Search BkSustenance
Search Bk Sustenance for pages, Blog posts, articles, & Samadhan QandA (new)
97 items found for ""
- Brahma Kumaris Murli 18 December 2020 (HINDI) Madhuban BK Murli Today
Daily Murli Brahma Kumaris Hindi – 18 December 2020 18/12/2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन BK Murli is available to ‘read’ and to ‘listen’ Daily Murli in Hindi and English.” Om Shanti. Shiv baba ke madhur Mahavakya. Brahma Kumaris BaapDada ki murli. Bk Murli Audio recorded by service team of sisters of bkdrluhar.com website “मीठे बच्चे – रोज़ विचार सागर मंथन करो तो खुशी का पारा चढ़ेगा, चलते-फिरते याद रहे कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं” प्रश्नः- अपनी उन्नति करने का सहज साधन कौन-सा है? उत्तर:- अपनी उन्नति के लिए रोज़ पोतामेल रखो। चेक करो – आज सारा दिन कोई आसुरी काम तो नहीं किया? जैसे स्टूडेन्ट अपना रजिस्टर रखते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी दैवी गुणों का रजिस्टर रखो तो उन्नति होती रहेगी। गीत:- दूर देश के रहने वाला…….. ओम् शान्ति बच्चे जानते हैं दूर देश किसको कहा जाता है। दुनिया में एक भी मनुष्य नहीं जानता। भल कितना भी बड़ा विद्वान हो, पण्डित हो इनका अर्थ नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो। बाप, जिसको सब मनुष्यमात्र याद करते हैं कि हे भगवान… वह जरूर ऊपर मूलवतन में है, और किसको भी यह पता नहीं है। इस ड्रामा के राज़ को भी अभी तुम बच्चे समझते हो। शुरू से लेकर अभी तक जो हुआ है, जो होने का है, सब बुद्धि में है। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह बुद्धि में रहना चाहिए ना। तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं। विचार सागर मंथन नहीं करते हैं इसलिए खुशी का पारा भी नहीं चढ़ता है। उठते-बैठते बुद्धि में रहना चाहिए कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं। आदि से अन्त तक मुझ आत्मा को सारे सृष्टि के चक्र का मालूम है। भल तुम यहाँ बैठे हो, बुद्धि में मूलवतन याद आता है। वह है स्वीट साइलेन्स होम, निर्वाणधाम, साइलेन्स धाम, जहाँ आत्मायें रहती हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में झट आ जाता है, और कोई को पता नहीं। भल कितने भी शास्त्र आदि पढ़ते सुनते रहे, फायदा कुछ भी नहीं। वह सब हैं उतरती कला में। तुम अभी चढ़ रहे हो। वापिस जाने के लिए खुद तैयारी कर रहे हो। यह पुराना कपड़ा छोड़ हमको घर जाना है। खुशी रहती है ना! घर जाने के लिए आधाकल्प भक्ति की है। सीढ़ी नीचे उतरते ही गये। अभी बाबा हमको सहज समझाते हैं। तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए। बाबा भगवान हमको पढ़ाते हैं – यह खुशी बहुत रहनी चाहिए। बाप सम्मुख पढ़ा रहे हैं। बाबा जो सभी का बाप है, वह हमको फिर से पढ़ा रहे हैं। अनेक बार पढ़ाया है। जब तुम चक्र लगाकर पूरा करते हो तो फिर बाप आते हैं। इस समय तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी। तुम विष्णुपुरी के देवता बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। दुनिया में और कोई भी यह नॉलेज दे न सके। शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं, यह खुशी कितनी रहनी चाहिए। बच्चे जानते हैं यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के हैं, यह सद्गति के लिए नहीं। भक्ति मार्ग की सामग्री भी चाहिए ना। अथाह सामग्री है। बाप कहते हैं इससे तुम गिरते आये हो। कितना दर-दर भटकते हैं। अभी तुम शान्त होकर बैठे हो। तुम्हारा धक्का खाना सब छूट गया। जानते हो बाकी थोड़ा समय है, आत्मा को पवित्र बनाने के लिए बाप वही रास्ता बता रहे हैं। कहते हैं मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे फिर सतोप्रधान दुनिया में आकर राज्य करेंगे। यह रास्ता कल्प-कल्प अनेक बार बाप ने बताया है। फिर अपनी अवस्था को भी देखना है, स्टूडेन्ट पुरूषार्थ कर अपने को होशियार बनाते हैं ना। पढ़ाई का भी रजिस्टर होता है और चलन का भी रजिस्टर होता है। यहाँ तुम्हें भी दैवीगुण धारण करने हैं। रोज़ अपना पोतामेल रखने से बहुत उन्नति होगी – आज सारा दिन कोई आसुरी काम तो नहीं किया? हमको तो देवता बनना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र सामने रखा है। कितना सिम्पुल चित्र है। ऊपर में शिवबाबा है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा यह वर्सा देते हैं तो जरूर संगम पर ब्राह्मण-ब्राह्मणियां होंगे ना। देवतायें होते हैं सतयुग में। ब्राह्मण हैं संगम पर। कलियुग में हैं शूद्र वर्ण वाले। विराट रूप भी बुद्धि में धारण करो। हम अभी हैं ब्राह्मण चोटी, फिर देवता बनेंगे। बाप ब्राह्मणों को पढ़ा रहे हैं देवता बनाने के लिए। तो दैवी गुण भी धारण करने हैं, इतना मीठा बनना है। कोई को दु:ख नहीं देना है। जैसे शरीर निर्वाह के लिए कुछ न कुछ काम किया जाता है, वैसे यहाँ भी यज्ञ सर्विस करनी है। कोई बीमार है, सर्विस नहीं करते हैं तो उनकी फिर सर्विस करनी पड़ती है। समझो कोई बीमार है, शरीर छोड़ देते हैं, तुमको दु:खी होने की वा रोने की बात नहीं। तुमको तो बिल्कुल ही शान्ति में बाबा की याद में रहना है। कोई आवाज़ नहीं। वह तो शमशान में ले जाते हैं तो आवाज़ करते जाते हैं राम नाम संग है। तुमको कुछ भी कहना नहीं है। तुम साइलेन्स से विश्व पर जीत पाते हो। उन्हों की है साइंस, तुम्हारी है साइलेन्स। तुम बच्चे ज्ञान और विज्ञान का भी यथार्थ अर्थ जानते हो। ज्ञान है समझ और विज्ञान है सब कुछ भूल जाना, ज्ञान से भी परे। तो ज्ञान भी है, विज्ञान भी है। आत्मा जानती है हम शान्तिधाम के रहने वाले हैं फिर ज्ञान भी है। रूप और बसन्त। बाबा भी रूप-बसन्त है ना। रूप भी है और उनमें सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान भी है। उन्होंने विज्ञान भवन नाम रखा है। अर्थ कुछ नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो इस समय साइंस से दु:ख भी है तो सुख भी है। वहाँ सुख ही सुख है। यहाँ है अल्पकाल का सुख। बाकी तो दु:ख ही दु:ख है। घर में मनुष्य कितने दु:खी रहते हैं। समझते हैं कहाँ मरें तो इस दु:ख की दुनिया से छूटें। तुम बच्चे तो जानते हो बाबा आया हुआ है हमको स्वर्गवासी बनाने। कितना गद्गद् होना चाहिए। कल्प-कल्प बाबा हमको स्वर्गवासी बनाने आते हैं। तो ऐसे बाप की मत पर चलना चाहिए ना। बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, कभी कोई को दु:ख न दो। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। हम भाई-बहन हैं, यह है प्यार का नाता। और कोई दृष्टि जा नहीं सकती। हर एक की बीमारी अपनी-अपनी है, उस अनुसार राय भी देते रहते हैं। पूछते हैं बाबा यह-यह हालत होती है, इस हालत में क्या करें? बाबा समझाते हैं भाई-बहन की दृष्टि खराब नहीं होनी चाहिए। कोई भी झगड़ा न हो। मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ ना। शिवबाबा ब्रह्मा तन से बोल रहे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा बच्चा हुआ शिवबाबा का, साधारण तन में ही आते हैं ना। विष्णु तो हुआ सतयुग का। बाप कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर नई दुनिया रचने आया हूँ। बाबा पूछते हैं तुम विश्व के महाराजा-महारानी बनेंगे? हाँ बाबा, क्यों नहीं बनेंगे। हाँ, इसमें पवित्र रहना पड़ेगा। यह तो मुश्किल है। अरे, तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, तुम पवित्र नहीं रह सकते हो? लज्जा नहीं आती है? लौकिक बाप भी समझाते हैं ना – गंदा काम मत करो। इस विकार पर ही विघ्न पड़ते हैं। शुरू से लेकर इस पर हंगामा चलता आया है। बाप कहते हैं – मीठे बच्चों, इस पर जीत पानी है। मैं आया हूँ पवित्र बनाने। तुम बच्चों को राइट-रांग, अच्छा-बुरा सोचने की बुद्धि मिली है। यह लक्ष्मी-नारायण है एम ऑब्जेक्ट। स्वर्गवासियों में दैवीगुण हैं, नर्कवासियों में अवगुण हैं। अभी रावणराज्य है, यह भी कोई समझ नहीं सकते। रावण को हर वर्ष जलाते हैं। दुश्मन है ना। जलाते ही आते हैं। समझते नहीं कि यह है कौन? हम सब रावण राज्य के हैं ना, तो जरूर हम असुर ठहरे। परन्तु अपने को कोई असुर समझते नहीं। बहुत कहते भी हैं यह राक्षस राज्य है। यथा राजा-रानी तथा प्रजा। परन्तु इतनी भी समझ नहीं। बाप बैठ समझाते हैं रामराज्य अलग होता है, रावणराज्य अलग होता है। अभी तुम सर्वगुण सम्पन्न बन रहे हो। बाप कहते हैं मेरे भक्तों को ज्ञान सुनाओ, जो मन्दिरों में जाकर देवताओं की पूजा करते हैं। बाकी ऐसे-ऐसे आदमियों से माथा नहीं मारो। मन्दिरों में तुमको बहुत भक्त मिलेंगे। नब्ज भी देखनी होती है। डॉक्टर लोग देखने से ही झट बता देते हैं कि इनको क्या बीमारी है। देहली में एक अजमलखाँ वैद्य मशहूर था। बाप तो तुमको 21 जन्मों के लिए एवर हेल्दी, वेल्दी बनाते हैं। यहाँ तो हैं ही सब रोगी, अनहेल्दी। वहाँ तो कभी रोग होता नहीं। तुम एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनते हो। तुम अपने योगबल से कर्मेन्द्रियों पर विजय पा लेते हो। तुम्हें यह कर्मेन्द्रियाँ कभी धोखा नहीं दे सकती हैं। बाबा ने समझाया है याद में अच्छी रीति रहो, देही-अभिमानी रहो तो कर्मेन्द्रियाँ धोखा नहीं देंगी। यहाँ ही तुम विकारों पर जीत पाते हो। वहाँ कुदृष्टि होती नहीं। रावण राज्य ही नहीं। वह है ही अहिंसक देवी-देवताओं का धर्म। लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। यह लड़ाई भी अन्तिम लगनी है, इनसे स्वर्ग का द्वार खुलना है। फिर कभी लड़ाई लगती ही नहीं। यज्ञ भी यह लास्ट है। फिर आधाकल्प कोई यज्ञ होगा ही नहीं। इसमें सारा किचड़ा स्वाहा हो जाता है। इस यज्ञ से ही विनाश ज्वाला निकली है, सारी सफाई हो जायेगी। फिर तुम बच्चों को साक्षात्कार भी कराया गया है, वहाँ के शूबीरस आदि भी बहुत स्वादिष्ट फर्स्टक्लास चीजें होती हैं। उस राज्य की अभी तुम स्थापना कर रहे हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए। तुम्हारा नाम भी है शिव शक्ति भारत मातायें। शिव से तुम शक्ति लेते हो सिर्फ याद से। धक्के खाने की कोई बात नहीं। वह समझते हैं जो भक्ति नहीं करते हैं वह नास्तिक हैं। तुम कहते हो जो बाप और रचना को नहीं जानते हैं वह नास्तिक हैं, तुम अभी आस्तिक बने हो। त्रिकालदर्शी भी बने हो। तीनों लोकों, तीनों कालों को जान गये हो। इन लक्ष्मी-नारायण को बाप से यह वर्सा मिला है। अभी तुम वह बनते हो। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। शिव-बाबा खुद कहते हैं कि मैं इनमें प्रवेश कर समझाता हूँ। नहीं तो मैं निराकार कैसे समझाऊं। प्रेरणा से पढ़ाई होती है क्या? पढ़ाने लिए तो मुख चाहिए ना। गऊ मुख तो यह है ना। यह बड़ी मम्मा है ना, ह्युमन माता है। बाप कहते हैं मैं इन द्वारा तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाता हूँ, युक्ति बतलाता हूँ। इसमें आशीर्वाद की कोई बात नहीं। डायरेक्शन पर चलना है। श्रीमत मिलती है। कृपा की बात नहीं। कहते हैं – बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाता है, कृपा करो। अरे, यह तो तुम्हारा काम है याद करना। मैं क्या कृपा करूँगा। हमारे लिए तो सब बच्चे हैं। कृपा करूँ तो सभी तख्त पर बैठ जाएं। पद तो पढ़ाई अनुसार पायेंगे। पढ़ना तो तुमको है ना। पुरूषार्थ करते रहो। मोस्ट बिलवेड बाप को याद करना है। पतित आत्मा वापिस जा न सके। बाप कहते हैं जितना तुम याद करेंगे तो याद करते-करते पावन बन जायेंगे। पावन आत्मा यहाँ रह नहीं सकेगी। पवित्र बने तो शरीर नया चाहिए। पवित्र आत्मा को शरीर इमप्योर मिले, यह लॉ नहीं। सन्यासी भी विकार से जन्म लेते हैं ना। यह देवतायें विकार से जन्म नहीं लेते, जो फिर सन्यास करना पड़े। यह तो ऊंच ठहरे ना। सच्चे-सच्चे महात्मा यह हैं जो सदैव सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। वहाँ रावण राज्य है नहीं। है ही सतोप्रधान रामराज्य। वास्तव में राम भी कहना नहीं चाहिए। शिवबाबा है ना। इसको कहा जाता है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र वा शिव एक ही है। कृष्ण का तो नाम नहीं है। शिवबाबा आकर ज्ञान सुनाते हैं वह फिर रूद्र यज्ञ रचते हैं तो मिट्टी का लिंग और सालिग्राम बनाते हैं। पूजा कर फिर तोड़ देते हैं। जैसे बाबा देवियों का मिसाल बताते हैं। देवियों को सजाकर खिलाए पिलाए पूजा कर फिर डुबो देते हैं। वैसे शिवबाबा और सालिग्रामों की बड़े प्रेम और शुद्धि से पूजा कर फिर खलास कर देते हैं। यह है सारा भक्ति का विस्तार। अभी बाप बच्चों को समझाते हैं – जितना बाप की याद में रहेंगे उतना खुशी में रहेंगे। रात्रि को रोज़ अपना पोतामेल देखना चाहिए। कुछ भूल तो नहीं की? अपना कान पकड़ लेना चाहिए – बाबा आज हमसे यह भूल हुई, क्षमा करना। बाबा कहते हैं सच लिखेंगे तो आधा पाप कट जायेगा। बाप तो बैठा है ना। अपना कल्याण करना चाहते हो तो श्रीमत पर चलो। पोतामेल रखने से बहुत उन्नति होगी। खर्चा तो कुछ है नहीं। ऊंच पद पाना है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई को भी दु:ख नहीं देना है। कोई कुछ कहता है तो सुना-अनसुना कर देना है। यह मेहनत करनी है। बाप आते ही हैं तुम बच्चों का दु:ख दूर कर सदा के लिए सुख देने। तो बच्चों को भी ऐसा बनना है। मन्दिरों में सबसे अच्छी सर्विस होगी। वहाँ रिलीज़स माइन्डेड तुमको बहुत मिलेंगे। प्रदर्शनी में बहुत आते हैं। प्रोजेक्टर से भी प्रदर्शनी मेले में सर्विस अच्छी होती है। मेले में खर्चा होता है तो जरूर फायदा भी है ना। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप ने राइट-रांग को समझने की बुद्धि दी है, उसी बुद्धि के आधार पर दैवीगुण धारण करने हैं, किसी को दु:ख नहीं देना है, आपस में भाई-बहन का सच्चा प्यार हो, कभी कुदृष्टि न जाए। 2) बाप के हर डायरेक्शन पर चल अच्छी तरह पढ़कर अपने आप पर आपेही कृपा करनी है। अपनी उन्नति के लिए पोतामेल रखना है, कोई दु:ख देने वाली बातें करता है तो सुनी-अनसुनी कर देना है। वरदान:- सर्व सम्बन्धों का अनुभव एक बाप से करने वाले अथक और विघ्न विनाशक भव जिन बच्चों के सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ हैं उनको और सब सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे, वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे, कभी थकावट का अनुभव नहीं करेंगे, अथक होंगे। बाप और सेवा इसी लगन में मगन होंगे। विघ्नों के कारण रुकने के बजाए सदा विघ्न विनाशक होंगे। सर्व सम्बन्धों की अनुभूति एक बाप से होने के कारण डबल लाइट रहेंगे, कोई बोझ नहीं होगा। सर्व कम्पलेन समाप्त होंगी। कम्पलीट स्थिति का अनुभव होगा। सहजयोगी होंगे। स्लोगन:- संकल्प में भी किसी देहधारी तरफ आकर्षित होना अर्थात् बेवफा बनना। Aaj Ka Purusharth : Click Here #DAILYGYANMURLIHINDI
- Brahma Kumaris Murli 18 December 2020 (HINDI) Madhuban BK Murli Today
Daily Murli Brahma Kumaris Hindi – 18 December 2020 18/12/2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन BK Murli is available to ‘read’ and to ‘listen’ Daily Murli in Hindi and English.” Om Shanti. Shiv baba ke madhur Mahavakya. Brahma Kumaris BaapDada ki murli. Bk Murli Audio recorded by service team of sisters of bkdrluhar.com website “मीठे बच्चे – रोज़ विचार सागर मंथन करो तो खुशी का पारा चढ़ेगा, चलते-फिरते याद रहे कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं” प्रश्नः- अपनी उन्नति करने का सहज साधन कौन-सा है? उत्तर:- अपनी उन्नति के लिए रोज़ पोतामेल रखो। चेक करो – आज सारा दिन कोई आसुरी काम तो नहीं किया? जैसे स्टूडेन्ट अपना रजिस्टर रखते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी दैवी गुणों का रजिस्टर रखो तो उन्नति होती रहेगी। गीत:- दूर देश के रहने वाला…….. ओम् शान्ति बच्चे जानते हैं दूर देश किसको कहा जाता है। दुनिया में एक भी मनुष्य नहीं जानता। भल कितना भी बड़ा विद्वान हो, पण्डित हो इनका अर्थ नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो। बाप, जिसको सब मनुष्यमात्र याद करते हैं कि हे भगवान… वह जरूर ऊपर मूलवतन में है, और किसको भी यह पता नहीं है। इस ड्रामा के राज़ को भी अभी तुम बच्चे समझते हो। शुरू से लेकर अभी तक जो हुआ है, जो होने का है, सब बुद्धि में है। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह बुद्धि में रहना चाहिए ना। तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं। विचार सागर मंथन नहीं करते हैं इसलिए खुशी का पारा भी नहीं चढ़ता है। उठते-बैठते बुद्धि में रहना चाहिए कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं। आदि से अन्त तक मुझ आत्मा को सारे सृष्टि के चक्र का मालूम है। भल तुम यहाँ बैठे हो, बुद्धि में मूलवतन याद आता है। वह है स्वीट साइलेन्स होम, निर्वाणधाम, साइलेन्स धाम, जहाँ आत्मायें रहती हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में झट आ जाता है, और कोई को पता नहीं। भल कितने भी शास्त्र आदि पढ़ते सुनते रहे, फायदा कुछ भी नहीं। वह सब हैं उतरती कला में। तुम अभी चढ़ रहे हो। वापिस जाने के लिए खुद तैयारी कर रहे हो। यह पुराना कपड़ा छोड़ हमको घर जाना है। खुशी रहती है ना! घर जाने के लिए आधाकल्प भक्ति की है। सीढ़ी नीचे उतरते ही गये। अभी बाबा हमको सहज समझाते हैं। तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए। बाबा भगवान हमको पढ़ाते हैं – यह खुशी बहुत रहनी चाहिए। बाप सम्मुख पढ़ा रहे हैं। बाबा जो सभी का बाप है, वह हमको फिर से पढ़ा रहे हैं। अनेक बार पढ़ाया है। जब तुम चक्र लगाकर पूरा करते हो तो फिर बाप आते हैं। इस समय तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी। तुम विष्णुपुरी के देवता बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। दुनिया में और कोई भी यह नॉलेज दे न सके। शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं, यह खुशी कितनी रहनी चाहिए। बच्चे जानते हैं यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के हैं, यह सद्गति के लिए नहीं। भक्ति मार्ग की सामग्री भी चाहिए ना। अथाह सामग्री है। बाप कहते हैं इससे तुम गिरते आये हो। कितना दर-दर भटकते हैं। अभी तुम शान्त होकर बैठे हो। तुम्हारा धक्का खाना सब छूट गया। जानते हो बाकी थोड़ा समय है, आत्मा को पवित्र बनाने के लिए बाप वही रास्ता बता रहे हैं। कहते हैं मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे फिर सतोप्रधान दुनिया में आकर राज्य करेंगे। यह रास्ता कल्प-कल्प अनेक बार बाप ने बताया है। फिर अपनी अवस्था को भी देखना है, स्टूडेन्ट पुरूषार्थ कर अपने को होशियार बनाते हैं ना। पढ़ाई का भी रजिस्टर होता है और चलन का भी रजिस्टर होता है। यहाँ तुम्हें भी दैवीगुण धारण करने हैं। रोज़ अपना पोतामेल रखने से बहुत उन्नति होगी – आज सारा दिन कोई आसुरी काम तो नहीं किया? हमको तो देवता बनना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र सामने रखा है। कितना सिम्पुल चित्र है। ऊपर में शिवबाबा है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा यह वर्सा देते हैं तो जरूर संगम पर ब्राह्मण-ब्राह्मणियां होंगे ना। देवतायें होते हैं सतयुग में। ब्राह्मण हैं संगम पर। कलियुग में हैं शूद्र वर्ण वाले। विराट रूप भी बुद्धि में धारण करो। हम अभी हैं ब्राह्मण चोटी, फिर देवता बनेंगे। बाप ब्राह्मणों को पढ़ा रहे हैं देवता बनाने के लिए। तो दैवी गुण भी धारण करने हैं, इतना मीठा बनना है। कोई को दु:ख नहीं देना है। जैसे शरीर निर्वाह के लिए कुछ न कुछ काम किया जाता है, वैसे यहाँ भी यज्ञ सर्विस करनी है। कोई बीमार है, सर्विस नहीं करते हैं तो उनकी फिर सर्विस करनी पड़ती है। समझो कोई बीमार है, शरीर छोड़ देते हैं, तुमको दु:खी होने की वा रोने की बात नहीं। तुमको तो बिल्कुल ही शान्ति में बाबा की याद में रहना है। कोई आवाज़ नहीं। वह तो शमशान में ले जाते हैं तो आवाज़ करते जाते हैं राम नाम संग है। तुमको कुछ भी कहना नहीं है। तुम साइलेन्स से विश्व पर जीत पाते हो। उन्हों की है साइंस, तुम्हारी है साइलेन्स। तुम बच्चे ज्ञान और विज्ञान का भी यथार्थ अर्थ जानते हो। ज्ञान है समझ और विज्ञान है सब कुछ भूल जाना, ज्ञान से भी परे। तो ज्ञान भी है, विज्ञान भी है। आत्मा जानती है हम शान्तिधाम के रहने वाले हैं फिर ज्ञान भी है। रूप और बसन्त। बाबा भी रूप-बसन्त है ना। रूप भी है और उनमें सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान भी है। उन्होंने विज्ञान भवन नाम रखा है। अर्थ कुछ नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो इस समय साइंस से दु:ख भी है तो सुख भी है। वहाँ सुख ही सुख है। यहाँ है अल्पकाल का सुख। बाकी तो दु:ख ही दु:ख है। घर में मनुष्य कितने दु:खी रहते हैं। समझते हैं कहाँ मरें तो इस दु:ख की दुनिया से छूटें। तुम बच्चे तो जानते हो बाबा आया हुआ है हमको स्वर्गवासी बनाने। कितना गद्गद् होना चाहिए। कल्प-कल्प बाबा हमको स्वर्गवासी बनाने आते हैं। तो ऐसे बाप की मत पर चलना चाहिए ना। बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, कभी कोई को दु:ख न दो। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। हम भाई-बहन हैं, यह है प्यार का नाता। और कोई दृष्टि जा नहीं सकती। हर एक की बीमारी अपनी-अपनी है, उस अनुसार राय भी देते रहते हैं। पूछते हैं बाबा यह-यह हालत होती है, इस हालत में क्या करें? बाबा समझाते हैं भाई-बहन की दृष्टि खराब नहीं होनी चाहिए। कोई भी झगड़ा न हो। मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ ना। शिवबाबा ब्रह्मा तन से बोल रहे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा बच्चा हुआ शिवबाबा का, साधारण तन में ही आते हैं ना। विष्णु तो हुआ सतयुग का। बाप कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर नई दुनिया रचने आया हूँ। बाबा पूछते हैं तुम विश्व के महाराजा-महारानी बनेंगे? हाँ बाबा, क्यों नहीं बनेंगे। हाँ, इसमें पवित्र रहना पड़ेगा। यह तो मुश्किल है। अरे, तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, तुम पवित्र नहीं रह सकते हो? लज्जा नहीं आती है? लौकिक बाप भी समझाते हैं ना – गंदा काम मत करो। इस विकार पर ही विघ्न पड़ते हैं। शुरू से लेकर इस पर हंगामा चलता आया है। बाप कहते हैं – मीठे बच्चों, इस पर जीत पानी है। मैं आया हूँ पवित्र बनाने। तुम बच्चों को राइट-रांग, अच्छा-बुरा सोचने की बुद्धि मिली है। यह लक्ष्मी-नारायण है एम ऑब्जेक्ट। स्वर्गवासियों में दैवीगुण हैं, नर्कवासियों में अवगुण हैं। अभी रावणराज्य है, यह भी कोई समझ नहीं सकते। रावण को हर वर्ष जलाते हैं। दुश्मन है ना। जलाते ही आते हैं। समझते नहीं कि यह है कौन? हम सब रावण राज्य के हैं ना, तो जरूर हम असुर ठहरे। परन्तु अपने को कोई असुर समझते नहीं। बहुत कहते भी हैं यह राक्षस राज्य है। यथा राजा-रानी तथा प्रजा। परन्तु इतनी भी समझ नहीं। बाप बैठ समझाते हैं रामराज्य अलग होता है, रावणराज्य अलग होता है। अभी तुम सर्वगुण सम्पन्न बन रहे हो। बाप कहते हैं मेरे भक्तों को ज्ञान सुनाओ, जो मन्दिरों में जाकर देवताओं की पूजा करते हैं। बाकी ऐसे-ऐसे आदमियों से माथा नहीं मारो। मन्दिरों में तुमको बहुत भक्त मिलेंगे। नब्ज भी देखनी होती है। डॉक्टर लोग देखने से ही झट बता देते हैं कि इनको क्या बीमारी है। देहली में एक अजमलखाँ वैद्य मशहूर था। बाप तो तुमको 21 जन्मों के लिए एवर हेल्दी, वेल्दी बनाते हैं। यहाँ तो हैं ही सब रोगी, अनहेल्दी। वहाँ तो कभी रोग होता नहीं। तुम एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनते हो। तुम अपने योगबल से कर्मेन्द्रियों पर विजय पा लेते हो। तुम्हें यह कर्मेन्द्रियाँ कभी धोखा नहीं दे सकती हैं। बाबा ने समझाया है याद में अच्छी रीति रहो, देही-अभिमानी रहो तो कर्मेन्द्रियाँ धोखा नहीं देंगी। यहाँ ही तुम विकारों पर जीत पाते हो। वहाँ कुदृष्टि होती नहीं। रावण राज्य ही नहीं। वह है ही अहिंसक देवी-देवताओं का धर्म। लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। यह लड़ाई भी अन्तिम लगनी है, इनसे स्वर्ग का द्वार खुलना है। फिर कभी लड़ाई लगती ही नहीं। यज्ञ भी यह लास्ट है। फिर आधाकल्प कोई यज्ञ होगा ही नहीं। इसमें सारा किचड़ा स्वाहा हो जाता है। इस यज्ञ से ही विनाश ज्वाला निकली है, सारी सफाई हो जायेगी। फिर तुम बच्चों को साक्षात्कार भी कराया गया है, वहाँ के शूबीरस आदि भी बहुत स्वादिष्ट फर्स्टक्लास चीजें होती हैं। उस राज्य की अभी तुम स्थापना कर रहे हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए। तुम्हारा नाम भी है शिव शक्ति भारत मातायें। शिव से तुम शक्ति लेते हो सिर्फ याद से। धक्के खाने की कोई बात नहीं। वह समझते हैं जो भक्ति नहीं करते हैं वह नास्तिक हैं। तुम कहते हो जो बाप और रचना को नहीं जानते हैं वह नास्तिक हैं, तुम अभी आस्तिक बने हो। त्रिकालदर्शी भी बने हो। तीनों लोकों, तीनों कालों को जान गये हो। इन लक्ष्मी-नारायण को बाप से यह वर्सा मिला है। अभी तुम वह बनते हो। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। शिव-बाबा खुद कहते हैं कि मैं इनमें प्रवेश कर समझाता हूँ। नहीं तो मैं निराकार कैसे समझाऊं। प्रेरणा से पढ़ाई होती है क्या? पढ़ाने लिए तो मुख चाहिए ना। गऊ मुख तो यह है ना। यह बड़ी मम्मा है ना, ह्युमन माता है। बाप कहते हैं मैं इन द्वारा तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाता हूँ, युक्ति बतलाता हूँ। इसमें आशीर्वाद की कोई बात नहीं। डायरेक्शन पर चलना है। श्रीमत मिलती है। कृपा की बात नहीं। कहते हैं – बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाता है, कृपा करो। अरे, यह तो तुम्हारा काम है याद करना। मैं क्या कृपा करूँगा। हमारे लिए तो सब बच्चे हैं। कृपा करूँ तो सभी तख्त पर बैठ जाएं। पद तो पढ़ाई अनुसार पायेंगे। पढ़ना तो तुमको है ना। पुरूषार्थ करते रहो। मोस्ट बिलवेड बाप को याद करना है। पतित आत्मा वापिस जा न सके। बाप कहते हैं जितना तुम याद करेंगे तो याद करते-करते पावन बन जायेंगे। पावन आत्मा यहाँ रह नहीं सकेगी। पवित्र बने तो शरीर नया चाहिए। पवित्र आत्मा को शरीर इमप्योर मिले, यह लॉ नहीं। सन्यासी भी विकार से जन्म लेते हैं ना। यह देवतायें विकार से जन्म नहीं लेते, जो फिर सन्यास करना पड़े। यह तो ऊंच ठहरे ना। सच्चे-सच्चे महात्मा यह हैं जो सदैव सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। वहाँ रावण राज्य है नहीं। है ही सतोप्रधान रामराज्य। वास्तव में राम भी कहना नहीं चाहिए। शिवबाबा है ना। इसको कहा जाता है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र वा शिव एक ही है। कृष्ण का तो नाम नहीं है। शिवबाबा आकर ज्ञान सुनाते हैं वह फिर रूद्र यज्ञ रचते हैं तो मिट्टी का लिंग और सालिग्राम बनाते हैं। पूजा कर फिर तोड़ देते हैं। जैसे बाबा देवियों का मिसाल बताते हैं। देवियों को सजाकर खिलाए पिलाए पूजा कर फिर डुबो देते हैं। वैसे शिवबाबा और सालिग्रामों की बड़े प्रेम और शुद्धि से पूजा कर फिर खलास कर देते हैं। यह है सारा भक्ति का विस्तार। अभी बाप बच्चों को समझाते हैं – जितना बाप की याद में रहेंगे उतना खुशी में रहेंगे। रात्रि को रोज़ अपना पोतामेल देखना चाहिए। कुछ भूल तो नहीं की? अपना कान पकड़ लेना चाहिए – बाबा आज हमसे यह भूल हुई, क्षमा करना। बाबा कहते हैं सच लिखेंगे तो आधा पाप कट जायेगा। बाप तो बैठा है ना। अपना कल्याण करना चाहते हो तो श्रीमत पर चलो। पोतामेल रखने से बहुत उन्नति होगी। खर्चा तो कुछ है नहीं। ऊंच पद पाना है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई को भी दु:ख नहीं देना है। कोई कुछ कहता है तो सुना-अनसुना कर देना है। यह मेहनत करनी है। बाप आते ही हैं तुम बच्चों का दु:ख दूर कर सदा के लिए सुख देने। तो बच्चों को भी ऐसा बनना है। मन्दिरों में सबसे अच्छी सर्विस होगी। वहाँ रिलीज़स माइन्डेड तुमको बहुत मिलेंगे। प्रदर्शनी में बहुत आते हैं। प्रोजेक्टर से भी प्रदर्शनी मेले में सर्विस अच्छी होती है। मेले में खर्चा होता है तो जरूर फायदा भी है ना। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप ने राइट-रांग को समझने की बुद्धि दी है, उसी बुद्धि के आधार पर दैवीगुण धारण करने हैं, किसी को दु:ख नहीं देना है, आपस में भाई-बहन का सच्चा प्यार हो, कभी कुदृष्टि न जाए। 2) बाप के हर डायरेक्शन पर चल अच्छी तरह पढ़कर अपने आप पर आपेही कृपा करनी है। अपनी उन्नति के लिए पोतामेल रखना है, कोई दु:ख देने वाली बातें करता है तो सुनी-अनसुनी कर देना है। वरदान:- सर्व सम्बन्धों का अनुभव एक बाप से करने वाले अथक और विघ्न विनाशक भव जिन बच्चों के सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ हैं उनको और सब सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे, वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे, कभी थकावट का अनुभव नहीं करेंगे, अथक होंगे। बाप और सेवा इसी लगन में मगन होंगे। विघ्नों के कारण रुकने के बजाए सदा विघ्न विनाशक होंगे। सर्व सम्बन्धों की अनुभूति एक बाप से होने के कारण डबल लाइट रहेंगे, कोई बोझ नहीं होगा। सर्व कम्पलेन समाप्त होंगी। कम्पलीट स्थिति का अनुभव होगा। सहजयोगी होंगे। स्लोगन:- संकल्प में भी किसी देहधारी तरफ आकर्षित होना अर्थात् बेवफा बनना। Aaj Ka Purusharth : Click Here #DAILYGYANMURLIHINDI
- Brahma Kumaris Murli 18 December 2020 (HINDI) Madhuban BK Murli Today
Daily Murli Brahma Kumaris Hindi – 18 December 2020 18/12/2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन BK Murli is available to ‘read’ and to ‘listen’ Daily Murli in Hindi and English.” Om Shanti. Shiv baba ke madhur Mahavakya. Brahma Kumaris BaapDada ki murli. Bk Murli Audio recorded by service team of sisters of bkdrluhar.com website “मीठे बच्चे – रोज़ विचार सागर मंथन करो तो खुशी का पारा चढ़ेगा, चलते-फिरते याद रहे कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं” प्रश्नः- अपनी उन्नति करने का सहज साधन कौन-सा है? उत्तर:- अपनी उन्नति के लिए रोज़ पोतामेल रखो। चेक करो – आज सारा दिन कोई आसुरी काम तो नहीं किया? जैसे स्टूडेन्ट अपना रजिस्टर रखते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी दैवी गुणों का रजिस्टर रखो तो उन्नति होती रहेगी। गीत:- दूर देश के रहने वाला…….. ओम् शान्ति बच्चे जानते हैं दूर देश किसको कहा जाता है। दुनिया में एक भी मनुष्य नहीं जानता। भल कितना भी बड़ा विद्वान हो, पण्डित हो इनका अर्थ नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो। बाप, जिसको सब मनुष्यमात्र याद करते हैं कि हे भगवान… वह जरूर ऊपर मूलवतन में है, और किसको भी यह पता नहीं है। इस ड्रामा के राज़ को भी अभी तुम बच्चे समझते हो। शुरू से लेकर अभी तक जो हुआ है, जो होने का है, सब बुद्धि में है। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह बुद्धि में रहना चाहिए ना। तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं। विचार सागर मंथन नहीं करते हैं इसलिए खुशी का पारा भी नहीं चढ़ता है। उठते-बैठते बुद्धि में रहना चाहिए कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं। आदि से अन्त तक मुझ आत्मा को सारे सृष्टि के चक्र का मालूम है। भल तुम यहाँ बैठे हो, बुद्धि में मूलवतन याद आता है। वह है स्वीट साइलेन्स होम, निर्वाणधाम, साइलेन्स धाम, जहाँ आत्मायें रहती हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में झट आ जाता है, और कोई को पता नहीं। भल कितने भी शास्त्र आदि पढ़ते सुनते रहे, फायदा कुछ भी नहीं। वह सब हैं उतरती कला में। तुम अभी चढ़ रहे हो। वापिस जाने के लिए खुद तैयारी कर रहे हो। यह पुराना कपड़ा छोड़ हमको घर जाना है। खुशी रहती है ना! घर जाने के लिए आधाकल्प भक्ति की है। सीढ़ी नीचे उतरते ही गये। अभी बाबा हमको सहज समझाते हैं। तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए। बाबा भगवान हमको पढ़ाते हैं – यह खुशी बहुत रहनी चाहिए। बाप सम्मुख पढ़ा रहे हैं। बाबा जो सभी का बाप है, वह हमको फिर से पढ़ा रहे हैं। अनेक बार पढ़ाया है। जब तुम चक्र लगाकर पूरा करते हो तो फिर बाप आते हैं। इस समय तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी। तुम विष्णुपुरी के देवता बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। दुनिया में और कोई भी यह नॉलेज दे न सके। शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं, यह खुशी कितनी रहनी चाहिए। बच्चे जानते हैं यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के हैं, यह सद्गति के लिए नहीं। भक्ति मार्ग की सामग्री भी चाहिए ना। अथाह सामग्री है। बाप कहते हैं इससे तुम गिरते आये हो। कितना दर-दर भटकते हैं। अभी तुम शान्त होकर बैठे हो। तुम्हारा धक्का खाना सब छूट गया। जानते हो बाकी थोड़ा समय है, आत्मा को पवित्र बनाने के लिए बाप वही रास्ता बता रहे हैं। कहते हैं मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे फिर सतोप्रधान दुनिया में आकर राज्य करेंगे। यह रास्ता कल्प-कल्प अनेक बार बाप ने बताया है। फिर अपनी अवस्था को भी देखना है, स्टूडेन्ट पुरूषार्थ कर अपने को होशियार बनाते हैं ना। पढ़ाई का भी रजिस्टर होता है और चलन का भी रजिस्टर होता है। यहाँ तुम्हें भी दैवीगुण धारण करने हैं। रोज़ अपना पोतामेल रखने से बहुत उन्नति होगी – आज सारा दिन कोई आसुरी काम तो नहीं किया? हमको तो देवता बनना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र सामने रखा है। कितना सिम्पुल चित्र है। ऊपर में शिवबाबा है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा यह वर्सा देते हैं तो जरूर संगम पर ब्राह्मण-ब्राह्मणियां होंगे ना। देवतायें होते हैं सतयुग में। ब्राह्मण हैं संगम पर। कलियुग में हैं शूद्र वर्ण वाले। विराट रूप भी बुद्धि में धारण करो। हम अभी हैं ब्राह्मण चोटी, फिर देवता बनेंगे। बाप ब्राह्मणों को पढ़ा रहे हैं देवता बनाने के लिए। तो दैवी गुण भी धारण करने हैं, इतना मीठा बनना है। कोई को दु:ख नहीं देना है। जैसे शरीर निर्वाह के लिए कुछ न कुछ काम किया जाता है, वैसे यहाँ भी यज्ञ सर्विस करनी है। कोई बीमार है, सर्विस नहीं करते हैं तो उनकी फिर सर्विस करनी पड़ती है। समझो कोई बीमार है, शरीर छोड़ देते हैं, तुमको दु:खी होने की वा रोने की बात नहीं। तुमको तो बिल्कुल ही शान्ति में बाबा की याद में रहना है। कोई आवाज़ नहीं। वह तो शमशान में ले जाते हैं तो आवाज़ करते जाते हैं राम नाम संग है। तुमको कुछ भी कहना नहीं है। तुम साइलेन्स से विश्व पर जीत पाते हो। उन्हों की है साइंस, तुम्हारी है साइलेन्स। तुम बच्चे ज्ञान और विज्ञान का भी यथार्थ अर्थ जानते हो। ज्ञान है समझ और विज्ञान है सब कुछ भूल जाना, ज्ञान से भी परे। तो ज्ञान भी है, विज्ञान भी है। आत्मा जानती है हम शान्तिधाम के रहने वाले हैं फिर ज्ञान भी है। रूप और बसन्त। बाबा भी रूप-बसन्त है ना। रूप भी है और उनमें सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान भी है। उन्होंने विज्ञान भवन नाम रखा है। अर्थ कुछ नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो इस समय साइंस से दु:ख भी है तो सुख भी है। वहाँ सुख ही सुख है। यहाँ है अल्पकाल का सुख। बाकी तो दु:ख ही दु:ख है। घर में मनुष्य कितने दु:खी रहते हैं। समझते हैं कहाँ मरें तो इस दु:ख की दुनिया से छूटें। तुम बच्चे तो जानते हो बाबा आया हुआ है हमको स्वर्गवासी बनाने। कितना गद्गद् होना चाहिए। कल्प-कल्प बाबा हमको स्वर्गवासी बनाने आते हैं। तो ऐसे बाप की मत पर चलना चाहिए ना। बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, कभी कोई को दु:ख न दो। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। हम भाई-बहन हैं, यह है प्यार का नाता। और कोई दृष्टि जा नहीं सकती। हर एक की बीमारी अपनी-अपनी है, उस अनुसार राय भी देते रहते हैं। पूछते हैं बाबा यह-यह हालत होती है, इस हालत में क्या करें? बाबा समझाते हैं भाई-बहन की दृष्टि खराब नहीं होनी चाहिए। कोई भी झगड़ा न हो। मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ ना। शिवबाबा ब्रह्मा तन से बोल रहे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा बच्चा हुआ शिवबाबा का, साधारण तन में ही आते हैं ना। विष्णु तो हुआ सतयुग का। बाप कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर नई दुनिया रचने आया हूँ। बाबा पूछते हैं तुम विश्व के महाराजा-महारानी बनेंगे? हाँ बाबा, क्यों नहीं बनेंगे। हाँ, इसमें पवित्र रहना पड़ेगा। यह तो मुश्किल है। अरे, तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, तुम पवित्र नहीं रह सकते हो? लज्जा नहीं आती है? लौकिक बाप भी समझाते हैं ना – गंदा काम मत करो। इस विकार पर ही विघ्न पड़ते हैं। शुरू से लेकर इस पर हंगामा चलता आया है। बाप कहते हैं – मीठे बच्चों, इस पर जीत पानी है। मैं आया हूँ पवित्र बनाने। तुम बच्चों को राइट-रांग, अच्छा-बुरा सोचने की बुद्धि मिली है। यह लक्ष्मी-नारायण है एम ऑब्जेक्ट। स्वर्गवासियों में दैवीगुण हैं, नर्कवासियों में अवगुण हैं। अभी रावणराज्य है, यह भी कोई समझ नहीं सकते। रावण को हर वर्ष जलाते हैं। दुश्मन है ना। जलाते ही आते हैं। समझते नहीं कि यह है कौन? हम सब रावण राज्य के हैं ना, तो जरूर हम असुर ठहरे। परन्तु अपने को कोई असुर समझते नहीं। बहुत कहते भी हैं यह राक्षस राज्य है। यथा राजा-रानी तथा प्रजा। परन्तु इतनी भी समझ नहीं। बाप बैठ समझाते हैं रामराज्य अलग होता है, रावणराज्य अलग होता है। अभी तुम सर्वगुण सम्पन्न बन रहे हो। बाप कहते हैं मेरे भक्तों को ज्ञान सुनाओ, जो मन्दिरों में जाकर देवताओं की पूजा करते हैं। बाकी ऐसे-ऐसे आदमियों से माथा नहीं मारो। मन्दिरों में तुमको बहुत भक्त मिलेंगे। नब्ज भी देखनी होती है। डॉक्टर लोग देखने से ही झट बता देते हैं कि इनको क्या बीमारी है। देहली में एक अजमलखाँ वैद्य मशहूर था। बाप तो तुमको 21 जन्मों के लिए एवर हेल्दी, वेल्दी बनाते हैं। यहाँ तो हैं ही सब रोगी, अनहेल्दी। वहाँ तो कभी रोग होता नहीं। तुम एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनते हो। तुम अपने योगबल से कर्मेन्द्रियों पर विजय पा लेते हो। तुम्हें यह कर्मेन्द्रियाँ कभी धोखा नहीं दे सकती हैं। बाबा ने समझाया है याद में अच्छी रीति रहो, देही-अभिमानी रहो तो कर्मेन्द्रियाँ धोखा नहीं देंगी। यहाँ ही तुम विकारों पर जीत पाते हो। वहाँ कुदृष्टि होती नहीं। रावण राज्य ही नहीं। वह है ही अहिंसक देवी-देवताओं का धर्म। लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। यह लड़ाई भी अन्तिम लगनी है, इनसे स्वर्ग का द्वार खुलना है। फिर कभी लड़ाई लगती ही नहीं। यज्ञ भी यह लास्ट है। फिर आधाकल्प कोई यज्ञ होगा ही नहीं। इसमें सारा किचड़ा स्वाहा हो जाता है। इस यज्ञ से ही विनाश ज्वाला निकली है, सारी सफाई हो जायेगी। फिर तुम बच्चों को साक्षात्कार भी कराया गया है, वहाँ के शूबीरस आदि भी बहुत स्वादिष्ट फर्स्टक्लास चीजें होती हैं। उस राज्य की अभी तुम स्थापना कर रहे हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए। तुम्हारा नाम भी है शिव शक्ति भारत मातायें। शिव से तुम शक्ति लेते हो सिर्फ याद से। धक्के खाने की कोई बात नहीं। वह समझते हैं जो भक्ति नहीं करते हैं वह नास्तिक हैं। तुम कहते हो जो बाप और रचना को नहीं जानते हैं वह नास्तिक हैं, तुम अभी आस्तिक बने हो। त्रिकालदर्शी भी बने हो। तीनों लोकों, तीनों कालों को जान गये हो। इन लक्ष्मी-नारायण को बाप से यह वर्सा मिला है। अभी तुम वह बनते हो। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। शिव-बाबा खुद कहते हैं कि मैं इनमें प्रवेश कर समझाता हूँ। नहीं तो मैं निराकार कैसे समझाऊं। प्रेरणा से पढ़ाई होती है क्या? पढ़ाने लिए तो मुख चाहिए ना। गऊ मुख तो यह है ना। यह बड़ी मम्मा है ना, ह्युमन माता है। बाप कहते हैं मैं इन द्वारा तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाता हूँ, युक्ति बतलाता हूँ। इसमें आशीर्वाद की कोई बात नहीं। डायरेक्शन पर चलना है। श्रीमत मिलती है। कृपा की बात नहीं। कहते हैं – बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाता है, कृपा करो। अरे, यह तो तुम्हारा काम है याद करना। मैं क्या कृपा करूँगा। हमारे लिए तो सब बच्चे हैं। कृपा करूँ तो सभी तख्त पर बैठ जाएं। पद तो पढ़ाई अनुसार पायेंगे। पढ़ना तो तुमको है ना। पुरूषार्थ करते रहो। मोस्ट बिलवेड बाप को याद करना है। पतित आत्मा वापिस जा न सके। बाप कहते हैं जितना तुम याद करेंगे तो याद करते-करते पावन बन जायेंगे। पावन आत्मा यहाँ रह नहीं सकेगी। पवित्र बने तो शरीर नया चाहिए। पवित्र आत्मा को शरीर इमप्योर मिले, यह लॉ नहीं। सन्यासी भी विकार से जन्म लेते हैं ना। यह देवतायें विकार से जन्म नहीं लेते, जो फिर सन्यास करना पड़े। यह तो ऊंच ठहरे ना। सच्चे-सच्चे महात्मा यह हैं जो सदैव सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। वहाँ रावण राज्य है नहीं। है ही सतोप्रधान रामराज्य। वास्तव में राम भी कहना नहीं चाहिए। शिवबाबा है ना। इसको कहा जाता है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र वा शिव एक ही है। कृष्ण का तो नाम नहीं है। शिवबाबा आकर ज्ञान सुनाते हैं वह फिर रूद्र यज्ञ रचते हैं तो मिट्टी का लिंग और सालिग्राम बनाते हैं। पूजा कर फिर तोड़ देते हैं। जैसे बाबा देवियों का मिसाल बताते हैं। देवियों को सजाकर खिलाए पिलाए पूजा कर फिर डुबो देते हैं। वैसे शिवबाबा और सालिग्रामों की बड़े प्रेम और शुद्धि से पूजा कर फिर खलास कर देते हैं। यह है सारा भक्ति का विस्तार। अभी बाप बच्चों को समझाते हैं – जितना बाप की याद में रहेंगे उतना खुशी में रहेंगे। रात्रि को रोज़ अपना पोतामेल देखना चाहिए। कुछ भूल तो नहीं की? अपना कान पकड़ लेना चाहिए – बाबा आज हमसे यह भूल हुई, क्षमा करना। बाबा कहते हैं सच लिखेंगे तो आधा पाप कट जायेगा। बाप तो बैठा है ना। अपना कल्याण करना चाहते हो तो श्रीमत पर चलो। पोतामेल रखने से बहुत उन्नति होगी। खर्चा तो कुछ है नहीं। ऊंच पद पाना है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई को भी दु:ख नहीं देना है। कोई कुछ कहता है तो सुना-अनसुना कर देना है। यह मेहनत करनी है। बाप आते ही हैं तुम बच्चों का दु:ख दूर कर सदा के लिए सुख देने। तो बच्चों को भी ऐसा बनना है। मन्दिरों में सबसे अच्छी सर्विस होगी। वहाँ रिलीज़स माइन्डेड तुमको बहुत मिलेंगे। प्रदर्शनी में बहुत आते हैं। प्रोजेक्टर से भी प्रदर्शनी मेले में सर्विस अच्छी होती है। मेले में खर्चा होता है तो जरूर फायदा भी है ना। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप ने राइट-रांग को समझने की बुद्धि दी है, उसी बुद्धि के आधार पर दैवीगुण धारण करने हैं, किसी को दु:ख नहीं देना है, आपस में भाई-बहन का सच्चा प्यार हो, कभी कुदृष्टि न जाए। 2) बाप के हर डायरेक्शन पर चल अच्छी तरह पढ़कर अपने आप पर आपेही कृपा करनी है। अपनी उन्नति के लिए पोतामेल रखना है, कोई दु:ख देने वाली बातें करता है तो सुनी-अनसुनी कर देना है। वरदान:- सर्व सम्बन्धों का अनुभव एक बाप से करने वाले अथक और विघ्न विनाशक भव जिन बच्चों के सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ हैं उनको और सब सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे, वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे, कभी थकावट का अनुभव नहीं करेंगे, अथक होंगे। बाप और सेवा इसी लगन में मगन होंगे। विघ्नों के कारण रुकने के बजाए सदा विघ्न विनाशक होंगे। सर्व सम्बन्धों की अनुभूति एक बाप से होने के कारण डबल लाइट रहेंगे, कोई बोझ नहीं होगा। सर्व कम्पलेन समाप्त होंगी। कम्पलीट स्थिति का अनुभव होगा। सहजयोगी होंगे। स्लोगन:- संकल्प में भी किसी देहधारी तरफ आकर्षित होना अर्थात् बेवफा बनना। Aaj Ka Purusharth : Click Here #DAILYGYANMURLIHINDI
- English- BK murli today 20 November 2020- Brahma Kumaris
20/11/20 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, you are now on the shore and have to go across to the other side. Prepare to return home. Question: By remembering which aspect will your stage become unshakeable and immovable? Answer: Past is past. Do not worry about the past but continue to move forward. Constantly continue to look at the One and your stage will become unshakeable and immovable. You have now left the limits of the iron age, so why should you look back? Your intellects should not be pulled by that at all; this is a very subtle study. Om shanti. Days continue to change and time continues to pass. Just think about it: Time has passed from the golden age until now, the end of the iron age and you are on the shore. The cycle of the golden, silver, copper and iron ages is like a model. This world is very large. You children have now understood this model. Previously, you didn’t know that it is now the end of the iron age. You children now understand this. Therefore, your intellects should go around the whole cycle, from the golden age up to now, and come and stand on the shore of the end of the iron age. You should understand that time continues to tick away and that the drama cycle continues to turn. How much of the drama is there left to come? Just a little now remains. Previously you didn’t know this. The Father has told you that only a little corner now remains. There is very little time left before you leave this world and go to the other world. You have now received this knowledge. We have been around the cycle from the golden age and have now come to the end of the iron age. We now have to return home. There are entrance and exit gates; it is the same here. You children should explain that you now just have a small stretch of the shore left. This is the most elevated confluence age. We are now standing on the shore. There is very little time left. Our attachments to this old world now have to be removed. We now have to go to the new world. You have been given a very simple explanation. Keep this in your intellects. You should continue to turn the cycle around in your intellects. You are no longer in the iron age; you have left that side. Therefore, since you have left the old world, why should you remember those on the other side? We are now at the most elevated confluence age, and so why should we look back? Why should our intellects be connected in yoga with the vicious world? These are very subtle matters. Baba knows that some children don’t even understand a pennyworth! As soon as they hear something, they forget it! You must not look back! Use your intellect for everything. We are going across to the other side, so why should we look back? Past is past! The Father says: I explain such refined matters to you. In spite of that, why do you children constantly keep looking back? Your head is still turned towards the iron age. The Father says: Turn your heads this way. That old world is of no use to you. Baba inspires you to have disinterest in the old world. The new world is in front of you and you must have disinterest in the old world. Just think: Is our stage like that? The Father says: Past is past! Don’t remember the past! Don’t have any desires of the old world. You must now have just the one elevated desire of going to the land of happiness. Just keep the land of happiness in your intellects. Why should you turn back? However, many of you do turn back. You are now at the most elevated confluence age. You have moved away from the old world. This is something that has to be understood. You mustn’t come to a standstill anywhere. Don’t look around anywhere! Don’t remember the past! The Father says: Continue to move forward and don’t look back. Continue to look in one direction, because only then will your stage become unshakeable, stable and immovable. By continuing to look back to that side, you’ll continue to remember your friends and relatives, etc. of the old world. It is numberwise. Today, someone is moving along very well and tomorrow, he falls and becomes disheartened. There are such bad omens that they don’t even feel like listening to the murli. Just think about it! It does happen like this, does it not? The Father says: You are now standing at the confluence. Therefore, just keep looking ahead. Only when you remember that the new world is in front of you will you have happiness. You are now within calling distance. It is said: We are now able to see the trees of our land. If you call out, they will very quickly be able to hear you. To be within calling distance means for them to be just in front of you. As soon as you remember the deities, they will come. Previously, they didn’t come. Did those from your in-laws’ family come to the subtle region before? Now, those from your parents’ home and those from your in-laws’ home come together. Even then, while moving along, some children forget. Their intellects yoga moves backwards. The Father says: This is the last birth of all of you. You mustn’t move back. You have to go to the other side. You have to go across from this side to the other side. Death too is coming close. You just have to take one step! When the boat reaches the shore, you have to take one step on to that side. You children have to stand on the shore. It is in the intellects of you souls that you are going to your sweet home. Even if you remember this in happiness, it will make you unshakeable and immovable. Continue to churn the ocean of knowledge. This is a question of your intellects. We souls are leaving. We are now very close, within calling distance. Very little time remains. This is called the pilgrimage of remembrance. You forget this; you even forget to write your chart. Put your hand on your heart each one of you and ask yourself: Is my stage like the one that Baba describes as being within calling distance? There has to be only the remembrance of Baba in your intellects. Baba teaches you the pilgrimage of remembrance in many different ways. Remain intoxicated on the pilgrimage of remembrance; that’s all. We now have to return. All the relationships here are false. The relationships in the golden age are real. Look at yourself to see where you are standing. Keep this cycle from the golden age onwards in your intellects. You are spinners of the discus of self-realization. From the golden age you have been around the cycle and are now standing on the shore. It is within calling distance, is it not? Some children waste a lot of time. They stay in remembrance for hardly five to ten minutes. You have to become those who spin the discus of self-realisation throughout the whole day. However, it isn’t like that. Baba explains to you in many different ways. This refers to the soul. Your intellects should continually be rotating the cycle. Why does this remembrance not remain in your intellects? We are now standing on the shore. Why don’t you keep the shore in your intellects? Since you know that you are becoming the most elevated beings, go and stand on the shore! Continue to move like a louse (very slowly around the cycle). Why don’t you practise this? Why don’t you keep the cycle in your intellects? This is the discus of self-realisation. Baba continues to explain the whole cycle from the beginning. Let your intellects go around the whole cycle and come and stand on the shore. There shouldn’t be any external complications or influence of the external atmosphere. Day by day, you children have to continue to go into silence. You mustn’t waste your time! Forget the old world and connect your intellects in yoga to the new relations. If you don’t have yoga, how would your sins be cut away? You know that this world is going to end; its model is so tiny! This world is of 5000 years duration. There is a model of heaven in Ajmer, but do those people remember heaven? What do they know of heaven? They believe that heaven will come after 40,000 years. The Father sits here and explains to you children: While doing everything in this world, keep it in your intellects that this world is going to end. We now have to return home; we are now standing at the end. We take every step like a louse (moving very slowly). The destination is very high. The Father knows the destination. Together with the Father, there is also Dada. Since that One explains, can this one not explain? This one also listens to Him. Would this one not churn the ocean of knowledge? The Father continues to give you points to churn. It isn’t that (Brahma) Baba is very far behind. He is just behind Me, like My tail, and so how could he be far behind? You have to imbibe all of these deep things. Renounce being careless! Children come here to Baba after two years. Do they remember they are so close that they are standing on the shore? We now have to return home. What else do you need if you have such a stage? Baba has explained that the term “double crown” is used, but there is no crown of light there. That is just a symbol of purity. A halo of light is definitely shown in the pictures of the founders of religions, because they are viceless and satopradhan. They then become rajo and tamo. You children have now received knowledge and so you should be intoxicated with this. Although you are in this world, your intellects should be connected in yoga there. You have to fulfil your responsibility here. Those who belong to this clan will emerge. The sapling has to be planted. Those who belong to the original, eternal, deity religion will definitely come sooner or later. Those who come later will go ahead of those who came earlier. This will continue to happen until the end. New ones will quickly go ahead of the older ones. The examination is based on the pilgrimage of remembrance. Although someone may have come late, if he keeps himself busy on the pilgrimage of remembrance and renounces everything else – he has to eat, but if he stays in remembrance very well, then there is no other nourishment like that of happiness. The only concern you should have is to return home. You receive your fortune of the kingdom for 21 births. The mercury of happiness rises for those who win a lottery. You have to make a lot of effort. This is known as the last, the invaluable birth. A great deal of pleasure is experienced staying on the pilgrimage of remembrance. Hanuman too became stable by making effort. The haystack was set ablaze. The kingdom of Ravan was burnt. They simply made up a story. The Father sits here and explains real things to you. The kingdom of Ravan will end. This is known as a stable intellect. We are now within calling distance and are going home. Make effort to stay in remembrance and your mercury of happiness will rise. Your lifespan will increase with the power of yoga. The divine virtues that you imbibe now will remain with you for half the cycle. You make so much effort in this one birth that you become like Lakshmi and Narayan. So, you should make that much effort. Don’t make mistakes or waste time in this respect. Those who do something receive the reward of it. The Father continues to give you teachings. You understand that you become the masters of the world every cycle. You perform wonders in such a short time! You change the whole world. This is not a big thing for the Father. He does it every cycle. The Father says: While walking and moving around, while eating and drinking, connect your intellects in yoga with the Father. The Father sits and explains these incognito aspects to you children. Continue to make your stage very good. Otherwise, you will not be able to claim a high status. You children continue to make effort, numberwise. You understand that you are now standing on the shore. Why should you look back? You must continue to step forward. A great deal of introspection is required for this. This is why there is the example of the tortoise. All of these examples etc. are for you. Sannyasis are hatha yogis; they cannot teach you Raja Yoga. When those people hear you, they think that you are insulting them. This is why you have to write these things very tactfully. No one but the Father can teach you Raja Yoga. You have to speak indirectly, so that they don’t get upset. You have to interact with diplomacy, so that the snake is killed but the stick doesn’t break. Have love for your family, but connect your intellects in yoga with the one Father. You know that you are now following the directions of One. These directions are for becoming deities. They are what are known as ‘undivided directions’. You children have to become deities. How many times have you become this? Countless times! You are now at the confluence age. This is your last birth. You now have to return home. Why should you look back? Even if you do look back, you must remain very stable. Don’t forget your destination! You are the brave warriors who conquer Maya. You now understand that this cycle of victory and defeat continues to turn. This knowledge of Baba’s is so wonderful! Did you know this before? Each of you has to consider yourself to be a point. A whole part is recorded in such a tiny point, and this cycle continues to turn. It is so very wonderful!You just have to say that it is a wonder and leave it at that. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for dharna: 1 Don’t turn your head and look behind you. Don’t come to a standstill for any reason. Keep looking at the one Father and make your stage stable. 2 Keep it in your intellect that you are now standing on the shore. You have to return home. Therefore, stop being careless. Make incognito effort to create such a stage. Blessing: May you be a true server who accomplishes the task of world transformation by doing service at a fast speed. In order to serve at a fast speed, you need to have a balance of both “rup” and “basant” collectively. With the form of “basant” you are able to carry out the task of giving the message to many souls at one time. In the same way, as “rup”, that is,with the power of remembrance and the power of elevated thoughts, you have to do service at a fast speed. Create an invention for this. Along with this, collectively, sacrifice the sesame seeds and barley grain of old sanskars, old nature and old activity with determination and the task of world transformation will then be accomplished and the yagya completed. Slogan: With the balance of being a master and a child, put your plans into a practical form. #bkmurlitoday #brahmakumaris #dailymurli #english
- Hello world!
Welcome to WordPress. This is your first post. Edit or delete it, then start writing!
- आज की मुरली- 12 June 2020 | BK Murli today in Hindi, BrahmaKumaris
Hindi Sakar Murli today 12-06-2020 मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो, तुम्हारे में कोई आसुरी गुण नहीं होने चाहिए, अपनी उन्नति करनी है, ग़फलत नहीं करनी है'' प्रश्नः- आप संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों को कौन-सा निश्चय और नशा है? उत्तर:- हम बच्चों को निश्चय और नशा है कि अभी हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं। हम स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। संगम पर हम ट्रांसफर हो रहे हैं। आसुरी औलाद से ईश्वरीय औलाद बन 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनते हैं, इससे भारी कोई वस्तु होती नहीं। View/Download PDF ➜ ओम् शान्ति। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, अक्सर करके मनुष्य शान्ति को पसन्द करते हैं। घर में अगर बच्चों की खिट-खिट है, तो अशान्ति रहती है। अशान्ति से दु:ख भासता है। शान्ति से सुख भासता है। यहाँ तुम बच्चे बैठे हो, तुमको सच्ची शान्ति है। तुमको कहा गया है बाप को याद करो। अपने को आत्मा समझो। आत्मा में जो आधाकल्प से अशान्ति है, वह निकलनी है शान्ति के सागर बाप को याद करने से। तुमको शान्ति का वर्सा मिल रहा है। यह भी तुम जानते हो शान्ति की दुनिया और अशान्ति की दुनिया बिल्कुल अलग है। आसुरी दुनिया, ईश्वरीय दुनिया, सतयुग, कलियुग किसको कहा जाता है, यह कोई मनुष्य मात्र नहीं जानते। तुम कहेंगे हम भी नहीं जानते थे। भल कितने भी पोजीशन वाले थे। पैसे वाले को पोजीशन वाला कहा जाता है। गरीब और साहूकार समझ तो सकते हैं ना। वैसे तुम भी समझ सकते हो बरोबर ईश्वरीय औलाद और आसुरी औलाद। अभी तुम मीठे बच्चे समझते हो हम ईश्वरीय सन्तान हैं। यह पक्का निश्चय है ना। तुम ब्राह्मण समझते हो हम ईश्वरीय सम्प्रदाय स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। हरदम वह खुशी रहनी चाहिए। बहुत थोड़े हैं जो यथार्थ रीति से समझते हैं। सतयुग में हैं ईश्वरीय सम्प्रदाय। कलियुग में हैं आसुरी सम्प्रदाय। पुरूषोत्तम संगमयुग पर आसुरी सम्प्रदाय बदली होती है। अभी हम शिवबाबा की औलाद बने हैं। बीच में भूल गये थे। अभी फिर इस समय जाना है कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं। वहाँ सतयुग में कोई अपने को ईश्वरीय औलाद नहीं कहलाते। वहाँ हैं दैवी औलाद। इनके पहले हम आसुरी औलाद थे। अभी ईश्वरीय औलाद बने हैं। हम ब्राह्मण बी.के. हैं। रचना है एक बाप की। तुम सब भाई-बहन हो और ईश्वरीय औलाद हो। तुम जानते हो बाबा से राज्य मिल रहा है। भविष्य में जाकर हम दैवी स्वराज्य पायेंगे, सुखी होंगे। बरोबर सतयुग है सुख का धाम, कलियुग है दु:खधाम। यह सिर्फ तुम संगमयुगी ब्राह्मण जानते हो। आत्मा ही ईश्वरीय औलाद है। यह भी जानते हो बाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। वह रचता है ना। नर्क का क्रियेटर तो नहीं है। उनको कौन याद करेंगे। तुम मीठे-मीठे बच्चे जानते हो-बाप स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। वह हमारा बहुत मीठा बाप है। हमको 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनाते हैं, इससे भारी वस्तु कोई होती नहीं। यह समझ रखनी चाहिए। हम ईश्वरीय औलाद हैं, तो हमारे में कोई आसुरी अवगुण होना नहीं चाहिए। अपनी उन्नति करनी है। समय बाकी थोड़ा है, इसमें ग़फलत नहीं करनी चाहिए। भूल न जाओ। देखते हो बाप सम्मुख बैठा है, जिनकी हम औलाद हैं। हम ईश्वर बाप से पढ़ रहे हैं दैवी औलाद बनने के लिए, तो कितनी खुशी होनी चाहिए। बाबा सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं। बाप आये ही हैं सबको ले जाने। जितना-जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। अज्ञान में जैसे कन्या की सगाई होती है तो याद बिल्कुल छप जाती है। बच्चा पैदा हुआ और याद छप जाती है। यह याद तो स्वर्ग में भी छप जाती, नर्क में भी छप जाती। बच्चा कहेगा यह हमारा बाप है, अब यह तो है बेहद का बाप। जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है तो उनकी याद छप जानी चाहिए। बाप से हम भविष्य 21 जन्मों का फिर से वर्सा ले रहे हैं। बुद्धि में वर्सा ही याद है। यह भी जानते हो मरना तो सबको है। एक भी रहने का नहीं है जो भी डियरेस्ट से डियरेस्ट (प्यारा से प्यारा) है, सब चले जायेंगे। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो कि यह पुरानी दुनिया अब गई कि गई। उसके जाने के पहले पूरा पुरूषार्थ करना है। जबकि ईश्वरीय औलाद हैं तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाप कहते रहते हैं-बच्चे, अपना जीवन हीरे जैसा बनाओ। वह है डीटी वर्ल्ड, यह है डेविल वर्ल्ड। सतयुग में कितना अथाह सुख रहता है। वह बाप ही देते हैं। यहाँ तुम बाप के पास आये हो। यहाँ बैठ तो नहीं जायेंगे। ऐसे तो नहीं सब इकट्ठे रहेंगे क्योंकि बेहद बच्चे हैं। यहाँ तुम बहुत उमंग से आते हो। हम जाते हैं बेहद के बाप पास। हम ईश्वरीय औलाद हैं। गॉड फादर के बच्चे हैं, तो हम क्यों न स्वर्ग में होने चाहिए। गॉड फादर तो स्वर्ग रचते हैं ना। अब तुम्हारी बुद्धि में सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। जानते हो हेविनली गॉड फादर हमको हेविन के लायक बना रहे हैं। कल्प-कल्प बाद बनाते हैं। एक भी मनुष्य नहीं जिसको यह पता हो कि हम एक्टर हैं। गॉड फादर के बच्चे फिर हम दु:खी क्यों हैं! आपस में लड़ते क्यों हैं! हम आत्मायें सब ब्रदर्स हैं ना। ब्रदर्स आपस में कैसे लड़ते रहते हैं। लड़कर खत्म हो जायेंगे। यहाँ हम बाप से वर्सा ले रहे हैं। ब्रदर्स को आपस में कभी लून-पानी नहीं होना चाहिए। यहाँ तो बाप से भी लून-पानी होते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे लून-पानी हो जाते हैं। माया कितनी जबरदस्त है। जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं वह बाप को याद तो पड़ते हैं। बाप का कितना लव है बच्चों पर। बाप को तो सिवाए बच्चों के और कोई है नहीं जिसको याद करें। तुम्हारे लिए तो बहुत हैं। तुम्हारी बुद्धि इधर-उधर जाती है। धन्धे आदि में भी बुद्धि जाती है। हमारे लिए तो कोई धन्धा आदि भी नहीं है। तुम अनेक बच्चों के अनेक धन्धे हैं। हमारा तो एक ही धन्धा है। हम आये ही हैं बच्चों को स्वर्ग का वारिस बनाने। बेहद के बाप की प्रापर्टी सिर्फ तुम बच्चे हो। गॉड फादर है ना। सभी आत्मायें उनकी प्रापर्टी हैं। माया ने छी-छी बना दिया है। अब गुल-गुल बनाते हैं बाप। बाप कहते हैं मेरे तो तुम ही हो। तुम्हारे ऊपर हमारा मोह भी है। चिट्ठी नहीं लिखते हो तो ओना हो जाता है। अच्छे-अच्छे बच्चों की चिट्ठी नहीं आती है। अच्छे-अच्छे बच्चों को एकदम माया खत्म कर देती है। जरूर देह-अभिमान है। बाप कहते रहते हैं अपनी खुशखैराफत लिखो। बाबा बच्चों से पूछते हैं बच्चे तुमको माया हैरान तो नहीं करती है? बहादुर बन माया पर जीत पहन रहे हो ना! तुम युद्ध के मैदान में हो ना। कर्मेन्द्रियां ऐसे वश करनी चाहिए जो कुछ भी चंचलता न हो। सतयुग में सब कर्मेन्द्रियां वश में रहती हैं। कर्मेन्द्रियों की कोई चंचलता नहीं होती है। न मुख की, न हाथ की, न कान की..... कोई भी चंचलता की बात नहीं होती। वहाँ कोई भी गन्द की चीज़ होती नहीं। यहाँ योगबल से कर्मेन्द्रियों पर जीत पाते हो। बाप कहते हैं कोई भी गन्दी बात नहीं। कर्मेन्द्रियों को वश करना है। अच्छी रीति पुरूषार्थ करना है। टाइम बहुत थोड़ा है। गायन भी है बहुत गई थोड़ी रही। अभी थोड़ी रहती जाती है। नया मकान बनता रहता है तो बुद्धि में रहता है ना-बाकी थोड़ा समय है। अभी यह तैयार हो जायेगा, बाकी यह थोड़ा काम है। वह है हद की बात, यह है बेहद की बात। यह भी बच्चों को समझाया गया है उन्हों का है साइंस बल, तुम्हारा है साइलेन्स बल। है उनका भी बुद्धि बल, तुम्हारा भी बुद्धि बल। साइंस की कितनी इन्वेन्शन निकालते रहते हैं। अभी तो ऐसे बाम्ब्स बनाते रहते हैं जो कहते हैं वहाँ बैठे-बैठे छोड़ेंगे तो सारा शहर खत्म हो जायेगा। फिर यह सेनायें, एरोप्लेन आदि भी काम में नहीं आयेंगे। तो वह है साइंस बुद्धि। तुम्हारी है साइलेन्स बुद्धि। वह विनाश के लिए निमित्त बने हुए हैं। तुम अविनाशी पद पाने के लिए निमित्त बने हो। यह भी समझने की बुद्धि चाहिए ना। तुम बच्चे समझ सकते हो - बाप कितना सहज रास्ता बताते हैं। भल कितनी भी अहिल्यायें, कुब्जायें हो, सिर्फ दो अक्षर याद करने हैं - बाप और वर्सा। फिर जितना जो याद करे। और संग तोड़ एक बाप को याद करना है। बाप कहते हैं मैं जब अपने घर परमधाम में था तो भक्ति मार्ग में तुम पुकारते थे-बाबा आप आयेंगे तो हम सब कुछ कुर्बान करेंगे। यह हुए जैसे करनीघोर, करनीघोर को पुराना सामान दिया जाता है। तुम बाप को क्या देंगे? इनको (ब्रह्मा को) तो नहीं देते हो ना। इसने भी सब कुछ दे दिया। यह थोड़ेही यहाँ बैठ महल बनायेंगे। यह सब कुछ शिवबाबा के लिए है। उनके डायरेक्शन से कर रहे हैं। वह करन-करावनहार है, डायरेक्शन देते रहते हैं। बच्चे कहते हैं बाबा आप हमारे लिए एक ही हो। आपके लिए तो बहुत बच्चे हैं। बाबा फिर कहते हमारे लिए सिर्फ तुम बच्चे हो। तुम्हारे लिए तो बहुत हैं। कितने देह के सम्बन्धियों की याद रहती है। मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं जितना हो सके बाप को याद करो और सबको भुलाते जाओ। स्वर्ग की राजाई का मक्खन तुमको मिलता है। ज़रा ख्याल तो करो, कैसे यह खेल की रचना है। तुम सिर्फ बाप को याद करते हो और स्वदर्शन चक्रधारी बनने से चक्रवर्ती राजा बनते हो। अभी तुम बच्चे प्रैक्टिकल में अनुभवी हो। मनुष्य तो समझते हैं भक्ति परम्परा से चली आई है। विकार भी परम्परा से चले आये हैं। इन लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण को भी तो बच्चे थे ना। अरे हाँ, बच्चे क्यों नहीं थे परन्तु उन्हों को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। यहाँ हैं सम्पूर्ण विकारी। एक-दो को गालियाँ देते रहते हैं। अब तुम बच्चों को बाप श्री श्री की श्रीमत मिलती है। तुमको श्रेष्ठ बनाते हैं। अगर बाप का कहना नहीं मानेंगे तो फिर थोड़ेही बनेंगे। अब मानो न मानो। सपूत बच्चे तो फौरन मानेंगे। पूरी मदद नहीं देते हैं तो अपने को घाटा डालते हैं। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। कितना पुरूषार्थ कराता हूँ। कितना खुशी में ले आते हैं। बाप से पूरा वर्सा लेने में ही माया ग़फलत कराती है। परन्तु तुम्हें उस फन्दे में नहीं फँसना है। माया से ही लड़ाई होती है। बहुत बड़े-बड़े तूफान आयेंगे। उसमें भी वारिसों पर जास्ती माया वार करेगी। रूसतम से रूसतम हो लड़ेगी। जैसे वैद्य दवाई देते हैं तो बीमारी सारी बाहर निकल आती है। यहाँ भी मेरे बनेंगे तो फिर सबकी याद आने लग पड़ेगी। तूफान आयेंगे, इसमें लाइन क्लीयर चाहिए। हम पहले पवित्र थे फिर आधाकल्प अपवित्र बनें। अब फिर वापिस जाना है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। याद करते-करते तुम घर चले जायेंगे, इसमें बिल्कुल अन्तर्मुखता चाहिए। नॉलेज भी आत्मा में धारण होती है ना। आत्मा ही पढ़ती है। आत्मा का ज्ञान भी परमात्मा बाप ही आकर देते हैं। इतना भारी ज्ञान तुम लेते हो विश्व का मालिक बनने के लिए। मुझे तुम कहते ही हो-पतित-पावन, ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर। जो मेरे पास है वह तुमको सब देता हूँ। बाकी सिर्फ दिव्य दृष्टि की चाबी नहीं देता हूँ। उसके बदले फिर तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। साक्षात्कार में कुछ है नहीं। मुख्य है पढ़ाई। पढ़ाई से तुमको 21 जन्म का सुख मिलता है। मीरा की भेंट में तुम अपने सुख की भेंट करो। वह तो कलियुग में थी, दीदार किया फिर क्या। भक्ति की माला ही अलग है। ज्ञान मार्ग की माला अलग है। रावण की राजाई अलग, तुम्हारी राजाई अलग। उनको दिन, उनको रात कहा जाता है। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश करनी है जो कोई भी चंचलता न रहे। टाइम बहुत थोड़ा है इसलिए अच्छी रीति पुरूषार्थ कर मायाजीत बनना है। बाप जो ज्ञान देते हैं उसे अन्तर्मुखी बन धारण करना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है। बाप को अपनी खुशखैऱाफत का समाचार जरूर देना है। वरदान:- हर आत्मा को भटकने वा भिखारीपन से बचाने वाले निष्काम रहमदिल भव! जो बच्चे निष्काम रहमदिल हैं उनके रहम के संकल्प से अन्य आत्माओं को अपने रूहानी रूप वा रूह की मंजिल सेकण्ड में स्मृति में आ जायेगी। उनके रहम के संकल्प से भिखारी को सर्व खजानों की झलक दिखाई देगी। भटकती हुई आत्माओं को मुक्ति वा जीवनमुक्ति का किनारा व मंजिल सामने दिखाई देगी। वे सर्व के दु:ख हर्ता सुख कर्ता का पार्ट बजायेंगे, दु:खी को सुखी करने की युक्ति व साधन सदा उनके पास जादू की चाबी के मुआफिक होगा। स्लोगन:- सेवाधारी बन नि:स्वार्थ सेवा करो तो सेवा का मेवा मिलना ही है।
- BK Murli- 12 June 2020 - Murli today in English
Sakar Murli of today. 12/06/20. Om Shanti BapDada, Madhuban. Sweet children, you have now become God’s children. Therefore, there should be no devilish traits in you. Make progress, not mistakes. Question: What faith and intoxication do you Brahmin children of the confluence age have? Answer: We children have the faith and intoxication that we now belong to God’s community. We are to become residents of heaven, the masters of the world. We are being transferred at the confluence age. From being devilish children, we have become Godly children and are to become residents of heaven for 21 births. There is nothing greater than this. Om shanti. The Father sits here and explains to the children. Human beings generally like peace. When there is disagreement between the children in a family, there is peacelessness. When there is peacelessness, sorrow is experienced. When there is peace, happiness is experienced. You children sitting here have true peace. You have been told: Remember the Father. Consider yourselves to be souls. The peacelessness that has been in you souls for half the cycle will be removed by your remembering the Father, the Ocean of Peace. You are receiving your inheritance of peace. You know that the world of peace is completely separate from the world of peacelessness. Human beings do not understand what the devil’s world is or what God’s world is, what the golden age is or what the iron age is. No matter how great a position you had, you too say that you didn’t know this. Those who have wealth are said to have a position. You can understand who the poor are and who the wealthy are. In the same way, you can also understand that there are God’s children and the devil’s children. You sweet children now understand that you are God’s children. You have this firm faith, do you not? You Brahmins, who belong to God's community, understand that you are becoming the residents of heaven and the masters of the world. There should be this happiness all the time. Very few of you understand this accurately. In the golden age, there is God’s community, whereas in the iron age, there is the devil’s community. The devil’s community changes at the most auspicious confluence age. We have now become the children of Shiv Baba. We forgot this in the middle period. We understand at this time that we have become the children of Shiv Baba. There, in the golden age, no one would call himself a child of God. There, they are children of the deities. Before now, we were devilish children. We have now become God’s children. We Brahmins are Brahma Kumars and Kumaris. We are the creation of the one Father. All of you are brothers and sisters and you are the children of God. You know that you are to receive your kingdom from Baba. In the future, we will attain our divine self-sovereignty and will be happy. The golden age really is the land of happiness and the iron age really is the land of sorrow. Only you Brahmins of the confluence age know this. Souls are the children of God. You know that Baba is establishing heaven. He is the Creator. He is not the creator of hell - who would remember him? You sweetest children know that the Father is establishing heaven. He is our very sweet Father. He is making us into the residents of heaven for 21 births. There is nothing greater than this. You should have the understanding that you are the children of God, and you should therefore not have any devilish traits in you. You have to make progress. Very little time remains. Therefore, make no mistakes. Do not forget this. You can see that the Father, whose children you are, is sitting in front of you, face to face. We are studying with God, the Father, in order to become the children of deities. Therefore, there should be so much happiness. Baba simply says: Just remember Me and your sins will be absolved. The Father has come to take everyone back home. The more you remember Him, the more your sins will be absolved. On the path of ignorance, when a girl gets engaged, that remembrance is firmly imprinted on her. As soon as a baby is born, that remembrance is imprinted. In heaven and also in hell that remembrance is imprinted. A child would say, "This is my father.” However, that One is your unlimited Father from whom you are to receive your inheritance of heaven. Therefore, it is remembrance of Him that should now be imprinted on you. We are once again receiving our inheritance from the Father for our future 21 births. Only that inheritance should be in your intellects. You know that everyone has to die. Not a single one will remain here. Even your dearest of dearest have to return. Only you Brahmins know that this old world is now about to end. Before it ends, make full effort. Since you are the children of God, you should have limitless happiness. The Father continually says: Children, make your lives like diamonds. That is the deity world and this is the devil world. There is limitless happiness in the golden age. Only the Father can give that happiness. You have come here to the Father. You cannot just stay here. You cannot all stay here together because you children are unlimited. You come here feeling a lot of enthusiasm that you have come to the unlimited Father. We are the children of God. We are the children of God, the Father. So, why are we not in heaven? God, the Father, creates heaven, does He not? The history and geography of the whole world is in your intellects. You know that Heavenly God, the Father, is making you worthy of heaven. He makes you that every cycle. Not a single human being knows that he is an actor. We are the children of God, the Father, and so why should we be unhappy? Why do we fight among ourselves? All of us souls are brothers. Look how brothers fight among themselves. They will fight and destroy one another. Here, we are claiming our inheritance from the Father. Brothers should never be like salt water with each other. Even here, some become like salt water with the Father. Even very good children become like salt water. Maya is so powerful! The Father definitely remembers very good children. The Father has so much love for the children. The Father has no one but His children to remember. You have many to remember. Your intellects go here and there. Your intellects also go to your businesses etc. I don’t have any business etc. All of you children have many businesses. I just have the one business. I have come to make you children into the heirs of heaven. The only property that the unlimited Father has is you children. He is God, the Father. All souls are His property. Maya has made you dirty. The Father now makes you beautiful. The Father says: I only have you. I have attachment to you. When you don’t write a letter, the Father becomes concerned. Even some very good children don’t send a letter. Maya completely finishes off good children. There must definitely be body consciousness. The Father tells you always to write to Him about your welfare. Baba asks: Children, Maya isn’t troubling you, is she? You remain courageous and are conquering Maya, are you not? You are on the battlefield, are you not? You should be controlling your physical organs in such a way that they don’t cause any mischief. In the golden age, all your physical senses are under control. Your physical organs play no mischief there. There is no question of any type of mischief of your mouth, hands or ears. There is no mischief there. There is nothing dirty there. Here, you gain victory over your physical organs with the power of yoga. The Father says: There is nothing dirty there. You have to control your physical organs. Make effort very well; very little time remains. It is remembered that a lot of time has passed and that only a little time remains. Now, even less time remains. When a new house is being built, it remains in one’s intellect that very little time is left, that it will soon be ready, that only a little work has to be done. That aspect is limited whereas this aspect is unlimited. It has been explained to you children that theirs is the power of science whereas yours is the power of silence. Their power is of intellects and your power too is of intellects. So many inventions have been created through science. They say that they have now invented such bombs that wherever they may be, they can have those bombs dropped and wipe out a whole city. In that case, none of the armies and aeroplanes etc. will be of any use. Therefore, those intellects are of science. Your intellects are of silence. They are instruments for destruction. You have become instruments for claiming an imperishable status. Even to understand this, you need an intellect. You children can understand how easy the path that the Father is showing you is. No matter how stone headed or hunchbacked you are, simply remember two words: The Father and the inheritance. Then, everything depends on how much remembrance you have. Break away from everyone else and remember the one Father. The Father says: On the path of devotion, you called out to Me when I was in my home in the supreme abode: Baba, when You come, I will surrender everything to You. That was like the special brahmin priest who takes all the old things of someone who has died. What will you give to the Father? You do not give everything to this one (Brahma), do you? This one also gave away everything he had. This one is not going to sit here and build a palace for himself. All of this is for Shiv Baba. We are doing everything according to His directions. He is Karankaravanhar. He continues to give directions. Children say: Baba, You are the only One for me, but You have many children. Baba then says: I only have you children, whereas you have so many others. You remember so many bodily relatives. The Father says to His sweetest children: Remember the Father as much as possible and continue to forget everyone else. You receive the butter of the sovereignty of heaven. Just think about how this play has been created. Simply by remembering the Father and spinning the discus of self-realisation, you become rulers of the globe. You children now experience this in a practical way. Human beings believe that devotion has continued from time immemorial and that the vices have also continued from time immemorial. Lakshmi and Narayan, who were Radhe and Krishna, also had children, did they not? Yes, why would they not have had children? They are called completely viceless. Here, everyone is completely vicious. They continue to insult one another. You children are now receiving shrimat from the Shri Shri (doubly elevated) Father. He is making you elevated. You can’t become this if you don’t obey the Father. It is up to you whether or not you obey Him. Obedient children will instantly obey Him. When you don’t help fully, you cause yourself a loss. The Father says: I come every cycle. I inspire you so much to make effort. I bring you so much happiness. While you are claiming your full inheritance from the Father, Maya inspires you to make mistakes. However, you mustn’t get caught in that trap. Your only war is with Maya. Many very big storms will come. In those too, Maya will attack the heirs the most. She becomes powerful and fights with the powerful ones. When a herbalist gives someone medicine, all his internal illness erupts. Here, too, when you belong to Me, you will begin to remember everyone. Storms will come, but you must keep your line clear. For the first half cycle, we were pure. Then, for the second half, we became impure. We now have to return home. The Father says: Remember Me and your sins will be absolved with this fire of yoga! The more you remember Me, the higher the status you will claim. While remembering Me, you will return home. You need to be completely introverted in this. Knowledge is imbibed by the soul. It is the soul that studies. It is the Father, the Supreme Soul, who comes and gives knowledge of the soul. You are receiving such important knowledge in order to become the masters of the world. You call Me the Purifier, the Ocean of Knowledge and the Ocean of Peace. I give you everything I have. The only thing I don’t give you is the key to divine vision. Instead of that, I make you into the masters of the world. There is nothing to gain by having visions. The main thing is this study. You receive happiness for 21 births through this study. Compare the happiness you have against the happiness Meera had. She was in the iron age; she had visions, but then what? The rosary of devotion is separate from the rosary of the path of knowledge. Ravan’s kingdom is separate from your kingdom. That is called the night whereas this is called the day. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for dharna: Control your physical organs with the power of yoga in such a way that no mischief remains. There is very little time left. Therefore, make effort very well and become a conqueror of Maya. Remain introverted and imbibe the knowledge that the Father gives you. Never become like salt water with each other. Definitely send the Father news of your welfare. Blessing: May you be altruistically merciful and save all souls from wandering or becoming beggars. The children who are altruistically merciful have merciful thoughts to remind many other souls of their spiritual form and destination in a second. With the children’s thoughts of mercy, beggars will have glimpses of all treasures. Wandering souls will see the shores or destination of liberation and liberation-in-life in front of them. They will play the parts of being removers of sorrow and bestowers of happiness and they will always keep the magic key with them and have a method to make unhappy souls happy. Slogan: Become a server and do altruistic service and you will definitely receive the fruit of service.
- BK Murli - 9 June 2020 | Brahma Kumaris Murli today in English
09/06/20 Sakar Murli today in English. Official Murli Blog, Madhuban Sweet children, always maintain the happiness that it isn't a bodily being who is teaching you. The bodiless Father has especially come and entered a body to teach you. Question: Why has each of you children received a third eye of knowledge? Answer: You have received a third eye of knowledge in order to see your land of silence and land of happiness. Remove your intellects from everything of the old world that you can see with your eyes, including your friends and relatives etc. The Father has come to remove you from the rubbish and make you into flowers (deities). Therefore, you have to have regard for such a Father. Om shanti. God Shiva speaks to you children. God Shiva would definitely be called the true Baba because He is the Creator. It is only you children who are now taught by God to become gods and goddesses. Each of you knows very well that there isn’t any student who would not know his teacher, his study or the result of that study. God is teaching you, and so you children should have so much happiness. Why does this happiness not remain stable? You know that it isn’t a physical human being who is teaching you. The bodiless Father has especially come and entered a body in order to teach you children. No one else knows that God comes and teaches. You know that you are God’s children, that He is teaching you and that He is the Ocean of Knowledge. You are sitting personally in front of Shiv Baba. Do not forget that it is only now that you souls meet the Supreme Soul. However, Maya is such that she makes you forget this. Otherwise, there would be the intoxication that God is teaching you. You should continue to remember Him. However, there are such children here who completely forget Him. They don’t know anything at all. God Himself says: Many children forget Me. Otherwise, there would be the happiness that we are the children of God and that He is teaching us. Maya is so powerful that she makes you completely forget Him. Your intellects go to everything that your eyes see in this old world, including your friends and relatives etc. The Father has now given each of you children a third eye to remember the land of peace and the land of happiness. This is the land of sorrow, the dirty world. You know that Bharat used to be heaven and that it is now hell. The Father comes to make you into flowers once again. There, you receive happiness for 21 births. You are studying for that. However, because you don’t study fully, your intellects remain caught up in the wealth and prosperity here. You do not remove your intellects from all of that. The Father says: Keep your intellects focused on the land of peace and the land of happiness. However, it is as though your intellects are completely glued to the dirty world, as though you can’t remove your intellects from that. Although you are sitting here, your intellects haven’t broken away from the old world. Baba has now come to make you pure and beautiful. You speak mainly of purity. Baba makes us pure and takes us to the pure world. Therefore, you should have so much regard for such a Father. You should surrender yourselves to such a Father, the One who comes from the supreme region to teach us. He makes so much effort on the children. He removes you completely from all the dirt. You are now becoming flowers. You know that you become such flowers (deities) every cycle. It doesn’t take God long to change humans into deities. The Father is now teaching us. We have come here in order to change from humans into deities. You have now come to know that you were residents of heaven. Previously, you didn’t know this. The Father has now told you that you used to rule your kingdom and that Ravan then took over that kingdom. You experienced a great deal of happiness and then, whilst taking 84 births, you continued to come down the ladder. This is a dirty world. Human beings are so unhappy. Hundreds of thousands continue to die from starvation. There is no happiness at all. No matter how wealthy people are, their happiness is temporary, like the droppings of a crow. This world is called a river of poison. You will be very happy in the golden age. You are now becoming beautiful from ugly. You now understand that you used to be deities. Then, while taking rebirth, you entered the brothel. You are now being taken to the Temple of Shiva. Shiv Baba is establishing heaven. He is teaching you. Therefore, study very well. Study, keep the cycle in your intellects and also imbibe divine virtues. You children are rup and basant. Only jewels of knowledge and no rubbish should emerge from your lips. The Father says: I too am Rup Basant. I, the Supreme Soul, am the Ocean of Knowledge. Study is a source of income. When someone studies and becomes a barrister or a doctoretc., he earns hundreds of thousands. Each doctor earns about a hundred thousand rupees a month. They don't even have time to eat. You too are now studying. What are you becoming? The masters of the world. So, there should be the intoxication of this study. The way you children speak to one another should be very royal. You are becoming royal, are you not? Look how kings behave. Baba is experienced, is he not? When a gift is presented to a king, he won’t accept it himself in his hands. If he is going to accept it, he will signal to you to give it to his secretary. They are very royal. Their intellects are aware that if they did accept something, they would also have to give something in return; in which case, they won't accept it. Some kings won't take anything from their people. Other kings loot their people. There is a difference between kings. You are now becoming golden-aged, double-crowned kings. Purity is definitely needed in order to wear a double crown. This vicious world has to be renounced. You children have renounced the vices. No one vicious can come and sit here. If someone like that does come and he sits here without telling anyone, he is making a loss for himself. Some try to be very clever and think that no one will know anyway. No matter whether the Father sees that or not, he himself becomes a sinful soul. You too were sinful souls. You now have to become charitable souls by making effort. You children have received so much knowledge. With this knowledge, you become the masters of the land of Krishna. The Father is decorating you so much! God, the Highest on High, is teaching you. Therefore, you should study with so much happiness! Only fortunate ones study such a study. You also have to claim your certificate. Baba would say that you are not studying, that your intellects are wandering everywhere. Therefore, what are you going to become? Even your physical father would say: Under these circumstances, you will fail. Some study and earn hundreds of thousands, whereas others just continue to stumble around. You have to follow the mother and father and also the brothers whose only business is to study well and teach others. Many can be taught at the exhibitions. As you progress further and the more that sorrow increases, the more human beings will begin to have disinterest in their world and start to study. When they are in sorrow, they remember God a great deal. At the time of dying, when they are experiencing sorrow, they call out: O God! O Rama! You don't have to do anything like that. You are preparing yourself in happiness: When will I leave this old body in order to go home? I will then receive a beautiful body there. You should make effort to go ahead of the one who teaches you. There are some students whose stage is better than the stage of the teachers who teach them. The Father knows each one. You children can also understand this. Examine yourself to see what weaknesses you have. Overcome the obstacles of Maya. Don't become trapped by them. If you think that Maya is so powerful that you can't continue, Maya will swallow you whole. "The alligator ate the elephant" refers to this time. Maya, the alligator, totally swallows even good children so that they can't free themselves. Although they do understand that they have to stop themselves from being slapped by Maya, Maya doesn't allow them to do so. Then they say: Baba, tell Maya not to catch hold of me like that. Ah! but this is a battlefield, is it not? On the field, you wouldn't tell someone to ask your opponent not to make you fall, would you? While playing a match, you wouldn't say: Don't give me the ball! You would instantly be told: You have come on to the battlefield. Therefore, fight! Maya will throw you about a great deal. You can claim a very high status. God is teaching you; that's no small thing! Your stage is now ascending, numberwise, according to the efforts you make. Each of you children should be keen to make your future life as valuable as a diamond. Continue to remove your obstacles. No matter how, you definitely do have to claim your inheritance from the Father. Otherwise you will fail every cycle. For instance, if the wealthy father of a child is obstructing him in this study, he should say: "What would I do with those hundreds of thousands? I want to claim the kingdom of the world from the unlimited Father." All of those millions and billions are going to turn to dust. Some people's wealth will remain buried underground, and that of others will be burnt. The whole world is to be set ablaze. This whole world is Ravan's island (Lanka). All of you are Sitas. Rama has come. The whole world is an island. It is now Ravan's kingdom. The Father has come to destroy Ravan’s kingdom and make you into the masters of Rama’s kingdom. You should experience a lot of happiness inside. It is remembered: If you want to know about supersensuous joy, ask the children. At the exhibitions, you speak about the happiness you have experienced: We are making Bharat into heaven. We are serving Bharat by following shrimat. The more you follow shrimat, the more elevated you become. Many people will offer you advice. Therefore, you have to recognise that and be cautious. In some cases, Maya interferes in an incognito way. You are becoming the masters of the world. Therefore, you should have great happiness inside you. You say: Baba, I have come to claim the inheritance of heaven from You. By listening to the story of the true Narayan, I will change from an ordinary man into Narayan, from an ordinary woman into Lakshmi. All of you raise your hands and say that you will definitely claim your full inheritance from the Father. Otherwise, you will lose this every cycle. You will definitely remove any obstacle that comes. You need to have that much courage. You are courageous, are you not? You are not going to leave the One who is to give you your inheritance, are you? Some have remained here permanently and others have run away. Maya ate some very good children; the alligator swallowed them whole. The Father now says: O souls, I explain with a lot of love, I have come to make the impure world pure. The death of the impure world is just ahead. I am now making you into the kings of kings, even kings of impure kings. Why do the single-crowned kings bow down to the idols of the double-crowned kings? After half the cycle, when their purity disappears, they all enter Ravan's kingdom and become vicious worshippers. Therefore, the Father says to you children: Now, don't make any mistakes! Don't forget! Study well! If you are not able to attend class every day, Baba can make arrangements for you. Take the seven days' course so that you can understand the murli easily. Wherever you go, simply remember two words. This is the great mantra. Consider yourselves to be souls and remember the Father. It is when you become body conscious that you commit a sin or perform a sinful act. In order to remain safe from performing any sinful acts, link your intellects in love to the one Father, and not to any bodily beings. Connect your intellects in yoga to the One. Remember the Father till the end and you won't then commit any sins. Let go of the pride of those bodies which have decayed. The play is now coming to an end, your 84 births are now ending. These souls and bodies are now old. Become satopradhan from tamopradhan now and you will receive satopradhan bodies. You souls should just be concerned to make yourselves satopradhan. The Father simply says: Constantly remember Me alone! Just have this one concern. You even say: Baba, I will definitely pass. You know that not everyone in a class would receive a scholarship. Nevertheless, many continue to make a lot of effort. You too understand that, in order to change from an ordinary man into Narayan, you do have to make full effort. Why should you make any less effort? Don't be concerned about anything else. Warriors aren't concerned about anything. Some say: Baba, I have many storms and dreams etc. All of that will happen. Just continue to remember the one Father. You must conquer that enemy. Sometimes, you will have such dreams that will make you flounder, such dreams you never even thought of or had in your subconscious mind. All of that is Maya. We are conquering Maya. We are taking back our kingdom from that enemy of half the cycle. We are not concerned about anything else. Brave people never quibble about anything. They go happily to war. You are in great comfort and claiming your inheritance from the Father. You have to renounce your dirty bodies. We are now going to our sweet silence home. The Father says: I have come to take you back home. Remember Me and you will become pure. Impure souls cannot go back. This is something new. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for dharna: In order to remain safe from performing sinful acts, link your intellect in love to the one Father. Renounce all pride in your decayed old body. Gain victory over Maya, the enemy, by remaining aware that you are a warrior. Don't be concerned about her. Maya interferes a great deal in an incognito way. Therefore, recognise her and be cautious. Blessing: May you become a holder of the urn of the nectar of knowledge and quench the thirst of those who are thirsty from the urn of knowledge. The majority of souls have now become tired of the temporary facilities of matter, the limited places that have been created for experiencing spiritual peace and of those who say that they will enable others to meet God. They have become disheartened. They believe that truth is something else; they are thirsty for attainment. The true drops of the introduction of souls and of God can satisfy such thirsty souls. Therefore, hold the urn of knowledge and quench the thirst of thirsty souls. Always keep the urn of nectar with you. Become immortal and make others immortal. Slogan: Make the art of adjusting yourself your aim and you will easily become perfect.
- आज की मुरली- 9 June 2020 | BK Murli today in Hindi, BrahmaKumaris
9-06-2020. Aaj ki Murli. 'Official' Murli Blog. मुरली, ओम् शान्ति, मधुबन. "मीठे बच्चे - सदा खुशी में रहो कि हमें कोई देहधारी नहीं पढ़ाते, अशरीरी बाप शरीर में प्रवेश कर खास हमें पढ़ाने आये हैं'' प्रश्नः- तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र क्यों मिला है? उत्तर:- हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है अपने शान्तिधाम और सुखधाम को देखने के लिए। इन आंखों से जो पुरानी दुनिया, मित्र-सम्बन्धी आदि दिखाई देते हैं उनसे बुद्धि निकाल देनी है। बाप आये हैं किचड़े से निकाल फूल (देवता) बनाने, तो ऐसे बाप का फिर रिगार्ड भी रखना है। ओम् शान्ति। शिव भगवानुवाच, बच्चों प्रति। शिव भगवान को सच्चा बाबा तो जरूर कहेंगे क्योंकि रचयिता है ना। अभी तुम बच्चे ही हो जिनको भगवान पढ़ाते हैं - भगवान भगवती बनाने के लिए। यह तो हर एक अच्छी रीति जानते हैं, ऐसा कोई स्टूडेन्ट होता नहीं जो अपने टीचर को, पढ़ाई को और उनकी रिजल्ट को न जानता हो। जिनको भगवान पढ़ाते हैं उनको कितनी खुशी होनी चाहिए! यह खुशी स्थाई क्यों नहीं रहती? तुम जानते हो हमको कोई देहधारी मनुष्य नहीं पढ़ाते हैं। अशरीरी बाप शरीर में प्रवेश कर खास तुम बच्चों को पढ़ाने आये हैं, यह किसको भी मालूम नहीं कि भगवान आकर पढ़ाते हैं। तुम जानते हो हम भगवान के बच्चे हैं, वह हमको पढ़ाते हैं, वही ज्ञान के सागर हैं। शिवबाबा के सम्मुख तुम बैठे हो। आत्मायें और परमात्मा अभी ही मिलते हैं, यह भूलो मत। परन्तु माया ऐसी है जो भुला देती है। नहीं तो वह नशा रहना चाहिए ना - भगवान हमको पढ़ाते हैं! उनको याद करते रहना चाहिए। परन्तु यहाँ तो ऐसे-ऐसे हैं जो बिल्कुल ही भूल जाते हैं। कुछ भी नहीं जानते। भगवान खुद कहते हैं कि बहुत बच्चे यह भूल जाते हैं, नहीं तो वह खुशी रहनी चाहिए ना। हम भगवान के बच्चे हैं, वह हमको पढ़ा रहे हैं। माया ऐसी प्रबल है जो बिल्कुल ही भुला देती है। इन आंखों से यह जो पुरानी दुनिया, मित्र-सम्बन्धी आदि देखते हो उनमें बुद्धि चली जाती है। अभी तुम बच्चों को बाप तीसरा नेत्र देते हैं। तुम शान्तिधाम-सुखधाम को याद करो। यह है दु:खधाम, छी-छी दुनिया। तुम जानते हो भारत स्वर्ग था, अभी नर्क है। बाप आकर फिर फूल बनाते हैं। वहाँ तुमको 21 जन्मों के लिए सुख मिलता है। इसके लिए ही तुम पढ़ रहे हो। परन्तु पूरा नहीं पढ़ने कारण यहाँ के धन-दौलत आदि में ही बुद्धि लटक पड़ती है। उनसे बुद्धि निकलती नहीं है। बाप कहते हैं शान्तिधाम, सुखधाम तरफ बुद्धि रखो। परन्तु बुद्धि गन्दी दुनिया तरफ एकदम जैसे चटकी हुई है। निकलती नहीं है। भल यहाँ बैठे हैं तो भी पुरानी दुनिया से बुद्धि टूटती नहीं है। अभी बाबा आया हुआ है-गुल-गुल पवित्र बनाने के लिए। तुम मुख्य पवित्रता के लिए ही कहते हो-बाबा हमको पवित्र बनाकर पवित्र दुनिया में ले जाते हैं तो ऐसे बाप का कितना रिगार्ड रखना चाहिए। ऐसे बाबा पर तो कुर्बान जायें। जो परमधाम से आकर हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं। बच्चों पर कितनी मेहनत करते हैं। एकदम किचड़े से निकालते हैं। अभी तुम फूल बन रहे हो। जानते हो कल्प-कल्प हम ऐसे फूल (देवता) बनते हैं। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। अभी हमको बाप पढ़ा रहे हैं। हम यहाँ मनुष्य से देवता बनने आये हैं। यह अभी तुमको मालूम पड़ा है, पहले यह पता नहीं था कि हम स्वर्गवासी थे। अभी बाप ने बताया है तुम राज्य करते थे फिर रावण ने राज्य लिया है। तुमने ही बहुत सुख देखे फिर 84 जन्म लेते-लेते सीढ़ी नीचे उतरते हो। यह है ही छी-छी दुनिया। कितने मनुष्य दु:खी हैं। कितने तो भूख मरते रहते हैं, कुछ भी सुख नहीं है। भल कितना भी धनवान है, तो भी यह अल्पकाल का सुख काग विष्टा समान है। इनको कहा जाता है विषय वैतरणी नदी। स्वर्ग में तो हम बहुत सुखी होंगे। अभी तुम सांवरे से गोरे बन रहे हो। अभी तुम समझते हो हम ही देवता थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते वेश्यालय में आकर पड़े हैं। अभी फिर तुमको शिवालय में ले जाते हैं। शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। तुमको पढ़ाई पढ़ा रहे हैं तो अच्छी रीति पढ़ना चाहिए ना। पढ़कर, चक्र बुद्धि में रखकर दैवीगुण धारण करने चाहिए। तुम बच्चे हो रूप-बसन्त, तुम्हारे मुख से सदा ज्ञान रत्न ही निकलें, किचड़ा नहीं। बाप भी कहते हैं मैं रूप-बसन्त हूँ... मैं परम आत्मा ज्ञान का सागर हूँ, पढ़ाई सोर्स आफ इनकम होती है। पढ़कर जब बैरिस्टर डॉक्टर आदि बनते हैं, लाखों कमाते हैं। एक-एक डॉक्टर मास में लाख रुपया कमाते हैं। खाने की भी फुर्सत नहीं रहती। तुम भी अभी पढ़ रहे हो। तुम क्या बनते हो? विश्व का मालिक। तो इस पढ़ाई का नशा होना चाहिए ना। तुम बच्चों में बातचीत करने की कितनी रॉयल्टी होनी चाहिए। तुम रॉयल बनते हो ना। राजाओं की चलन देखो कैसी होती है। बाबा तो अनुभवी है ना। राजाओं को नज़राना देते हैं, कभी ऐसे हाथ में लेंगे नहीं। अगर लेना होगा तो इशारा करेंगे-पोटरी को जाकर दो। बहुत रॉयल होते हैं। बुद्धि में यह ख्याल रहता है, इनसे लेते हैं तो इनको वापस भी देना है, नहीं तो लेंगे नहीं। कोई राजायें प्रजा से बिल्कुल लेते नहीं हैं। कोई तो बहुत लूटते हैं। राजाओं में भी फ़र्क होता है। अभी तुम सतयुगी डबल सिरताज राजाएं बनते हो। डबल ताज के लिए पवित्रता जरूर चाहिए। इस विकारी दुनिया को छोड़ना है। तुम बच्चों ने विकारों को छोड़ा है, विकारी कोई आकर बैठ न सके। अगर बिगर बताये आकर बैठ जाते हैं तो अपना ही नुकसान करते हैं। कोई चालाकी करते हैं, किसको पता थोड़ेही पड़ेगा। बाप भल देखे, न देखे, खुद ही पाप आत्मा बन पड़ते हैं। तुम भी पाप आत्मा थे। अब पुरुषार्थ से पुण्य आत्मा बनना है। तुम बच्चों को कितनी नॉलेज मिली है। इस नॉलेज से तुम कृष्णपुरी के मालिक बनते हो। बाप कितना श्रृंगारते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं तो कितना खुशी से पढ़ना चाहिए। ऐसी पढ़ाई तो कोई सौभाग्यशाली पढ़ते हैं और फिर सर्टीफिकेट भी लेना है। बाबा कहेंगे तुम पढ़ते कहाँ हो। बुद्धि भटकती रहती है। तो क्या बनेंगे! लौकिक बाप भी कहते हैं इस हालत में तो तुम नापास हो जायेंगे। कोई तो पढ़कर लाख कमाते हैं। कोई देखो तो धक्के खाते रहेंगे। तुमको फालो करना है, मदर फादर को। और जो ब्रदर्स अच्छी रीति पढ़ते पढ़ाते हैं, यही धंधा करते हैं। प्रदर्शनी में बहुतों को पढ़ाते हैं ना। आगे चल जितना दु:ख बढ़ता जायेगा उतना मनुष्यों को वैराग्य आयेगा फिर पढ़ने लग पड़ेंगे। दु:ख में भगवान को बहुत याद करेंगे। दु:ख में मरने समय हे राम, हाय भगवान करते रहते हैं ना। तुमको तो कुछ भी करना नहीं है। तुम तो खुशी से तैयारी करते हो। कहाँ यह पुराना शरीर छूटे तो हम अपने घर जायें। फिर वहाँ शरीर भी सुन्दर मिलेगा। पुरुषार्थ कर पढ़ाने वाले से भी ऊंच जाना चाहिए। ऐसे भी हैं पढ़ाने वाले से पढ़ने वाले की अवस्था बहुत अच्छी रहती है। बाप तो हर एक को जानते हैं ना। तुम बच्चे भी जान सकते हो अपने अन्दर को देखना चाहिए-हमारे में कौन-सी कमी है? माया के विघ्नों से पार जाना है, उसमें फँसना नहीं है। जो कहते हैं माया तो बड़ी जबरदस्त है, हम कैसे चल सकेंगे, अगर ऐसा सोचा तो माया एकदम कच्चा खा लेगी। गज को ग्राह ने खाया। यह अभी की बात है ना। अच्छे-अच्छे बच्चों को भी माया रूपी ग्राह एकदम हप कर लेता है। अपने को छुड़ा नहीं सकते हैं। खुद भी समझते हैं - हम माया के थप्पड़ से छूटने चाहते हैं। परन्तु माया छूटने नहीं देती है। कहते हैं बाबा माया को बोलो-ऐसे पकड़े नहीं। अरे, यह तो युद्ध का मैदान है ना। मैदान में ऐसे थोड़ेही कहेंगे इनको कहो हमको अंगूरी न लगावे। मैच में कहेंगे क्या हमको बाल नहीं देना। झट कह देंगे युद्ध के मैदान में आये हो तो लड़ो, तो माया खूब पछाड़ेगी। तुम बहुत ऊंच पद पा सकते हो। भगवान पढ़ाते हैं, कम बात है क्या! अभी तुम्हारी चढ़ती कला होती है - नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। हर एक बच्चे को शौक रखना है कि हम भविष्य जीवन हीरे जैसा बनायें। विघ्नों को मिटाते जाना है। कैसे भी करके बाप से वर्सा जरूर लेना है। नहीं तो हम कल्प-कल्पान्तर फेल हो जायेंगे। समझो कोई साहूकार का बच्चा है, बाप उनको पढ़ाई में अटक (रूकावट) डालते हैं तो कहेगा हम यह लाख भी क्या करेंगे, हमको तो बेहद के बाप से विश्व की बादशाही लेनी है। यह लाख-करोड़ तो सब भस्मीभूत हो जाने वाले हैं। किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी जलाये आग, सारे सृष्टि रूपी भंभोर को आग लगनी है। यह सारी रावण की लंका है। तुम सब सीतायें हो। राम आया हुआ है। सारी धरती एक टापू है, इस समय है ही रावण राज्य। बाप आकर रावण राज्य को खलास कराये तुमको रामराज्य का मालिक बनाते हैं। तुमको तो अन्दर में अथाह खुशी होनी चाहिए-गाया हुआ है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो बच्चों से पूछो। तुम प्रदर्शनी में अपना सुख बताते हो ना। हम भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। श्रीमत पर भारत की सेवा कर रहे हैं। जितना-जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना तुम श्रेष्ठ बनेंगे। तुमको मत देने वाले ढेर निकलेंगे इसलिए वह भी परखना है, सम्भालना है। कहाँ-कहाँ माया भी गुप्त प्रवेश हो जाती है। तुम विश्व के मालिक बनते हो, अन्दर में बहुत खुशी रहनी चाहिए। तुम कहते हो बाबा हम आपसे स्वर्ग का वर्सा लेने आये हैं। सत्य नारायण की कथा सुनकर हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। तुम सब हाथ उठाते हो बाबा हम आपसे पूरा वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे, नहीं तो हम कल्प-कल्प गंवा देंगे। कोई भी विघ्न को हम उड़ा देंगे, इतनी बहादुरी चाहिए। तुमने इतनी बहादुरी की है ना। जिससे वर्सा मिलता है उनको थोड़ेही छोड़ेंगे। कोई तो अच्छी रीति ठहर गये, कोई फिर भागन्ती हो गये। अच्छे-अच्छे को माया खा गई। अजगर ने खाकर सारा हप कर लिया। अब बाप कहते हैं हे आत्मायें, बहुत प्यार से समझाते हैं। मैं पतित दुनिया को आकर पावन दुनिया बनाता हूँ। अब पतित दुनिया का मौत सामने खड़ा है। अब मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। पतित राजाओं का भी राजा। सिंगल ताज वाले राजा डबल ताज वाले राजाओं को माथा क्यों झुकाते हैं, आधाकल्प बाद जब इन्हों की वह पवित्रता उड़ जाती है, तो रावण राज्य में सब विकारी और पुजारी बन जाते हैं। तो अब बाप बच्चों को समझाते हैं-कोई ग़फलत नहीं करो। भूल न जाओ। अच्छी रीति पढ़ो। रोज़ क्लास अटेण्ड नहीं कर सकते हो तो भी बाबा सब प्रबन्ध दे सकते हैं। 7 रोज़ का कोर्स लो, जो मुरली को सहज समझ सको। कहाँ भी जाओ सिर्फ दो अक्षर याद करो। यह है महामंत्र। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। कोई भी विकर्म वा पाप कर्म देह-अभिमान में आने से ही होता है। विकर्मों से बचने के लिए बुद्धि की प्रीति एक बाप से ही लगानी है। कोई देहधारी से नहीं। एक से बुद्धि का योग लगाना है। अन्त तक याद करना है तो फिर कोई विकर्म नहीं होगा। यह तो सड़ी हुई देह है। इनका अभिमान छोड़ दो। नाटक पूरा होता है, अभी हमारे 84 जन्म पूरे हुए। यह पुरानी आत्मा पुराना शरीर है। अब तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है फिर शरीर भी सतोप्रधान मिल जायेगा। आत्मा को सतोप्रधान बनाना है-यही तात लगी रहे। बाप सिर्फ कहते हैं मामेकम् याद करो। बस यही ओना रखो। तुम भी कहते हो ना-बाबा हम पास होकर दिखायेंगे। क्लास में जानते हैं सबको स्कॉलरशिप तो नहीं मिलेगी। फिर भी पुरुषार्थ तो बहुत करते हैं ना। तुम भी समझते हो हमको नर से नारायण बनने का पूरा पुरुषार्थ करना है। कम क्यों करें। कोई भी बात की परवाह नहीं। वारियर्स कभी परवाह नहीं करते हैं। कोई कहते हैं बाबा बहुत तूफान, स्वप्न आदि आते हैं। यह तो सब होगा। तुम एक बाप को याद करते रहो। इन दुश्मन पर जीत पानी है। कोई समय ऐसे-ऐसे स्वप्न आयेंगे न मन, न चित, ऐसे-ऐसे घुटके आयेंगे। यह सब माया है। हम माया को जीतते हैं। आधा-कल्प के लिए दुश्मन से राज्य लेते हैं, हमको कोई परवाह नहीं। बहादुर कभी चूँ-चाँ नहीं करते। लड़ाई में खुशी से जाते हैं। तुम तो यहाँ बड़े आराम से बाप से वर्सा लेते हो। यह छी-छी शरीर छोड़ना है। अब जाते हैं स्वीट साइलेन्स होम। बाप कहते हैं मैं आया हूँ, तुमको ले चलने। मुझे याद करो तो पावन बनेंगे। इमप्योर आत्मा जा न सके। यह हैं नई बातें। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) विकर्मों से बचने के लिए बुद्धि की प्रीत एक बाप से लगानी है, इस सड़ी हुई देह का अभिमान छोड़ देना है। 2) हम वारियर्स हैं, इस स्मृति से माया रूपी दुश्मन पर विजय प्राप्त करनी है, उसकी परवाह नहीं करनी है। माया गुप्त रूप में बहुत प्रवेश करती है इसलिए उसे परखना और सम्भलना है। वरदान:- ज्ञान कलष धारण कर प्यासों की प्यास बुझाने वाले अमृत कलषधारी भव! अभी मैजारिटी आत्मायें प्रकृति के अल्पकाल के साधनों से, आत्मिक शान्ति प्राप्त करने के लिए बने हुए अल्पज्ञ स्थानों से, परमात्म मिलन मनाने के ठेकेदारों से थक गये हैं, निराश हो गये हैं, समझते हैं सत्य कुछ और है, प्राप्ति के प्यासे हैं। ऐसी प्यासी आत्माओं को आत्मिक परिचय, परमात्म परिचय की यथार्थ बूँद भी तृप्त आत्मा बना देगी इसलिए ज्ञान कलष धारण कर प्यासों की प्यास बुझाओ। अमृत कलष सदा साथ रहे। अमर बनो और अमर बनाओ। स्लोगन:- एडॅजेस्ट होने की कला को लक्ष्य बना लो तो सहज सम्पूर्ण बन जायेंगे।
- BK Murli - 8 June 2020 | Aaj ki Murli Hindi | Brahma Kumaris
08-06-2020 Aaj ki Murli. Official Murli blog. मुरली ओम् शान्ति मधुबन "मीठे बच्चे- तुम्हें अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, इसलिए अब तुम्हारी आंख किसी में भी डूबनी नहीं चाहिए'' प्रश्नः- जिन्हें पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य होगा, उनकी निशानी क्या होगी? उत्तर:- वो अपना सब कुछ बाप को अर्पण कर देंगे, हमारा कुछ भी नहीं। बाबा हमारी यह देह भी नहीं है, यह तो पुरानी देह है, इनको भी छोड़ना है। उनका मोह सबसे टूटता जायेगा, नष्टोमोहा होंगे। उनकी बुद्धि में रहता कि यहाँ का कुछ भी काम नहीं आना है, क्योंकि यह सब हद का है। ओम् शान्ति। बाप बच्चों को ब्रह्माण्ड और सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुना रहे हैं। जो और कोई भी सुना नहीं सकते। एक गीता ही है, जिसमें राजयोग का वर्णन है, भगवान आकर नर से नारायण बनाते हैं। यह सिवाए गीता के और कोई शास्त्र में नहीं है। यह भी बाप ने बतलाया है, कहते हैं मैंने तुमको राजयोग सिखाया था। यह समझाया था कि यह ज्ञान कोई परम्परा नहीं चलता है। बाप आकर एक धर्म की स्थापना करते हैं। बाकी और सब धर्म विनाश हो जाते हैं। कोई भी शास्त्र आदि परम्परा नहीं चलते। और जो धर्म स्थापन करने आते हैं उस समय कोई विनाश नहीं होता है, जो सब खलास हो जाएं। भक्ति-मार्ग के शास्त्र पढ़ते ही आते हैं, इनका (ब्राह्मण धर्म का) भल शास्त्र है गीता, परन्तु वह भी भक्ति मार्ग में ही बनाते हैं क्योंकि सतयुग में तो कोई शास्त्र रहता ही नहीं और धर्मों के समय विनाश तो होता ही नहीं। पुरानी दुनिया खत्म होती नहीं जो फिर नई हो। वही चलती आती है। अभी तुम बच्चे समझते हो यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। हमको बाप पढ़ा रहे हैं। गायन भी एक गीता का ही है। गीता जयन्ती भी मनाते हैं। वेद जयन्ती तो है नहीं। भगवान एक है, तो एक की ही जयन्ती मनानी चाहिए। बाकी है रचना, उनसे कुछ मिल नहीं सकता। वर्सा बाप से ही मिलता है। चाचा, काका आदि से कोई वर्सा नहीं मिलता। अभी यह है तुम्हारा बेहद का बाप, बेहद का ज्ञान देने वाला। यह कोई शास्त्र नहीं सुनाते हैं। कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग के हैं। इन सबका सार तुमको समझाता हूँ। शास्त्र कोई पढ़ाई नहीं। पढ़ाई से तो पद प्राप्त होता है, यह पढ़ाई बाप पढ़ा रहे हैं बच्चों को। भगवानुवाच बच्चों प्रति-फिर 5 हज़ार वर्ष बाद भी ऐसे ही होगा। बच्चे जानते हैं हम बाप से रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हैं। यह कोई और तो समझा न सके सिवाए बाप के। इस मुख कमल से सुनाते हैं। यह भगवान का लोन लिया हुआ मुख है ना, जिसको गऊमुख भी कहते हैं। बड़ी माता है ना। इनके मुख से ज्ञान के वर्शन्स निकलते हैं, न कि जल आदि। भक्ति मार्ग में फिर गऊमुख से जल दिखा दिया है। अभी तुम बच्चे समझते हो भक्ति मार्ग में क्या-क्या करते हैं। कितना दूर गऊमुख आदि पर जाते हैं पानी पीने। अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। यह तो जानते हो-बाप कल्प-कल्प आकर मनुष्य से देवता बनाने के लिये पढ़ाते हैं। देखते हो कैसे पढ़ा रहे हैं। तुम सबको यह बतलाते हो-भगवान हमें पढ़ा रहे हैं। कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएं। तुम जानते हो सतयुग में थोड़े मनुष्य होते हैं। कलियुग में कितने ढेर मनुष्य हैं। बाप आकरके आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं। मनुष्य से देवता बनने वाले बच्चों में दैवीगुण दिखाई देंगे। उनमें क्रोध का अंश भी नहीं होगा। अगर कभी क्रोध आ गया तो झट बाप को लिखेंगे, बाबा आज हमसे यह भूल हो गई। हमने क्रोध कर लिया, विकर्म कर लिया। बाप से तुम्हारा कितना कनेक्शन है। बाबा क्षमा करना। बाप कहेंगे क्षमा आदि होती नहीं। बाकी आगे के लिए ऐसी भूल नहीं करना। टीचर कोई क्षमा नहीं करते हैं। रजिस्टर दिखाते हैं-तुम्हारे मैनर्स अच्छे नहीं हैं। बेहद का बाप भी कहते हैं-तुम अपने मैनर्स देख रहे हो। रोज़ अपना पोतामेल देखो, किसको दु:ख तो नहीं दिया, किसको तंग तो नहीं किया? दैवीगुण धारण करने में टाइम तो लगता है ना। देह-अभिमान बड़ा ही मुश्किल से टूटता है। जब अपने को देही समझें तब बाप में भी लव जाए। नहीं तो देह के कर्मबन्धन में ही बुद्धि लटकी रहती है। बाप कहते हैं तुमको शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है, उनसे टाइम निकाल सकते हो। भक्ति के लिए भी टाइम निकालते हैं ना। मीरा कृष्ण की ही याद में रहती थी ना। पुनर्जन्म तो यहाँ ही लेती गई। अभी तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से वैराग्य आता है। जानते हैं इस पुरानी दुनिया में फिर पुनर्जन्म लेना ही नहीं है। दुनिया ही खत्म हो जाती है। यह सब बातें तुम्हारी बुद्धि में हैं। जैसे बाबा में ज्ञान है वैसे बच्चों में भी है। यह सृष्टि का चक्र और कोई की बुद्धि में नहीं है। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जिनकी बुद्धि में यह रहता है ऊंच ते ऊंच पतित-पावन बाप है, वह हमको पढ़ाते हैं। यह भी तुम ही जानते हो। तुम्हारी बुद्धि में सारा 84 का चक्र है। स्मृति रहती है-अभी इस नर्क में यह अन्तिम जन्म है, इनको कहा जाता है रौरव नर्क। बहुत गंद है, इसलिए सन्यासी लोग घरबार छोड़ जाते हैं। वह हो जाती है शारीरिक बात। तुम सन्यास करते हो बुद्धि से क्योंकि तुम जानते हो हमको अभी वापिस जाना है। सबको भूलना पड़ता है। यह पुरानी छी-छी दुनिया खत्म हुई पड़ी है। मकान पुराना होता है, नया बनकर तैयार होता है तो दिल में आता है ना-यह मकान टूट ही जायेगा। अभी तुम बच्चे पढ़ रहे हो ना। जानते हो नई दुनिया की स्थापना हो रही है। अभी थोड़ी देरी है। बहुत बच्चे आकर पढ़ेंगे। नया मकान अभी बन रहा है, पुराना टूटता जा रहा है। बाकी थोड़े दिन है। तुम्हारी बुद्धि में यह बेहद की बातें हैं। अब हमारी इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगती है। यह कुछ भी आखिर काम में नहीं आना है, हम यहाँ से जाना चाहते हैं। बाप भी कहते हैं पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है। मुझ बाप को और घर को याद करो तो विकर्म विनाश हों। नहीं तो बहुत सज़ायें खायेंगे। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। आत्मा को फुरना लगा हुआ है हमने 84 जन्म भोगे हैं। अब बाप को याद करना है, तब विकर्म विनाश होंगे। बाप की मत पर चलना है तब ही श्रेष्ठ जीवन बनेगी। बाप है ऊंच ते ऊंच। यह भी तुम ही जानते हो। बाप अच्छी रीति स्मृति दिलाते हैं, वह बेहद का बाप ही ज्ञान का सागर है, वही आकर पढ़ाते हैं। बाप कहते हैं यह पढ़ाई भी पढ़ो, शरीर निर्वाह अर्थ भी सब कुछ करो। परन्तु ट्रस्टी होकर रहो। जिन बच्चों को पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य होगा वह अपना सब कुछ बाप को अर्पण कर देंगे। हमारा कुछ भी नहीं। बाबा हमारी यह देह भी नहीं है। यह तो पुरानी देह है, इनको भी छोड़ना है, सबसे मोह टूटता जाता है। नष्टोमोहा हो जाना है। यह है बेहद का वैराग्य। वह हद का वैराग्य होता है। बुद्धि में है हम स्वर्ग में जाकर अपने महल बनायेंगे। यहाँ का कुछ भी काम नहीं आयेगा क्योंकि यह सब हद का है। तुम अभी हद से निकल बेहद में जाते हो। तुम्हारी बुद्धि में यह बेहद का ज्ञान ही रहना चाहिए। अभी और कोई में भी आंख नहीं डूबती है। अब तो अपने घर जाना है। कल्प-कल्प बाप आकर हमको पढ़ाए फिर साथ ले जाते हैं। तुम्हारे लिए यह कोई नई पढ़ाई नहीं है। तुम जानते हो कल्प-कल्प हम पढ़ते हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। सारी दुनिया में कितने ढेर मनुष्य हैं, परन्तु तुम थोड़ेही जानते हो, आहिस्ते-आहिस्ते यह ब्राह्मणों का झाड़ वृद्धि को पाता रहता है। ड्रामा प्लैन अनुसार स्थापना होनी ही है। बच्चे जानते हैं हमारी रूहानी गवर्मेंन्ट है। हम दिव्य दृष्टि से नई दुनिया को देखते हैं। वहाँ ही जाना है। भगवान भी एक है, वही पढ़ाने वाला है, राजयोग बाप ने ही सिखलाया था। उस समय लड़ाई भी बरोबर लगी थी अनेक धर्मों का विनाश, एक धर्म की स्थापना हुई थी। तुम भी वही हो, कल्प-कल्प तुम ही पढ़ते आये हो, वर्सा लेते आये हो। पुरूषार्थ हर एक को अपना करना है। यह है बेहद की पढ़ाई। यह शिक्षा कोई मनुष्य मात्र दे न सके। बाप ने श्याम और सुन्दर का भी राज़ समझाया है। तुम भी समझते हो अभी हम सुन्दर बन रहे हैं। पहले श्याम थे। कृष्ण कोई अकेला थोड़ेही था। सारी राजधानी थी ना। अभी तुम समझते हो हम नर्कवासी से स्वर्गवासी बन रहे हैं। अभी तुमको इस नर्क से ऩफरत आती है। तुम अभी पुरूषोत्तम संगमयुग पर आ गये हो। इतने ढेर आते हैं, इनसे निकलेंगे फिर भी वही जो कल्प पहले निकले होंगे। संगमयुग को भी अच्छी रीति याद करना है। हम पुरूषोत्तम अर्थात् मनुष्य से देवता बन रहे हैं। मनुष्य तो यह भी नहीं समझते कि नर्क क्या है और स्वर्ग क्या है? कहते हैं सब कुछ यहाँ ही है, जो सुखी हैं वह स्वर्ग में हैं, जो दु:खी हैं वह नर्क में हैं। अनेक मत हैं ना। एक घर में भी अनेक मतें हो जाती हैं। बच्चों आदि में मोह की रग है, वह टूटती नहीं। मोहवश कुछ समझते थोड़ेही हैं कि हम कैसे रहते हैं। पूछते हैं बच्चे की शादी करायें? परन्तु बच्चों को यह भी लॉ (नियम) समझाया जाता है कि तुम स्वर्गवासी होने के लिए एक तरफ नॉलेज ले रहे हो, दूसरे तरफ पूछते हो उनको नर्क में डालें? पूछते हो तो बाबा कहेंगे जाकर करो। बाबा से पूछते हैं तो बाबा समझाते हैं इनका मोह है। अब ना करेंगे तो भी अवज्ञा कर देंगे। बच्ची की तो करानी ही है, नहीं तो संगदोष में खराब हो जाती है। बच्चों को नहीं करा सकते। परन्तु हिम्मत चाहिए ना! बाबा ने इनसे एक्ट कराया ना। इनको देखकर फिर और करने लग पड़े। घर में भी बहुत झगड़े लग पड़ते हैं। यह है ही झगड़ों की दुनिया, कांटों का जंगल है ना। एक-दो को काटते रहते हैं। स्वर्ग को कहा जाता है गार्डन। यह है जंगल। बाप आकर कांटों से फूल बनाते हैं। कोई विरले निकलते हैं, प्रदर्शनी में भल हाँ हाँ करते हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं। एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं। राजधानी स्थापन करने में टाइम तो लगता है ना। मनुष्य अपने को कांटा समझते थोड़ेही हैं। इस समय सूरत मनुष्य की भल है परन्तु सीरत बन्दर से भी बदतर है। परन्तु अपने को ऐसा समझते नहीं हैं तो बाप कहते हैं अपनी रचना को समझाना है। अगर नहीं समझते हैं तो फिर भगा देना चाहिए। परन्तु वह ताकत चाहिए ना। मोह का कीड़ा ऐसा लगा रहता है जो निकल न सके। यहाँ तो नष्टोमोहा बनना है। मेरा तो एक दूसरा न कोई। अब बाप आया है, लेने के लिए। पावन बनना है। नहीं तो बहुत सज़ा खायेंगे, पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। अब अपने को सतोप्रधान बनाने का ही फुरना लगा हुआ है। शिव के मन्दिर में जाकर तुम समझा सकते हो-भगवान ने भारत को स्वर्ग का मालिक बनाया था, अब वह फिर से बना रहे हैं, कहते हैं सिर्फ मामेकम् याद करो। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बन अपना सब कुछ अर्पण कर देना है। हमारा कुछ भी नहीं, यह देह भी हमारी नहीं। इनसे मोह तोड़ नष्टोमोहा बनना है। 2) कभी भी ऐसी कोई भूल नहीं करनी है जो रजिस्टर पर दाग़ लग जाए। सर्व दैवीगुण धारण करने हैं, अन्दर क्रोध का ज़रा भी अंश न हो। वरदान:- डबल लाइट बन सर्व समस्याओं को हाई जम्प दे पार करने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव! सदा स्वयं को अमूल्य रत्न समझ बापदादा के दिल की डिब्बी में रहो अर्थात् सदा बाप की याद में समाये रहो तो किसी भी बात में मुश्किल का अनुभव नहीं करेंगे, सब बोझ समाप्त हो जायेंगे। इसी सहजयोग से डबल लाइट बन, पुरूषार्थ में हाई जम्प देकर तीव्र पुरूषार्थी बन जायेंगे। जब भी कोई मुश्किल का अनुभव हो तो बाप के सामने बैठ जाओ और बापदादा के वरदानों का हाथ स्वयं पर अनुभव करो इससे सेकण्ड में सर्व समस्याओं का हल मिल जायेगा। स्लोगन:- सहयोग की शक्ति असम्भव बात को भी सम्भव बना देती है, यही सेफ्टी का किला है
- BK Murli - 8 June 2020 | Brahma Kumaris Murli today in English
08/06/20 Sakar Murli today, Official Murli Blog, Madhuban "Sweet children, each of you has now received a third eye of knowledge. Therefore, your vision should no longer be drawn to anything." Question: What are the signs of those who have unlimited disinterest in the old world? Answer: They offer everything they have to the Father. They consider nothing to belong to them. They say: Baba even this body doesn’t belong to me. This is an old body and I have to discard it. Their attachment to everything continues to break and they destroy all attachment. It remains in their intellects that everything of this world is limited and of no use. Om Shanti. The Father gives you children the knowledge of Brahmand (element of light) and the beginning, middle and end of the world, which no one else can give. Only the Gita mentions Raj Yoga and that God comes and changes ordinary humans into Narayan. This is not mentioned in any scripture other than the Gita. The Father had told you this. He says: I taught you Raj Yoga. I also explained that this knowledge does not continue from time immemorial. The Father comes and establishes the one religion and then all the other religions are destroyed. None of the scriptures etc. continue from time immemorial. Destruction does not take place when the founders of religions come to establish their religions, otherwise everything would then come to an end. Those on the path of devotion continue to study the scriptures. Although the scripture of the Brahmin religion is the Gita, that too is created on the path of devotion because no scriptures exist in the golden age. Destruction does not take place when other religions come into existence. The old world is not destroyed at any of those times so that a new one can be created; the same world continues. You children understand that this old world is now to be destroyed. The Father is teaching us. It is only the Gita that is praised. The birth of the Gita is also celebrated. There is no celebration for the birth of the Vedas. There is only one God. Therefore, they should only celebrate the birth of the One. The rest is creation and nothing can be attained from that. It is only from the Father that you receive the inheritance. An inheritance is not received from a maternal or paternal uncle etc. That One is your unlimited Father, the One who gives you unlimited knowledge. He does not relate any scriptures to you. He says: All of that belongs to the path of devotion. I tell you the essence of all the scriptures. The scriptures are not a study. One receives a status through a study. The Father is teaching you children this study. God speaks to you children now and this will then repeat again in the same way after 5000 years. You children have come to know the Creator and the beginning, middle and end of creation from the Father. No one but the Father can explain all of this to you. He speaks to you through this lotus mouth. This is the mouth that God has taken on loan. It is also called "Gaumukh” (cow's mouth). This one is also the senior mother. Versions of knowledge, not water etc., emerge from his mouth. On the path of devotion, water is shown emerging from a Gaumukh. You children now understand what they do on the path of devotion. They travel so far to Gaumukh etc. to drink that water. You are now changing from ordinary humans into deities. You know that the Father comes every cycle to teach you in order to change you from ordinary humans into deities. You can see how He is teaching you. You tell everyone that God is teaching you. He says: Constantly remember Me alone and your sins will be absolved. You know that there are very few human beings in the golden age. There are so many human beings in the iron age. The Father comes and establishes the original eternal deity religion. We are becoming deities from ordinary humans. Divine virtues will be visible in the children who are becoming deities from human beings. They will not have the slightest trace of anger in them. If, by chance, they become angry, they would immediately write to the Father: Baba, I made this mistake today. I became angry and committed a sin. How much connection do you have with the Father? "Baba, forgive me.” The Father would say: There can’t be forgiveness, but do not make the same mistake again. A teacher doesn’t forgive you. He would show you the register and explain that your manners are not good. The unlimited Father also says: You can see your own manners. Look at your chart every day and ask yourself: Did I cause anyone sorrow today? Did I upset anyone today? It takes time to imbibe divine virtues. It is with great difficulty that body consciousness breaks. Only when you consider yourself to be bodiless can there be love for the Father. Otherwise, the intellect is caught up with the karmic accounts of the body. The Father says: You do have to act for the livelihood of your body, but you can also make time for this. People make time to do devotion. Meera would only stay in remembrance of Krishna, but she had to continue to take rebirth here. You children now have disinterest in this old world. You know that you are not going to take rebirth in this old world. This world is to be destroyed. All of these aspects are in your intellects. Just as Baba has this knowledge, so you children too have this knowledge. The knowledge of the world cycle is not in the intellect of anyone else. The children who are able to keep this knowledge in their intellects are also numberwise. The highest-on-high Father is the Purifier and He is teaching us. Only you know this. The cycle of 84 births is in your intellects. You are now aware that this is your final birth in hell. This is called the extreme depths of hell. There is a great deal of dirt everywhere. This is why sannyasis leave their homes and families. That is a physical aspect. You discard everything from your intellects because you know that you now have to return home. You have to forget everyone. This dirty old world is already dead for you. When your house has become old and a new one is being built, it enters your heart that that house will be demolished. You children are now studying. You know that the new world is being established; just a short time remains. Many children will come and study here. Your new house is being built and the old one will continue to be demolished. Very few days remain. These unlimited aspects are in your intellects. Your hearts are no longer attached to this old world. None of this is going to be useful at the end. We now want to go away from here. The Father says: Do not attach your hearts to this old world. Remember Me, your Father, and remember your home and your sins will be absolved. Otherwise, you will experience a great deal of punishment and your status will also be destroyed. You souls know that you have gone through 84 births and so you are now concerned with having to remember the Father so that your sins can be absolved. Follow the Father’s directions; only then can you make your lives elevated. The Father is the Highest on High. Only you know this. The Father reminds you of this very well. That unlimited Father is the Ocean of Knowledge. He comes here to teach us. The Father says: Do everything you have to do for your livelihoods but also study this study and remain trustees. The children who have unlimited disinterest in the old world will offer everything they have to the Father. Nothing belongs to us. Baba, even this body doesn’t belong to me. This is an old body; it has to be renounced. Attachment to everything is breaking. You have to become conquerors of attachment. This is unlimited disinterest, whereas the other disinterest is limited. It is in your intellects that you will go to heaven and create your own palaces. Nothing of this world will be useful there because everything here is limited. You are now coming out of the limited and going into the unlimited. Only this unlimited knowledge should remain in your intellects. Your vision is no longer drawn to anything here. We now have to return home. The Father comes every cycle to teach us and then takes us back home with Him. This is not a new study for you. You know that you study this every cycle. You are all numberwise. There are so many human beings in the whole world. However, only a few of you know this. This tree of Brahmins continues to grow gradually. According to the dramaplan, establishment has to take place. You children know that this is your spiritual government. We are able to see the new world in divine visions. We have to go there. God is only One. He is the One who teaches us. The Father taught us Raj Yoga. Then, the war took place and there was establishment of the one religion and destruction of many religions. You are the same ones. You have been studying for cycle after cycle and claiming your inheritance. All of you have to make your own efforts. This study of yours is unlimited. No human being can give you these teachings. The Father has also explained the secrets of Shyam and Sundar. You understand that you are now becoming beautiful and that, previously, you were ugly. It was not only Krishna who was this; there was the whole kingdom. You now understand that you are becoming residents of heaven from residents of hell. You now dislike this hell. You have come to the most auspicious confluence age. So many come here, but only those who emerged in the previous cycle will emerge again. Remember the confluence age very well. We are becoming the most elevated; we are becoming deities from ordinary humans. People don’t even understand what hell is or what heaven is. They say that everything exists together here, that those who are happy are in heaven and that those who are unhappy are in hell. There are many opinions. There are many opinions in the one home. The strings of attachment of some to their children don’t break. Due to their attachment, they don’t understand in what way they are living. They ask: Should I allow my son to get married? However, this discipline has been explained to you children. On the one hand, you are taking knowledge to become a resident of heaven. On the other hand, you ask if you should send him to hell! Since you ask, Baba says: Go ahead and let him do it. Because you ask Baba this, Baba understands that you have attachment to the child. Even if Baba were to say "No”, there would be disobedience. Daughters have to be married. Otherwise, they may be ruined by keeping bad company. Sons don’t have to get married, but you do need courage for that. Baba demonstrated that through this one. When others saw this one, they started to do the same. There was a great deal of quarrelling in their homes. This is the world of fighting and quarrelling; it is a jungle of thorns. People continue to hurt one another. Heaven is called a garden. This is a jungle. The Father comes and changes you from thorns into flowers. Scarcely a few emerge. Although they say "Yes" to everything you say at the exhibitions, they understand nothing at all; it goes in one ear and out of the other. It takes time to establish a kingdom. Human beings don’t consider themselves to be thorns. Although they have the features of human beings, their characters are worse than those of monkeys. However, they don’t consider themselves to be like that. Therefore, the Father says: Explain to your creation. If they don’t understand anything, make them leave. However, you need strength to do that. The insects of attachment have attached themselves so much that they cannot be removed. Here, you have to become destroyers of attachment. Mine is One and none other. The Father has now come to take us back home. You have to become pure. Otherwise, there will be a great deal of punishment and your status will be destroyed. Your only concern should now be to make yourselves satopradhan. Go and explain at the temples to Shiva: God made the people of Bharat into the masters of heaven, and He is doing that once again. He says: Simply remember Me alone. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for dharna: Have unlimited disinterest in this old world and offer everything you have to the Father. Nothing belongs to me. Even this body doesn’t belong to me. Break your attachment to it and become a destroyer of attachment. Never make a mistake through which your register would become marked. Imbibe all the divine virtues. There should not be the slightest trace of anger in you. Blessing: May you become an intense effort-maker who overcomes all problems by being double light and taking a high jump. Always consider yourself to be an invaluable jewel and stay in the container of BapDada’s heart, that is, remain constantly merged in remembrance of the Father and you will not experience any situation to be difficult and all your burdens will finish. With this easy yoga, become double light and take a high jump in your efforts and you will become an intense effort-maker. Whenever you experience anything to be difficult, sit in front of the Father and experience BapDada’s hand of blessings over you, for by doing this, you will find solutions to all problems in a second. Slogan: The power of co-operation makes even something impossible possible; it is a fortress of safety.
- आज की मुरली- 7 June 2020 | BK Murli today in Hindi
07-06-20 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 20-01-86 मधुबन पुरुषार्थ और परिवर्तन के गोल्डन चांस का वर्ष आज समर्थ बाप अपने समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। जिन समर्थ आत्माओं ने सबसे बड़े ते बड़ा समर्थ कार्य विश्व को नया श्रेष्ठ विश्व बनाने का दृढ़ संकल्प किया है। हर आत्मा को शान्त वा सुखी बनाने का समर्थ कार्य करने का संकल्प किया है और इसी श्रेष्ठ संकल्प को लेकर दृढ़ निश्चय बुद्धि बन कार्य को प्रत्यक्ष रूप में ला रहे हैं। सभी समर्थ बच्चों का एक ही यह श्रेष्ठ संकल्प है कि यह श्रेष्ठ कार्य होना ही है। इससे भी ज्यादा यह निश्चित है कि यह कार्य हुआ ही पड़ा है। सिर्फ कर्म और फल के पुरुषार्थ और प्रालब्ध के निमित्त और निर्माण के कर्म फिलॉसाफी के अनुसार निमित्त बन कार्य कर रहे हैं। भावी अटल है। लेकिन सिर्फ आप श्रेष्ठ भावना द्वारा, भावना का फल अविनाशी प्राप्त करने के निमित्त बने हुए हैं। दुनिया की अन्जान आत्मायें यही सोचती हैं - कि शान्ति होगी, क्या होगा, कैसे होगा! कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती। क्या सचमुच होगा! और आप कहते हो, होगा तो क्या लेकिन हुआ ही पड़ा है क्योंकि नई बात नहीं है। अनेक बार हुआ है और अब भी हुआ ही पड़ा है। निश्चयबुद्धि निश्चित भावी को जानते हो। इतना अटल निश्चय क्यों है? क्योंकि स्व परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रमाण से जानते हो कि प्रत्यक्ष प्रमाण के आगे और कोई प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं है। साथ-साथ परमात्म कार्य सदा सफल है ही है। यह कार्य आत्माओं, महान आत्माओं वा धर्म आत्माओं का नहीं है। परमात्म कार्य सफल हुआ ही पड़ा है, ऐसे निश्चय बुद्धि, निश्चित भविष्य को जानने वाले निश्चिन्त आत्मायें हो। लोग कहते हैं वा डरते हैं कि विनाश होगा और आप निश्चिन्त हो कि नई स्थापना होगी। कितना अन्तर है - असम्भव और सम्भव का। आपके सामने सदा स्वर्णिम दुनिया का, स्वर्णिम सूर्य उदय हुआ ही पड़ा है और उन्हों के सामने हैं विनाश की काली घटायें। अभी आप सभी तो समय समीप होने के कारण सदा खुशी के घुंघरू डाल नाचते रहते हो कि आज पुरानी दुनिया है, कल स्वर्णिम दुनिया होगी। आज और कल इतना समीप पहुँच गये हो। अभी इस वर्ष 'सम्पूर्णता और समानता" का समीप अनुभव करना है। सम्पूर्णता आप सभी फरिश्तों का विजय माला ले आवाह्न कर रही है। विजय माला के अधिकारी तो बनना है ना। सम्पूर्ण बाप और सम्पूर्ण स्टेज दोनों ही आप बच्चों को बुला रहे हैं कि आओ श्रेष्ठ आत्मायें आओ, समान बच्चे आओ, समर्थ बच्चे आओ, समान बन अपने स्वीट होम में विश्रामी बनो। जैसे बापदादा विधाता है, वरदाता है ऐसे आप भी इस वर्ष विशेष ब्राह्मण आत्माओं प्रति वा सर्व आत्माओं प्रति विधाता बनो, वरदाता बनो। कल देवता बनने वाले हो अब अन्तिम फरिश्ता स्वरूप बनो। फरिश्ता क्या करता? वरदाता बन वरदान देता है। देवता सदा देता है, लेता नहीं है। लेवता नहीं कहते। तो वरदाता और विधाता, फरिश्ता सो देवता ... अभी यह महामंत्र हम फरिश्ता सो देवता, इस मंत्र को विशेष स्मृति स्वरूप बनाओ। मनमनाभव तो हो ही गये, यह आदि का मंत्र रहा। अभी इस समर्थ मंत्र को अनुभव में लाओ। "यह होना चाहिए, यह मिलना चाहिए'' यह दोनों ही बातें लेवता बनाती हैं, लेवता-पन के संस्कार देवता बनने में समय डाल देंगे, इसलिए इन संस्कारों को समाप्त करो। पहले जन्म में ब्रह्मा के घर से देवता बन नये जीवन, नये युग के वन नम्बर में आओ। संवत भी वन-वन-वन हो। प्रकृति भी सतोप्रधान नम्बरवन हो। राज्य भी नम्बरवन हो। आपकी गोल्डन स्टेज भी नम्बर वन हो। एक दिन के फर्क में भी वन-वन-वन से बदल जायेगा। अभी से फरिश्ता सो देवता बनने के लिए बहुतकाल के संस्कार प्रैक्टिकल कर्म में इमर्ज करो क्योंकि बहुतकाल का जो गायन है, वह बहुत-काल की सीमा अब समाप्त हो रही है। उसकी डेट नहीं गिनती करो। विनाश को अन्तकाल कहा जायेगा, उस समय बहुतकाल का चांस तो समाप्त है ही, लेकिन थोड़े समय का भी चांस समाप्त हो जायेगा इसलिए बापदादा बहुतकाल की समाप्ति का इशारा दे रहे हैं। फिर बहुतकाल की गिनती का चांस समाप्त हो थोड़ा समय पुरूषार्थ, थोड़ा समय प्रालब्ध, यही कहा जायेगा। कर्मों के खाते में अब बहुतकाल खत्म हो थोड़ा समय वा अल्पकाल आरम्भ हो रहा है इसलिए यह वर्ष परिवर्तन काल का वर्ष है। बहुतकाल से थोड़े समय में परिवर्तन होना है, इसलिए इस वर्ष के पुरुषार्थ में बहुतकाल का हिसाब जितना जमा करने चाहो वह कर लो। फिर उल्हना नहीं देना कि हम तो अलबेले होकर चल रहे थे। आज नहीं तो कल बदल ही जायेंगे इसलिए कर्मों की गति को जानने वाले बनो। नॉलेजफुल बन तीव्रगति से आगे बढ़ो। ऐसा न हो दो हजार का हिसाब ही लगाते रहो। पुरुषार्थ का हिसाब अलग है और सृष्टि परिवर्तन का हिसाब अलग है। ऐसा नहीं सोचो- कि अभी 15 वर्ष पड़ा है, अभी 18 वर्ष पड़ा है। 99 में होगा... यह नहीं सोचते रहना। हिसाब को समझो। अपने पुरुषार्थ और प्रालब्ध के हिसाब को जान उस गति से आगे बढ़ो। नहीं तो बहुतकाल के पुराने संस्कार अगर रह गये तो इस बहुतकाल की गिनती धर्मराजपुरी के खाते में जमा हो जायेगी। कोई-कोई का बहुतकाल के व्यर्थ, अयथार्थ कर्म-विकर्म का खाता अभी भी है, बापदादा जानते हैं सिर्फ आउट नहीं करते हैं। थोड़ा-सा पर्दा डालते हैं। लेकिन व्यर्थ और अयथार्थ, यह खाता अभी भी बहुत है इसलिए यह वर्ष एकस्ट्रा गोल्डन चांस का वर्ष है - जैसे पुरुषोत्तम युग है वैसे यह पुरुषार्थ और परिवर्तन के गोल्डन चांस का वर्ष है इसलिए विशेष हिम्मत और मदद के इस विशेष वरदान के वर्ष को साधारण 50 वर्ष के समान नहीं गंवाना। अभी तक बाप स्नेह के सागर बन सर्व सम्बन्ध के स्नेह में, अलबेलापन, साधारण पुरुषार्थ इसको देखते-सुनते भी न सुन, न देख बच्चों को स्नेह की एकस्ट्रा मदद से, एकस्ट्रा मार्क्स देकर बढ़ा रहे हैं। लिफ्ट दे रहे हैं। लेकिन अभी समय परिवर्तन हो रहा है इसलिए अभी कर्मों की गति को अच्छी तरह से समझ समय का लाभ लो। सुनाया था ना - कि 18 वाँ अध्याय आरम्भ हो गया है। 18 अध्याय की विशेषता - अब स्मृति स्वरूप बनो। अभी स्मृति, अभी विस्मृति नहीं। स्मृति स्वरूप अर्थात् बहुतकाल स्मृति स्वत: और सहज रहे। अभी युद्ध के संस्कार, मेहनत के संस्कार, मन को मुँझाने के संस्कार इसकी समाप्ति करो। नहीं तो यही बहुतकाल के संस्कार बन अन्त मति सो भविष्य गति प्राप्त कराने के निमित्त बन जायेंगे। सुनाया ना - अभी बहुतकाल के पुरुषार्थ का समय समाप्त हो रहा है और बहुतकाल की कमजोरी का हिसाब शुरू हो रहा है। समझ में आया! इसलिए यह विशेष परिवर्तन का समय है। अभी वरदाता है फिर हिसाब-किताब करने वाले बन जायेंगे। अभी सिर्फ स्नेह का हिसाब है। तो क्या करना है! स्मृति स्वरूप बनो। स्मृति स्वरूप स्वत: ही नष्टोमोहा बना ही देगा। अभी तो मोह की लिस्ट बड़ी लम्बी हो गई है। एक स्व की प्रवृत्ति, एक दैवी परिवार की प्रवृत्ति, सेवा की प्रवृत्ति, हद के प्राप्तियों की प्रवृत्ति - इन सभी से नष्टोमोहा अर्थात् न्यारा बन प्यारा बनो। मैं-पन अर्थात् मोह, इससे नष्टोमोहा बनो तब बहुतकाल के पुरूषार्थ से बहुतकाल के प्रालब्ध की प्राप्ति के अधिकारी बनेंगे। बहुतकाल अर्थात् आदि से अन्त तक की प्रालब्ध का फल। वैसे तो एक-एक प्रवृत्ति से निवृत होने का राज़ भी अच्छी तरह से जानते हो और भाषण भी अच्छा कर सकते हो। लेकिन निवृत होना अर्थात् नष्टोमोहा होना। समझा! प्वाइंटस तो आपके पास बाप-दादा से भी ज्यादा हैं इसलिए प्वाइंट्स क्या सुनायें, प्वाइंट्स तो हैं अब प्वाइन्ट बनो। अच्छा! सदा श्रेष्ठ कर्मों के प्राप्ति की गति को जानने वाले, सदा बहुतकाल के तीव्र पुरुषार्थ के, श्रेष्ठ पुरुषार्थ के श्रेष्ठ संस्कार वाले, सदा स्वर्णिम युग के आदि रत्न, संगमयुग के भी आदि रत्न, स्वर्णिम युग के भी आदि रत्न, ऐसे आदि देव के समान बच्चों को, आदि बाप, अनादि बाप की सदा आदि बनने की श्रेष्ठ वरदानी यादप्यार और साथ-साथ सेवाधारी बाप की नमस्ते। दादियों से - घर का गेट कौन खोलेगा? गोल्डन जुबली वाले वा सिल्वर जुबली वाले, ब्रह्मा के साथ गेट तो खोलेंगे ना। या पीछे आयेंगे? साथ जायेंगे तो सजनी बनकर जायेंगे और पीछे जायेंगे तो बराती बनकर जायेंगे। सम्बन्धी भी तो बराती कहे जायेंगे। नजदीक तो हैं लेकिन कहा जायेगा - बरात आई है। तो कौन गेट खोलेगा? गोल्डन जुबली वाले वा सिल्वर जुबली वाले? जो घर का गेट खोलेंगे वही स्वर्ग का गेट भी खोलेंगे। अभी वतन में आने की किसको मना नहीं है। साकार में तो फिर भी बन्धन है, समय का सरकमस्टांस का। वतन में आने के लिए तो कोई बन्धन नहीं। कोई नहीं रोकेगा, टर्न लगाने की भी जरूरत नहीं। अभ्यास से ऐसा अनुभव करेंगे, जैसे यहाँ शरीर में होते हुए एक सेकेण्ड में चक्कर लगाकर वापस आ गये। जो अन्त: वाहक शरीर से चक्र लगाने का गायन है, यह अन्तर की आत्मा वाहन बन जाती है। तो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे बिल्कुल बटन दबाया, विमान उड़ा, चक्र लगाके आ गये और दूसरे भी अनुभव करेंगे कि यह यहाँ होते हुए भी नहीं है। जैसे साकार में देखा ना-बात करते-करते भी सेकेण्ड में है और अभी नहीं है। अभी-अभी है, अभी-अभी नहीं है। यह अनुभव किया ना। ऐसे अनुभव किया ना। इसमें सिर्फ स्थूल विस्तार को समेटने की आवश्यकता है। जैसे साकार में देखा-इतना विस्तार होते हुए भी अन्तिम स्टेज क्या रही? विस्तार को समेटने की, उपराम रहने की। अभी-अभी स्थूल डारेक्शन दे रहे हैं और अभी-अभी अशरीरी स्थिति का अनुभव करा रहे हैं। तो यह समेटने की शक्ति की प्रत्यक्षता देखी। जो आप लोग भी कहते थे कि बाबा यहाँ है या नहीं हैं। सुन रहे हैं या नहीं सुन रहे हैं। लेकिन वह तीव्रगति ऐसी होती है, जो कार्य मिस नहीं करेंगे। आप बात सुना रहे हो तो बात मिस नहीं करेंगे। लेकिन गति इतनी तीव्र है जो दोनों ही काम एक मिनट में कर सकते है। सार भी कैच कर लेंगे और चक्र भी लगा लेंगे। ऐसे भी अशरीरी नहीं होंगे जो कोई बात कर रहा है आप कहो कि सुना ही नहीं। गति फास्ट हो जाती है। बुद्धि इतनी विशाल हो जाती है जो एक ही समय पर दोनों कार्य करते हैं। यह तब होता जब समेटने की शक्ति यूज़ करो। अभी प्रवृत्ति का विस्तार हो गया है। उसमें रहते हुए यही अभ्यास फरिश्ते पन का साक्षात्कार करायेगा! अभी एक-एक छोटी-छोटी बात के पीछे यह जो मेहनत करनी पड़ती हैं, वह स्वत: ही ऊंचे जाने से यह छोटी बातें व्यक्त भाव की अनुभव होंगी। ऊंचे जाने से नीचा पन अपने आप छूट जायेगा। मेहनत से बच जायेंगे। समय भी बचेगा और सेवा भी फास्ट होगी, नहीं तो कितना समय देना पड़ता है। अच्छा। सिलवर जुबली में आये हुए भाई बहिनों प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश - रजत जयन्ति के शुभ अवसर पर रूहानी बच्चों के प्रति स्नेह के सुनहरे पुष्प सारे विश्व में ऊंचे से ऊंचे महायुग के महान पार्टधारी युग परिवर्तक बच्चों को श्रेष्ठ सुहावने जीवन की मुबारक हो। सेवा में वृद्धि के निमित्त बनने के विशेष भाग्य की मुबारक हो। आदि से परमात्म स्नेही और सहयोगी बनने की, सैम्पल बनने की मुबारक हो। समय के समस्याओं के तूफान को तोफा समझ सदा विघ्न-विनाशक बनने की मुबारक हो। बापदादा सदा अपने ऐसे अनुभवों के खजानों से सम्पन्न सेवा के फाउण्डेशन बच्चों को देख हर्षित होते हैं और बच्चों के साहस के गुणों की माला सिमरण करते हैं। ऐसे लकी और लवली अवसर पर विशेष सुनहरे वरदान देते सदा एक बन, एक को प्रत्यक्ष करने के कार्य में सफल भव। रूहानी जीवन में अमर भव। प्रत्यक्ष फल और अमर फल खाने के पद्मा पदम भाग्यवान भव। वरदान:- वाह ड्रामा वाह की स्मृति से अनेकों की सेवा करने वाले सदा खुशनुम: भव इस ड्रामा की कोई भी सीन देखते हुए वाह ड्रामा वाह की स्मृति रहे तो कभी भी घबरायेंगे नहीं क्योंकि ड्रामा का ज्ञान मिला कि वर्तमान समय कल्याणकारी युग है, इसमें जो भी दृश्य सामने आता है उसमें कल्याण भरा हुआ है। वर्तमान में कल्याण दिखाई न भी दे लेकिन भविष्य में समाया हुआ कल्याण प्रत्यक्ष हो जायेगा-तो वाह ड्रामा वाह की स्मृति से सदा खुशनुम:रहेंगे, पुरूषार्थ में कभी भी उदासी नहीं आयेगी। स्वत: ही आप द्वारा अनेको की सेवा होती रहेगी। स्लोगन:- शान्ति की शक्ति ही मन्सा सेवा का सहज साधन है, जहाँ शान्ति की शक्ति है वहाँ सन्तुष्टता है।