामेकम् याद करो तो सद्गति हो जायेगी। बच्चे भी समझते हैं कि पढ़ाई से यह बनूँगा, फलाना बनूँगा। इसमें भी यही है कि मैं जाकरके नई दुनिया में देवी-देवता बनूँगा। कोई नई बात नहीं है, बाप तो घड़ी-घड़ी कहते हैं नथिंगन्यु। यह तो सीढ़ी उतरनी-चढ़नी है, जिन्न की कहानी है ना। उसको सीढ़ी उतरने और चढ़ने का काम दिया गया। यह नाटक ही है चढ़ना और उतरना। याद की यात्रा से बहुत मजबूत हो जायेंगे इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकार से बाप बच्चों को बैठ सिखलाते हैं कि बच्चे अभी देही-अभिमानी बनो। अभी सबको वापिस जाना है। तुम आत्मा पूरे 84 जन्म लेकर तमोप्रधान बन गई हो। भारतवासी ही सतो-रजो-तमो बनते हैं। दूसरी कोई नेशनल्टी को नहीं कहेंगे कि पूरे 84 जन्म लिए हैं। बाप ने आकरके बताया है नाटक में हर एक का पार्ट अपना-अपना होता है। आत्मा कितनी छोटी है। साइंसदानों को यह समझ में ही नहीं आयेगा कि इतनी छोटी आत्मा में यह अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। यह है सबसे वण्डरफुल बात। यह छोटी सी आत्मा और पार्ट कितना बजाती है! वह भी अविनाशी! यह ड्रामा भी अविनाशी है और बना-बनाया है। ऐसे नहीं कोई कहेंगे कि कब बना? नहीं। यह कुदरत है। यह ज्ञान बड़ा वण्डरफुल है, कभी कोई यह ज्ञान बता ही नहीं सकते हैं। ऐसे कोई की ताकत नहीं है जो यह ज्ञान बताये। तो अभी बच्चों को बाप दिन-प्रतिदिन समझाते रहते हैं। अभी प्रैक्टिस करो कि हम अपने भाई आत्मा को ज्ञान देते हैं, आपसमान बनाने के लिए। बाप से वर्सा लेने के लिए क्योंकि सब आत्माओं का हक है। बाबा आते हैं सभी आत्माओं को अपना-अपना शान्ति वा सुख का वर्सा देने। हम जब राजधानी में होंगे तो बाकी सब शान्तिधाम में होंगे। पीछे जय जयकार होगी, यहाँ सुख ही सुख होगा इसलिए बाप कहते हैं पावन बनना है। जितना-जितना तुम पवित्र बनते हो उतना कशिश होती है। जब तुम बिल्कुल पवित्र हो जाते हो तो गद्दी नशीन हो जाते हो। तो प्रैक्टिस यह करो। ऐसे मत समझना कि बस यह सुना और कान से निकाला। नहीं, इस प्रैक्टिस बिगर तुम चल नहीं सकेंगे। अपने को आत्मा समझो, वह भी आत्मा भाई-भाई को बैठकर समझाओ। रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं इसको कहा जाता है रूहानी स्प्रीचुअल नॉलेज। प्रीचुल फादर देने वाला है। जब चिल्ड्रेन पूरा स्प्रीचुअल बन जाते हैं, एकदम प्योर बन जाते हैं तो जाकर सतयुगी तख्त के मालिक बनते हैं। जो प्योर नहीं बनेंगे वो माला में भी नहीं आयेंगे। माला का भी कोई अर्थ तो होगा ना। माला का राज़ दूसरा कोई भी नहीं जानते हैं। माला को क्यों सिमरते हैं? क्योंकि बाप की बहुत ही मदद की है, तो क्यों नहीं सिमरे जायेंगे। तुम सिमरे भी जाते हो, तुम्हारी पूजा भी होती है और तुम्हारे शरीर को भी पूजा जाता है। और मेरी तो सिर्फ आत्मा को पूजा जाता है। देखो तुम तो डबल पूजे जाते हो, मेरे से भी जास्ती। तुम जब देवता बनते हो तो देवताओं की भी पूजा करते हैं इसलिए पूजा में भी तुम तीखे, यादगार में भी तुम तीखे और बादशाही में भी तुम तीखे। देखो, तुमको कितना ऊंचा बनाता हूँ। तो जैसे प्यारे बच्चे होते हैं, बहुत लव होता है तो बच्चों को कुल्हे पर, माथे पर भी रखते हैं। बाबा एकदम सिर पर रख देते हैं। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार गायन और पूजन योग्य बनने के लिए स्प्रीचुअल बनना है, आत्मा को प्योर बनाना है। आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। मनमनाभव के अभ्यास द्वारा अपार खुशी में रहना है। स्वयं को आत्मा समझकर आत्मा से बात करनी है, आंखों को सिविल बनाना है। वरदान:- सदाकाल के अटेन्शन द्वारा विजय माला में पिरोने वाले बहुत समय के विजयी भव बहुत समय के विजयी, विजय माला के मणके बनते हैं। विजयी बनने के लिए सदा बाप को सामने रखो - जो बाप ने किया वही हमें करना है। हर कदम पर जो बाप का संकल्प वही बच्चों का संकल्प, जो बाप के बोल वही बच्चों के बोल - तब विजयी बनेंगे। यह अटेन्शन सदाकाल का चाहिए तब सदाकाल का राज्य-भाग्य प्राप्त होगा क्योंकि जैसा पुरूषार्थ वैसी प्रालब्ध है। सदा का पुरूषार्थ है तो सदा का राज्य-भाग्य है। स्लोगन:- सेवा में सदा जी हाजिर करना - यही प्यार का सच्चा सबूत है। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli today: 27 Dec 2020 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's Murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Revised Date: 27 December 2020 (Sunday).Original Date: 30 December 1986.Publisher: Madhuban, Mount Abu. ................................................................................................................................................. ♫ Listen Today's Murli ➤ "The way to make your past, present and future elevated." Today, the great-great-grandfather (Brahma) and God, the Father (Shiva) are giving greetings of blessings from their hearts to their sweet and extremely lovely children. BapDada knows how elevated and great each and every long-lost and now-found child is. The greatness and purity of every child continue to reach the Father number-wise. Today, all of you have especially come to celebrate the New Year with zeal and enthusiasm. In order to celebrate, people of the world ignite unused lamps or candles. They celebrate by igniting them, whereas BapDada is celebrating the New Year with the countless lamps who are already ignited. He does not light those who have been extinguished or blow out those who are ignited. No one except the Father and you children can celebrate the New Year in this way in a gathering of hundreds and thousands of such ignited, spiritual lights. This is such a beautiful scene of the spiritual gathering of sparkling lamps. Each one's spiritual lamp is sparkling constantly and steadily. "One Baba" in each one's mind is enabling all you spiritual lamps to sparkle. You have the one world, you have the one thought and you have a constant and stable stage: this is what it means to celebrate. This is what it means to become that and make others that. At this time, it is the confluence of both farewell (vidaai) and greetings (badhaai). It is farewell to the old and greetings to the new. All of you come here at this confluence. Therefore, congratulations for bidding farewell to your old thoughts and sanskars and also congratulations for flying with new zeal and enthusiasm. The present moment will become the past after a short time. The year that you are now passing through will become the past after midnight. The moment now (today) is called the present, and tomorrow is the future. The play of the past, present and future continues to take place. Use all these three words in this New Year in a new way. How? Let the past become the past by always passing with honours. Of course, it will be "past is past", but how are you going to pass through it? You say that the time passed by, that this scene passed by. However, did you pass through that whilst passing with honours? You made the past become the past, but did you pass through the past in such an elevated way that, as soon as you remember the past, the words "Wah, wah!" emerge from your heart? Did you make the past become the past in such a way that others can learn a lesson from your story of the past? Let your past become the form of a memorial, let it become a devotional song (kirtan), that is, let it be worth singing praise of, just as devotees on the path of devotion continue to sing devotional songs of your actions. The songs of praise of your actions are even now creating the livelihoods of many souls. In this New Year, let every thought and every moment become the past in this way. Do you understand what you have to do? Now, come into the present. Make the present so practical that everyone receives one present (gift) or other from you special souls at every present moment and thought. When do people experience the most happiness? When they receive a present from someone. No matter how peace less, sorrowful or distressed they may be, when they are given a present with love, there is a wave of happiness at that moment. Not a superficial present but a present given from the heart. Everyone always considers a present to be a symbol of love. The value of anything given as a present is in the love with which it is given, not in the thing itself. Therefore, continue to make progress with the method of giving presents. Do you understand? Is this easy or difficult? Your treasure store is full, is it not? Or, is it that by giving presents, your treasure store would be reduced? You have accumulated some stock, have you not? Simply give presents of one second's drishti with love, co-operation with love, feelings of love, sweet words and elevated thoughts from your heart. These presents are enough. Nowadays, the devotees of you Brahmins souls, those who are in connection and relationship with you and distressed souls all need these presents, not any other presents. You have a stock of these, do you not? So, become bestowers as every present moment changes into the past and all types of souls will then continue to sing songs of your praise from their hearts. Achcha. What will you do in the future? Everyone asks you: Ultimately, what is the future? Reveal the future through your features. Let your features create the future. What will the future be like? What will people’s eyes be like in the future? What will smiles be like in the future? What will relationships be like in the future? What will life be like in the future? Let your features grant a vision of all of these things. Let your drishti clearly reveal the world of the future. Let the question "What will happen?" finish and change into "It will be like this.” Let the word "How?” change into "Like this.” In the future there are deities. The sanskars of a deity means the sanskars of a bestower. The sanskars of a bestower means the sanskars of one with a crown and seated on a throne. Let whoever sees you experience your crown and throne. Which crown? The crown of light that enables you to remain constantly light. Let the signs of spiritual intoxication and a carefree stage always be experienced from your actions and words. The sign of being seated on a throne is to be carefree and to have intoxication. The intoxication of having victory guaranteed and a carefree stage is the sign of a soul who is seated on the Father's heart throne. Let whoever comes experience you being seated on the heart-throne and your stage of wearing a crown. This is what it means to reveal the future through your features. Celebrate the New Year in this way, that is, become this and make others the same too. Do you understand what you have to do in the New Year? In three words become master trimurti, master trikaldarshi and trilokinath. Everyone is now wondering: What are we going to do now? Through your every step, whether it is through remembrance or service, continue to attain success in all three ways. You have a lot of zeal and enthusiasm for the New Year, do you not? Double foreigners have double enthusiasm. How many facilities will you use to celebrate the New Year? Those people use perishable facilities and have temporary entertainment. One moment they will light a candle and the next moment they will blow it out. However, BapDada is eternally celebrating with you children who attain eternal success. What will all of you also do? Cut a cake, light candles, sing songs and clap. Do this a lot too. You may do this. However, BapDada always gives the eternal children imperishable congratulations and shows you a method to make you imperishable. Seeing you celebrate in the corporeal world with physical festivities, BapDada is also pleased, because it is only once in the whole cycle that you find such a beautiful family, where everyone in the whole family of a gathering of hundreds and thousands is wearing a crown and seated on a throne. Therefore, dance, sing and eat toli as much as you want. The Father is pleased just to see the children and to take the fragrance of it all. What songs are playing in each one's mind? Songs of happiness are playing. Always sing songs of "Wah, wah! Wah Baba! Wah my fortune! Wah, my sweet family! Wah, the beautiful time of the elevated confluence age.” Every action is "Wah, wah!" Continue to sing songs of "Wah, wah!” Today, BapDada was smiling because some children, instead of singing songs of "Wah, wah”, were singing other songs. They were songs of just two words. Do you know what they were? This year, do not sing songs of those two words. Those two words are "Why?" and "I". Generally, whenever BapDada watches the TV of the children, instead of them saying, "Wah, wah", the children are saying, "Why? Why?" So, instead of "Why?" say, "Wah, wah" and, instead of "I", say, "Baba, Baba". Do you understand? Whoever you are, whatever you are like, BapDada loves you and this is why all of you come running to meet Baba with love. At amrit vela, all the children always sing the song, "Lovely Baba, sweet Baba", and in return, BapDada sings the song, "Lovely children, lovely children". Achcha. In fact, this year is the year to learn the lesson of becoming detached and loving. Nevertheless, the children's loving invocation of the Father brings Him from the nyari (detached, unique) world into the pyari (loving) world. There is no need to consider all of these things in the subtle form. Meeting in the subtle form, Baba gives all the unlimited children the feeling of an unlimited meeting at the one time. With a physical method, there are still limits. What do the children want after all? Murli and drishti. Even when Baba is speaking the murli, that too, is a meeting. Whether Baba speaks to individuals or to everyone together, Baba is going to say the same thing. Whatever Baba says to the gathering, He will say the same to individuals. Nevertheless, you double foreigners have been given the first chance. The children of Bharat are waiting for the 18th of January, whereas you have taken the first chance. Achcha. Children have come from 35 or 36 countries. This is also the 36 varieties of bhog. There is a memorial of the number 36. So, there are at least 36 varieties. BapDada is pleased to see the zeal and enthusiasm that you children have for service. All of you used your body, mind, wealth and time for service with love and courage. Therefore, BapDada is giving you multi-millionfold congratulations for that. Whether you are physically in front of Baba or whether you are present in a subtle form, BapDada is giving all the children congratulations for being absorbed in service with so much love. You became co-operative and made others co-operative. Therefore, double congratulations for being co-operative and making others co-operative. The garland of the children's news of service filled with zeal and enthusiasm and also their New Year cards filled with zeal and enthusiasm has been put around BapDada's neck. Whoever sent the cards, in return for those cards, BapDada gives both regard and love. Baba is pleased to hear all the news. Whether you served in an incognito way or in a visible way, there is always success in the service of revealing the Father. The result of serving with love - to become co-operative souls and to come close in the Father's task - is a sign of success. Those who are co-operative are co-operative today and tomorrow will become yogi. So, to those who have done the special service of making souls everywhere co-operative BapDada gives the blessing, "May you be an eternal embodiment of success”. Achcha. When the number of your subjects – those who are co-operative and in a relationship with you – increase, then, according to that increases, the method also has to change, does it not? You are happy, are you not? Let it increase! Achcha. To those who are constantly loving and co-operative and who make others co-operative, to those who always receive greetings, to those who make every second and every thought the most elevated of all and worthy of praise, to those who constantly become bestowers and give others love and co-operation, to such elevated, great, fortunate souls, BapDada's love and remembrance and good night and good morning at the confluence. Avyakt BapDada speaking to teachers on Foreign Service: BapDada always makes the instrument server teachers move forward with the blessing, "May you be equal!” BapDada always thinks of all the Pandavas and Shaktis, whatever service they are instruments for, as those who are multimillion times fortunate, elevated souls. You definitely especially experience the visible fruit of service in the form of happiness and power. Now, to the extent that you yourselves become powerful lighthouses and might-houses and do service, so the flag of revelation will accordingly be hoisted everywhere. Each instrument server has to pay special attention to two things for success in service. 1. Always have the unity of harmonising sanskars, for this speciality has to be visible in every place. 2. First of all, each of you instrument servers has to give these two certificates to yourselves. 1) Unity. 2) Contentment. Sanskars are always different and will always be different, but it depends on you yourselves, whether there is a conflict of sanskars or whether you step away and keep yourself safe. When something happens, if one person’s sanskars are like that, then the other person should not clap (not respond). Whether the other person changes or not, you can change, can you not? If each one of you changes yourself and imbibes the power to accommodate, then the sanskars of the other person will definitely cool down. So, always connect with one another with feelings of love and greatness, because the instrument servers are the mirror of the Father’s image. So, whatever is your practical life becomes a mirror of the Father’s image and so always be the mirror of a life in which the Father is visible as He is and what He is. Otherwise, however, you are all making very good effort and you also have good courage. You have good enthusiasm for the expansion of service and expansion is therefore taking place. Service is good, but now, in order to reveal the Father, always show the proof of your practical lives, so that everyone says the same thing: that all of you are the same when it comes to the inculcating knowledge and that you are also number one in harmonising sanskars. It isn’t that the teachers of India are different from the teachers abroad. All are the same. It is just that you are all instruments for service and are co-operating in the task of establishment; you are also giving your co-operation now, and so you automatically have to play a special part in everything. In fact, BapDada and the instrument souls do not see any difference in those from abroad or those here. Wherever there is a need for someone’s speciality, then it doesn’t matter who it is, there is benefit from that one’s speciality. To give regard to one another is a code of conduct of the Brahmin clan. Receive love and give regard. Importance is given to a person’s speciality rather than to the person. Achcha. Blessing: May you be an invaluable jewel who spends every second and every thought in an invaluable way. Even one second of the confluence age has great value. Just as you receive one hundred thousand in return for one, in the same way, if even one second is wasted, then one hundred thousand are wasted. So, pay this much attention and finish all carelessness. There is at present no one to account for anything, but after some time, there will be repentance, because this time has a lot of value. Those who use their every second and every thought in an invaluable way become invaluable jewels. Slogan: Those who are always yogyukt experience receiving co-operation and become victorious jewels. --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- आज की मुरली 27 Dec 2020- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की अव्यक्त मुरली। Revised Date: 27 December 2020 (Sunday).Original Date:31 December 1986 बापदादा, मधुबन।Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. (Official Murli blog~ listen + read daily murlis). ➤ जरूर पढ़े: मुरली का महत्त्व ♫ मुरली सुने ➤ "पास्ट, प्रेजन्ट और फ्यूचर को श्रेष्ठ बनाने की विधि" आज ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर और गॉड-फादर अपने अति मीठे, अति प्यारे बच्चों को दिल से दुआओं की ग्रीटिंग्स दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं कि एक-एक सिकीलधा बच्चा कितना श्रेष्ठ, महान आत्मा हैं! हर बच्चे की महानता-पवित्रता बाप के पास नम्बरवार पहुँचती रहती है। आज के दिन सभी विशेष नया वर्ष मनाने के उमंग-उत्साह से आये हुए हैं। दुनिया के लोग मनाने के लिए बुझे हुए दीप वा मोमबत्तियाँ जगाते हैं। वह जगाकर मनाते हैं और बाप-दादा जगे हुए अनगिनत दीपकों से नया वर्ष मना रहे हैं। बुझे हुए को जगाते नहीं और जगाकर फिर बुझाते नहीं। ऐसा लाखों की अन्दाज में जगे हुए रूहानी ज्योति के संगठन का वर्ष मनाना - यह सिवाए बाप और आपके कोई मना नहीं सकता। कितना सुन्दर जगमगाते दीपकों के रूहानी संगठन का दृश्य है! सबकी रूहानी ज्योति एकटिक, एकरस चमक रही है। सबके मन में ‘एक बाबा' - यही लगन रूहानी दीपक को जगमगा रही है। एक संसार है, एक संकल्प है, एकरस स्थिति है - यही मनाना है, यही बनकर बनाना है। इस समय विदाई और बधाई दोनों का संगम है। पुराने की विदाई है और नये को बधाई है। इस संगम समय पर सभी पहुँच गये हैं इसलिए, पुराने संकल्प और संस्कार के विदाई की भी मुबारक है और नये उमंग-उत्साह से उड़ने की भी मुबारक है। जो प्रेजेन्ट है, वह कुछ समय के बाद पास्ट हो जायेगा। जो वर्ष चल रहा है, वह 12.00 बजे के बाद पास्ट हो जाएगा। इस समय को प्रेजन्ट कहेंगे और कल को फ्यूचर (भविष्य) कहते हैं। पास्ट, प्रेजन्ट और फ्यूचर - इन तीनों का ही खेल चलता रहता है। इन तीनों शब्दों को इस नये वर्ष में नई विधि से प्रयोग करना। कैसे? पास्ट को सदा पास विद् ऑनर होकर के पास करना। "पास्ट इज पास्ट'' तो होना ही है लेकिन कैसे पास करना है? कहते हो ना - समय पास हो गया, यह दृश्य पास हो गया। लेकिन पास विद् ऑनर बन पास किया? बीती को बीती किया लेकिन बीती को ऐसी श्रेष्ठ विधि से बीती किया जो बीती को स्मृति में लाते ‘वाह! वाह!' के बोल दिल से निकलें? बीती को ऐसे बीती किया जो अन्य आपकी बीती हुई स्टोरी से पाठ पढ़ें? आपकी बीती यादगार-स्वरूप बन जाये, कीर्तन अर्थात् कीर्ति गाते रहें। जैसे भक्ति-मार्ग में आपके ही कर्म का कीर्तन गाते रहते हैं। आपके कर्म के कीर्तन से अनेक आत्माओं का अब भी शरीर निर्वाह हो रहा है। इस नये वर्ष में हर पास्ट संकल्प वा समय को ऐसी विधि से पास करना। समझा, क्या करना है? अब आओ प्रेजन्ट (वर्तमान), प्रेजन्ट को ऐसे प्रैक्टिकल में लाओ जो हर प्रेजन्ट घड़ी वा संकल्प से आप विशेष आत्माओं द्वारा कोई न कोई प्रेजेन्ट (सौगात) प्राप्त हो। सबसे ज्यादा खुशी किस समय होती है? जब किससे प्रेजेन्ट (सौगात) मिलती है। कैसा भी अशान्त हो, दु:खी हो या परेशान हो लेकिन जब कोई प्यार से प्रेजेन्ट देता है तो उस घड़ी खुशी की लहर आ जाती है। दिखावे की प्रेजेन्ट नहीं, दिल से। सभी प्रेजेन्ट (सौगात) को सदा स्नेह की सूचक मानते हैं। प्रेजेन्ट दी हुई चीज़ में वैल्यू ‘स्नेह' की होती है, ‘चीज़' की नहीं। तो प्रेजन्ट देने की विधि से वृद्धि को पाते रहना। समझा? सहज है या मुश्किल है? भण्डारे भरपूर हैं ना या प्रेजेन्ट देते-देते भण्डारा कम हो जायेगा? स्टॉक जमा है ना? सिर्फ एक सेकण्ड के स्नेह की दृष्टि, स्नेह का सहयोग, स्नेह की भावना, मीठे बोल, दिल के श्रेष्ठ संकल्प का साथ - यही प्रेजेन्ट्स बहुत हैं। आजकल चाहे आपस में ब्राह्मण आत्मायें हैं, चाहे आपकी भक्त आत्मायें हैं, चाहे आपके सम्बन्ध-सम्पर्क वाली आत्मायें हैं, चाहे परेशान आत्मायें हैं-सभी को इन प्रेजेन्ट्स की आवश्यकता है, दूसरी प्रेजेन्ट की नहीं। इसका स्टॉक तो है ना? तो हर प्रेजन्ट घड़ी को दाता बन प्रेजन्ट को पास्ट में बदलना, तो सर्व प्रकार की आत्मायें दिल से आपका कीर्तन गाती रहेंगी। अच्छा। फ्यूचर क्या करेंगे? सभी आप लोगों से पूछते हैं न कि आखिर भी फ्यूचर क्या है? फ्यूचर को अपने फीचर्स से प्रत्यक्ष करो। आपके फीचर्स फ्यूचर को प्रकट करें। फ्यूचर क्या होगा, फ्यूचर के नैन क्या होंगे, फ्यूचर की मुस्कान क्या होगी, फ्यूचर के सम्बन्ध क्या होंगे, फ्यूचर की जीवन क्या होगी - आपके फीचर्स इन सब बातों का साक्षात्कार करायें। दृष्टि फ्यूचर की सृष्टि को स्पष्ट करे। ‘क्या होगा' - यह क्वेश्चन समाप्त हो ‘ऐसा होगा', इसमें बदल जाये। ‘कैसा' बदल ‘ऐसा' हो जाये। फ्यूचर है ही देवता। देवतापन के संस्कार अर्थात् दातापन के संस्कार, देवतापन के संस्कार अर्थात् ताज, तख्तधारी बनने के संस्कार। जो भी देखे, उनको आपका ताज और तख्त अनुभव हो। कौनसा ताज? सदा लाइट (हल्का) रहने का लाइट (प्रकाश) का ताज। और सदा आपके कर्म से, बोल से रूहानी नशा और निश्चिन्तपन के चिन्ह अनुभव हों। तख्तधारी की निशानी है ही ‘निश्चिन्त' और ‘नशा'। निश्चित विजयी का नशा और निश्चिन्त स्थिति - यह है बाप के दिलतख्तनशीन आत्मा की निशानी। जो भी आये, वह यह तख्तनशीन और ताजधारी स्थिति का अनुभव करे - यह है फ्यूचर को फीचर्स द्वारा प्रत्यक्ष करना। ऐसा नया वर्ष मनाना अर्थात् बनकर बनाना। समझा, नये वर्ष में क्या करना है? तीन शब्दों से मास्टर त्रिमूर्ति, मास्टर त्रिकालदर्शी और त्रिलोकीनाथ बन जाना। सब यही सोचते हैं कि अब क्या करना है? हर कदम से - चाहे याद से, चाहे सेवा के हर कदम से इन तीनों ही विधि से सिद्धि प्राप्त करते रहना। नये वर्ष का उमंग-उत्साह तो बहुत है ना। डबल विदेशियों को डबल उमंग है ना। न्यू इयर मनाने में कितने साधन अपनायेंगे? वे लोग साधन भी विनाशी अपनाते और मनोरंजन भी अल्पकाल का करते। अभी-अभी जलायेंगे, अभी-अभी बुझायेंगे। लेकिन बापदादा अविनाशी विधि से अविनाशी सिद्धि प्राप्त करने वाले बच्चों से मना रहे हैं। आप लोग भी क्या करेंगे? केक काटेंगे, मोमबत्ती जलायेंगे, गीत गायेंगे, ताली बजायेंगे। यह भी खूब करो, भले करो। लेकिन बापदादा सदा अविनाशी बच्चों को अविनाशी मुबारक देते हैं और अविनाशी बनाने की विधि बताते हैं। साकार दुनिया में साकारी सुहेज मनाते देख बापदादा भी खुश होते हैं क्योंकि ऐसा सुन्दर परिवार जो पूरा ही परिवार ताजधारी, तख्तधारी है और इतनी लाखों की संख्या में एक परिवार है, ऐसा परिवार सारे कल्प में एक ही बार मिलता है इसलिए खूब नाचो, गाओ, मिठाई खाओ। बाप तो बच्चों को देख करके, भासना लेकर के ही खुश होते हैं। सभी के मन के गीत कौनसे बजते हैं? खुशी के गीत बज रहे हैं। सदा ‘वाह! वाह!' के गीत गाओ। वाह बाबा! वाह तकदीर! वाह मीठा परिवार! वाह श्रेष्ठ संगम का सुहावना समय! हर कर्म ‘वाह-वाह!' है। ‘वाह! वाह! के गीत गाते रहो। बापदादा आज मुस्करा रहे थे - कई बच्चे ‘वाह! के गीत के बजाय और भी गीत गा लेते हैं। वह भी दो शब्द का गीत है, वह जानते हो? इस वर्ष वह दो शब्दों का गीत नहीं गाना। वह दो शब्द हैं - ‘व्हाई' और ‘आई' (क्यों और मैं) बहुत करके बापदादा जब बच्चों की टी.वी. देखते हैं तो बच्चे ‘वाह-वाह!' के बजाये ‘व्हाई-व्हाई' बहुत करते हैं। तो ‘व्हाई' के बजाय ‘वाह-वाह! कहना और ‘आई' के बजाये ‘बाबा-बाबा' कहना। समझा? जो भी हो, जैसे भी हो फिर भी बापदादा के प्यारे हो, तब तो सभी प्यार से मिलने के लिए भागते हो। अमृतवेले सभी बच्चे सदा यही गीत गाते हैं - ‘प्यारा बाबा, मीठा बाबा' और बापदादा रिटर्न में सदा ‘प्यारे बच्चे, प्यारे बच्चे' का गीत गाते हैं। अच्छा। वैसे तो इस वर्ष न्यारे और प्यारे का पाठ है, फिर भी बच्चों के स्नेह का आह्वान बाप को भी न्यारी दुनिया से प्यारी दुनिया में ले आता है। आकारी विधि में यह सब देखने की आवश्यकता नहीं है। आकारी मिलन की विधि में एक ही समय पर अनेक बेहद बच्चों को बेहद मिलन की अनुभूति कराते हैं। साकारी विधि में फिर भी हद में आना पड़ता। बच्चों को चाहिए भी क्या - मुरली और दृष्टि। मुरली में भी मिलना ही तो है। चाहे अलग में बोलें, चाहे साथ में बोलें, बोलेंगे तो वही बात। जो संगठन में बोलते हैं वही अलग में बोलेंगे। फिर भी देखो पहला चान्स डबल विदशियों को मिला है। भारत के बच्चे 18 ता. (18 जनवरी) का इन्तजार कर रहे हैं और आप लोग पहला चान्स ले रहे हो। अच्छा। 35-36 देशों के आये हुये हैं। यह भी 36 प्रकार का भोग हो गया। 36 का गायन है ना। 36 वैराइटी हो गई है। बापदादा सभी बच्चों का सेवा की उमंग-उत्साह को देख खुश होते हैं। जो सभी ने तन, मन, धन समय-स्नेह और हिम्मत से सेवा में लगाया, उसकी बापदादा पदमगुणा बधाई दे रहे हैं। चाहे इस समय सम्मुख हैं, चाहे आकार रूप में सम्मुख हैं लेकिन बापदादा सभी बच्चों को सेवा में लग्न से मग्न रहने की मुबारक दे रहे हैं। सहयोगी बने, सहयोगी बनाया। तो सहयोगी बनने की भी और सहयोगी बनाने की भी डबल मुबारक। कई बच्चों के सेवा के उमंग-उत्साह के समाचार और साथ-साथ नये वर्ष के उमंग-उत्साह के कार्ड की माला बापदादा के गले में पिरो गई। जिन्होंने भी कार्ड भेजे हैं, बापदादा कार्ड के रिटर्न में रिगार्ड और लव दोनों देते हैं। समाचार सुन-सुन हर्षित होते हैं। चाहे गुप्त रूप में सेवा की, चाहे प्रत्यक्ष रूप में की लेकिन बाप को प्रत्यक्ष करने की सेवा में सदा सफलता ही है। स्नेह से सेवा की रिजल्ट - सहयोगी आत्मायें बनना और बाप के कार्य में समीप आना - यही सफलता की निशानी है। सहयोगी आज सहयोगी हैं, कल योगी भी बन जायेंगे। तो सहयोगी बनाने की विशेष सेवा जो सभी ने चारों ओर की, उसके लिए बापदादा ‘अविनाशी सफलता स्वरूप भव' का वरदान दे रहे हैं। अच्छा। जब आपकी प्रजा, सहयोगी, सम्बन्धी वृद्धि को प्राप्त होंगे तो वृद्धि के प्रमाण विधि को भी बदलना तो पड़ता है ना। खुश होते हो ना, भले बढ़ें। अच्छा। सर्व सदा स्नेही, सदा सहयोगी बन सहयोगी बनाने वाले, सदा बधाई प्राप्त करने वाले, सदा हर सेकण्ड, हर संकल्प को श्रेष्ठ से श्रेष्ठ, गायन-योग्य बनाने वाले, सदा दाता बन सर्व को स्नेह और सहयोग देने वाले - ऐसे श्रेष्ठ, महान् भाग्यवान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और संगम की गुडनाइट और गुडमार्निंग। विदेश सेवा पर उपस्थित टीचर्स प्रति - अव्यक्त महावाक्य निमित्त सेवाधारी बच्चों को बापदादा सदा ‘समान भव' के वरदान से आगे बढ़ाते रहते हैं। बापदादा सभी पाण्डव चाहे शक्तियां, जो भी सेवा के लिए निमित्त हैं, उन सबको विशेष पदमापदम भागयवान श्रेष्ठ आत्मायें समझते हैं। सेवा का प्रत्यक्ष फल खुशी और शक्ति, यह विशेष अनुभव तो करते ही हैं। अभी जितना स्वयं शक्तिशाली लाइट हाउस, माइट हाउस बन सेवा करेंगे उतना जल्दी चारों ओर प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। हर एक निमित्त सेवाधारी को विशेष सेवा की सफलता के लिए दो बातें ध्यान रखनी हैं - एक बात सदा संस्कारों को मिलाने की युनिटी का, हर स्थान से यह विशेषता दिखाई दे। दूसरा सदा हर निमित्त सेवाधारियों को पहले स्वयं को यह दो सर्टीफिकेट देने हैं। एक ‘एकता' दूसरा ‘सन्तुष्टता'। संस्कार भिन्न-भिन्न होते ही हैं और होंगे भी लेकिन संस्कारों को टकराना या किनारा करके स्वयं को सेफ रखना - यह अपने ऊपर है। कुछ भी हो जाता है तो अगर कोई का संस्कार ऐसा है तो दूसरा ताली नहीं बजावे। चाहे वह बदलते हैं या नहीं बदलते हैं, लेकिन आप तो बदल सकते हो ना! अगर हरेक अपने को चेन्ज करे, समाने की शक्ति धारण करे तो दूसरे का संस्कार भी अवश्य शीतल हो जायेगा। तो सदा एक दो में स्नेह की भावना से, श्रेष्ठता की भावना से सम्पर्क में आओ, क्योंकि निमित्त सेवाधारी - बाप के सूरत का दर्पण हैं। तो जो आपकी प्रैक्टिकल जीवन है वही बाप के सूरत का दर्पण हो जाता है इसलिए सदा ऐसे जीवन रूपी दर्पण हो - जिसमें बाप जो है जैसा है वैसा दिखाई दे। बाकी मेहनत बहुत अच्छी करते हो, हिम्मत भी अच्छी है। सेवा की वृद्धि उमंग भी बहुत अच्छा है इसलिए विस्तार को प्राप्त कर रहे हो। सेवा तो अच्छी है, अभी सिर्फ बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए प्रत्यक्ष जीवन का प्रमाण सदा दिखाओ। जो सभी एक ही आवाज से बोलें कि यह ज्ञान की धारणाओं में तो एक हैं लेकिन संस्कार मिलाने में भी नम्बरवन हैं। ऐसे भी नहीं कि इण्डिया की टीचर अलग हैं, फॉरेन की टीचर अलग हैं। सभी एक हैं। यह तो सिर्फ सेवा के निमित्त बने हुए हैं, स्थापना में सहयोगी बने हैं और अभी भी सहयोग दे रहे हैं, इसलिए स्वत: ही सबमें विशेष पार्ट बजाना पड़ता है। वैसे बापदादा व निमित्त आत्माओं के पास विदेशी व देशी में कोई अन्तर नहीं है। जहाँ जिसकी सेवा की विशेषता है, फिर चाहे कोई भी हो, वहाँ उसकी विशेषता से लाभ लेना होता है। बाकी एक दो को रिगार्ड देना यह ब्राह्मण कुल की मर्यादा है, स्नेह लेना और रिगार्ड देना। विशेषता को महत्व दिया जाता है ना कि व्यक्ति को। अच्छा। वरदान:- हर सेकण्ड और संकल्प को अमूल्य रीति से व्यतीत करने वाले अमूल्य रत्न भव संगमयुग के एक सेकण्ड की भी बहुत बड़ी वैल्यु है। जैसे एक का लाख गुणा बनता है वैसे यदि एक सेकण्ड भी व्यर्थ जाता है तो लाख गुणा व्यर्थ जाता है - इसलिए इतना अटेन्शन रखो तो अलबेलापन समाप्त हो जायेगा। अभी तो कोई हिसाब लेने वाला नहीं है लेकिन थोड़े समय के बाद पश्चाताप होगा क्योंकि इस समय की बहुत वैल्यु है। जो अपने हर सेकण्ड, हर संकल्प को अमूल्य रीति से व्यतीत करते हैं वही अमूल्य रत्न बनते हैं। स्लोगन:- जो सदा योगयुक्त हैं वो सहयोग का अनुभव करते विजयी बन जाते हैं। Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? 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- BK murli today: 26 Dec 2020 - Brahma Kumaris Murli for today in English
Shiv Baba's murli for today for Brahma Kumaris/Kumar (BK godly students). Date: 26 December 2020 (Saturday). Publisher: Madhuban, Mount Abu. Visit Official Murli blog~ listen + read daily murlis. ➤Visit our "Online Services" section for daily sustenance & more. "Sweet children, the Father has come to give you unlimited property. Remember such a sweet Baba with love and you will become pure." Question: When the time of destruction comes close, what will be the signs? Answer: When the time of destruction comes close, everyone will come to know: 1. Our Baba has come. 2. The new world is now being established and the old world is to be destroyed. Many will have visions. 3. Sannyasis and kings will receive knowledge. 4. When people hear that the unlimited Father has come and that only He can grant salvation, many will come. 5. Many will receive this message through the newspapers. 6. You children will continue to become soul conscious. You will stay in super-sensuous joy in remembrance of the one Father. ♫ Listen Today's Murli ➤ Song: Take us away from this world of sin to a world of rest and comfort. Om Shanti. Who says this and to whom does He say it? The spiritual children. Why does Baba repeatedly say "spiritual”? Because you souls now have to return home. Then, when you come down to this world, there will be happiness. You souls received your inheritance of peace and happiness in the previous cycle too. That inheritance is now being repeated. It is only when this is repeated that the world cycle can repeat. Everything repeats, does it not? Whatever happened in the past will repeat again. In fact, even a play repeats, but there can be some change in that; if they forget their words, they can make something up and say those words. However, this is called a film in which there cannot be any change. This drama is eternally predestined. Those plays cannot be called predestined. By understanding this drama, you are also able to understand that drama. You children understand that all the plays you see now are false. Nothing that you can see in the iron age will exist in the golden age. Everything that happened in the golden age will only happen again in the golden age. Those limited plays will exist on the path of devotion. The things that exist on the path of devotion do not exist either on the path of knowledge or in the golden age. So, you are now receiving your inheritance from the unlimited Father. Baba has explained that you receive an inheritance from your worldly fathers and the other inheritance from your parlokik Father, but you don’t receive an inheritance from the alokik father. He himself receives an inheritance from that One. Only through this one does the unlimited Father give you the property of the new world. He adopts you through him, and this is why he is also called a father. On the path of devotion, they remember their worldly fathers and the parlokik Father. This alokik father is not remembered because no inheritance is received from him. The word "father” is correct, but even Brahma is part of creation. The creation receives the inheritance from the Creator. Shiv Baba has created you. He also created Brahma. The inheritance is received from the Creator, the One who is the unlimited Father. Does Brahma have an unlimited inheritance? The Father sits here and explains through this one that he too receives an inheritance. It isn’t that he claims his inheritance and gives it to you. The Father says: You mustn’t even remember this one. You receive this property from the unlimited Father. You receive a limited inheritance from your limited father and the unlimited inheritance from the parlokik Father; both of these are reserved. It enters your intellects that you receive the inheritance from Shiv Baba, but what inheritance would you say you receive from Brahma? The property enters your intellects, does it not? You receive this unlimited sovereignty from that One. He is the greatest Baba. This one says: Don’t remember me! I don’t have any property that you could receive. Remember the One from whom you are to receive the property. He says: Constantly remember Me alone! There is so much fighting over the property of a physical father. Here, there is no question of fighting. If you don’t remember the Father, then automatically you won’t receive an unlimited inheritance. The Father says: Consider yourselves to be souls. He even tells this chariot: Consider yourself to be a soul and remember Me and you will receive the sovereignty of the world. This is called the pilgrimage of remembrance. Renounce all your bodily relations and consider yourselves to be bodiless souls. This does need effort. Some effort is needed to study. By staying on this pilgrimage of remembrance, you become pure from impure. Those people go on pilgrimages physically. Here, this is the pilgrimage of the soul. This is your pilgrimage to the supreme abode. No one can go to the supreme abode and then the land of liberation in life without making this effort. Only those who stay in remembrance very well are able to go there. They are the ones who will claim a high status. Everyone will go back but, because they are impure, they continue to call out. The souls remember. It is souls that eat and drink. Become soul conscious! This is the only effort you have to make at this time. You won’t receive anything without making effort. It is very easy, but there is still opposition from Maya. When someone has the good fortune, he quickly engages himself in this. Some will come even later. When it sits in their intellects very well, they say: We are now going to occupy ourselves on this spiritual pilgrimage. If they occupy themselves intensely on this, they can race ahead very well. Even while living at home with their families, it will enter their intellects that it is a very good and right thing to consider oneself to be a soul and to remember the Purifier Father. When you follow the Father’s orders, you can become pure; you definitely will become that. It is a matter of making effort. It is very easy. On the path of devotion there is a lot of difficulty. Here, it is in your intellects that you have to return to Baba. Then you will go there (the golden age) and be threaded in the rosary of Vishnu. Just think about all the rosaries! There is the rosary of Brahma, the rosary of Vishnu and the rosary of Rudra. This one is the first one in the new world. All the rest come later, that is, they are threaded later. They ask: What is your highest clan? You can reply: The Vishnu clan. Originally, you belonged to the clan of Vishnu and then you became part of the warrior clan. Then the genealogical trees emerged from that. You can understand from this knowledge how the genealogical trees are created. The rosary of Rudra is created first of all. This is the highest genealogical tree. Baba has explained that this is your most elevated clan. You also understand that the whole world will definitely receive the message. Some say: God has definitely come somewhere, but we can’t tell where. Eventually, everyone will come to know. It will continue to be printed in the newspapers. At present, they only print a little. Not everyone reads the same newspaper. Yes, they can be read in libraries. Some even read two to four different newspapers. Some don’t read any papers at all. Everyone has to know that Baba has come. When the time of destruction comes close, they will come to know that the new world is being established and that the old world is to be destroyed. It is possible that many will have visions. You also have to give this knowledge to the sannyasis and the kings. Many are to receive this message. When they hear that the unlimited Father has come and that He is granting salvation, many will come. At the moment, nothing that you like has been printed in the papers officially. Someone will emerge who will ask about this. You children understand that you are establishing the golden age by following shrimat. This is your new mission. You are members of God’s mission just as Christians become members of a Christian Mission. You are God’s members. This is why it is remembered that if you want to know about super-sensuous joy, you should ask the gopes and gopis who became soul conscious. Remember the one Father alone and none other. Only the one Father teaches this Raja Yoga. He is the God of the Gita. Everyone has to be given this message or invitation from the Father. All other things are decorations of knowledge. All the pictures are decorations of knowledge, not of devotion. The Father has had them made in order for them to be explained to people. All of these pictures will disappear and only the knowledge will remain in souls. The Father has this knowledge and it is also recorded in the drama. You have now passed through the path of devotion and come onto the path of knowledge. You souls now understand that you are playing the parts that are within you. It is recorded for us to study Raja Yoga once again with the Father. The Father had to come to give us this knowledge. It is recorded in the soul. When you reach there, the part of the new world will repeat. You now understand the whole record of souls from the beginning. Then, all of this will come to an end. Even the part of the path of devotion will come to an end. Then, whatever act you performed in the golden age, you will perform again. The Father doesn’t tell you what is to happen. Whatever has happened will happen again. You understand that the golden age is the new world. Everything there will definitely be new and satopradhan. Everything will be very inexpensive. Whatever happened in the previous cycle will happen again. You can see how much happiness Lakshmi and Narayan had. They had so many diamonds and jewels, so much wealth, etc. When you have wealth, you also have happiness. You could compare that to here, but there, there is no comparison; everything here will have been forgotten there. These are new things that only the Father explains to the children. Souls first have to go there (soul world) where all activity comes to a halt. All karmic accounts are settled. The record is coming to an end. This one record is very long. They say: In that case, souls should be just as big. But no! Such tiny souls have parts of 84 births recorded in them. Souls are imperishable. This can only be called the wonder of nature. There cannot be anything else as amazing as this. It is said of Baba that He remains at rest during the golden and silver ages, whereas you play all-round parts. You have the longest parts. Therefore, the Father gives you the elevated inheritance. He says: You take 84 births. My part is such that no one else can play it. This is a wonderful thing. It is a wonder how the Father sits here and explains to souls. Souls are neither male nor female. It is when a soul adopts a body that he or she is said to be male or female. All souls are children and so they are brothers. In order to claim your inheritance, you definitely have to be brothers. Each soul is a son of the Father. You claim your inheritance from the Father, and so you are definitely called males. All souls have a right to claim the inheritance from the Father. For that, you have to remember the Father. Consider yourselves to be souls. We are all brothers. A soul is a soul. Souls never change, but they sometimes take a male body and sometimes a female body. These are very interesting matters that have to be understood. No one else can relate these things. Others can only hear this from the Father or from you. The Father only speaks to you children. In the early days He used to meet and talk to everyone. Gradually, the time will come when He will not talk to anyone. It is said, "Son shows Father”. You children have to teach others. You children serve many and bring them here. Baba understands that you make many people similar to yourselves and bring them here. This one will become a big king; this one will become a small king. You are the spiritual army who liberates everyone from the chains of Ravan and brings them to your mission. According to the service you do, so will be the fruit you receive. Those who have performed more devotion become clever and claim their inheritance. This is a study. If you don’t study well, you fail. This study is very easy. It is easy to understand and also to explain. There is no question of any difficulty. However, a kingdom is being established and so all types are needed. You have to make effort to claim a high status in this. You have to be transferred from the land of death to the land of immortality. The more you study, the higher the status you will receive in the land of immortality. You also have to love the Father, because He is the loveliest of all. He is the Ocean of Love. You cannot all have the same love. Some remember Him and some don’t remember Him at all! Some have intoxication by explaining to others. This is a huge temptation. You can tell anyone that this is a university. This is spiritual study. Such pictures are not shown in any other schools. Day by day, many more pictures will continue to emerge so that people will be able to understand everything just by looking at them. The picture of the ladder is very good. However, anyone who doesn’t belong to the deity clan will not understand anything. Those who belong to this clan will be struck by the arrow. Those who are the leaves of our deity religion will come. You will feel that they listen with great interest. Some will just come and go away. Day by day, Baba explains new things to you children. You must have great interest in doing service. Those who remain busy doing service are seated on the heart-throne and will also be on that throne. As you progress further, you will have visions of everything; you will stay in that happiness. There will be many cries of distress in the world. There will even be rivers of blood flowing. Courageous ones who do service will never starve to death. However, you have to live here in simplicity. You will receive happiness there. A kumari is made to live in simplicity and then, when she goes to her in-laws she can put on everything she wants to. You are also going to your in-laws’ home and so have that intoxication! That is the land of happiness. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence of Murli In order to be threaded in the rosary, become soul conscious and stay on the pilgrimage of remembrance with great intensity. Follow the Father’s directions and become pure. Do service to make many others similar to yourself by giving them the Father’s message. You have to live here in simplicity. In order to be able to watch the final scenes of the cries of distress, you have to become mahavirs (courageous warriors). Blessing: May you be an intense effort-maker who follows the Father in every action and gives the response of love. You automatically follow the one you love. Always remember to ask yourself: Am I following the Father in the action I am performing? If not, then stop there and then. By copying the Father, you become equal to the Father. Just as you use carbon paper to make a copy, in the same way, use the paper of attention and a copy will be made because now is the only time to become an intense effort-maker and make yourself full of every power. If you are unable to make yourself full, then take someone’s help. Otherwise, as you carry on, it will become "too late”. Slogan:- The fruit of contentment is happiness and by being happy, all your questions finish. Useful Links Sakar Murli Original Voice What is Gyan Murli? Video Gallery (watch popular BK videos) Audio Library (listen audio collection) Read eBooks (Hindi & English) ➤All Godly Resources at One place .